राजनीति
न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर अन्नदाता को गुमराह होने की जरूरत नहीं

कोरोना महामारी के संकट के समय पूरे देश का पेट भरने की शक्ति साबित करने वाले अन्नदाता को उनकी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर गुमराह होने की जरूरत नहीं है। मोदी सरकार के हर फैसले में किसानों का हित सर्वोपरि होता है, क्योंकि सरकार का मानना है कि किसान समृद्ध होगा, तो देश समृद्ध होगा। इसलिए एमएसपी को हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद एमएसपी पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया, जिससे किसानों को फसलों की लागत पर 50 फीसदी से ज्यादा लाभ के साथ एमएसपी मिलना सुनिश्चित हुआ है।
मोदी सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है कि कोरोना काल में भी एमएसपी पर गेहूं की रिकॉर्ड खरीद हुई है। इसके अलावा दलहनी और तिलहनी फसलों की भी एमएसपी पर खरीद कर सरकार ने किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम दिलाया। अबकी बार खरीफ सीजन में तय समय से पहले ही धान की खरीद शुरू हो चुकी है, जबकि कुछ फसलों की एमएसपी पर खरीद 1 अक्टूबर से शुरू होने जा रही है।
किसानों को उनकी फसलों का बेहतर व लाभकारी दाम मिले इसके लिए सरकार प्रयासरत है और इसी मकसद से नये कानून के जरिए कृषि क्षेत्र में सुधार के कार्यक्रमों को लागू करने का मार्ग सुगम बनाया गया है। किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रही यह सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी, जो अन्नदाता की समृद्धि के मार्ग में बाधक बने।
किसानों को आर्थिक आजादी दिलाने और उनकी समृद्धि की कामना से मोदी सरकार ने कोरोना काल में कृषि क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव के मकसद से तीन अहम फैसले लेते हुए तीन अध्यादेश लाए, जिन्हें संसद के मानसून सत्र में विधेयक के रूप में पेश किया गया और संसद की मुहर लगने के बाद महामाहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के साथ अब ये कानून बन गए हैं।
इससे कृषि उत्पादों के विपणन के लिये न सिर्फ एक देश एक बाजार का वर्षों से संजोये सपने को मोदी सरकार ने साकार किया है, बल्कि कृषि को उद्योग का दर्जा दिलाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया है। किसान अब अपनी उपज का दाम खुद तय कर पायेंगे। ऐसे में अब उन्हें एमएसपी को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है।
वर्ष 2014-15 में गेहूं, ज्वार, मूंग, सूर्यमुखी, राम तिल और नारियल के एमएसपी से तुलना करें तो 2019-20 में इन फसलों के एमएसपी में 525 रुपये से लेकर 4,410 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा हुआ है। इसी प्रकार, अन्य फसलों के एमएसपी में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। एमएसपी में यह वृद्धि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान हई है।
कोरोना काल में केंद्र सरकार के प्रयासों से रबी सीजन की फसलों की खरीद की समुचित व्यवस्था करने के लिए खरीद केंद्रों की संख्या बढ़ाई गई, जिससे गेहूं की रिकॉर्ड खरीद हुई और अन्य फसलों की खरीद के परिमाण में भारी इजाफा हुआ। देशभर में सरकारी एजेंसियों ने बीते रबी खरीद सीजन में 389.76 लाख टन गेहूं सीधे किसानों से खरीदा, जोकि अब तक का रिकॉर्ड है, इसके लिए किसानों को 75,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। धान की खरीद में 2014-15 के मुकाबले 2019 में करीब 74 फीसदी का इजाफा हुआ है।
केंद्र सरकार निरंतर किसानों के हित में कार्य कर रही है। इस साल 2020 में गेहूं, धान, दलहन और तिलहन फसलों को मिलाकर किसानों को 1 लाख 13,000 करोड़ रुपये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में भुगतान किया गया है। यह भुगतान राशि पिछले वर्ष की तुलना में 31 फीसदी ज्यादा है। पिछले वर्ष कुल 86.8 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।
