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भारत में तेजी से बढ़ रही डिजिटल अर्थव्यवस्था, 2030 तक 20 प्रतिशत होगी हिस्सेदारी

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नई दिल्ली, 29 जनवरी। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी कुल अर्थव्यवस्था में 2030 तक बढ़कर करीब 20 प्रतिशत हो जाएगी। यह जानकारी सरकार द्वारा दी गई।

बीते एक दशक से अधिक समय में देश में डिजिटल आधारित उद्योग 17.3 प्रतिशत की गति से बढ़े हैं। यह इस दौरान पूरी अर्थव्यवस्था की गति 11.8 प्रतिशत से अधिक थी।

डिजिटल प्लेटफॉर्म का तेजी से विस्तार हुआ है और आने वाले वर्षों में यह प्लेटफॉर्म लगभग 30 प्रतिशत की दर से बढ़ सकते हैं।

‘स्टेट ऑफ इंडिया डिजिटल इकोनॉमी रिपोर्ट’ के अनुसार, 2022-23 में डिजिटल अर्थव्यवस्था में 1.46 करोड़ कर्मचारी या भारत के कार्यबल का 2.55 प्रतिशत हिस्सा कार्यरत था। इनमें से ज्यादातर नौकरियां (58.07 प्रतिशत) डिजिटल आधारित उद्योगों में हैं।

कार्यबल मुख्य रूप से पुरुष है। हालांकि, डिजिटल प्लेटफॉर्म ने महिलाओं के लिए नौकरी के अवसर बढ़ाने में योगदान दिया है।

आईटी मंत्रालय ने कहा कि भारत, अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण के मामले में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डिजिटलीकृत देश है और व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं में डिजिटलीकरण के स्तर में जी20 देशों में 12वां स्थान है।

मंत्रालय के मुताबिक, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था पूरी अर्थव्यवस्था की तुलना में लगभग दोगुनी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, जो 2029-30 तक राष्ट्रीय आय में लगभग 20 प्रतिशत योगदान देगी। इसका मतलब यह है कि छह साल से भी कम समय में देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी कृषि या मैन्युफैक्चरिंग से अधिक हो जाएगी।

भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में उभरी है, जो 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 11.74 प्रतिशत (31.64 लाख करोड़ रुपये या 402 अरब डॉलर) थी।

देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था बढ़ने की वजह एआई, क्लाउड सर्विसेज का तेजी बढ़ना और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) का उभरना शामिल है। भारत दुनिया के 55 प्रतिशत जीसीसी की मेजबानी करता है।

मंत्रालय ने कहा, डिजिटल प्लेटफॉर्म का तेजी से विस्तार एक निरंतर परिवर्तन का संकेत देता है और भारत में काम के भविष्य को आकार देने के लिए तैयार है।

राष्ट्रीय

भारत में 11 वर्षों में 269 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी से निकले बाहर: विश्व बैंक

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नई दिल्ली, 7 जून। विश्व बैंक के लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सरकार के तहत एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में भारत ने पिछले दशक में अपनी अत्यधिक गरीबी दर को कम करने में प्रगति की है। देश में अत्यधिक गरीबी दर 2011-12 में 27.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 5.3 प्रतिशत दर्ज की गई है।

भारत में 2011-12 के दौरान कुल 344.47 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी में रह रहे थे, जो कि 2022-23 के दौरान घटकर लगभग 75.24 मिलियन लोग रह गए हैं।

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में एक महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में लगभग 11 वर्षों में 269 मिलियन व्यक्तियों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला गया।

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश पांच राज्यों में 2011-12 के दौरान भारत के 65 प्रतिशत अत्यंत गरीब लोग रहते थे। वहीं, इन राज्यों ने 2022-23 तक अत्यधिक गरीबी में होने वाली कुल गिरावट में दो-तिहाई योगदान दिया।

विश्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि पूर्ण रूप से, अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 344.47 मिलियन से घटकर केवल 75.24 मिलियन रह गई है।

विश्व बैंक का आकलन 3.00 डॉलर प्रतिदिन की अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (2021 की कीमतों का उपयोग कर) पर आधारित है, जो कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में व्यापक कमी दर्शाता है।

विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार, 2.15 डॉलर प्रतिदिन की खपत पर (2017 की कीमतों पर आधारित पिछली गरीबी रेखा) अत्यधिक गरीबी में रहने वाले भारतीयों की हिस्सेदारी 2.3 प्रतिशत है, जो 2011-12 में दर्ज 16.2 प्रतिशत से काफी कम है।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 2.15 डॉलर प्रतिदिन की गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 33.66 मिलियन दर्ज की गई है, जो 2011 में 205.93 मिलियन दर्ज की गई थी।

आंकड़ों से यह भी पता चला कि यह तीव्र गिरावट समान रूप से देखी गई, जिसमें ग्रामीण अत्यधिक गरीबी 18.4 प्रतिशत से घटकर 2.8 प्रतिशत हो गई और शहरी अत्यधिक गरीबी पिछले 11 वर्षों में 10.7 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत हो गई।

इसके अलावा, भारत ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में भी शानदार प्रगति की है।

आंकड़ों के अनुसार, बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2005-06 में 53.8 प्रतिशत से घटकर 2019-21 तक 16.4 प्रतिशत हो गया और 2022-23 में और अधिक घटकर 15.5 प्रतिशत हो गया।

केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के 11 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को गरीबी से उबारने के लिए केंद्र द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों, इंफ्रास्ट्रक्चर और समावेशन पर फोकस को अहम बताया।

पीएम आवास योजना, पीएम उज्ज्वला योजना, जन धन योजना और आयुष्मान भारत जैसी पहलों ने आवास, स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन, बैंकिंग और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को बढ़ाया है।

प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी), डिजिटल समावेशन और मजबूत ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर ने पारदर्शिता और अंतिम छोर तक लाभों की तेजी से डिलीवरी सुनिश्चित की है, जिससे 25 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी से उबरने में मदद मिली है।

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व्यापार

निवेशकों को आरबीआई के रेपो रेट पर फैसले का इंतजार, सपाट खुला भारतीय शेयर बाजार

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मुंबई, 6 जून। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के रेपो रेट पर फैसले से पहले शुक्रवार को भारतीय शेयर बाजार सपाट खुले। शुरुआती कारोबार में आईटी और पीएसयू बैंक सेक्टर में खरीदारी देखी गई।

आज की मौद्रिक नीति में आरबीआई द्वारा नीतिगत दरों में 25 आधार अंकों की कटौती किए जाने की संभावना है, जिसका शेयर बाजार ने पहले ही आकलन कर लिया है।

सुबह करीब 9.23 बजे, सेंसेक्स 82.43 अंक या 0.10 प्रतिशत की गिरावट के साथ 81,359.61 पर कारोबार कर रहा था, जबकि निफ्टी 7.70 अंक या 0.03 प्रतिशत की गिरावट के साथ 24,743.20 पर कारोबार कर रहा था।

निफ्टी बैंक 4.85 अंक या 0.01 प्रतिशत की बढ़त के साथ 55,765.70 पर था। निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स 146.25 अंक या 0.25 प्रतिशत की बढ़त के साथ 58,449.25 पर कारोबार कर रहा था। निफ्टी स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 65.50 अंक या 0.36 प्रतिशत की बढ़त के साथ 18,498.10 पर था।

विश्लेषकों के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 के लिए विकास और मुद्रास्फीति अनुमानों पर आरबीआई की टिप्पणी अधिक महत्वपूर्ण होगी।

जियोजित इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के मुख्य निवेश रणनीतिकार डॉ. वीके विजयकुमार ने कहा, “अगर मुद्रास्फीति पूर्वानुमान 4 प्रतिशत से घटाया जाता है, तो बाजार सकारात्मक प्रतिक्रिया देगा।”

विश्लेषकों के अनुसार, निफ्टी को 24,500, इससे पहले 24,400 और 24,300 पर तत्काल समर्थन मिलने की संभावना है। ऊपर की ओर, प्रतिरोध 24,850, फिर 24,900 और अंत में 25,000 के लेवल पर होने की उम्मीद है।

चॉइस ब्रोकिंग के इक्विटी रिसर्च एनालिस्ट मंदार भोजाने ने कहा, “24,500 से नीचे का स्तर आगे बिकवाली दबाव को बढ़ा सकता है, जबकि 25,000 से ऊपर का स्तर नई ऊंचाइयों के लिए जगह बना सकता है।”

