राष्ट्रीय समाचार
मैसूर दशहरा से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज, कहा- भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र
नई दिल्ली, 19 सितंबर। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका बानू मुश्ताक को इस साल के मैसूर दशहरा समारोह का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किए जाने का विरोध किया गया था। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर आधारित है और राज्य सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रम किसी निजी संस्था का आयोजन नहीं होता।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि मैसूर दशहरा केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह हिंदू धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं से जुड़ा पवित्र अनुष्ठान है। इसकी शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चार और चामुंडेश्वरी देवी की पूजा से होती है। ऐसे में बानू मुश्ताक के रूप में एक मुस्लिम महिला को समारोह का उद्घाटन करने के लिए बुलाना परंपरा और धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि 2017 में भी प्रसिद्ध मुस्लिम कवि निसार अहमद ने मैसूर दशहरा का उद्घाटन किया था। अदालत ने कहा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट करती है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। ऐसे में किसी भी धर्म विशेष के आधार पर भेदभाव करना न्यायोचित नहीं है।
बता दें कि बेंगलुरु के एक निवासी, एचएस गौरव की ओर से दायर पीआईएल में कहा गया कि दशहरा के उद्घाटन को हिंदू परंपरा का अभिन्न हिस्सा घोषित किया जाना चाहिए और इसे हिंदू गणमान्य व्यक्ति द्वारा ही किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर एसएलपी में कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें मैसूर दशहरा के उद्घाटन के लिए बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं (पीआईएल) को खारिज कर दिया गया था।
मैसूर दशहरा के उद्घाटन के दौरान देवी चामुंडेश्वरी को फूल चढ़ाने की परंपरा है और विपक्षी बीजेपी इस बात पर आपत्ति जता रही है कि बानू मुश्ताक दूसरे धर्म से हैं।
कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विभू बाखरू और जस्टिस सीएम जोशी की बेंच ने 15 सितंबर को अपने फैसले में कहा था कि किसी के भी अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है और कहा कि विजय दशमी का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
हालांकि, विपक्ष ने मैसूर दशहरा के उद्घाटन के लिए बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने के राज्य सरकार के फैसले को ‘गलत’ बताया है और याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि बुकर प्राइज विजेता ने हिंदू विरोधी बयान दिए थे और कन्नड़ भाषा के खिलाफ टिप्पणी की थी। वहीं, कर्नाटक सरकार का कहना है कि मैसूर दशहरा इस क्षेत्र का त्योहार है, न कि कोई धार्मिक कार्यक्रम।
राजनीति
पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्रा हत्याकांड में 50 साल बाद फिर जांच की मांग, दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका

नई दिल्ली, 4 नवंबर: पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा (एलएन मिश्रा) की हत्या के 50 साल बाद भाजपा नेता और सांसद अश्विनी कुमार चौबे ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अश्विनी कुमार चौबे ने इस मामले में सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की है।
अश्विनी चौबे ने अपनी याचिका में दावा किया है कि एलएन मिश्रा की हत्या के लिए जिन लोगों को दोषी ठहराया गया, वे असल अपराधी नहीं हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सीबीआई ने इस मामले की गहराई से जांच नहीं की और यह हत्या उस दौर की एक बड़ी राजनीतिक साजिश का हिस्सा थी, जिसका उद्देश्य जनता के बीच लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता ललित नारायण मिश्रा को रास्ते से हटाना था।
