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Thursday,16-January-2025
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मुंबई: डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड स्कीम में 65 वर्षीय व्यक्ति ने गंवाए ₹61 लाख

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एक 65 वर्षीय व्यक्ति धोखेबाजों का शिकार हो गया और डिजिटल गिरफ्तारी धोखाधड़ी में 61.19 लाख रुपये खो दिया।

घोटालेबाजों ने खुद को संचार मंत्रालय और मुंबई पुलिस का अधिकारी बताकर पीड़ित से संपर्क किया और उसे बताया कि उसके नाम से जारी सिम कार्ड का इस्तेमाल अश्लील सामग्री प्रसारित करने के लिए किया गया है।

उन्होंने बताया कि पीड़ित के नाम पर एक बैंक खाता खोला गया था और उसका इस्तेमाल 2 करोड़ रुपए की ठगी करने के लिए किया गया। घोटालेबाजों ने पीड़ित को फ्लैट बेचने के बाद मिले पैसे ट्रांसफर करने के लिए उकसाया।

पुलिस के अनुसार, पीड़ित रत्नागिरी का रहने वाला है। 20 दिसंबर को उसे एक व्यक्ति का फोन आया, जिसने खुद को संचार मंत्रालय से होने का दावा किया। फोन करने वाले ने पीड़ित को बताया कि उसके नाम पर एक सिम जारी किया गया है और उसके आधार कार्ड का दुरुपयोग किया जा रहा है। पीड़ित ने ऐसी किसी भी जानकारी से इनकार किया, जिसके बाद फोन करने वाले ने कहा कि वह कॉल को मुंबई पुलिस को ट्रांसफर कर रहा है, जो मामले की जांच कर रही है।

बाद में अंधेरी पुलिस स्टेशन का सब-इंस्पेक्टर होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति ने पीड़ित से बात की। घोटालेबाज ने पीड़ित के साथ एक फर्जी शिकायत कॉपी भी साझा की, जिसमें कहा गया था कि सिम कार्ड का इस्तेमाल अश्लील सामग्री प्रसारित करने के लिए किया गया था। घोटालेबाज ने पीड़ित को बताया कि उसके नाम पर एक बैंक खाता खोला गया था और उसी का इस्तेमाल 2 करोड़ रुपये की लूट के लिए किया गया था। फिर उन्होंने पीड़ित को बताया कि उनके बैंकिंग लेन-देन का सरकारी ऑडिटर द्वारा ऑडिट किया जाएगा और पीड़ित को अपने वित्त का विवरण साझा करने के लिए प्रेरित किया।

पीड़ित इस जाल में फंस गया और उसने जालसाज को बताया कि उसने अपना फ्लैट बेच दिया है और 26 दिसंबर तक उसके बैंक खाते में 58 लाख रुपए आने की उम्मीद है। पीड़ित ने जालसाजों द्वारा बताए गए बैंक खातों में 61.19 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए, लेकिन जब जालसाजों ने और पैसे मांगे तो पीड़ित को शक हुआ। इसके बाद उसने पुलिस से संपर्क किया और मामले में अपराध दर्ज करवाया।

ठाणे पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 318 (धोखाधड़ी), 319 (छद्म रूप में धोखाधड़ी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66सी (पहचान की चोरी), 66डी (कम्प्यूटर संसाधन का उपयोग करके छद्म रूप में धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज किया है।

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गर्भधारण से पहले जहरीली हवा में सांस लेना बच्चे के लिए खतरनाक, हो सकता है मोटापे का शिकार: शोध

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नई दिल्ली, 16 जनवरी। एक शोध में यह बात सामने आई कि गर्भधारण से पहले तीन महीने पहले वायु प्रदूषण पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5, पीएम 10) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ 2) के अधिक संपर्क में रहने से जन्म के दो साल बाद तक बच्‍चे में मोटापे का खतरा बना रह सकता है।

प्रदूषण के दुष्प्रभाव को लेकर पहले भी शोध हुए थे। उनमें गर्भावस्था के दौरान की चुनौतियों का जिक्र था, लेकिन इस बार गर्भाधारण से पहले की स्थितियों पर रिसर्च की गई है।

अमेरिका और चीन के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए नए अध्ययन में गर्भधारण से पहले की अवधि पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसमें विशेष तौर पर गर्भावस्था के पहले की बात की गई है।

पत्रिका एनवायरन्मेंटल रिसर्च में प्रकाशित शोध के अनुसार इस समय सीमा (गर्भाधारण से तीन महीने पहले) के दौरान प्रदूषण का असर शुक्राणु और अंडों की हेल्थ पर पड़ता है।

अध्ययन में शंघाई के प्रसूति क्लीनिकों में भर्ती किए गए 5,834 मां-बच्चे के जोड़े शामिल थे।

निष्कर्ष से पता चला कि गर्भावस्था से पहले पीएम 2.5, पीएम 10 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में वृद्धि से बीएमआई या बीएमआईजेड बढ़ सकता है।

दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूएससी) के कैक स्कूल ऑफ मेडिसिन में पोस्टडॉक्टरल अनुसंधान सहयोगी जियावेन लियाओ ने कहा, “हमने पाया कि गर्भधारण से पहले के तीन महीने महत्वपूर्ण होते हैं, और जो भी बच्चा प्लान कर रहे हैं, उन्हें अपने बच्चे में मोटापे के खतरे को कम करने के लिए प्रदूषित हवा से बचना चाहिए।”

