व्यापार
सेंसेक्स 542 अंक गिरकर बंद, आईटी इंडेक्स 2 प्रतिशत से अधिक लुढ़का
मुंबई, 24 जुलाई। भारतीय शेयर बाजार गुरुवार के कारोबारी सत्र में लाल निशान में बंद हुआ। बाजार में चौतरफा बिकवाली देखी गई। कारोबार के अंत में सेंसेक्स 542.47 अंक या 0.66 प्रतिशत की गिरावट के साथ 82,184.17 और निफ्टी 157.80 अंक या 0.63 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 25,062.10 पर था।
बाजार में गिरावट के नेतृत्व आईटी शेयरों ने किया। निफ्टी आईटी इंडेक्स में 2.21 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई। इसके अलावा एफएमसीजी और रियल्टी इंडेक्स में भी एक प्रतिशत से अधिक की गिरावट हुई। फाइनेंशियल सर्विसेज, एनर्जी, इन्फ्रा और कंजप्शन इंडेक्स में आधा प्रतिशत से अधिक की गिरावट हुई। वहीं, ऑटो, पीएसयू बैंक और मेटल इंडेक्स हरे निशान में बंद हुए।
लार्जकैप के साथ मिडकैप और स्मॉलकैप में अधिक बिकवाली देखी गई। निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स 346.40 अंक या 0.58 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 58,960.70 और निफ्टी स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 206.40 अंक या 1.09 प्रतिशत की गिरावट के साथ 18,686.80 पर बंद हुआ।
सेंसेक्स पैक में इटरनल (जोमैटो), टाटा मोटर्स, सन फार्मा, टाटा स्टील और टाइटन टॉप गेनर्स थे। ट्रेंट, टेक महिंद्रा, बजाज फिनसर्व, रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचसीएल टेक, इन्फोसिस, कोटक महिंद्र बैंक, आईटीसी, एनटीपीसी, एशियन पेंट्स और बजाज फाइनेंस टॉप लूजर्स थे।
बाजार के जानकारों के मुताबिक, सकारात्मक वैश्विक संकेतों के बावजूद भारतीय शेयर बाजारों में आज भारी गिरावट आई । भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते को लेकर शुरुआती आशावाद की जगह सावधानी ने ले ली क्योंकि निवेशकों का ध्यान अब आय पर केंद्रित हो गया है। पहली तिमाही के कमजोर प्रदर्शन के कारण आईटी और एफएमसीजी क्षेत्रों ने लार्ज-कैप शेयरों को नीचे खींच लिया।
उन्होंने आगे कहा कि पहली तिमाही की आय मोटे तौर पर अनुकूल है, लेकिन यह प्रीमियम मूल्यांकन को सही नहीं ठहराती है। भारतीय बाजार 21 गुना पी/ई के तीन साल के उच्चतम स्तर पर कारोबार कर रहा है।
भारतीय शेयर बाजार की शुरुआत सपाट हुई थी। सुबह 9:16 पर सेंसेक्स 50 अंक की मामूली गिरावट के साथ 82,675 और निफ्टी 19 अंक की कमजोरी के साथ 25,200 पर था।
आपदा
भारत की आर्थिक उन्नति देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की मजबूती पर निर्भर : नीति आयोग के सीईओ

मुंबई, 29 अक्टूबर: नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने कहा कि भारत की आर्थिक उन्नति देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की मजबूती पर निर्भर करती है, लेकिन क्रमिक परिवर्तन काफी नहीं होंगे।
नीति आयोग के फ्रंटियर टेक हब ने ‘रिइमेजनिंग मैन्युफैक्चरिंग : इंडियाज रोडमैप टू ग्लोबल लीडरशिप इन एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग’ रोडमैप की पेशकश रखी।
इस अवसर पर अपने संबोधन में सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने कहा कि यह रोडमैप 2035 तक एक एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस बनने के लिए निर्णायक और समयबद्ध मार्ग निर्धारित करता है।”
उन्होंने आगे कहा कि यह रोडमैप हमारे मैन्युफैक्चरिंग डीएनए में सटीकता, मजबूती और सस्टेनेबिलिटी के लिए फ्रंटियर टेक्नोलॉजी को इंटीग्रेट करते हुए विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी ‘मेड इन इंडिया’ पहचान का निर्माण करता है।”
इस अवसर पर मौजूद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि अगर देश को तीव्र वृद्धि हासिल करनी है, तो यह सामान्य व्यवसाय से संभव नहीं है।
उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, “फ्रंटियर टेक विज्ञान और प्रौद्योगिकी का संगम है। इस संगम के मैन्युफैक्चरिंग में प्रवेश से ऑटोमेशन, दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।”
इस रोडमैप में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में मैन्युफैक्चरिंग का 25 प्रतिशत से अधिक योगदान, 10 करोड़ से अधिक रोजगार सृजन और 2035 तक भारत को एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग के टॉप तीन ग्लोबल हब में स्थान दिलाने की परिकल्पना की गई है, जो कि देश के 2047 तक विकसित बनने की यात्रा में मील का पत्थर हैं।
नीति आयोग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, रोडमैप में चेतावनी दी गई है कि अगर भारत उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों में प्रमुख फ्रंटियर टेक्नोलॉजी को नहीं अपनाता है तो देश अवसरों से चूक जाएगा, जिससे 2035 तक 270 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 2047 तक एडिशनल मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि होने की संभावना है।
नीति फ्रंटियर टेक हब, विकसित भारत के लिए एक एक्शन टैंक है। यह एक्शन टैंक सरकार, उद्योग और शिक्षा जगत के 100 से अधिक विशेषज्ञों के सहयोग से 20 से अधिक प्रमुख क्षेत्रों में परिवर्तनकारी विकास और सामाजिक विकास के लिए 10-वर्षीय रोडमैप तैयार कर रहा है। यह हब 2047 तक एक समृद्ध, मजबूत और तकनीकी रूप से उन्नत भारत की नींव रख रहा है।
व्यापार
शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों ने वित्त वर्ष 2026 की सितंबर तिमाही में लोन ग्रोथ में 11.3 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की

BANK
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों ने वित्त वर्ष 2026 की सितंबर तिमाही में नेट एंडवांसेज में सालाना आधार पर 11.3 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की। यह बढ़ोतरी रिटेल और एमएसएमई लेंडिंग में तेजी के कारण दर्ज की गई। यह जानकारी बुधवार को आई एक रिपोर्ट में दी गई।
केयरएज रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रिटेल और एमएसएमई सेगमेंट में क्रेडिट ग्रोथ फिर से शुरू हो गई है, हालांकि फास्टर लेंडिंग रेट ट्रांसमिशन और धीमी डिपॉजिट रीप्राइसिंग के कारण मार्जिन पर दबाव रहा।
शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों में पब्लिक सेक्टर बैंकों ने एडवांसेज में सालाना आधार पर 14.5 प्रतिशत की मजबूत ग्रोथ दर्ज की, जबकि प्राइवेट सेक्टर बैंकों ने 9.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की।
इस बीच, पब्लिक सेक्टर बैंकों में डिपॉजिट में 11 प्रतिशत और प्राइवेट बैंकों में 10 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई। टर्म डिपॉजिट में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई इसलिए करंट अकाउंट और सेविंग अकाउंट रेश्यो 37.4 प्रतिशत हो गया, जो कि ठीक एक वर्ष पहले 38.5 प्रतिशत दर्ज किया गया था।
रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 26 की दूसरी तिमाही में स्थिर लोन ग्रोथ के बीच हल्के एनआईएम दबाव के साथ स्थिर प्रदर्शन किया। इसे त्योहारों से जुड़ी गाड़ियों की मांग, जीएसटी रेट कट और बढ़े हुए बॉन्ड यील्ड का सपोर्ट मिला।
रेटिंग एजेंसी के अनुसार, शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों का वेटेड एवरेज लेंडिंग रेट 9.32 प्रतिशत रहा, जबकि एवरेज यील्ड 8.80 प्रतिशत दर्ज की गई। जो कि रेट कट के बाद तेज लोन रीप्राइसिंग को दिखाता है।
केयरएज रेटिंग्स का अनुमान है कि फेस्टिव खर्च, जीएसटी लाभ और बढ़ते क्रेडिट कार्ड और कंज्यूमर-ड्यूरेबल लिंक्ड प्रोडक्ट्स के कारण वित्त वर्ष 26 की तीसरी तिमाही में लोन की मांग मजबूत होगी।
