राजनीति
सुप्रीम कोर्ट ने ‘राइट टू रिजेक्ट’ पर केंद्र, चुनाव आयोग से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और चुनाव आयोग से उस जनहित याचिका पर जवाब तलब किया है जिसमें यह मांग की गई थी कि अगर किसी चुनाव में नोटा के पक्ष में अधिकतम मतदान होते हैं तो मतदाताओं को उम्मीदवार को अस्वीकार करने का अधिकार (राइट टू रिजेक्ट) देने के लिए निर्देश दिया जाए। याचिका में यह तर्क दिया गया कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को ‘अस्वीकृत’ कर दिया जाना चाहिए और उन्हें नए सिरे से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
याचिका में कहा गया, “नए उम्मीदवार को खारिज करने और चुनने का अधिकार लोगों को असंतोष व्यक्त करने की ताकत प्रदान करेगा।”
मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक प्रश्न प्रस्तुत किया कि यदि किसी प्रभावशाली राजनीतिक दल के कई उम्मीदवारों को ‘अस्वीकृत’ कर दिया जाता है तो इतने सारे रिक्तियों की पृष्ठभूमि में संसद के लिए कार्य करना मुश्किल होगा।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि उनके मुवक्किल ने वैधानिक अधिकारियों से संपर्क किया था, लेकिन उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
पीठ में जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन भी हैं। इस पीठ ने कहा, “यह एक संवैधानिक समस्या है।”
पीठ ने अपना प्रश्न दोहराया, “यदि आपका तर्क स्वीकार किया जाता है, और सभी उम्मीदवार खारिज कर दिए जाते हैं और संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में कोई प्रतिनिधि नहीं रहते हैं, तो कैसे एक वैध संसद का गठन किया जाएगा?”
गुरुस्वामी ने जवाब दिया कि अस्वीकार करने के अधिकार से राजनीतिक दलों को स्वीकार्य उम्मीदवार मिलेंगे।
पीठ ने कहा कि इन सुझावों को स्वीकार किया जाना मुश्किल है, हालांकि यह याचिका के सार को पूरी तरह से समझता है।
मामले में संक्षिप्त सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी किया।
याचिका में तर्क दिया गया कि अस्वीकार करने का अधिकार भ्रष्टाचार, अपराधीकरण, जातिवाद सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद आदि पर शिकंजा कसेगा, जो लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। साथ ही, राजनीतिक दल ईमानदार उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए मजबूर होंगे।
याचिका अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है जिन्होंने कहा है, अस्वीकार करने और नए उम्मीदवार को निर्वाचित करने का अधिकार लोगों को सशक्त बनाएगा और लोकतंत्र में उनकी भागीदारी बढ़ाएगा क्योंकि वे प्रतिशोध के भय के बिना कम गुणवत्ता वाले उम्मीदवारों को लेकर अपना असंतोष दर्ज कर सकते हैं।
याचिका के मुताबिक, “यह अंतत: चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता को बढ़ावा देगा ताकि पार्टियों को बेहतर उम्मीदवारों को क्षेत्र में मजबूर किया जा सके और इस तरह अपराधीकरण को नियंत्रित किया जा सके।”
उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह निर्वाचन आयोग को यह निर्देश जारी करे कि अगर किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में नोटा के पक्ष में अधिकतम वोट पड़े हैं तो आयोग चुनाव परिणाम को रद्द करने और नए चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 324 के तहत प्रदत्त अपनी पूर्ण शक्ति का उपयोग करे।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से केंद्र को यह निर्देश देने का भी आग्रह किया गया कि अगर किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में नोटा के पक्ष में अधिकतम वोट पड़े हैं तो केंद्र चुनाव परिणाम को अमान्य करने और नए सिरे से चुनाव कराने के लिए उचित कदम उठाए।
राष्ट्रीय समाचार
दिल्ली दंगा: मुझपर UAPA के तहत कोई केस नहीं बनता, शिफा उर रहमान ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

नई दिल्ली: दिल्ली दंगे मामले में आरोपी व एक्टिविस्ट शिफ़ा उर रहमान ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उन्हें ‘चुनकर फंसाया गया’ है और उनके खिलाफ आतंकवाद विरोधी कानून के तहत कोई अपराध नहीं बनता। उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और रहमान पर यूएपीए और पुराने आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
आरोपियों पर ये है आरोप
