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अमेरिका क्यों दबाव बनाने में लगा है चीन पर

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China---America

अमेरिका लगातार चीन पर दबाव बनाने में लगा हुआ है। कोविड-19 महामारी सामने आने से पहले भी अमेरिकी प्रशासन ने चीन को परेशान करने की कोशिश की। जिसके तहत चीन के खिलाफ एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाना शामिल था। जब दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद की जा रही थी कि कोरोना वायरस का संक्रमण फैल गया। चीन ने शुरूआत में इस वायरस के संकट को झेला और व्यवस्थित तरीके से इससे निपटने का काम किया। स्थिति सामान्य होने के बाद भी चीन पूरी सतर्कता बरत रहा है।

वायरस का प्रसार जैसे-जैसे अमेरिका में बढ़ा, वैसे-वैसे अमेरिका ने चीन को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। यह हम सभी जानते हैं कि चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है। चीन में तैयार होने वाले उत्पाद विश्व के कोने-कोने में पहुंचते हैं। ऐसा लगता है कि अमेरिका चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत से घबराने लगा है। बात 5-जी तकनीक की हो, या फिर तमाम तरह के उत्पाद व उपकरण बनाने की। चीन कई क्षेत्रों में अमेरिका जैसे विकसित देशों से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।

हुआवेई ने दुनिया को किस तरह से सबसे तेज और सुरक्षित तकनीक देने का वादा किया है, उससे हमारे जीवन में व्यापक बदलाव आ सकता है। लेकिन अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देश खुद की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होने का बहाना खोजकर हुआवेई पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। अब बात उससे भी आगे बढ़ गयी है। समूचे विश्व में लोकप्रिय सोशल मीडिया एप टिक-टॉक पर पाबंदी लगायी जा रही है।

यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार धमकी दे रहे हैं कि टिक-टॉक को किसी अमेरिकी कंपनी को बेच दिया जाए, अन्यथा उसे अमेरिका में काम नहीं करने दिया जाएगा। क्या इस तरह की धमकी से अमेरिका चीन के साथ रिश्तों को बेहतर बना पाएगा, इसमें संदेह है।

अमेरिका द्वारा लगातार परेशान किए जाने के बाद भी चीन ने संयम से काम लिया है। चीनी नेता कहते रहे हैं कि चीन किसी भी देश के साथ अपने रिश्तों को खराब नहीं करना चाहता है, लेकिन ट्रंप बार-बार चीन को उकसाने में लगे हैं। आज हम वैश्विक दौर में जी रहे हैं। ऐसे में हर छोटे-बड़े देश की एक-दूसरे पर बहुत ज्यादा निर्भरता हो चुकी है। लेकिन अमेरिका चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभाव से चीन पर आरोप लगाने में जुटा हुआ है।

नवंबर में होने वाले अमेरिकी चुनाव में हार का डर भी अब ट्रंप को सताने लगा है, क्योंकि कोविड-19 से निपटने में अक्षमता से वहां के नागरिकों में गुस्सा है। पर ट्रंप और माइक पोम्पेयो दिन में न जाने कितनी बार चीन का नाम लेकर बचने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य होने पर गर्व: यूक्रेन

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कीव, 24 अक्टूबर: संयुक्त राष्ट्र दिवस पर यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए रूस का घेराव किया। यूक्रेन ने कहा कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य होने पर गर्व है।

संयुक्त राष्ट्र सिद्धांतों के 80 वर्ष पूरे होने पर यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा कि यूक्रेन को संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक होने पर गर्व है। 1945 में यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल ने सैन फ्रांसिस्को में यूएन चार्टर पर हस्ताक्षर किए और इसकी प्रस्तावना तथा मुख्य उद्देश्यों व सिद्धांतों के प्रारूपण का नेतृत्व किया।

