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Thursday,17-April-2025
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बिहार : ओवैसी, देवेंद्र के साथ आने से चुनाव में बदलेगा सियासी गणित का फार्मूला!

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Asaduddin-Owaisi...

अल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और पूर्व सांसद देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) के मिलकर संयुक्त जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन (यूडीएसए) बनाने और बिहार में चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद यह तय माना जा रहा है कि आगामी राज्य विधानसभा चुनाव में लड़ाई अब रोचक होगी।

ओवैसी और सजद (डी) के साथ में बिहार की राजनीति में प्रवेश को भले ही राजनीतिक दल खुले तौर पर परेशानी का सबब नहीं बता रहे हैं, लेकिन यह तय है कि इनके साथ आकर बिहार चुनाव लड़ने की घोषणा से सीमांचल क्षेत्रों में किसी भी पार्टी के लिए लड़ाई आसान नहीं होगी।

कहा जा रहा है कि ओवैसी ने देवेंद्र यादव की पार्टी के साथ गठबंधन कर बिहार के यादव और मुस्लिम मतदाताओं में सेंध लगाने की चाल चली है। मुस्लिम और यादव मतदाता राजद के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं।

संयुक्त जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन (यूडीएसए) ने हालांकि अब तक सीटों की संख्या तय नहीं की है, लेकिन माना जा रहा है कि कोसी और पूर्णिया क्षेत्रों में यह गठबंधन अपने प्रत्याशी उतारेगी।

सीमांचल की 15 से 17 सीटों पर मुसलमान मतदाता जहां निर्णायक होते हैं वहीं कई ऐसी सीटें भी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता परिणाम को प्रभावित करते हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारी थी और सभी प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था। पांच सीटों पर तो उनके प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी। दीगर बात है कि 2019 में किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव में एआईएमआईएम के कमरूल होदा ने जीत दर्ज की थी।

राजनीति के जानकार और किशनगंज के वरिष्ठ पत्रकार रत्नेश्वर झा भी कहते हैं कि ओवैसी और योगेंद्र यादव के साथ आने के बाद तय है कि यादव और मुस्लिम वोट बैंक का बिखराव होगा, जो राजद के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।

वे कहते हैं, “यूडीएसए के निशाने पर जो मतदाता होंगे, वह महागठबंधन के वोट माने जाते रहे हैं, इसलिए यूडीएसए जितना भी वोट पाएगी, वह महागठबंधन को ही नुकसान पहुंचाएगा।”

कहा जा रहा है कि ओवैसी की प्रचार शैली आक्रामक और ध्रुवीकरण पैदा करने वाली रही है, ऐसे में ओवैसी का प्रभाव बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

इधर, राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी किसी प्रकार के नुकसान को नकारते हुए आईएएनएस से कहते हैं, “बिहार में दो धाराओं के बीच लड़ाई है। इसके अलावा जो भी लोग इस चुनाव में आ रहे हैं, वह किसके इशारे पर आ रहे हैं, यहां के लोगों को इसका पता है। भाजपा के खिलाफ लड़ाई को जो भी कमजोर करने की कोशिश करेंगे, उसको यहां की जनता खुद जवाब देगी।”

राजद भले ही यूडीएसएए को खारिज कर रहा हो, लेकिन उनके मुस्लिम और यादव वोट बैंक में कुछ सेंध लगना तय है। ओवैसी के मुस्लिम बहुल इलाकों में उम्मीदवार उतारने का कुछ हद तक फोयदा भाजपा को मिल सकता है। यह तय है कि सभी मुसलमान ओवैसी को वोट नहीं देंगे और वोटों का बिखराव होगा।

इधर, भाजपा के प्रवक्ता डॉ़ निखिल आनंद भाजपा को लाभ मिलने को लेकर उन्होंने कहा, “ओवैसी जैसे नेता तुष्टिकरण की राजनीति से मुसलमानों की भावना भड़का कर वोट पाने की जुगत में रहते हैं। बिहार की जनता ऐसे नेताओं के विचारधारा को समझती है।”

उन्होंने कहा कि राजग (एनडीए) इस चुनाव में धर्म और जाति के आधार पर राजनीति करने वालों की राजनीति नेस्तनाबूद कर देगी। उन्होंने कहा कि यह चुनाव बिहार के विकास के लिए चुनाव है।

