राजनीति
टीआरएस ने हैदराबाद में मुफ्त पीने के पानी का वादा किया
दिल्ली के नक्शे कदम पर चलते हुए, तेलंगाना सरकार ने प्रति माह 20,000 लीटर तक हैदराबाद के हर घर में मुफ्त पेयजल आपूर्ति का वादा किया है। मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने सोमवार को घोषणा की कि राज्य की राजधानी में लोगों को दिसंबर से मुफ्त पानी मिलेगा।
टीआरएस प्रमुख द्वारा जारी ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (जीएचएमसी) चुनावों के लिए टीआरएस के घोषणापत्र के वादे का ये हिस्सा है।
राव ने कहा कि हैदराबाद मुफ्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए दिल्ली के बाद भारत का दूसरा शहर बन जाएगा। उन्होंने कहा, “इस कदम से शहर के 97 फीसदी उपभोक्ताओं को फायदा होगा।”
टीआरएस प्रमुख ने कहा कि उन्होंने योजना के कार्यान्वयन के बारे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से बात की। उन्होंने कहा, “दिल्ली सरकार इस योजना के लिए 200-300 करोड़ रुपये की सब्सिडी प्रदान कर रही है और हमारा अनुमान है कि हैदराबाद में भी इसी तरह होगा।”
केसीआर ने लोगों से अपील की कि वे सुनिश्चित करें कि पानी बर्बाद न हो। उन्होंने कहा कि अगर इस योजना को हैदराबाद में सफलतापूर्वक लागू किया जाता है, तो इसे अन्य नगरपालिकाओं में भी विस्तारित किया जाएगा।
राजनीति
न्यायपालिका को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है भाजपा: शिवसेना (यूबीटी)

मुंबई, 12 दिसंबर: शिवसेना (यूबीटी) ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से भाजपा पर एक बार फिर तीखा हमला बोला है। संपादकीय में शिवसेना (यूबीटी) ने आरोप लगाया गया है कि भाजपा न्यायपालिका को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है और संवैधानिक मुद्दों पर अदालतों का रुख बदलने में लगी है।
संपादकीय के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट दलबदल, भ्रष्टाचार और विधायकों की खरीद-फरोख्त जैसे गंभीर संवैधानिक मामलों पर फैसले देने में पीछे हटता दिखता है, जबकि धार्मिक तनाव बढ़ाने वाली याचिकाओं पर अदालतें असामान्य रूप से सक्रिय दिखती हैं। शिवसेना (यूबीटी) का आरोप है कि भाजपा अदालतों और चुनाव आयोग पर दबाव बनाकर हिंदुत्व के मुद्दों को अपनी सुविधा अनुसार मोड़ रही है।
संपादकीय के मुताबिक जस्टिस स्वामीनाथन मामले ने हिंदुत्व की राजनीति को नए तरीके से भड़काया है। संपादकीय में जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन पर सीधा आरोप लगाया गया है कि वे भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हैं और उनकी अदालत में उपस्थिति लोकतंत्र तथा संविधान के लिए खतरा बनती जा रही है। सर्वोच्च, उच्च और जिला अदालतों में ऐसे कई न्यायाधीश नियुक्त किए जा रहे हैं जो एक विशेष राजनीतिक विचारधारा के करीब माने जाते हैं।
संपादकीय में तो यहां तक लिखा गया है कि विपक्ष पहले ही मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला चुका है, जिस पर सौ से अधिक सांसद हस्ताक्षर कर चुके हैं। वहीं भाजपा नेताओं (अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस) ने इस कदम को गलत बताते हुए शिवसेना सांसदों की आलोचना की है।
सामना संपादकीय में सवाल उठाया गया है कि अगर कोई न्यायाधीश हिंदुत्ववादी विचारधारा से जुड़ा है तो क्या यह उसे महाभियोग से बचा लेने का आधार बन सकता है? अदालत में जाति, धर्म और संप्रदाय को तूल देना न्यायिक परंपराओं के विरुद्ध है और मौजूदा सरकार में न्यायपालिका के कई परंपरागत प्रतीक कमजोर हुए हैं।
