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Wednesday,01-October-2025
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राजनीति

वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रस्तावित भारत बंद स्थगित, नई तारीख का ऐलान जल्द

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नई दिल्ली, 1 अक्टूबर : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 3 अक्टूबर को घोषित भारत बंद को स्थगित करने का फैसला लिया है। इस संबंध में बोर्ड की आपात बैठक अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी की अध्यक्षता में आयोजित हुई।

बैठक में देश के विभिन्न राज्यों में उन्हीं तारीखों पर कई धार्मिक त्यौहार पड़ने की स्थिति पर चर्चा की गई।

बैठक के बाद जारी बयान में बताया गया कि किसी भी नागरिक के धार्मिक कार्यक्रम में बाधा न आए, इसे ध्यान में रखते हुए सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है कि 3 अक्टूबर को प्रस्तावित भारत बंद स्थगित किया जाए। बोर्ड ने कहा कि नई तारीखें जल्द ही घोषित की जाएंगी।

यह बंद शुक्रवार, 3 अक्टूबर को सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक होना था, जिसमें दुकानें, कार्यालय और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रखने का आह्वान किया गया था। हालांकि, आवश्यक चिकित्सा सेवाओं, अस्पतालों और दवा की दुकानों को बंद से छूट दी जानी थी। लेकिन अब इसे स्थगित कर दिया गया है। बोर्ड ने कहा कि नई तारीख जल्द ही घोषित की जाएगी।

हालांकि, बोर्ड ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ उनका विरोध आंदोलन जारी रहेगा। इसके अलावा बोर्ड द्वारा तय किए गए अन्य सभी कार्यक्रम पूर्व निर्धारित समय पर ही आयोजित होंगे।

एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता और वक्फ बचाओ अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. एसक्यूआर इलियास ने कहा कि कुछ राज्यों में इसी दिन पड़ने वाले आगामी धार्मिक त्यौहारों के मद्देनजर बंद को स्थगित किया जा रहा है।

इलियास ने कहा, “रिपोर्टों से पता चला है कि कई क्षेत्रों में 3 अक्टूबर को हमारे साथी नागरिकों के धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाने हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, बोर्ड ने विचार-विमर्श किया और सर्वसम्मति से बंद को स्थगित करने का निर्णय लिया।”

बोर्ड के प्रवक्ता ने दोहराया कि आंदोलन अपने निर्धारित तरीके से जारी रहेगा।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि वक्फ संशोधन अधिनियम मुस्लिम समाज की धार्मिक और सामाजिक संपत्तियों पर असर डाल सकता है। इसलिए बोर्ड ने पहले ही इसे अस्वीकार्य करार दिया था और देशभर में आंदोलन चलाने का ऐलान किया था।

महाराष्ट्र

मुंबई: दशहरा, नवरात्रि और दुर्गा विसर्जन के लिए 2 अक्टूबर को 19,000 पुलिसकर्मी तैनात रहेंगे

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मुंबई : शहर 2 अक्टूबर को भव्य समारोहों के लिए तैयार है, क्योंकि दशहरा, विजयादशमी, नवरात्रि और गांधी जयंती एक ही दिन पड़ रहे हैं। कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए, मुंबई पुलिस ने व्यापक सुरक्षा योजना के साथ शहर भर में लगभग 19,000 अधिकारियों और कर्मियों को तैनात किया है।

देवी दुर्गा की मूर्तियों के विसर्जन जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और राजनीतिक दशहरा रैलियों में भारी भीड़ उमड़ने की उम्मीद है, जिससे यह साल के सबसे व्यस्त त्योहारों में से एक बन जाएगा। इस व्यापकता को नियंत्रित करने के लिए, मुंबई पुलिस आयुक्त के मार्गदर्शन में संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून एवं व्यवस्था) की देखरेख में व्यवस्थाओं की सीधी निगरानी की जा रही है।

अधिकारियों के अनुसार, इस तैनाती में पूरे महानगर में सात अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, 26 उपायुक्त, 52 सहायक आयुक्त, 2,890 पुलिस अधिकारी और 16,552 कांस्टेबल शामिल हैं। इसके अलावा, सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य रिजर्व पुलिस बल (एसआरपीएफ), त्वरित प्रतिक्रिया दल, दंगा नियंत्रण दल, डेल्टा फोर्स, लड़ाकू इकाइयाँ, होमगार्ड, बम निरोधक दस्ता (बीडीडीएस) और डॉग स्क्वॉड जैसी विशेष इकाइयाँ संवेदनशील स्थानों पर तैनात की गई हैं।