राष्ट्रीय समाचार

वक्फ परिषद के गठन में हिंदू सदस्यों की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा, गुरुवार को फिर सुनवाई

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नई दिल्ली, 16 अप्रैल। वक्फ (संशोधन) अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की पीठ ने मुस्लिम पक्ष और संशोधन समर्थक दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। सुनवाई के दौरान विभिन्न संशोधित धाराओं जैसे कि धारा 3, 9, 14, 36 और 83 पर विशेष चर्चा हुई।

मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ताओं ने दलील दी कि इन संशोधनों से उनके संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन हुआ है। उनका कहना था कि संशोधन उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करता है।

वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल और अधिनियम के समर्थकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन पूरी तरह संविधान सम्मत हैं और इनमें मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की कोई बात नहीं है।

सुनवाई के दौरान माननीय न्यायालय ने अपने प्रारंभिक अवलोकन में यह कहा कि अधिकांश संशोधन संविधान के अनुरूप प्रतीत होते हैं। हालांकि, न्यायालय ने ‘यूजर’ की परिभाषा पर स्पष्टता मांगी है। इसके अलावा, वक्फ परिषद के गठन में हिंदू सदस्यों की भूमिका को लेकर भी कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण की मांग की है।

कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं से इन दोनों मुद्दों पर विशेष रूप से सहायता और स्पष्टीकरण देने को कहा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे होगी।

इससे पहले मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष इस अहम मामले में वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें रखनी शुरू कीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बहस की शुरुआत की, जिसके बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलीलें पेश कीं।

अधिवक्ता सिंघवी ने कोर्ट के समक्ष कहा कि देशभर में करीब आठ लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें से चार लाख से अधिक संपत्तियां ‘वक्फ बाई यूजर’ के तौर पर दर्ज हैं। उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद इन संपत्तियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है।

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि जब वे दिल्ली हाईकोर्ट में थे, तब उन्हें बताया गया था कि वह जमीन वक्फ संपत्ति है। उन्होंने कहा, “हमें गलत मत समझिए, हम यह नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ बाई यूजर संपत्तियां गलत हैं।”

इसके साथ ही बुधवार को दोनों पक्षों के बीच बहस जारी रही और सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दो बजे फिर से सुनवाई का समय दिया है।

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महाराष्ट्र

‘अंधेरी से बांद्रा तक फास्ट ट्रेन 30 मिनट में!’: बांद्रा और माहिम के बीच गति प्रतिबंध से पश्चिम रेलवे के यात्री परेशान, लोकल सेवाएं 10-15 मिनट तक विलंबित

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मुंबई: बुधवार, 16 अप्रैल को मुंबई की पश्चिमी लाइन पर लोकल ट्रेन सेवाएं बांद्रा और माहिम स्टेशनों के बीच गति प्रतिबंध लगाए जाने के कारण देरी से चलीं। इस कदम से हज़ारों दैनिक यात्री प्रभावित हुए हैं, यात्रा में बड़ी बाधाएँ आईं हैं और दफ़्तर जाने वालों में निराशा फैल गई है।

पश्चिम रेलवे ने ट्रेन सेवाओं में देरी पर अपडेट साझा किया

मीठी नदी को पार करने वाले सेक्शन पर चलने वाली ट्रेनें वर्तमान में 20-30 किलोमीटर प्रति घंटे की बेहद कम गति से चल रही हैं। धीमी गति से चलने के कारण उपनगरीय ट्रेनें 15 मिनट तक देरी से चल रही हैं, जिससे तेज़ और धीमी लोकल ट्रेनों के शेड्यूल में गड़बड़ी हो रही है। पश्चिमी रेलवे के मुंबई डिवीजन के डिवीजनल रेलवे मैनेजर (DRM) ने देरी की पुष्टि की और असुविधा के लिए माफ़ी मांगी।

“इससे लोगों की दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो रही है। अंधेरी से बांद्रा जाने वाली एक तेज़ ट्रेन 30 मिनट से ज़्यादा समय ले रही है। यह क्या बकवास है? तेज़ ट्रेन धीमी ट्रेन से भी धीमी चल रही है!” एक निराश यात्री ने सोशल मीडिया पर लिखा। एक अन्य ने अधिकारियों से अपील करते हुए कहा, “कृपया जल्द से जल्द सामान्य स्थिति बहाल करें।”

