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न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर अन्नदाता को गुमराह होने की जरूरत नहीं

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Kailash-Choudhary

कोरोना महामारी के संकट के समय पूरे देश का पेट भरने की शक्ति साबित करने वाले अन्नदाता को उनकी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर गुमराह होने की जरूरत नहीं है। मोदी सरकार के हर फैसले में किसानों का हित सर्वोपरि होता है, क्योंकि सरकार का मानना है कि किसान समृद्ध होगा, तो देश समृद्ध होगा। इसलिए एमएसपी को हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद एमएसपी पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया, जिससे किसानों को फसलों की लागत पर 50 फीसदी से ज्यादा लाभ के साथ एमएसपी मिलना सुनिश्चित हुआ है।

मोदी सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है कि कोरोना काल में भी एमएसपी पर गेहूं की रिकॉर्ड खरीद हुई है। इसके अलावा दलहनी और तिलहनी फसलों की भी एमएसपी पर खरीद कर सरकार ने किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम दिलाया। अबकी बार खरीफ सीजन में तय समय से पहले ही धान की खरीद शुरू हो चुकी है, जबकि कुछ फसलों की एमएसपी पर खरीद 1 अक्टूबर से शुरू होने जा रही है।

किसानों को उनकी फसलों का बेहतर व लाभकारी दाम मिले इसके लिए सरकार प्रयासरत है और इसी मकसद से नये कानून के जरिए कृषि क्षेत्र में सुधार के कार्यक्रमों को लागू करने का मार्ग सुगम बनाया गया है। किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रही यह सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी, जो अन्नदाता की समृद्धि के मार्ग में बाधक बने।

किसानों को आर्थिक आजादी दिलाने और उनकी समृद्धि की कामना से मोदी सरकार ने कोरोना काल में कृषि क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव के मकसद से तीन अहम फैसले लेते हुए तीन अध्यादेश लाए, जिन्हें संसद के मानसून सत्र में विधेयक के रूप में पेश किया गया और संसद की मुहर लगने के बाद महामाहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के साथ अब ये कानून बन गए हैं।

इससे कृषि उत्पादों के विपणन के लिये न सिर्फ एक देश एक बाजार का वर्षों से संजोये सपने को मोदी सरकार ने साकार किया है, बल्कि कृषि को उद्योग का दर्जा दिलाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया है। किसान अब अपनी उपज का दाम खुद तय कर पायेंगे। ऐसे में अब उन्हें एमएसपी को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है।

वर्ष 2014-15 में गेहूं, ज्वार, मूंग, सूर्यमुखी, राम तिल और नारियल के एमएसपी से तुलना करें तो 2019-20 में इन फसलों के एमएसपी में 525 रुपये से लेकर 4,410 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा हुआ है। इसी प्रकार, अन्य फसलों के एमएसपी में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। एमएसपी में यह वृद्धि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान हई है।

कोरोना काल में केंद्र सरकार के प्रयासों से रबी सीजन की फसलों की खरीद की समुचित व्यवस्था करने के लिए खरीद केंद्रों की संख्या बढ़ाई गई, जिससे गेहूं की रिकॉर्ड खरीद हुई और अन्य फसलों की खरीद के परिमाण में भारी इजाफा हुआ। देशभर में सरकारी एजेंसियों ने बीते रबी खरीद सीजन में 389.76 लाख टन गेहूं सीधे किसानों से खरीदा, जोकि अब तक का रिकॉर्ड है, इसके लिए किसानों को 75,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। धान की खरीद में 2014-15 के मुकाबले 2019 में करीब 74 फीसदी का इजाफा हुआ है।

केंद्र सरकार निरंतर किसानों के हित में कार्य कर रही है। इस साल 2020 में गेहूं, धान, दलहन और तिलहन फसलों को मिलाकर किसानों को 1 लाख 13,000 करोड़ रुपये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में भुगतान किया गया है। यह भुगतान राशि पिछले वर्ष की तुलना में 31 फीसदी ज्यादा है। पिछले वर्ष कुल 86.8 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।

फसलों का एमएसपी किसानों को दिलाने की आवश्यकता तब होती है, जब किसानों को उनके उत्पादों का उचित दाम नहीं मिलता है। लेकिन जब किसान खुद अपने उत्पादों का मूल्य तय करेगा तो फिर उन्हें एमएसपी की चिंता करने की जरूरत नहीं होगी। मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाने वाले एमएसपी के मसले पर किसानों को गुमराह कर अपनी खिसकती राजनीतिक जमीन को बचाने की जुगत में हैं। इसलिए किसानों को गुमराह होने की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार ने कृषि से जुड़े जो तीन कानून बनाए हैं, उनका एक ही मकसद है कि किसानों को उनके उत्पादों का अधिकतम लाभकारी दाम मिले जिससे उनके जीवन में खुशहाली आए।