शिवसेना (यूबीटी) ने यह भी दावा किया है कि संघ परिवार भारत में धार्मिक तनाव बढ़ाकर राजनीतिक लाभ उठाने की रणनीति पर काम कर रहा है। संपादकीय में कहा गया है कि चुनावों से पहले योजनाबद्ध तरीके से विवाद खड़े किए जाते हैं, फिर उन मामलों को अदालतों में ले जाकर मनचाहे फैसले प्राप्त किए जाते हैं। स्वामीनाथन का हालिया फैसला भी इसी रणनीति का हिस्सा बताया गया है, जिससे ‘मंदिर बनाम दरगाह’ जैसा नया विवाद खड़ा हुआ है।
सामना संपादकीय के मुताबिक, किसी भी न्यायाधीश से अपेक्षा होती है कि वह संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप निर्णय दे, लेकिन स्वामीनाथन पर आरोप है कि वे संघ की विचारधारा से प्रभावित हैं और उसी आधार पर फैसला सुनाते हैं। कई पूर्व न्यायाधीश भी उनकी कार्यशैली पर आपत्ति जता चुके हैं।
संपादकीय में यह भी कहा गया कि हिंदुओं की पूजा-पद्धति पर किसी का कोई हस्तक्षेप नहीं है, इसलिए अन्य धर्मों की भावनाओं को चोट पहुंचाने की कोई आवश्यकता नहीं। मंदिर के पास दरगाह या मस्जिद होना कोई नई बात नहीं है और ऐसी स्थितियों में अदालत से संयमित निर्णय की अपेक्षा की जाती है। यदि अदालतें किसी धार्मिक संगठन की इच्छा के अनुरूप फैसले सुनाने लगेंगी, तो भविष्य में बड़े विवाद पैदा हो सकते हैं।
राजनीति
शिवराज पाटिल से जुड़े दो विवाद, जब उन्हें देशभर में आलोचनाओं का करना पड़ा था सामना

नई दिल्ली, 12 दिसंबर: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का शुक्रवार सुबह निधन हो गया है। वे अपने शांत स्वभाव और संयमित राजनीतिक शैली के लिए जाने जाते थे। हालांकि अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्हें अपने बयानों और लाइफ स्टाइल की वजह से कड़ी आलोचना का सामना भी करना पड़ा।
इसमें से एक विवाद शिवराज पाटिल के श्रीमद्भवत गीता को लेकर दिए बयान से जुड़ा है, जिसके बाद राजनीतिक गलियारों से लेकर टीवी डिबेट तक घमासान मच गया था।
दरअसल दिल्ली में एक बुक लॉन्च इवेंट के दौरान शिवराज पाटिल ने कहा था कि जिहाद की अवधारणा केवल कुरान में ही नहीं, बल्कि गीता और ईसाइयों से जुड़े ग्रंथों में भी देखने को मिलती है। उन्होंने कहा था कि इस्लाम धर्म में जिहाद पर बहुत चर्चा होती है। तमाम कोशिशों के बाद भी अगर कोई साफ विचारों को नहीं समझता है तो ताकत का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह अवधारणा सिर्फ कुरान शरीफ में ही नहीं, बल्कि महाभारत में भी है। महाभारत में गीता के जिस हिस्से में श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म के लिए युद्ध करने की प्रेरणा दी, वह भी जिहाद के समान है।” शिवराज पाटिल ने कहा था कि ईसा मसीह के तलवार उठाने का जिक्र करते हुए कहा कि आप इसे जिहाद नहीं कह सकते और आप इसे गलत नहीं कह सकते, यही बात हमें समझनी चाहिए।
उनके इस बयान पर विभिन्न धर्मों के नेताओं, सामाजिक संगठनों और विपक्षी पार्टियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। कई लोगों ने इसे धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ बताया। हालांकि पाटिल अपनी बात पर कायम रहे और इसे केवल धर्मग्रंथों की ‘दार्शनिक व्याख्या’ बताया था।
शिवराज पाटिल से जुड़ा दूसरा विवाद वर्ष 2008 में सामने आया था, जब दिल्ली में सीरियल बम ब्लास्ट वाली शाम को करीब चार घंटे में उन्हें तीन अलग-अलग
परिधानों में देखा गया। एक और ब्लास्ट के पीड़ित अस्पताल में तड़प रहे हैं, वहीं दूसरी ओर तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल को उनके कपड़े बदलने के लिए जमकर घेरा गया। दरअसल ब्लास्ट वाली शाम को उन्हें सबसे पहले सीडब्ल्यूसी की बैठक, फिर ब्लास्ट के बाद मीडिया से मुखातिब होते समय और इसके बाद घटनास्थल के जायजे के दौरान अलग-अलग कपड़ों में देखा गया।
