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Saturday,01-March-2025
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भारत में मोटापे से लड़ने के लिए जंक फूड पर जागरूकता की आवश्यकता : ल्यूक कॉउटिन्हो

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नई दिल्ली, 1 मार्च। हेल्थ कोच ल्यूक कॉउटिन्हो ने कहा कि भारत में मोटापे से लड़ने के लिए जंक फूड पर जागरूकता की आवश्यकता है। उन्होंने देश में मोटापे से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल की प्रशंसा की।

नई दिल्ली में एक आंगनवाड़ी केंद्र के दौरे के दौरान कोउटिन्हो ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोटापे की समस्या से निपटने के अपने दृष्टिकोण में बिल्कुल सही हैं।”

कॉउटिन्हो ने कहा, “हमें बच्चों और वयस्कों को जंक फूड के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है, जो मोटापे जैसे बड़ी समस्या में योगदान दे रहा है।”

उन्होंने कहा कि पोषण की शुरुआत कम उम्र से ही होनी चाहिए और पोषण के बारे में शिक्षा देश भर की भाषाओं में दी जानी चाहिए।

उन्होंने मोटे अनाज जैसे स्थानीय सुपरफूड तक पहुंच बढ़ाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। ल्यूक कॉउटिन्हो होलिस्टिक हीलिंग सिस्टम के सह-संस्थापक कॉउटिन्हो ने कहा, ” पीएम मोदी ने हमें स्थानीय सुपरफूड का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया है। हम इन खाद्य पदार्थों के साथ एक प्राकृतिक संतुलित आहार बनाए रख सकते हैं और प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा संतुलित मात्रा में हासिल कर सकते हैं।

‘मन की बात’ के 119वें एपिसोड में प्रधानमंत्री मोदी ने मोटापे के बढ़ते मामलों और इसे रोकने की आवश्यकता पर चर्चा की क्योंकि यह उच्च रक्तचाप, मधुमेह और कैंसर जैसी कई बीमारियों का कारण बन सकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, आज हर आठ में से एक व्यक्ति मोटापे की समस्या से परेशान है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, “बीते सालों में मोटापे के मामले दोगुने हो गए हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि बच्चों में भी मोटापे की समस्या चार गुना बढ़ गई है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में दुनिया भर में करीब 250 करोड़ लोग ओवरवेट थे, यानी उनका वजन जरूरत से ज्यादा था।”

उन्होंने “खाद्य तेल की खपत में 10 प्रतिशत की कमी लाने” का सुझाव दिया।

मोटापे के खिलाफ अभियान के प्रति समर्थन व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “एक भारतीय नागरिक के रूप में सभी को व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेनी चाहिए, अपना योगदान देना चाहिए, सही भोजन चुनना चाहिए, प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए तथा अपने मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।”

इस मामले में एक्सपर्ट का कहना है कि हमें जागरूकता और सजगता की आवश्यकता है तथा भारत को स्वस्थ बनाने के लिए घर के खाने को बढ़ावा देना होगा।

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मुंबई का मरीन ड्राइव जल्द ही 110 एलईडी लाइटों से जगमगाएगा; बीएमसी की ₹17 लाख की परियोजना के बारे में सब कुछ

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मुंबई: बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने मुंबई के मरीन ड्राइव पर रोशनी बढ़ाने का फैसला किया है, ताकि इस प्रतिष्ठित सैरगाह पर रोजाना आने वाले लोगों की भारी भीड़ को ध्यान में रखा जा सके। रिपोर्ट के अनुसार, अगले महीने एयर इंडिया बिल्डिंग से लेकर नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) तक 110 एलईडी लाइट फिक्स्चर लगाए जाएंगे।

मरीन ड्राइव शहर के सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले वाटरफ़्रंट में से एक है, जो न सिर्फ़ सुबह की सैर के लिए स्थानीय निवासियों को आकर्षित करता है, बल्कि हज़ारों पर्यटक और उपनगरीय आगंतुक भी समुद्री हवा का आनंद लेने के लिए आते हैं। हालाँकि, नागरिक अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि इस सड़क पर मौजूदा स्ट्रीट लाइटें अपर्याप्त हैं, ख़ास तौर पर वानखेड़े स्टेडियम में क्रिकेट मैच जैसे बड़े आयोजनों के दौरान, जिसमें बड़ी भीड़ जुटती है। ऐसे मामलों में, BMC वर्तमान में सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अस्थायी लाइटिंग स्थापित करती है।

बीएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “चूंकि मरीन ड्राइव एक लोकप्रिय जगह है, इसलिए यहां रोजाना भारी भीड़ होती है। क्रिकेट मैच जैसे विशेष आयोजनों के दौरान हम अस्थायी लाइटें लगाते हैं, लेकिन अब हम सैरगाह के बगल में पेड़ों के नीचे स्थायी एलईडी लाइटें लगाने की योजना बना रहे हैं। इससे लोगों की सुविधा और सुरक्षा दोनों बढ़ेगी । 

इस परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 17 लाख रुपये है, जिसमें सैरगाह के किनारे 55 पेड़ों के नीचे एलईडी लाइटें लगाई जाएंगी। 30 से 40 वाट की ये लाइटें न केवल दृश्यता बढ़ाएंगी बल्कि क्षेत्र के सौंदर्य को भी बढ़ाएंगी।

1915 में निर्मित मरीन ड्राइव लगभग तीन किलोमीटर तक फैला है, जिसे 20 फुट ऊंची दीवार समुद्र से अलग करती है। हालाँकि, नई एलईडी लाइटें पूरे हिस्से को कवर नहीं करेंगी।

इस बीच, बीएमसी मुंबई तटीय सड़क परियोजना (एमसीआरपी) के हिस्से के रूप में ब्रीच कैंडी और वर्ली के बीच 7.5 किलोमीटर लंबा ऐसा ही सैरगाह विकसित कर रही है। 70 हेक्टेयर खुली भूमि में फैले इस नए स्थान में पेड़ों से सजे रास्ते, एक समर्पित साइकिल ट्रैक और नागरिकों के टहलने और आराम करने के लिए पर्याप्त जगह होगी।

वर्तमान में, नगर निकाय इस परियोजना के अंतिम चरण पर काम कर रहा है, जिसमें कंक्रीटिंग और पेवर ब्लॉक लगाना शामिल है। एक बार ये अंतिम चरण पूरे हो जाने के बाद, इस साल मार्च तक सैरगाह को जनता के लिए खोल दिए जाने की उम्मीद है।

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एच5एन बर्ड फ्लू जानवरों से चुपचाप मनुष्यों में फैल रहा, वास्ताविक संख्या हो सकती है अधिक : यूएस सीडीसी

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नई दिल्ली, 14 फरवरी। एच5एन1 बर्ड फ्लू चुपचाप जानवरों से कुछ इंसानों तक फैल गया है, खासकर उन लोगों तक जो जानवरों की देखभाल करते हैं। अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, बर्ड फ्लू के मामलों की वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है।

इस अध्ययन में पाया गया कि वेटरनरी डॉक्टरों में कोई लक्षण नहीं थे, इसलिए उन्होंने इलाज नहीं कराया। इसके विपरीत, मुर्गी पालन से जुड़े मजदूरों में लक्षण दिखाई दिए और उन्होंने इलाज करवाया। अमेरिका पहले से ही बर्ड फ्लू से जूझ रहा है और पिछले साल इस संक्रमण के 68 मामले दर्ज किए गए थे।

टेक्सास यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ डॉ. ग्रेगरी ग्रे के अनुसार, यह अध्ययन बताता है कि बर्ड फ्लू के वास्तविक मामलों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक हो सकती है। उनका कहना है कि कुछ लोग अपने काम के कारण इस वायरस की चपेट में आ सकते हैं, लेकिन उनमें बीमारी के कोई लक्षण नहीं उभरते, इसलिए वे डॉक्टर के पास नहीं जाते।

शोधकर्ताओं ने बताया कि केवल चिकित्सा केंद्रों के आंकड़ों के आधार पर बर्ड फ्लू के प्रसार को पूरी तरह से समझ पाना मुश्किल है।

इस अध्ययन के लिए, वैज्ञानिकों ने अमेरिका के 46 राज्यों के 150 पशु चिकित्सकों के रक्त परीक्षण किए। इनमें से किसी को भी लाल आंखें या अन्य आम लक्षण नहीं थे, लेकिन जांच में पाया गया कि 2 से 3 प्रतिशत पशु चिकित्सकों के शरीर में एच5एन1 वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी मौजूद थीं। पहले के अध्ययनों में यह भी संकेत मिला है कि कुछ डेयरी फार्म के मजदूरों को बर्ड फ्लू के लक्षण हुए थे, लेकिन उनकी सही जांच नहीं हुई।

चूंकि ये अध्ययन छोटे स्तर पर किए गए थे, इसलिए बर्ड फ्लू से प्रभावित लोगों की सही संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ये संख्या सैकड़ों या हजारों तक हो सकती है।