उन्होंने कहा कि यूक्रेन के हस्ताक्षर 50 अन्य संस्थापक देशों के हस्ताक्षरों के साथ मौजूद हैं। वैसे, संयुक्त राष्ट्र चार्टर में रूस के हस्ताक्षर नहीं मिलते, क्योंकि रूस ने कभी इस पर हस्ताक्षर नहीं किए। वास्तव में 1991 तक, यूक्रेन सोवियत संघ के गणराज्यों में से एक बना रहा। तब भी, यूक्रेनी राजनयिकों ने उल्लेखनीय व्यावसायिकता का परिचय दिया। न्यूयॉर्क, जिनेवा और पेरिस स्थित यूक्रेन के मिशन राजनयिकों की पीढ़ियों के लिए प्रशिक्षण स्थल बन गए।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि 1991 में स्वतंत्रता बहाली के बाद यूक्रेन के अंतरराष्ट्रीय समुदाय में शीघ्र पुनः एकीकरण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बता दें कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया था। हालांकि, इसकी नींव 1 जनवरी 1942 को रखी गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ को अस्तित्व में लाने का उद्देश्य युद्ध जैसी भयावह त्रासदी को रोकना और विश्व में शांति स्थापित करना था। 1 जनवरी 1942 को 26 देशों ने संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर किया। इसके बाद 26 जून 1945 को सैन फ्रांसिस्को में इसका मसौदा तैयार किया गया। 50 देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए मसौदा तैयार किया और हस्ताक्षर किए।

इसके बाद 24 अक्टूबर 1945 को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई। भारत भी संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है। भारत ने 26 जून को संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किया था।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

दक्षिण कोरिया में जिनपिंग से मिलेंगे राष्ट्रपति ट्रंप, टैरिफ विवाद के बीच बैठक पर टिकी दुनिया की निगाहें

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TRUMP

वाशिंगटन, 24 अक्टूबर: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अगले हफ्ते मलेशिया में मुलाकात होने जा रही है। टैरिफ विवाद के बीच ट्रंप और जिनपिंग की ये मुलाकात कई मायनों में खास है।

बता दें, अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में चीन पर 155 फीसदी टैरिफ 1 नवंबर से लागू करने की घोषणा की। इन घोषणाओं के बीच दोनों नेताओं की मुलाकात पर दुनिया की नजर टिकी रहेगी।

दक्षिण कोरिया में शी जिनपिंग के साथ ट्रंप की वार्ता की पुष्टि व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने की है। उन्होंने बताया कि दोनों नेताओं के बीच 30 अक्टूबर को एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपीईसी) शिखर सम्मेलन से इतर वार्ता होगी।

लेविट ने गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के एशिया दौरे को लेकर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ट्रंप के एशिया दौरे में आसियान और एपीईसी शिखर सम्मेलनों के लिए मलेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं, जहां व्यापार वार्ता, शांति वार्ता और अमेरिका-चीन तनाव पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

बता दें, इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने वाशिंगटन और बीजिंग में व्यापार युद्ध बढ़ने के बीच इस बैठक को रद्द करने की धमकी दी थी। हालांकि, उन्होंने बुधवार को कहा कि अब उन्हें “हर मुद्दे पर समझौते” की उम्मीद है।

अमेरिकी राष्ट्रपति शुक्रवार को वाशिंगटन से रवाना होंगे और रविवार को दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ शिखर सम्मेलन के लिए मलेशिया पहुंचेंगे। खास बात यह है कि ट्रंप इससे पहले के अपने कार्यकाल में कई बार इस बैठक में शामिल नहीं हुए हैं।

वह मलेशिया के साथ एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले हैं—लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह थाईलैंड और कंबोडिया के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर की देखरेख करेंगे।

मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप थाईलैंड और कंबोडिया के बीच शांति वार्ता के और भी सकारात्मक परिणाम देखने के लिए उत्सुक हैं।”

ट्रंप का अगला पड़ाव मंगलवार को टोक्यो होगा और बुधवार को वह रूढ़िवादी साने ताकाइची से मुलाकात करेंगे। बता दें, साने ताकाइची ने इसी हफ्ते जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में जिम्मेदारी संभाली है।

अमेरिकी राष्ट्रपति के ‘टैरिफ बम’ से जापान अब तक बचा हुआ है। लेविट ने बताया कि एपीईसी समिट में शामिल होने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बुधवार को दक्षिणी बंदरगाह शहर बुसान पहुंचेंगे।

इसके बाद ट्रंप दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति ली जे म्युंग से मिलेंगे, व्यापारिक नेताओं के साथ एपीईसी लंच को संबोधित करेंगे और अमेरिकी टेक सीईओ से डिनर पर मिलेंगे। व्हाइट हाउस ने बताया कि यह बैठक ग्योंगजू शहर में एपीईसी शिखर सम्मेलन से इतर होगी।