इस साल, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ शिवसेना गोरेगांव के नेस्को सेंटर में अपनी वार्षिक दशहरा रैली आयोजित करेगी, जबकि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली विपक्षी शिवसेना (यूबीटी) दादर के शिवाजी पार्क में अपनी पारंपरिक सभा आयोजित करेगी। इन स्थलों पर लाखों समर्थकों के आने की उम्मीद के चलते, भीड़ प्रबंधन सर्वोच्च प्राथमिकता बन गया है।

मुंबई यातायात पुलिस ने भी भीड़भाड़ से बचने और सुचारू जुलूस सुनिश्चित करने के लिए मार्गों और डायवर्जन में बदलाव किए हैं। नागरिकों से सुरक्षाकर्मियों के साथ सहयोग करने, भीड़-भाड़ वाले इलाकों में सावधानी बरतने और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तुरंत पुलिस हेल्पलाइन 100 या 112 पर सूचना देने का आग्रह किया जा रहा है।

शहर में सबसे बड़े उत्सवों में से एक के अवसर पर, मुंबई पुलिस की तैयारियां उत्सवों और नागरिक जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक समन्वय के स्तर को उजागर करती हैं।

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राजनीति

एनसीआरबी की रिपोर्ट में यूपी में सांप्रदायिक दंगे शून्य, कानून व्यवस्था बनी मिसाल

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लखनऊ, 1 अक्टूबर : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ‘क्राइम इन इंडिया 2023’ रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की कानून-व्यवस्था की सराहना की है। एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक, 2023 में यूपी में सांप्रदायिक एवं धार्मिक दंगों की संख्या शून्य रही है।

योगी आदित्यनाथ से पहले यूपी में ऐसा कभी नहीं हुआ। यही नहीं, पूरे देश के मुकाबले यूपी में अपराध एक चौथाई कम है। देश के सबसे बड़े राज्य में कुल अपराध दर राष्ट्रीय औसत से 25% कम रही, जो 448.3 के मुकाबले 335.3 रही। एनसीआरबी के आंकड़े साबित करते हैं कि 2017 के बाद यूपी अब शांति व सामाजिक सद्भाव का गढ़ बन चुका है।

एनसीआरबी रिपोर्ट में यूपी में सांप्रदायिक दंगों की संख्या शून्य बताई गई, जो 2017 से प्रदेश में चली आ रही जीरो टॉलरेंस नीति का जीवंत उदाहरण है। दूसरी ओर 2012-2017 के बीच पांच वर्षों की बात करें तो ये आंकड़े भयावह हैं।

आंकड़ों के अनुसार, 815 दंगे हुए, जिनमें 192 लोगों की जान गई, जबकि 2007-2011 में 616 घटनाओं में 121 मौतें हुईं। इसके विपरीत, 2017 के बाद यूपी में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ। बरेली और बहराइच में दो हिंसक झड़पें हुईं, लेकिन योगी सरकार ने 24 घंटे के भीतर शांति बहाल कर स्थिति को नियंत्रित किया। बरेली की घटना पर त्वरित कार्रवाई ने कानून-व्यवस्था को और मजबूती प्रदान की है।

सीएम योगी की सख्त नीतियों की वजह से राज्य में अपराध पर लगाम लगा है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, यूपी में विभिन्न अपराध श्रेणियों में राष्ट्रीय औसत से उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई।

बलवा के मामलों में भारत में 39,260 मामले (क्राइम रेट 2.8) के मुकाबले यूपी में 3,160 मामले (क्राइम रेट 1.3) रहे, जो राष्ट्रीय औसत से आधी से भी कम है और देश में 20वें स्थान पर है। फिरौती के लिए अपहरण के मामलों में देश में 615 घटनाएं हुई, जिसकी तुलना में यूपी मात्र 16 घटनाओं के साथ देश में 36वें स्थान पर है।

डकैती (आईपीसी 395) के मामलों में भारत में 3,792 (क्राइम रेट 0.3) के मुकाबले यूपी में 73 मामले दर्ज हुए, जो इसे ‘नियर जीरो’ क्राइम रेट की श्रेणी में लाता है। बड़ी जनसंख्या के बावजूद यह कमी योगी सरकार की सख्त नीतियों और त्वरित कार्रवाई का परिणाम है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पारदर्शी शासन और सख्त कानूनी कार्रवाई ने अपराधों पर अंकुश लगाने में कामयाबी हासिल की है। एनसीआरबी की रिपोर्ट योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति का परिणाम है। यूपी में शांति और सुरक्षा के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही योगी सरकार की यह उपलब्धि न केवल यूपी के लिए गर्व का विषय है, बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा है।