ललित नारायण मिश्रा उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और रेल मंत्री थे। 2 जनवरी 1975 को बिहार के समस्तीपुर में एक रेलवे प्रोजेक्ट का उद्घाटन करते समय हुए ग्रेनेड हमले में उनकी मौत हो गई थी। सीबीआई की जांच में आनंद मार्ग संगठन के चार सदस्यों संतोषानंद, सुधेवानंद, गोपालजी और रंजन द्विवेदी को आरोपी बनाया गया था। लंबी सुनवाई के बाद दिल्ली की एक अदालत ने 2014 में इन सभी को दोषी ठहराया था।
अश्विनी कुमार चौबे ने याचिका दायर कर दोबारा जांच की मांग की है। इस मामले में सुनवाई के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने भी 11 नवंबर की तारीख तय की है। दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक चौधरी और मनोज जैन की बेंच सुनवाई करेगी।
इससे पहले, अश्विनी चौबे ने ललित नारायण मिश्रा की हत्या की फिर से जांच की मांग करते हुए 27 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा था।
उन्होंने लिखा, “ललित नारायण मिश्रा की हत्या की निष्पक्ष जांच की मांग की जाती है, ताकि मामले में न्याय मिल सके क्योंकि यह न केवल ललित नारायण मिश्रा के परिवार की ओर से, बल्कि बिहार और मिथिलांचल क्षेत्र के लोगों की तरफ से भी मांगा गया है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जस्टिस मैथ्यू आयोग और जस्टिस तारकुंडे रिपोर्ट के साथ-साथ बिहार पुलिस सीआईडी रिपोर्ट में ललित नारायण मिश्रा की हत्या के संबंध में अलग-अलग निष्कर्ष हैं, इसलिए भारत सरकार की ओर से जांच स्थापित करना महत्वपूर्ण है ताकि ललित नारायण मिश्रा को न्याय मिल सके। इस मामले में आपसे हस्तक्षेप करने का विनम्र अनुरोध है।”
राजनीति
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव के लिए मतदान जारी

नई दिल्ली, 4 नवंबर: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आज यानी मंगलवार को छात्रसंघ चुनाव के लिए मतदान हो रहा है। इस दौरान कई छात्र ऊर्जा एवं उत्साह के साथ मतदान के लिए पहुंच रहे हैं। विश्वविद्यालय के प्रत्येक स्कूल व केंद्र के छात्र इस चुनाव में मतदाता हैं।
विभिन्न छात्र संगठन बीते कई दिनों से विश्वविद्यालय के अलग-अलग हॉस्टल्स में छात्रों से संवाद स्थापित करने का प्रयास करते रहे। छात्र संगठनों का कहना है कि यह चुनाव केवल वैचारिक आंदोलन नहीं, बल्कि सेवा और समाधान की संस्कृति का प्रतीक है। मंगलवार सुबह से ही विभिन्न छात्र संगठनों से जुड़े युवा मतदान केंद्रों के आसपास जुटना शुरू हो गए थे। विश्वविद्यालय में कुल 8 मतदान केंद्र बनाए गए हैं।
जेएनयू के इन मतदान केन्द्रों पर मंगलवार सुबह 9 बजे से मतदान प्रक्रिया शुरू हो गई है। पहली पाली का मतदान दोपहर 1 बजे तक चलेगा। इसके बाद दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर दूसरी पाली का मतदान प्रारंभ होगा जो शाम 5 बजकर 30 मिनट तक जारी रहेगा। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव व संयुक्त सचिव के लिए यह मतदान हो रहा है। विश्वविद्यालय के कुल 9043 छात्र मतदान में हिस्सा ले सकेंगे।
गौरतलब है कि विभिन्न वाम संगठन जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में इस वर्ष संयुक्त रूप से चुनाव लड़ रहे हैं। वाम संगठन जैसे कि एसएफआई, आइसा व डीएसएफ लंबे समय बाद छात्रसंघ चुनाव में साथ आए हैं। इन वामदलों की ओर से अध्यक्ष पद के लिए अदिति मिश्रा मैदान में हैं। उपाध्यक्ष के लिए कीझाकूट गोपिका बाबू, सचिव पद पर सुनील यादव व संयुक्त सचिव के लिए दानिश अली चुनाव लड़ रहे हैं।