इसके बाद एक टीवी इंटरव्यू में शिवराज पाटिल ने आलोचना का जवाब देते हुए कहा था, “मैं साफ-सुथरे तरीके से रहने वाला व्यक्ति हूं। अगर मैं ऐसे समय शांति से अपना काम करता हूं तो भी लोग मुझमें कमी निकालते हैं। आप नीतियों की आलोचना कीजिए, कपड़ों की नहीं।” उन्होंने कहा कि इस तरह की आलोचना राजनीतिक मर्यादा के खिलाफ है और इसका मूल्यांकन जनता करेगी।
भाजपा समेत विरोधी दलों ने पाटिल के कृत्य को असंवेदनशीलता बताया था। हालांकि बिहार के पूर्व मंत्री शकील अहमद ने कहा था कि कपड़ों पर विवाद निरर्थक है। हर इंसान को अच्छा दिखने का अधिकार है। किसी मंत्री का मूल्यांकन उसकी नीतियों और उसके काम से होना चाहिए, न कि उसकी वेशभूषा से। उन्होंने इसे बेतुका विवाद बताया था।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
ऑस्ट्रेलिया : रेडिट ने सरकार के अंडर-16 सोशल मीडिया बैन को हाई कोर्ट में चुनौती दी

कैनबरा, 12 दिसंबर: ग्लोबल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म रेडिट ने ऑस्ट्रेलिया की उस नई कानूनी नीति के खिलाफ हाई कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर रोक लगाई गई है।
रेडिट का कहना है कि यह प्रतिबंध गलत तरीके से उस पर लागू किया जा रहा है, क्योंकि यह मंच मुख्य रूप से वयस्कों की चर्चा के लिए है और इसमें वे सामान्य सोशल मीडिया फीचर्स नहीं हैं, जिन पर सरकार आपत्ति जता रही है।
कंपनी ने कहा कि वह कानून का पालन करती रहेगी, लेकिन इस नियम की वजह से वयस्कों और बच्चों दोनों पर बहुत दखल देने वाली और संभावित रूप से असुरक्षित वेरिफिकेशन प्रोसेस लागू की जा रही है।
रेडिट ने यह भी कहा कि यह कानून असरदार नहीं है, क्योंकि 16 साल से कम उम्र के बच्चों को ऑनलाइन नुकसान से बचाने का बेहतर तरीका यह है कि वे निगरानी और सुरक्षा वाले फीचर के साथ अकाउंट चलाएं।
कंपनी ने कहा, “सरकार की नीयत अच्छी है, लेकिन यह कानून बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को सही तरह से मजबूत नहीं कर पा रहा। इसलिए हम इसका पालन तो करेंगे, पर अदालत से इसकी समीक्षा की मांग भी करेंगे।”
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस नए नियम के तहत उन 10 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में रेडिट भी शामिल है जो बुधवार को लागू हुए बैन में शामिल हैं। इन प्लेटफॉर्म को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि 16 साल से कम उम्र के बच्चे उनके मंच पर अकाउंट न बना सकें और न ही अकाउंट इस्तेमाल कर सकें। जो कंपनियां इस नियम का गंभीर उल्लंघन करेंगी, उन्हें लगभग 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक का भारी जुर्माना देना पड़ सकता है।
यह दुनिया का पहला ऐसा कानून है, जिसमें 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर राष्ट्रीय स्तर पर रोक लगाई गई है। इसमें फेसबुक, यूट्यूब, टिकटॉक और एक्स जैसे बड़े मंच भी शामिल हैं।
प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने छात्रों से एक वीडियो मैसेज में कहा कि यह बदलाव इसलिए किया गया है ताकि बच्चों को सोशल मीडिया के लगातार चलते रहने वाले दबाव और एल्गोरिदम के असर से राहत मिल सके। उन्होंने बच्चों को सलाह दी कि आने वाली छुट्टियों में मोबाइल पर वक्त गंवाने के बजाय कोई खेल शुरू करें, कोई नया इंस्ट्रूमेंट सीखें या कोई किताब पढ़ें।
उन्होंने कहा, “सबसे जरूरी है कि आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ आमने-सामने समय बिताएं।”
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