फसलों का एमएसपी किसानों को दिलाने की आवश्यकता तब होती है, जब किसानों को उनके उत्पादों का उचित दाम नहीं मिलता है। लेकिन जब किसान खुद अपने उत्पादों का मूल्य तय करेगा तो फिर उन्हें एमएसपी की चिंता करने की जरूरत नहीं होगी। मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाने वाले एमएसपी के मसले पर किसानों को गुमराह कर अपनी खिसकती राजनीतिक जमीन को बचाने की जुगत में हैं। इसलिए किसानों को गुमराह होने की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार ने कृषि से जुड़े जो तीन कानून बनाए हैं, उनका एक ही मकसद है कि किसानों को उनके उत्पादों का अधिकतम लाभकारी दाम मिले जिससे उनके जीवन में खुशहाली आए।
देश में कोरोना वायरस संक्रमण की विषम परिस्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने जब प्रभावी कदम उठाया था, उस समय देश में रबी फसलों की कटाई चल रही थी और ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई का सीजन था। इसलिए, सरकार ने फसलों की बुवाई कटाई, परिवहन, विपणन को पूर्णबंद से मुक्त रखा। लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में कृषि उपज विपणन समिति (एमएसपी) द्वारा संचालित जींस मंडियां बंद रहने से किसानों की कठिनाइयां बढ़ गई थीं। वे अपनी फसल बेच नहीं पा रहे थे। लिहाजा, सरकार ने अध्यादेश के जरिए किसानों को देश में कहीं भी और किसी को भी फसल बेचने की आजादी देते हुए, एक देश एक कृषि उत्पाद बाजार के उनके सपने को साकार किया।
देश में जब फसलों के भंडारण, परिवहन, प्रसंस्कारण समेत मूल्यवर्धन श्रंखला दुरुस्त होगी तो किसानों को फसलों का बेहतर दाम मिलेगा। आज सिर्फ 22 अनुसूचित फसलों के लिए एमएसपी का निर्धारण किया जाता है, जबकि सरकार चाहती है कि तमाम कृषि एवं बागवानी फसलों का किसानों को लाभकारी मूल्य मिले। इसी मकसद से दशकों पुराने कानून (आवश्यरक वस्तुय अधिनियम, 1955) में संशोधन किया गया है और दो ऐसे कानून बनाये गये हैं, जिससे किसान बेरोक-टोक अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है। साथ ही किसानों को खेती करने से पहले ही दाम मिलने का भरोसा होगा, इसके लिए अनुबंध पर खेती करने का प्रावधान किया गया है। इसमें बुवाई के वक्त ही किसानों को फसल की तय कीमत मिलने का आश्वासन दिया जाएगा और कटाई के वक्त कीमत ज्यादा होने पर उसके लाभ से भी किसान वंचित नहीं होंगे। यह सिर्फ फसल का अनुबंध होगा, न कि किसानों की जमीन का।
आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 में संशोधन करके अनाज, दलहन, तिलहन व खाद्य तेल समेत आलू और प्याज, टमाटर को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। इन कृषि उत्पादों के भंडारण प्रसंस्करण व मूल्यवर्धन के लिए अब निजी निवेशक आगे आएंगे, जिससे किसानों को इन उत्पादों का बेहतर व लाभकारी मूल्य मिलेगा। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि बागवानी उत्पादों की खेती जिन क्षेत्रों में होती है, वहां की मंडियों में कीमतें कम होती हैं, जबकि उपभोक्ता बाजार में फल व सब्जियां ऊंचे भाव पर बिकती हैं। दरअसल उत्पादक से उपभोक्ता के बीच की जो कड़ियां हैं, उनमें कई सारे बिचैलिये होते हैं, जो मोटा मुनाफा कमाते हैं, जबकि किसानों को कम दाम मिलता है। सरकार ने इन बिचैलियों को सप्लाई चेन से हटाने के लिए ही ये कानूनी बदलाव किए हैं, जिसके बाद अब किसान सीधे थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी व प्रशंस्करणकर्ताओं को अपने उत्पाद बेच सकते हैं। इससे किसानों को उनकी फसलों का उचित व लाभकारी दाम दिलाना सुनिश्चित होगा।
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020 मोदी सरकार का एक ऐतिहासिक फैसला है। इससे किसानों को देशभर में कहीं भी और किसी को भी अपनी फसल बेचने की आजादी मिली है, पहले ऐसा नहीं था। किसानों को कृषि उपज मंडी समिति कानून के तहत संचालित मंडियों में आढ़तियों और व्यापारियों का मोहताज बने रहना पड़ता था। उनकी फसलों की बोली लगायी जाती थी। क्या किसी औद्योगिक उत्पाद की बिक्री के लिये उसकी बोली लगायी जाती है? शायद नहीं। क्योंकि औद्योगिक उत्पादों के दाम तो पहले से ही तय होते हैं और यह दाम तय करने का अधिकार उद्योगपतियों के हाथों में होता है। कंपनियां अपने उत्पादों के दाम तो फिर किसानों के उत्पादों का दाम कोई आढ़ती या बिचैलिया क्यों करें? किसानों की इस विवशता को आजादी के बाद अगर किसी ने समझा तो, वह देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं। किसानों के दर्द को महसूस करने वाले मोदी जी ने सत्ता में आने के बाद कृषि क्षेत्र की उन्नति और किसानों की समृद्धि के लिये