रिपोर्ट में बताया गया है कि शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों के लिए इस तिमाही में सालाना आधार पर नेट इंटरेस्ट मार्जिन 21 बेसिस पॉइंट घटकर 3.13 प्रतिशत रह गया।
रेटिंग एजेंसी के अनुसार, इस गिरावट का मुख्य कारण डिपॉजिट रेट में धीमे एडजस्टमेंट की तुलना में लेंडिंग रेट में कटौती का तेजी से ट्रांसमिशन और अधिक यील्ड वाले सेगमेंट में कम क्रेडिट ग्रोथ बताया।
व्यापार
सेबी की बड़ी तैयारी, म्यूचुअल फंड की लागत कम करने और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए नियमों में बदलाव का दिया प्रस्ताव

मुंबई, 29 अक्टूबर। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने देश से मैनेज किए जाने वाले म्यूचुअल फंड्स में बड़े बदलाव करने का प्रस्ताव दिया है। इनका उद्देश्य ब्रोकरेज की लागत कम करना, फीस डिस्क्लोजर को स्पष्ट करना और निवेशकों से शुल्क लेने के तरीके को सरल बनाना है।
1996 के म्यूचुअल फंड रेगुलेशंस की समीक्षा करने वाले एक नए कंसल्टेशन पेपर में, सेबी ने एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी) के लिए लागत संरचनाओं को कड़ा करने का सुझाव दिया है जिससे अधिक लाभ सीधे निवेशकों तक पहुंच सके।
सबसे बड़े प्रस्तावों में से एक ब्रोकरेज और लेनदेन लागत में भारी कटौती है जिससे म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश करना सस्ता हो जाएगा।
सेबी ने कैश मार्केट में होने वाले कारोबार के लिए ब्रोकरेज की सीमा को मौजूदा 12 आधार अंकों से घटाकर केवल 2 आधार अंकों (बीपीएस) पर रखने का सुझाव दिया है। डेरिवेटिव्स के लिए, यह सीमा 5 आधार अंकों से घटाकर केवल 1 आधार अंक कर दी जाएगी।
सेबी का एक अन्य बड़ा कदम अतिरिक्त 5 आधार अंक के खर्चे को हटाना है जिसे एएमसी को 2018 से अपने कुल एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) पर वसूलने की अनुमति दी गई थी।
इस बदलाव को संतुलित करने के लिए, सेबी ने ओपन-एंडेड सक्रिय स्कीमों के लिए बेस टोटल एक्सपेंस रेश्यो (टीईआर) स्लैब में 5 बीपीएस की वृद्धि का प्रस्ताव दिया है।
एक्सपेंस डिस्क्लोजर को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए, सेबी ने सुझाव दिया है कि टैक्स और सरकारी शुल्कों, जैसे सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी), गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) और स्टांप शुल्क, को म्यूचुअल फंड एक्सपेंस रेश्यो में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
इसके बजाय, इन्हें अलग से दिखाया जाएगा और सीधे निवेशकों से वसूला जाना चाहिए। इसका मतलब है कि अब टीईआर केवल वही दर्शाएगा जो फंड मैनेजर निवेशकों के एसेट मैनेजमेंट के लिए लेते हैं, जबकि टैक्स को एक अलग लागत के रूप में दिखाया जाएगा।
सेबी ने एक वैकल्पिक प्रदर्शन-आधारित टीईआर फ्रेमवर्क शुरू करने का भी प्रस्ताव दिया है। इससे एएमसी अपने फंड के प्रदर्शन के आधार पर अधिक या कम शुल्क ले सकेंगे।
इसके अतिरिक्त, सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि न्यू फंड ऑफर (एनएफओ) से संबंधित सभी खर्च (यूनिटों के आवंटन तक) एएमसी कंपनी द्वारा वहन किए जाएं, न कि स्कीम द्वारा, इससे निवेशकों के लिए लागत कम होगी।
इस कदम का उद्देश्य अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करना और निवेशकों के हितों की रक्षा करना है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इन सुधारों को लागू किया जाता है, तो ये भारत के लाखों निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड निवेश को अधिक पारदर्शी, लागत प्रभावी और उचित बना सकते हैं।
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