अधिकारियों ने बताया कि मौजूदा गति सीमा अस्थायी है और सप्ताह के अंत तक इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 45 किलोमीटर प्रति घंटा कर दिया जाएगा। प्रतिबंध का कारण मीठी नदी पर बने पुराने रेलवे पुल का हाल ही में किया गया ओवरहाल है। ब्रिटिश काल में निर्मित इस पुल को कास्ट आयरन स्क्रू पाइल्स द्वारा सहारा दिया गया था, जिन्हें अब संरचनात्मक रूप से विश्वसनीय नहीं माना जाता था। सुरक्षा बढ़ाने के लिए अब इन्हें आधुनिक स्टील गर्डरों से बदल दिया गया है।

माहिम-बांद्रा के बीच पश्चिम रेलवे रात्रि ब्लॉक के बारे में

पुनर्निर्माण कार्य शुक्रवार और शनिवार को रात्रि ब्लॉक के दौरान किया गया। प्रत्येक रात, 9.5 घंटे के लिए सेवाएं निलंबित की गईं, जिसके दौरान महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग कार्य पूरे किए गए। इन ब्लॉकों के दौरान, परियोजना के सुचारू निष्पादन को सुविधाजनक बनाने के लिए कुल 334 लोकल ट्रेन सेवाएं रद्द की गईं।

हालांकि यह अपग्रेड दीर्घकालिक सुरक्षा और विश्वसनीयता के लिए आवश्यक था, लेकिन चल रही देरी ने मुंबई की तेज-तर्रार कामकाजी आबादी को बुरी तरह प्रभावित किया है। पश्चिमी रेलवे ने यात्रियों को आश्वासन दिया कि स्थिति में लगातार सुधार होगा और नए पुल की संरचना नियमित यातायात के तहत स्थिर होने के बाद सामान्य परिचालन फिर से शुरू होने की उम्मीद है। तब तक, यात्रियों को सलाह दी गई है कि वे देरी को ध्यान में रखते हुए अपनी यात्रा की योजना बनाएं।

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महाराष्ट्र

महायोति सरकार का लाडली बहनों के साथ धोखा, लाडली बहनों की किस्तों में कटौती विश्वासघात है: अबू आसिम आज़मी

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मुंबई: महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के नेता अबू आसिम आजमी ने दिल्ली बहन की किस्त में कटौती को उनके साथ विश्वासघात करार दिया है। उन्होंने कहा कि जिस तरह चुनाव की रात वोट के लिए अवैध रूप से नकदी बांटी जाती है, प्रति व्यक्ति वोट के लिए 1,000 और 2,000 रुपये इलाकों में बांटे जाते हैं, उसी तरह चुनाव से पहले लाडिली बहन योजना के तहत महिलाओं को लालच दिया गया। यह महायोति सरकार द्वारा एक प्रकार का धोखा है और अब जब इसका अर्थ पता चल गया है, तो वे इसे पहचान नहीं रहे हैं।

उन्होंने पूछा कि क्या महायोति सरकार लाडली बहनों के वोट भी लौटाएगी जो इन बहनों ने चुनाव में उन्हें दिए थे। उन्होंने कहा कि लाडली बहन योजना के कारण सरकारी खजाने पर बोझ पड़ा है। सरकारी कर्मचारियों, डॉक्टरों और अन्य स्टाफ का वेतन भी देरी से दिया गया है, ऐसे में सरकार ने लाडली बहनों के साथ धोखा किया है।

चुनाव के बाद किस्त में बढ़ोतरी की घोषणा की गई और 2100 रुपये देने का वादा किया गया, लेकिन अब इसे 1500 रुपये से घटाकर 500 रुपये कर दिया गया है। सरकार ने लाडली बहन योजना में दो करोड़ से अधिक महिलाओं को शामिल किया था, लेकिन अब बहाने और हथकंडे अपनाकर उन्हें अयोग्य ठहराया जा रहा है। यह वोट देने वाली बहनों के साथ विश्वासघात है।

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