इस मामले में पुलिस का आरोप है कि वे फरवरी 2020 के दंंगों के ‘मास्टरमाइंड’ थे, जिनमें 53 लोगों की मौत हुई और 700 से अधिक घायल हुए थे। यह हिंसा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी।
किसी भी गवाह ने नहीं की यह बात
रहमान की ओर से पेश सीनियर वकील सलमान खुर्शीद ने जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की बेंच से कहा कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पूर्व छात्रसंघ के अध्यक्ष के रूप में रहमान की भूमिका में किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा कि वह हिंसा में शामिल थे।
वकील ने कोर्ट में दी दलील
वकील ने कहा कि नागरिकों को उस कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करने का अधिकार है, जिससे वे असहमत है, और शांतिपूर्ण विरोध को अपराधी आचरण के समान नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा, ‘उन्हें चुन-चुन कर आरोपी बनाया गया है।
यूएपीए के तहत नहीं साबित होता आरोप
यूएपीए के तहत कोई आरोप साबित नहीं होता, भले ही हम सभी आरोपों को सही मान लें। उन्होंने मुकदमे में कोई देरी नहीं की। कृपया उनका बैकग्राउंड देखा जाए। उन्होंने स्थानीय निकायों के लिए काम किया है, और जामिया को अपना घर मानते हैं।
महाराष्ट्र
केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, नवी मुंबई पर औपचारिक रूप से तैनात किया गया

900 कर्मियों की प्रारंभिक तैनाती के साथ चरणबद्ध तरीके से बल का अधिस्ठापन किया जाएगा।
नवी मुंबई: केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (NMIA) पर औपचारिक रूप से तैनात किया गया है। सीआईएसएफ को चरणबद्ध तरीके से शामिल किया जाएगा, जिसमें प्रारंभिक तैनाती 900 कर्मियों की होगी।
दिनांक 29 अक्टूबर 2025 को NMIA के शामिल होने के साथ, CISF अब अपने एविएशन सिक्योरिटी ग्रुप (ASG) के तहत देश भर के 71 हवाई अड्डों को सुरक्षा प्रदान कर रहा है।
औपचारिक अधिस्ठापन समारोह नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आयोजित किया गया और इसमें CISF के महानिदेशक श्री प्रवीर रंजन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में श्रीमती बिनीता ठाकुर, अपर महानिदेशक (ए.पी.एस ) भी उपस्थित थीं। समारोह के दौरान, कैप्टन बी.वी.जे.के. शर्मा, सीईओ, एनएमआईए ने प्रतीकात्मक रूप से हवाई अड्डे की चाबियाँ श्री सुनीत शर्मा, वरिष्ठ कमांडेंट एवं एनएमआईए के चीफ एयरोड्रोम सिक्योरिटी ऑफिसर (CASO) को सौंपीं।
उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए, सीआईएसएफ के महानिदेशक, श्री प्रवीर रंजन ने कहा: “सीआईएसएफ वैश्विक मानकों के अनुरूप, एनएमआईए में विमानन सुरक्षा के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारे बल सदस्य पहले दिन से ही एक सुरक्षित, कुशल और यात्री-अनुकूल वातावरण प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित, सुसज्जित और तैयार हैं।”
इस अवसर पर, कैप्टन बी.वी.जे.के. शर्मा, सीईओ, एनएमआईएएल ने कहा, “हमें नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सीआईएसएफ का स्वागत करते हुए खुशी हो रही है। सीआईएसएफ का शामिल होना यात्रियों के स्वागत के लिए एनएमआईए की तैयारी में एक बड़ा कदम है, जो यात्रियों को विश्व स्तरीय यात्री अनुभव प्रदान करते हुए यात्री सुरक्षा और हवाई अड्डे की सुरक्षा के उच्चतम मानकों को बनाए रखने के लिए हमारी साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”
सुरक्षा व्यवस्था
सीआईएसएफ पूरे हवाई अड्डे और उससे जुड़ी सुविधाओं के लिए व्यापक सुरक्षा कवच प्रदान करेगा। स्वीकृत 1,840 कर्मियों की संख्या के मुकाबले शुरुआती 900 कर्मियों की तैनाती की गई है, जिसे हवाई अड्डे पर यात्री और कार्गो संचालन में वृद्धि के अनुरूप चरणबद्ध रूप से बढ़ाया जाएगा।
सुरक्षा व्यवस्था, ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (BCAS) के नवीनतम दिशानिर्देशों के अनुसार लागू की जाएगी, जिसमें हवाई अड्डे की सुरक्षा के मुख्य और गैर-मुख्य दोनों कार्य शामिल होंगे। सीआईएसएफ के कर्मी प्रवेश नियंत्रण, प्री-इम्बार्केशन सुरक्षा जांच, परिधि और हवाई क्षेत्र की सुरक्षा, कार्गो की सुरक्षा और त्वरित प्रतिक्रिया दल (QRT), बम डिटेक्शन और निरोधक दस्ते (BDDS), और K9 दस्ते जैसी विशेष इकाइयों की जिम्मेदारी निभाएंगे।
स्थानीय पुलिस और अन्य एजेंसियों के साथ घनिष्ठ समन्वय स्थापित कर सीआईएसएफ प्रभावी शहर-स्तरीय प्रबंधन सुनिश्चित करेगा और उच्चतम स्तर की तैयारी बनाए रखने के लिए नियमित रूप से कंटिंजेंसी ड्रिल आयोजित करेगा।