एक के बाद एक किसान हितैषी कई फैसले लिये हैं। कृषि और सम्बद्ध क्षेत्र में सुधार के लिये लाये गये नये कानून किसानों के हक में हैं। इसे कॉरपोरेट और निजी पूंजीपतियों को फायदा दिलाने की दिशा में कदम बताने वाले दरअसल इसे मुद्दा बनाकर राजनीति करना चाहते हैं, क्योंकि उनके लिये राजनीति करने का कोई मसला नहीं बचा है। जो लोग यह कह रहे हैं कि मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता (अधिकार प्रदान करना और सुरक्षा) और कृषि सेवा कानून 2020 से कॉरपोरेट को फायदा होगा, उनको मालूम होना चाहिए कि मोदी सरकार ने देश में दस हजार किसान उत्पादन संगठन (एफपीओ) बनाने का लक्ष्य रखा है।
दरअसल उत्पादन से लेकर बाजार तक किसानों की हिस्सेदारी होगी। मतलब उत्पादक विक्रेता भी बनेंगे। कृषि क्षेत्र में निसंदेह इन फैसलों से निजी निवेश, यहां तक कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी आकर्षित होगा, लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा किसानों को होगा।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू कर विभिन्न फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी की गई। एमएसपी के निर्धारण में डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के फार्मूले का अनुपालन किया जा रहा है। इस सरकार ने स्वामीनाथन समिति की 201 सिफारिशों में से 200 सिफारिशों को लागू किया है, जिसका वर्षों से इंतजार किया जा रहा था। आज जो लोग एमएसपी को लेकर किसानों को गुमराह कर रहे हैं दरअसल, उनकी ही सरकारों ने कभी स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने में दिलचस्पी नहीं दिखायी। इसलिए एमएसपी को लेकर को गुमराह होने की जरूरत नहीं है। एसएसपी हमेशा रहेगा।
(लेखक केंद्र सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री हैं और इस आलेख में उनका निजी विचार है)
महाराष्ट्र
एएनसी ने 80 करोड़ रुपये की दवाएं नष्ट कीं

DRUGS
मुंबई: मुंबई क्राइम ब्रांच की एंटी-नारकोटिक्स सेल ने जब्त गांजा, कोडीन और अन्य नशीले पदार्थों को नष्ट करने का दावा किया है। एएनसी के 59 दर्ज मामलों में पनवेल स्थित एक फैक्ट्री में 144.310 किलोग्राम गांजा, कोडीन, हेरोइन नष्ट कर जला दिया गया। इन जब्त नशीले पदार्थों में से 163 किलोग्राम डैन सेरिफ की बोतलें, लगभग 80.65 करोड़ रुपये मूल्य की 7908 नशीले पदार्थ नष्ट किए गए हैं। मुंबई पुलिस ने 2025 में 50.30 करोड़ रुपये मूल्य की 530 किलोग्राम डैन सेरिफ की बोतलें नष्ट कीं। यह कार्रवाई मुंबई पुलिस कमिश्नर देवेन भारती के निर्देश पर संयुक्त पुलिस कमिश्नर क्राइम लक्ष्मी गौतम ने की।
महाराष्ट्र
मुंबई बीएमसी कर्मचारियों और अधिकारियों को बोनस दिवाली का तोहफा

मुंबई नगर निगम प्रशासन ने दिवाली-2025 के लिए मुंबई बीएमसी निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को 31,000 रुपये का बोनस देने की घोषणा की है। नगर निगम के अधिकारियों/कर्मचारियों को दिवाली 2025 के लिए बोनस अनुदान प्रदान करने के निर्णय की घोषणा नगर आयुक्त एवं प्रशासक भूषण गगरानी ने की। अनुग्रह अनुदान का क्रम, विवरण और राशि इस प्रकार है। निगम के अधिकारी/कर्मचारी 31,000 रुपये के बोनस के हकदार हैं। निजी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक/गैर-शिक्षण कर्मचारी जिन्हें 31,000 रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ। नगर निगम के प्राथमिक विद्यालय और सहायता प्राप्त निजी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को 31,000 रुपये। माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक/गैर-शिक्षण कर्मचारी (सहायता प्राप्त/गैर-सहायता प्राप्त): 31,000 रुपये।
5. माध्यमिक विद्यालय के शिक्षण कर्मचारी (सहायता प्राप्त/गैर-सहायता प्राप्त): 31,000 रुपये। शिक्षक स्कूल व्याख्याता/गैर-शिक्षण कर्मचारी (सहायता प्राप्त/गैर-सहायता प्राप्त): 31,000 रुपये। 31,000. शिक्षक स्कूल शिक्षण स्टाफ (पूर्णकालिक) (सहायता प्राप्त/गैर-सहायता प्राप्त): रु. 31,000. सामाजिक स्वास्थ्य स्वयंसेवक (सीएचवी): भाऊबेज उपहार रु. 14,000/-
9. किंडरगार्टन शिक्षक/सहायक – भाऊबेज उपहार रु. 05,000/-
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री, एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री, अजित पवार ने नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को दिवाली की शुभकामनाएं दी हैं।