देश में कोरोना वायरस संक्रमण की विषम परिस्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने जब प्रभावी कदम उठाया था, उस समय देश में रबी फसलों की कटाई चल रही थी और ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई का सीजन था। इसलिए, सरकार ने फसलों की बुवाई कटाई, परिवहन, विपणन को पूर्णबंद से मुक्त रखा। लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में कृषि उपज विपणन समिति (एमएसपी) द्वारा संचालित जींस मंडियां बंद रहने से किसानों की कठिनाइयां बढ़ गई थीं। वे अपनी फसल बेच नहीं पा रहे थे। लिहाजा, सरकार ने अध्यादेश के जरिए किसानों को देश में कहीं भी और किसी को भी फसल बेचने की आजादी देते हुए, एक देश एक कृषि उत्पाद बाजार के उनके सपने को साकार किया।

देश में जब फसलों के भंडारण, परिवहन, प्रसंस्कारण समेत मूल्यवर्धन श्रंखला दुरुस्त होगी तो किसानों को फसलों का बेहतर दाम मिलेगा। आज सिर्फ 22 अनुसूचित फसलों के लिए एमएसपी का निर्धारण किया जाता है, जबकि सरकार चाहती है कि तमाम कृषि एवं बागवानी फसलों का किसानों को लाभकारी मूल्य मिले। इसी मकसद से दशकों पुराने कानून (आवश्यरक वस्तुय अधिनियम, 1955) में संशोधन किया गया है और दो ऐसे कानून बनाये गये हैं, जिससे किसान बेरोक-टोक अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है। साथ ही किसानों को खेती करने से पहले ही दाम मिलने का भरोसा होगा, इसके लिए अनुबंध पर खेती करने का प्रावधान किया गया है। इसमें बुवाई के वक्त ही किसानों को फसल की तय कीमत मिलने का आश्वासन दिया जाएगा और कटाई के वक्त कीमत ज्यादा होने पर उसके लाभ से भी किसान वंचित नहीं होंगे। यह सिर्फ फसल का अनुबंध होगा, न कि किसानों की जमीन का।

आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 में संशोधन करके अनाज, दलहन, तिलहन व खाद्य तेल समेत आलू और प्याज, टमाटर को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। इन कृषि उत्पादों के भंडारण प्रसंस्करण व मूल्यवर्धन के लिए अब निजी निवेशक आगे आएंगे, जिससे किसानों को इन उत्पादों का बेहतर व लाभकारी मूल्य मिलेगा। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि बागवानी उत्पादों की खेती जिन क्षेत्रों में होती है, वहां की मंडियों में कीमतें कम होती हैं, जबकि उपभोक्ता बाजार में फल व सब्जियां ऊंचे भाव पर बिकती हैं। दरअसल उत्पादक से उपभोक्ता के बीच की जो कड़ियां हैं, उनमें कई सारे बिचैलिये होते हैं, जो मोटा मुनाफा कमाते हैं, जबकि किसानों को कम दाम मिलता है। सरकार ने इन बिचैलियों को सप्लाई चेन से हटाने के लिए ही ये कानूनी बदलाव किए हैं, जिसके बाद अब किसान सीधे थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी व प्रशंस्करणकर्ताओं को अपने उत्पाद बेच सकते हैं। इससे किसानों को उनकी फसलों का उचित व लाभकारी दाम दिलाना सुनिश्चित होगा।

कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020 मोदी सरकार का एक ऐतिहासिक फैसला है। इससे किसानों को देशभर में कहीं भी और किसी को भी अपनी फसल बेचने की आजादी मिली है, पहले ऐसा नहीं था। किसानों को कृषि उपज मंडी समिति कानून के तहत संचालित मंडियों में आढ़तियों और व्यापारियों का मोहताज बने रहना पड़ता था। उनकी फसलों की बोली लगायी जाती थी। क्या किसी औद्योगिक उत्पाद की बिक्री के लिये उसकी बोली लगायी जाती है? शायद नहीं। क्योंकि औद्योगिक उत्पादों के दाम तो पहले से ही तय होते हैं और यह दाम तय करने का अधिकार उद्योगपतियों के हाथों में होता है। कंपनियां अपने उत्पादों के दाम तो फिर किसानों के उत्पादों का दाम कोई आढ़ती या बिचैलिया क्यों करें? किसानों की इस विवशता को आजादी के बाद अगर किसी ने समझा तो, वह देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं। किसानों के दर्द को महसूस करने वाले मोदी जी ने सत्ता में आने के बाद कृषि क्षेत्र की उन्नति और किसानों की समृद्धि के लिये एक के बाद एक किसान हितैषी कई फैसले लिये हैं। कृषि और सम्बद्ध क्षेत्र में सुधार के लिये लाये गये नये कानून किसानों के हक में हैं। इसे कॉरपोरेट और निजी पूंजीपतियों को फायदा दिलाने की दिशा में कदम बताने वाले दरअसल इसे मुद्दा बनाकर राजनीति करना चाहते हैं, क्योंकि उनके लिये राजनीति करने का कोई मसला नहीं बचा है। जो लोग यह कह रहे हैं कि मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता (अधिकार प्रदान करना और सुरक्षा) और कृषि सेवा कानून 2020 से कॉरपोरेट को फायदा होगा, उनको मालूम होना चाहिए कि मोदी सरकार ने देश में दस हजार किसान उत्पादन संगठन (एफपीओ) बनाने का लक्ष्य रखा है।

दरअसल उत्पादन से लेकर बाजार तक किसानों की हिस्सेदारी होगी। मतलब उत्पादक विक्रेता भी बनेंगे। कृषि क्षेत्र में निसंदेह इन फैसलों से निजी निवेश, यहां तक कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी आकर्षित होगा, लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा किसानों को होगा।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू कर विभिन्न फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी की गई। एमएसपी के निर्धारण में डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के फार्मूले का अनुपालन किया जा रहा है। इस सरकार ने स्वामीनाथन समिति की 201 सिफारिशों में से 200 सिफारिशों को लागू किया है, जिसका वर्षों से इंतजार किया जा रहा था। आज जो लोग एमएसपी को लेकर किसानों को गुमराह कर रहे हैं दरअसल, उनकी ही सरकारों ने कभी स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने में दिलचस्पी नहीं दिखायी। इसलिए एमएसपी को लेकर को गुमराह होने की जरूरत नहीं है। एसएसपी हमेशा रहेगा।

(लेखक केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री हैं और इस आलेख में उनका निजी विचार है)

चुनाव

23 नवंबर को विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद क्या महाराष्ट्र राष्ट्रपति शासन से बच पाएगा?

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महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है क्योंकि चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे, जिससे एमवीए और महायुति गठबंधन दोनों के पास 26 नवंबर को मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले सरकार बनाने के लिए सिर्फ 72 घंटे का समय बचा है। ऐसा करने में विफलता से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। 

अधिकांश एग्जिट पोल में महायुति की जीत की भविष्यवाणी

महाराष्ट्र में मुकाबला सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन और विपक्षी महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के बीच है। जबकि कई एग्जिट पोल महायुति की जीत की भविष्यवाणी करते हैं, कम से कम तीन सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 288 सदस्यीय विधानसभा में दोनों में से किसी भी गुट को 145 सीटों के आवश्यक बहुमत की संभावना नहीं है। इसका परिणाम त्रिशंकु विधानसभा हो सकता है, एक ऐसी स्थिति जिसका सामना महाराष्ट्र ने 2014 और 2019 के पिछले चुनावों के बाद किया है। 

त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में, सरकार का गठन छोटे दलों या निर्दलीयों पर निर्भर हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप गहन बातचीत और गठबंधन की आवश्यकता पड़ सकती है। 

मुख्यमंत्री कौन बनेगा?

अगर गठबंधन को बहुमत भी मिल जाता है, तो मुख्यमंत्री पद को लेकर मतभेदों के कारण प्रक्रिया में देरी हो सकती है। एमवीए में, उद्धव ठाकरे समेत कई नेताओं को शीर्ष पद के दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। 

इस बीच, महायुति के भीतर एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के बीच तनाव है, दोनों नेता मुख्यमंत्री पद पर नज़र गड़ाए हुए हैं। कल्याणकारी योजनाओं पर शिंदे के काम ने उनकी छवि को मज़बूत किया है, लेकिन हिंदू वोटों को एकजुट करने के फडणवीस के आह्वान ने उनके मामले को मज़बूत किया है। 