पूर्व-प्रवेश प्रशिक्षण
हवाई अड्डे की सुरक्षा में पूर्व प्रशिक्षित सीआईएसएफ कर्मियों को एनएमआईए की सुविधाओं से प्री-इंडक्शन फेमिलियराइजेशन कराया गया है। उन्हें ऑपरेशनल रेडीनेस एंड एयरपोर्ट ट्रांसफर (ORAT) प्रक्रियाओं का भी प्रशिक्षण दिया गया है, जिसमें सुरक्षा प्रणालियाँ और उपकरण परीक्षण, यात्री और सामान की जाँच, प्रवेश नियंत्रण, निगरानी संचालन और कंटिंजेंसी रिस्पोंस ड्रिल शामिल हैं।
तैनाती से पहले, CISF की टीमों ने हवाई अड्डे परिसर की विस्तृत सुरक्षा जाँच की।
NMIA के बारे में
नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड (NMIAL) एक पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) परियोजना है, जो मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड (MIAL)—अडानी एयरपोर्ट्स होल्डिंग्स लिमिटेड (AAHL) की एक सहायक कंपनी, जिसकी 74% हिस्सेदारी है—और महाराष्ट्र सरकार के उपक्रम, सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ महाराष्ट्र लिमिटेड (CIDCO), जिसकी शेष 26% हिस्सेदारी है, के बीच है।
ICAO कोड “VANM” से नामित, NMIA भारत के सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण विमानन केंद्रों में से एक बनने के लिए तैयार है। मुंबई महानगर क्षेत्र (MMR) और पश्चिमी भारत की सेवा के लिए रणनीतिक रूप से स्थित, यह हवाई अड्डा 1,160 हेक्टेयर (2,866 एकड़) में फैला है। पूरा होने पर, इसकी क्षमता प्रति वर्ष 90 मिलियन यात्रियों (MPPA) को संभालने की होगी, जिसमें दो समानांतर रनवे, अत्याधुनिक टर्मिनल और आधुनिक कार्गो सुविधाएं होंगी, जो निर्बाध परिचालन और बढ़ी हुई यात्री सुविधा सुनिश्चित करेंगी।
राजनीति
पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्रा हत्याकांड में 50 साल बाद फिर जांच की मांग, दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका

नई दिल्ली, 4 नवंबर: पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा (एलएन मिश्रा) की हत्या के 50 साल बाद भाजपा नेता और सांसद अश्विनी कुमार चौबे ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अश्विनी कुमार चौबे ने इस मामले में सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की है।
अश्विनी चौबे ने अपनी याचिका में दावा किया है कि एलएन मिश्रा की हत्या के लिए जिन लोगों को दोषी ठहराया गया, वे असल अपराधी नहीं हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सीबीआई ने इस मामले की गहराई से जांच नहीं की और यह हत्या उस दौर की एक बड़ी राजनीतिक साजिश का हिस्सा थी, जिसका उद्देश्य जनता के बीच लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता ललित नारायण मिश्रा को रास्ते से हटाना था।
ललित नारायण मिश्रा उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और रेल मंत्री थे। 2 जनवरी 1975 को बिहार के समस्तीपुर में एक रेलवे प्रोजेक्ट का उद्घाटन करते समय हुए ग्रेनेड हमले में उनकी मौत हो गई थी। सीबीआई की जांच में आनंद मार्ग संगठन के चार सदस्यों संतोषानंद, सुधेवानंद, गोपालजी और रंजन द्विवेदी को आरोपी बनाया गया था। लंबी सुनवाई के बाद दिल्ली की एक अदालत ने 2014 में इन सभी को दोषी ठहराया था।
अश्विनी कुमार चौबे ने याचिका दायर कर दोबारा जांच की मांग की है। इस मामले में सुनवाई के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने भी 11 नवंबर की तारीख तय की है। दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक चौधरी और मनोज जैन की बेंच सुनवाई करेगी।
इससे पहले, अश्विनी चौबे ने ललित नारायण मिश्रा की हत्या की फिर से जांच की मांग करते हुए 27 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा था।
उन्होंने लिखा, “ललित नारायण मिश्रा की हत्या की निष्पक्ष जांच की मांग की जाती है, ताकि मामले में न्याय मिल सके क्योंकि यह न केवल ललित नारायण मिश्रा के परिवार की ओर से, बल्कि बिहार और मिथिलांचल क्षेत्र के लोगों की तरफ से भी मांगा गया है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जस्टिस मैथ्यू आयोग और जस्टिस तारकुंडे रिपोर्ट के साथ-साथ बिहार पुलिस सीआईडी रिपोर्ट में ललित नारायण मिश्रा की हत्या के संबंध में अलग-अलग निष्कर्ष हैं, इसलिए भारत सरकार की ओर से जांच स्थापित करना महत्वपूर्ण है ताकि ललित नारायण मिश्रा को न्याय मिल सके। इस मामले में आपसे हस्तक्षेप करने का विनम्र अनुरोध है।”
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