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राष्ट्रीय समाचार

अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस : महात्मा गांधी का दर्शन, आज भी दुनिया के लिए बेहद जरूरी

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नई दिल्ली, 1 अक्टूबर: वर्तमान में मानवता के एक चिंताजनक क्षरण को देखा जा सकता है। हिंसा संवाद का स्थान ले रही है। नागरिक संघर्ष का खामियाजा भुगत रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हो रहा है। मानवाधिकारों का हनन हो रहा है और शांति की नींव खतरे में है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी समझते थे कि अहिंसा कमजोरों का हथियार नहीं है, यह साहसी लोगों की ताकत है। यह घृणा के बिना अन्याय का विरोध करने, क्रूरता के बिना उत्पीड़न का सामना करने और प्रभुत्व के माध्यम से नहीं, बल्कि सम्मान के माध्यम से शांति स्थापित करने की शक्ति है।

महात्मा गांधी ने न सिर्फ इन आदर्शों की बात की, बल्कि उन्हें जीते भी थे। इस खतरनाक और विभाजित समय में महात्मा गांधी की इस सोच को न सिर्फ याद किया जाना जरूरी है, बल्कि उसके आत्मसात करने की खास जरूरत है। 2 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ इसी खास उद्देश्य और भाव के साथ मनाया जाना चाहिए।

हर साल 2 अक्टूबर को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस, गांधीवादी सिद्धांतों के सम्मान के लिए समर्पित है। यह दिवस महात्मा गांधी की जयंती पर मनाया जाता है और सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन के साधन के रूप में अहिंसा के प्रति उनके दर्शन और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में उनकी केंद्रीय भूमिका के कारण महात्मा गांधी की जयंती का अत्यधिक महत्व है। अहिंसा और शांतिपूर्ण प्रतिरोध के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने लाखों भारतीयों को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों, बहिष्कारों और भूख हड़तालों के माध्यम से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए प्रेरित किया। विशेषकर 1930 के दांडी मार्च ने उत्पीड़न का सामना करने के लिए अहिंसा की शक्ति में उनके विश्वास को दर्शाया।

महात्मा गांधी के लिए, अहिंसा सिर्फ एक राजनीतिक साधन नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति थी, जो इस विश्वास पर आधारित थी कि शांति शांतिपूर्ण साधनों से ही हासिल की जा सकती है।

महात्मा गांधी ने कहा था, “अहिंसा मानव जाति के पास सबसे बड़ी शक्ति है। यह विनाश के सबसे शक्तिशाली हथियार से भी अधिक शक्तिशाली है।”

यह विश्वास दुनिया भर के आंदोलनों को प्रेरित करता रहा है, संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर के नागरिक अधिकारों के संघर्ष से लेकर दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला के रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष तक, उनके विचारों ने अनगिनत नेताओं और आंदोलनों को प्रभावित किया और प्रतिरोध के साथ ही सुधार के एक शक्तिशाली साधन के रूप में अहिंसा की सार्वभौमिक अपील को रेखांकित किया।

उनका दर्शन हमें याद दिलाता है कि शांति एक दूर का आदर्श मात्र नहीं है, बल्कि यह हासिल करने वाला लक्ष्य है। उनकी शिक्षाएं आशा और मेल-मिलाप का एक शाश्वत संदेश देती हैं।

इस दिवस की शुरुआत ईरानी नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी की ओर से 2004 में रखे गए एक प्रस्ताव से हुई। अहिंसा दिवस को विश्व स्तर पर मनाने का विचार मुंबई में आयोजित ‘विश्व सामाजिक मंच’ में रखा गया। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया। दुनिया से यह आग्रह किया गया कि वह शांति और अहिंसा के विचार पर अमल करें और महात्मा गांधी के जन्म दिवस को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाएं। इसमें 142 देशों की सह-प्रायोजकता थी।

इस प्रस्ताव में शिक्षा और जन जागरूकता के माध्यम से अहिंसा के संदेश के प्रसार पर जोर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को विश्व स्तर पर शांति, सद्भाव और एकता को बढ़ावा देने में अहिंसा की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए निर्धारित किया था।

2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के स्वतंत्रता और अहिंसा के प्रति समर्पण को श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाता है। यह अन्याय और असमानता के विरुद्ध अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति की याद दिलाता है।

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