संभावित परिदृश्य

अगर 26 नवंबर तक कोई सरकार नहीं बनती है, तो महाराष्ट्र के राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं। यह प्रावधान संवैधानिक तंत्र के टूटने की स्थिति में केंद्र सरकार को राज्य का प्रशासन अपने हाथ में लेने की अनुमति देता है।

1960 में अपने गठन के बाद से महाराष्ट्र में तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा है। सबसे हालिया उदाहरण 2019 में था, जब सत्ता के बंटवारे को लेकर भाजपा और शिवसेना के बीच गतिरोध पैदा हो गया था। इस गतिरोध के कारण एमवीए सरकार बनने से पहले 11 दिनों तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। 

जैसे-जैसे घड़ी की सुई 26 नवंबर की ओर बढ़ रही है, सभी की निगाहें 23 नवंबर को नतीजों की घोषणा के बाद के महत्वपूर्ण घंटों में होने वाली राजनीतिक चालों पर टिकी हैं। महाराष्ट्र की राजनीति इससे अधिक दिलचस्प नहीं हो सकती। 

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महाराष्ट्र

कैश-फॉर-वोट विवाद: भाजपा नेता विनोद तावड़े ने खड़गे और राहुल को 100 करोड़ रुपये का मानहानि नोटिस भेजा; 24 घंटे के भीतर माफी मांगने को कहा

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नई दिल्ली: भाजपा नेता विनोद तावड़े ने महाराष्ट्र में नोट के बदले वोट मामले में उनके खिलाफ ‘झूठे और निराधार’ आरोप लगाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से माफी मांगने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो वह उन पर मानहानि का मुकदमा करेंगे।

क्षेत्रीय पार्टी बहुजन विकास अघाड़ी ने तावड़े पर मतदाताओं को लुभाने के लिए 5 करोड़ रुपये बांटने का आरोप लगाया था, जिसके सदस्य 19 नवंबर को मुंबई के एक उपनगर में एक होटल के कमरे में जबरन घुस गए थे, जहां भाजपा नेता मौजूद थे।

महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग और पुलिस की जांच में कथित राशि बरामद नहीं हुई।

तावड़े ने कहा, ”कांग्रेस केवल झूठ फैलाने में विश्वास करती है और यह घटना मेरी और मेरी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए पार्टी की निम्न स्तर की राजनीति का सबूत है।” कांग्रेस के दोनों नेताओं और पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इस विवाद का फायदा उठाते हुए भाजपा पर राज्य में 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिए धनबल का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।

तीनों को भेजे गए कानूनी नोटिस में दावा किया गया है कि उन्हें पता था कि वे एक “पूरी तरह से झूठी कहानी” को आगे बढ़ा रहे हैं। नोटिस में लिखा है, “आप सभी ने जानबूझकर, शरारती तरीके से हमारे मुवक्किल की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के एकमात्र इरादे से जानबूझकर पैसे बांटने की कहानी गढ़ी है। आप सभी ने समाज में सही सोच रखने वाले लोगों की नज़र में उनकी छवि खराब करने के लिए विभिन्न मीडिया पर हमारे मुवक्किल के खिलाफ झूठे, निराधार आरोप प्रकाशित किए हैं।”

कांग्रेस के नेता तावड़े की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए “बहुत जल्दी” में थे, उन्होंने तथ्यों की जांच करने की जहमत नहीं उठाई और या फिर पूरी सच्चाई जानने के बावजूद उन्होंने झूठे, निराधार आरोप लगाए, ऐसा उन्होंने कहा। “आप सभी द्वारा लगाए गए सभी आरोप पूरी तरह से झूठे, निराधार, दुर्भावनापूर्ण और दुर्भावनापूर्ण हैं और चूंकि हमारा मुवक्किल किसी भी तरह से ऐसी किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं है और राष्ट्रीय राजनीतिक दल के एक जिम्मेदार पदाधिकारी के रूप में वह अपने कर्तव्यों से अवगत हैं,” इसमें कहा गया है।

नोटिस में तावड़े से नोटिस प्राप्ति के 24 घंटे के भीतर “बिना शर्त माफी” मांगने की मांग की गई थी। नोटिस 21 नवंबर को भेजा गया था और समाचार पत्रों तथा एक्स मीडिया में प्रकाशित किया गया था।

नोटिस में कहा गया है कि यदि वे माफी नहीं मांगते हैं तो तावड़े भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के तहत आपराधिक कार्यवाही शुरू करेंगे, जो मानहानि से संबंधित है और साथ ही तीनों कांग्रेस नेताओं के खिलाफ 100 करोड़ रुपये के हर्जाने के लिए दीवानी कार्यवाही भी करेंगे।