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में अभाविप की ओर से अध्यक्ष पद पर विकास पटेल चुनाव मैदान में हैं। उपाध्यक्ष पद पर तान्या कुमारी चुनाव लड़ रही हैं। महासचिव पद के लिए राजेश्वर कांत दुबे व संयुक्त सचिव पद के लिए अनुज एबीवीपी के प्रत्याशी हैं। इसके अलावा अन्य संगठनों ने भी इन चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारे हैं। विश्वविद्यालय में मतदान प्रारंभ होने के साथ ही छात्रों को इस संबंध में जानकारी देने की भी पूरी व्यवस्था की गई है।
चुनाव नतीजों की बात करें तो 6 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव का नतीजा जारी किया जाएगा। इस साल जेएनयू छात्र संघ चुनाव कमेटी की ओर से एक ऑफिशियल वेबसाइट की जानकारी दी गई है। विश्वविद्यालय के छात्र इस वेबसाइट के जरिए लाइव रिजल्ट और अन्य आधिकारिक सूचनाएं हासिल कर सकेंगे। छात्र संगठनों ने इन चुनावों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व छात्रों से जुड़े अनेक मुद्दे उठाए हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने इन चुनावों में शोधार्थियों की फेलोशिप, हॉस्टल आवंटन की पारदर्शिता, वाई-फाई सुविधा के विस्तार, और अकादमिक वातावरण के सुदृढ़ीकरण जैसे मुद्दों को उठाया है। एबीवीपी का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय और हैदराबाद विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों में अभाविप के प्रति छात्रों का समर्थन तेजी से बढ़ा है। यह लहर केवल चुनावी नहीं, बल्कि वैचारिक परिवर्तन की लहर है, जो बताती है कि आज का युवा संघर्ष नहीं, समाधान चाहता है।
अपराध
मुंबई: मकोका कोर्ट ने 1992 के जेजे अस्पताल गोलीबारी मामले में 63 वर्षीय आरोपी को बरी करने से इनकार किया

मुंबई: विशेष मकोका अदालत ने 63 वर्षीय त्रिभुवन रामपति सिंह को आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया है। सिंह पर 1992 में मुंबई के जेजे अस्पताल में हुई गोलीबारी में हमलावरों में से एक होने का आरोप है। इस गोलीबारी का उद्देश्य 1991 में दाऊद इब्राहिम के बहनोई इब्राहिम इकबाल पारकर पर की गई गोलीबारी का बदला लेना था।
अभियोजन पक्ष का आरोप है कि कथित तौर पर अरुण गवली गिरोह के एक समूह ने 16 मार्च, 1991 को पारकर पर हमला किया था। इसके बाद, 12 सितंबर, 1992 को सुबह 3:45 बजे, एके-47, पिस्तौल, रिवॉल्वर और हथगोले से लैस हमलावर उस वार्ड में घुस आए जहाँ शूटर शैलेश हल्दांकर भर्ती थे और उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी। हल्दांकर और सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात दो कांस्टेबल मारे गए, और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
उत्तर प्रदेश में हत्या के आरोप में 32 साल बाद गिरफ्तार किए गए सिंह की पहचान प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों और शिनाख्त परेड के ज़रिए हुई, जिसमें उनके कबूलनामे से हमले में उनकी संलिप्तता सामने आई। अभियोजन पक्ष ने कहा, “आवेदक के शरीर पर दिखाई देने वाली पुरानी चोटों के बारे में डॉक्टर की रिपोर्ट से स्पष्ट रूप से आग्नेयास्त्रों से लगी पुरानी चोट का पता चलता है,” क्योंकि सिंह पुलिस की जवाबी कार्रवाई में घायल हुआ था और भाग गया था। सिंह के वकील सुदीप पासबोला ने गलत पहचान का दावा करते हुए तर्क दिया कि केवल दो हमलावर, सुभाष ठाकुर (दोषी) और बृजेश सिंह (बरी), ही शामिल थे, और 32 साल बाद की गई पहचान अविश्वसनीय है।
अभियोजक सुनील गोयल ने प्रतिवाद किया कि सिंह उर्फ रमापति प्रधान ने डीएनए परीक्षण से इनकार कर दिया। अदालत ने रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद कहा, “प्रथम दृष्टया साक्ष्य स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि आवेदक षडयंत्र, हत्या, आपराधिक गिरोह की आपराधिक गतिविधियों में सहायता और प्रोत्साहन के अपराध में शामिल था,” और सिंह के खिलाफ कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार पाया।
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