राजनीति
बिहार: एसआईआर से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, चुनाव आयोग और प्रशांत भूषण में हुई तीखी बहस

SUPRIM COURT
नई दिल्ली, 16 अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई 4 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी। इस दौरान अदालत में चुनाव आयोग और एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के वकील प्रशांत भूषण के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई।
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने प्रशांत भूषण पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे अदालत को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं और दस्तावेजों में हेराफेरी और गलत बयानों का सहारा ले रहे हैं।
प्रशांत भूषण ने इसका जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने जो नाम अदालत में प्रस्तुत किए थे, वे ड्राफ्ट मतदाता सूची में मौजूद थे। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाने के बाद भी कई नए नाम गुपचुप तरीके से डिलीट किए हैं, लेकिन अब तक इन नामों का पूरा ब्योरा और कारणों सहित सूची सार्वजनिक नहीं की गई है।
प्रशांत भूषण ने अदालत से मांग की कि आयोग को हर उस नाम की विस्तृत जानकारी देनी चाहिए, जिसका नाम सूची से हटाया गया है और उसका कारण बताना चाहिए। यह सूची वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से अपलोड की जानी चाहिए।
इस पर चुनाव आयोग की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, “अभी अंतिम सूची जारी करने की प्रक्रिया चल रही है। पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तारीख 17 अक्टूबर है और दूसरे चरण के लिए 20 अक्टूबर। इसलिए मतदाता सूची को इन तारीखों तक फ्रीज किया जाएगा।”
राकेश द्विवेदी ने कहा कि आयोग अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है और अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। उन्होंने सवाल उठाया कि जब आयोग खुद यह प्रक्रिया कर रहा है तो याचिकाकर्ता न्यायालय से ऐसा निर्देश क्यों मांग रहे हैं?
इस पर जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हमें कोई संदेह नहीं कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी निभाएगा। नाम जोड़ने और हटाने के बाद सूची प्रकाशित करना उसकी संवैधानिक बाध्यता है। यह मामला अभी बंद नहीं हुआ है।”
अदालत ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि उसका जवाबी हलफनामा याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण को सौंपा जाए और भूषण को आदेश दिया कि वे 10 दिनों के भीतर अपना प्रत्युत्तर दाखिल करें।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की अंतिम मतदाता सूची सभी राजनीतिक दलों और मतदान एजेंटों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
इस बीच अन्य याचिकाकर्ताओं के वकील, गोपाल शंकरनारायणन और वृंदा ग्रोवर, ने सवाल उठाया कि क्या चुनाव आयोग के पास एसआईआर जैसी प्रक्रिया चलाने का अधिकार है। इस पर अदालत ने आयोग को लिखित नोट दाखिल करने का निर्देश दिया।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने मिडिया से कहा, “आज सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि आधार नागरिकता का प्रूफ नहीं है। आज बिहार एसआईआर मामले को लेकर सुनवाई हो रही थी तो हमने कहा कि आधार को 12वें डॉक्यूमेंट के रूप में अनुमति दी गई है, वह ठीक नहीं है। वह आधार एक्ट के खिलाफ है। अभी दो विषय और बचे हुए हैं, मुझे उम्मीद है कि अगली सुनवाई के दौरान उस पर भी फैसला आ जाएगा।”
एडीआर की याचिका पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को कहा है कि जो भी आपको काउंटर जवाब देना है, दे दीजिए। एडीआर की ओर से कुछ आपत्तियां दाखिल की गई थीं, जिस पर चुनाव आयोग ने कहा है कि ये पूरी तरीके से हवा में बातें हो रही हैं। धरातल पर ऐसा कुछ भी नहीं है। न तो कोई बिहार में अपील फाइल कर रहा है, न कोई कंप्लेन फाइल कर रहा है, न कोई रिवीजन फाइल कर रहा है। सब कुछ दिल्ली में ही चल रहा है। यह चुनाव आयोग का कहना था।”
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