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मनोरंजन

‘अंडरकवर कर्मियों के लिए एआई-आधारित फ़ायरवॉल’: मरून 5 मुंबई कॉन्सर्ट से पहले बुकमायशो को महाराष्ट्र साइबर पुलिस का आदेश

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मुंबई: कमियों को दूर करने और टिकट की कालाबाज़ारी पर लगाम लगाने के लिए, महाराष्ट्र साइबर पुलिस ने बुकमायशो जैसे ऑनलाइन टिकटिंग प्लेटफ़ॉर्म में कई सुधारों का प्रस्ताव दिया है, जिसमें मानव और बॉट ट्रैफ़िक के बीच अंतर करने के लिए एआई-आधारित फ़ायरवॉल के प्रमुख निर्देश और अन्य के अलावा एक वेटलिस्ट सिस्टम लागू करना शामिल है। ई-टिकटिंग प्लेटफ़ॉर्म पर अनियमित प्रथाओं के बारे में बढ़ती शिकायतों के बाद, नागरिकों के डिजिटल अधिकारों की रक्षा और ऑनलाइन सेवाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ई-टिकटिंग कंपनियों को ये सुझाव दिए गए हैं।

साइबर पुलिस ने दोहराव वाले पैटर्न और एक ही आईडी और नंबर से कई खरीददारी का विश्लेषण करने और आगे की जांच के लिए कानून और प्रवर्तन एजेंसियों को संदिग्ध गतिविधियों की सूचना देने का भी निर्देश दिया है।

इसके अतिरिक्त, “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 168 के तहत एक नोटिस बुकमायशो को जारी किया गया था, जिसमें इन निर्देशों के कार्यान्वयन का निर्देश दिया गया था। ये निर्देश बुकमायशो तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ज़ोमैटो लाइव और पेटीएम इनसाइडर जैसे सभी टिकटिंग प्लेटफ़ॉर्म पर भी लागू हैं,” महाराष्ट्र राज्य साइबर विभाग के विशेष पुलिस महानिरीक्षक द्वारा जारी प्रेस बयान में कहा गया है।

महाराष्ट्र साइबर सेल ने आगामी मरून 5 इंडिया कॉन्सर्ट के लिए टिकट जारी करने हेतु उक्त उपायों को लागू करने के लिए बुकमायशो को नोटिस भी जारी किया है।

महाराष्ट्र साइबर पुलिस ने ऐसे आयोजनों और संगीत कार्यक्रमों के लिए नाम-आधारित टिकटिंग को भी अनिवार्य कर दिया है, जहाँ माँग आपूर्ति से कहीं ज़्यादा है। इस प्रणाली के तहत टिकट धारकों का नाम टिकट या बैंड पर या RFID के QR कोड में छपा होना चाहिए और आयोजन के दिन सरकारी जारी आईडी से सत्यापित किया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र साइबर पुलिस ने धोखाधड़ी की गतिविधियों को रोकते हुए वास्तविक टिकट खरीदारों को सुरक्षित अनुभव देने के लिए अंडरकवर कर्मियों को तैनात करने, उपस्थित लोगों का रैंडम आईडी सत्यापन करने, अनधिकृत पहुंच को रोकने और अन्य सुरक्षा उपायों जैसे जमीनी उपायों पर जोर दिया है।

कोल्डप्ले कॉन्सर्ट मामला

कोल्डप्ले कॉन्सर्ट को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें कालाबाजारी और टिकट स्कैलिंग को रोकने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश मांगे गए हैं। इसके अलावा, मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) मामले की जांच कर रही है। कोल्डप्ले कॉन्सर्ट जनवरी 2025 में होने वाला है।

बुकमायशो के मुख्य परिचालन अधिकारी अनिल मखीजा ने आर्थिक अपराध शाखा से पूछताछ के दौरान खुलासा किया था कि प्लेटफॉर्म ने जनवरी के कॉन्सर्ट के लिए कोल्डप्ले बैंड से 1.2 लाख टिकट खरीदे थे।

ईओडब्ल्यू धोखाधड़ी और बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम के टिकटों को काला बाजार में बेचने के आरोपों की जांच कर रही है। अधिकारी ने आगे कहा कि ये टिकट बुक माय शो ऐप पर 2,500 रुपये से लेकर 35,000 रुपये तक की कीमतों पर सूचीबद्ध थे।

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