इसके अगले दिन ट्रंप, पदभार ग्रहण करने के बाद पहली बार शी जिनपिंग से मिलेंगे। वैश्विक बाजार इस बात पर कड़ी नजर रखेंगे कि क्या दोनों नेता दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध को रोक पाते हैं।

ट्रंप ने शुरुआत में बैठक रद्द करने और नए टैरिफ लगाने की धमकी दी थी, लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि वह आगे बढ़ेंगे। इस दौरान उत्तर कोरिया भी एजेंडे में होगा। दरअसल, ट्रंप के दौरे से कुछ दिन पहले, बुधवार को, उत्तर कोरिया ने कई बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं।

अधिकारियों ने गुरुवार को बताया कि दक्षिण कोरिया ने दोनों कोरिया को अलग करने वाले असैन्यीकृत क्षेत्र (डीएमजेड) के कुछ हिस्सों में दौरे रोक दिए हैं। इससे ट्रंप और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन के बीच एक नई मुलाकात की अटकलें तेज हो गई हैं। हालांकि, अब तक इनकी मुलाकात को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

अमेरिका ने 1 लाख डॉलर की एच-1बी वीजा फीस पर दी सफाई, मौजूदा वीजा धारक रहेंगे मुक्त

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वॉशिंगटन, 21 अक्टूबर: विदेशी पेशेवरों को बड़ी राहत देते हुए अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने एच-1बी वीजा की 1 लाख डॉलर आवेदन फीस पर नया दिशा-निर्देश जारी किया है। इसमें कई छूटें और अपवाद शामिल किए गए हैं।

नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, जो लोग एफ-1 (छात्र) वीजा से एच-1बी वीजा श्रेणी में स्विच कर रहे हैं, उन्हें यह भारी शुल्क नहीं देना होगा। इसी तरह, अमेरिका के भीतर रहकर वीजा में संशोधन, स्थिति परिवर्तन या अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन करने वाले एच-1बी वीजा धारकों पर भी यह शुल्क लागू नहीं होगा।

इसके अलावा, मौजूदा एच-1बी वीजा धारकों को देश में आने-जाने पर किसी तरह की रोक नहीं होगी। यह शुल्क केवल उन नए आवेदकों पर लागू होगा जो अमेरिका के बाहर हैं और जिनके पास मान्य एच-1बी वीजा नहीं है। नई आवेदन प्रक्रिया के लिए ऑनलाइन भुगतान लिंक भी जारी किया गया है।

यह स्पष्टीकरण ऐसे समय आया है जब अमेरिकी वाणिज्य मंडल ने इस फैसले के खिलाफ ट्रंप प्रशासन पर मुकदमा दायर किया है। संगठन ने इस फीस को “गैरकानूनी” बताते हुए कहा कि इससे अमेरिकी व्यवसायों पर “गंभीर आर्थिक असर” पड़ेगा और कंपनियों को या तो अपने श्रम खर्च में भारी बढ़ोतरी करनी पड़ेगी या फिर कुशल विदेशी कर्मचारियों की भर्ती कम करनी होगी।

ट्रंप प्रशासन के खिलाफ यह दूसरी बड़ी कानूनी चुनौती है। इससे पहले, श्रमिक संघों, शिक्षा विशेषज्ञों और धार्मिक संस्थाओं के समूह ने भी 3 अक्टूबर को मुकदमा दायर किया था।

ट्रंप ने 19 सितंबर को हस्ताक्षरित इस घोषणा पर कहा था कि इसका उद्देश्य “अमेरिकी नागरिकों को रोजगार का प्रोत्साहन देना” है। हालांकि, इस फैसले से मौजूदा वीजा धारकों में भ्रम की स्थिति बन गई थी कि क्या वे अमेरिका लौट पाएंगे या नहीं।

व्हाइट हाउस ने 20 सितंबर को आईएएनएस से कहा था कि यह “एक बार लिया जाने वाला शुल्क” है, जो केवल नए वीजा आवेदनों पर लागू होगा, न कि नवीनीकरण या मौजूदा वीजा धारकों पर।

बता दें कि 2024 में भारतीय मूल के पेशेवरों को कुल स्वीकृत एच-1बी वीजाओं में 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी मिली थी। इसका कारण था वीजा स्वीकृति में लंबित मामलों का भारी बैकलॉग और भारत से आने वाले उच्च कौशल वाले आवेदकों की बड़ी संख्या।

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