ग्रे ने कहा कि फिलहाल चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन यदि यह वायरस बदले या इसमें कोई नया म्यूटेशन आए, तो यह गंभीर बीमारी फैला सकता है और तेजी से फैल सकता है। ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता जैकलीन नोल्टिंग के अनुसार, इस पर नजर रखना जरूरी है।

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अस्पताल के पाइप में छिपे बैक्टीरिया को मारने के लिए कड़ी सफाई पर्याप्त नहीं : अध्ययन

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नई दिल्ली, 14 फरवरी। अस्पतालों में अच्छी तरह सफाई के बावजूद, वहां के सिंक के पाइपों में खतरनाक बैक्टीरिया छिपे रहते हैं। एक शोध के अनुसार, यह समस्या “स्वास्थ्य सेवा से जुड़े संक्रमण” (एचएआई) बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रही है।

एचएआई उन मरीजों में ज्यादा फैलते हैं जिनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। इसके अलावा, कुछ अस्पतालों में सफाई के नियमों का सही से पालन न करने से भी यह समस्या और गंभीर हो जाती है। अध्ययन के अनुसार इस तरह के संक्रमण दुनियाभर में एक बड़ी परेशानी बन चुके हैं और अस्पतालों के कुल बजट का लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा इसी पर खर्च हो जाता है।

एंटीबायोटिक दवाओं का अधिक इस्तेमाल भी इस समस्या को बढ़ाता है, क्योंकि इससे बैक्टीरिया की कुछ प्रजातियां दवाओं के प्रति रजिस्टेंट हो जाती हैं। जब ये प्रतिरोधक जीन एक बैक्टीरिया से दूसरे में स्थानांतरित हो जाते हैं, तो नए प्रकार के रोग पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है।

स्पेन की बैलेरिक आइलैंड्स यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मार्गरीटा गोमिला ने कहा कि अस्पतालों के सिंक के पाइपों में बैक्टीरिया की आबादी समय के साथ बदलती रहती है, चाहे सफाई के नियम कितने ही सख्त क्यों न हों। यह अध्ययन “फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलॉजी” पत्रिका में प्रकाशित किया गया। इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पाइप में बैक्टीरिया के बढ़ने को नियंत्रित करना और ऐसे स्थानों पर नए बैक्टीरिया के आने से रोकना एक वैश्विक समस्या हो सकती है। ये स्थान ऐसे होते हैं जहां कीटाणुनाशक का प्रभाव कम होता है।”

शोध में पता चला कि सिंक और उनके पाइपों या नालियों को नियमित रूप से ब्लीच, केमिकल्स और भाप से साफ किया जाता है। कुछ दिनों के अंतराल पर लगातार यह सफाई अभियान जारी रहता है। इसके अलावा साल में एक बार पाइपों को कम तापमान पर हाइपरक्लोरीनीकृत किया जाता है। बावजूद इसके, वैज्ञानिकों को पाइपों में कुल 67 प्रकार के बैक्टीरिया मिले।

सबसे ज्यादा बैक्टीरिया सामान्य चिकित्सा (जनरल मेडिसिन) और आईसीयू में मिले, जबकि सबसे कम माइक्रोबायोलॉजी लैब में पाए गए। आईसीयू के नए खुले वार्ड में भी बैक्टीरिया की विविधता अधिक थी। इसमें मुख्य रूप से स्टेनोट्रोफोमोनास और स्यूडोमोनास एरुगिनोसा नामक बैक्टीरिया पाए गए, जो निमोनिया और सेप्सिस जैसी बीमारियां फैला सकते हैं।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं को स्यूडोमोनास प्रजाति के 16 अन्य प्रकार के बैक्टीरिया भी मिले, जिन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इंसानों के लिए सबसे बड़े एंटीबायोटिक प्रतिरोधी खतरों में से एक माना है। ये बैक्टीरिया खासतौर पर अस्पताल के शॉर्ट-स्टे वार्ड में अधिक पाए गए।

अन्य खतरनाक बैक्टीरिया भी विभिन्न वार्डों में बार-बार मिले। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि अस्पताल के सिंक के पाइप बैक्टीरिया के छिपने और बढ़ने के लिए आदर्श स्थान बन सकते हैं। इनमें कुछ ऐसे बैक्टीरिया भी शामिल हो सकते हैं जो एंटीबायोटिक से बचने की क्षमता रखते हैं और नए संक्रमण फैला सकते हैं। इसलिए, यह जानना जरूरी है कि ये बैक्टीरिया कहां से आते हैं और मरीजों तक कैसे पहुंचते हैं, ताकि इनके प्रसार को रोका जा सके।

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