इंडिया विक्स 4.21 प्रतिशत गिरकर 15.08 पर आ गया, जो दर्शाता है कि बाजार निकट भविष्य में कम अस्थिरता की उम्मीद कर रहा है। हालांकि, आरबीआई की नीति आने वाली है, इसलिए ट्रेडर्स को सतर्क रहना चाहिए क्योंकि केंद्रीय बैंक के टोन और रेट आउटलुक के आधार पर अस्थिरता बढ़ सकती है।

इस बीच, सेंसेक्स पैक में बजाज फिनसर्व, टाटा स्टील, इंडसइंड बैंक, इटरनल, आईटीसी, एनटीपीसी और टाइटन टॉप गेनर्स रहे। जबकि, टाटा मोटर्स, बजाज फाइनेंस, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और एसबीआई टॉप लूजर्स रहे।

एशियाई बाजारों में, हांगकांग, चीन और बैंकॉक लाल निशान में कारोबार कर रहे थे। जबकि केवल जापान हरे निशान में कारोबार कर रहा था।

अमेरिकी बाजारों में पिछले कारोबारी सत्र में डाउ जोंस 108 अंक या 0.25 प्रतिशत की गिरावट के साथ 42,319.74 पर बंद हुआ। एसएंडपी 500 इंडेक्स 31.51 अंक या 0.53 प्रतिशत की गिरावट के साथ 5,939.30 पर और नैस्डैक 162.04 अंक या 0.83 प्रतिशत की गिरावट के साथ 19,298.45 पर बंद हुआ।

संस्थागत गतिविधियों के संदर्भ में, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) शुद्ध विक्रेता थे, जिन्होंने 5 जून को 208.47 करोड़ रुपए के शेयर बेचे। इसके विपरीत, घरेलू संस्थागत निवेशक (डीआईआई) 2,382.40 करोड़ रुपए की शुद्ध खरीद के साथ मजबूत खरीदार बने रहे, जिससे बाजार को सपोर्ट मिला।

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व्यापार

नीति आयोग ने राज्यों के साथ स्ट्रक्चर्ड एंगेजमेंट को बढ़ावा देने के लिए वर्कशॉप किया आयोजित

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नई दिल्ली, 3 जून। नीति आयोग ने मंगलवार को जानकारी देते हुए बताया कि राज्यों के साथ स्ट्रक्चर्ड एंगेजमेंट को बढ़ावा देने के लिए देहरादून में स्टेट सपोर्ट मिशन (एसएसएम) के अंतर्गत एक दिवसीय रिजनल वर्कशॉप आयोजित की गई।

इस वर्कशॉप का आयोजन नीति आयोग ने उत्तराखंड सरकार के स्टेट इंस्टीट्यूट फॉर एम्पावरिंग एंड ट्रांसफोर्मिंग उत्तराखंड (सेतु) आयोग के सहयोग से किया था।

नीति आयोग की ओर से एक आधिकारिक बयान में कहा गया, “सेंट्रल सेक्टर स्कीम के तहत स्टेट इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफोर्मेशन (एसआईटी) के माध्यम से नीति आयोग और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के बीच स्ट्रक्चर्ड एंगेजमेंट को बढ़ावा देने के लिए यह सीरीज की पहली वर्कशॉप है।”

इस वर्कशॉप का उद्देश्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एसएसएम पहलों पर अपने अनुभव साझा करने और एक-दूसरे से सीखने के लिए एक साथ एक मंच पर लाना है।

उद्घाटन सत्र में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. सारस्वत, सेतु आयोग के उपाध्यक्ष राज शेखर जोशी, उत्तराखंड के मुख्य सचिव आनंद वर्धन, सेतु आयोग के सीईओ शत्रुघ्न सिंह और नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।

उन्होंने राज्यों के विकास और राज्य के दृष्टिकोण को दिशा देने में परिवर्तन के लिए राज्य संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।

बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी विचार-विमर्श में भाग लिया।

डेटा-ड्रिवन गवर्नेंस पर सेशन में साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिए एनआईटीआई फॉर स्टेट्स पोर्टल और नीति आयोग में विकसित भारत स्ट्रैटेजी रूम जैसे प्लेटफार्मों पर प्रकाश डाला गया।

इस रिजनल वर्कशॉप में क्लाइमेट मिटिगेशन, मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन, स्टेट विजन फॉरम्यूलेशन, कैपेसिटी बिल्डिंग जैसी महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं पर चर्चा की गई। साथ ही, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एसआईटी कार्यान्वयन पर विचार करने महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि साझा करने और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक मंच प्रदान किया गया।

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