शोधकर्ताओं ने पाया कि गर्भधारण से पहले की अवधि के दौरान पीएम2.5 के संपर्क का उच्च स्तर दो साल की उम्र में बच्चे के बीएमआईजेड में 0.078 की वृद्धि के साथ जुड़ा था, जबकि पीएम10 के संपर्क का उच्च स्तर बीएमआई में 0.093 किग्रा/एम2 की वृद्धि के साथ जुड़ा था।

पाया गया कि पैदा होने के छह महीने बाद ही बच्चे का वजन बढ़ गया था। ये वही बच्चे थे जिनकी मां गर्भधारण से पहले जहरीली हवा में सांस ले रही थीं।

कैक स्कूल में सहायक प्रोफेसर झांगहुआ चेन ने कहा, “हालांकि यह परिमाण छोटा है, लेकिन हर कोई आज वायु प्रदूषण के संपर्क में है। बच्चों के मोटापे का जोखिम काफी बड़ा हो सकता है और यह उनकी माताओं की गर्भावस्था से पहले शुरू हो सकता है।”

शोधकर्ताओं ने कहा, “यह एक अवलोकनात्मक शोध है। इसके जोखिम का पता लगाने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। निष्कर्ष बताते हैं कि लोग खुद को और अपने बच्चों को इस संभावित नुकसान से बचाने पर काम कर सकते हैं।”

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डीएनए रिपेयर से पता चलेगा रेडियोथेरेपी के बाद कैसे मरती हैं कैंसर कोशिकाएं

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सिडनी, 14 जनवरी। ऑस्ट्रेलियाई रिसर्च से पता चला है कि डीएनए की मरम्मत से यह पता लग सकता है कि रेडियोथेरेपी के बाद कैंसर कोशिकाएं कैसे मरती हैं। एक नए रिसर्च में यह चला है, जो कैंसर के इलाज को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। इससे कैंसर इलाज में सफलता की दर का भी पता चलेगा।

मीडिया के अनुसार, सीएमआरआई की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि रेडियोथेरेपी के बाद कैंसरग्रस्त ट्यूमर कोशिकाएं कैसे मरती हैं, यह जानने के लिए सिडनी के चिल्ड्रन मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमआरआई) के वैज्ञानिकों ने लाइव सेल माइक्रोस्कोप तकनीक के जरिए रेडिएशन थेरेपी की और इसके बाद एक सप्ताह तक इरेडिएट सेल्स पर रिसर्च किया।

सीएमआरआइ जीनोम इंटीग्रिटी यूनिट के प्रमुख टोनी सेसरे ने कहा, “हमारे रिसर्च का परिणाम आश्चर्यजनक है। परिणाम में सबसे खास बात डीएनए की मरम्मत है, जो आमतौर पर स्वस्थ कोशिकाओं की रक्षा करती है, यह बताती करती है कि रेडियोथेरेपी के बाद कैंसर कोशिकाएं कैसे मरती हैं।”

उन्होंने बताया, “डीएनए की मरम्मत करने वाली प्रक्रियाएं यह पहचान सकती हैं कि कब बहुत अधिक क्षति हुई है, जैसे कि रेडियोथेरेपी से, और कैंसर कोशिका को यह निर्देश दे सकती है कि कैसे डेड होना है।“

जब विकिरण (रेडिएशन) से डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो उसे “होमोलॉग्स रीकॉम्बिनेशन” नामक एक विधि से रिपेयर किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि इस प्रक्रिया के दौरान कैंसर कोशिकाएं प्रजनन (सेल डिवीजन या माइटोसिस) के समय मर जाती हैं।

सेसारे ने कहा कि कोशिका विभाजन के दौरान मृत कोशिकाओं को नोटिस नहीं किया जाता है और इम्यून सिस्टम इसे अनदेखा कर देता है इसलिए जरूरी इम्यून प्रतिक्रिया सक्रिय नहीं हो पाती है।

हालांकि, अन्य मरम्मत विधियों के माध्यम से रेडिएशन-क्षतिग्रस्त डीएनए से निपटने वाली कोशिकाएं विभाजन से बच गईं, और उन्होंने कोशिका में डीएनए रिपेयर बाइप्रोडक्ट भी रिलीज किए।

उन्होंने कहा, “कोशिका के लिए ये बाइप्रोडक्ट वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण की तरह दिखते हैं और फिर कैंसर कोशिका के इस तरह से मृत होने से इम्यून सिस्टम सतर्क हो जाता है, जो हम नहीं चाहते हैं।”

टीम ने बताया कि होमोलॉग्स रीकॉम्बिनेशन को बंद करने से कैंसर कोशिकाओं के मृत होने या खत्म होने का तरीका बदल गया, जिससे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मजबूत बन गई।

शोधकर्ताओं ने कहा कि इस खोज से उन दवाओं का उपयोग संभव हो जाएगा जो होमोलॉग्स रिकॉम्बिनेशन को रोकती है, जिससे रेडियोथेरेपी से उपचारित कैंसर कोशिकाओं को इस तरह से मरने के लिए मजबूर किया जा सके कि प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर के अस्तित्व के बारे में सचेत किया जा सके जिसे नष्ट करने की आवश्यकता है।

सीएमआरआइ के बयान में आगे कहा गया कि नेचर सेल बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित ये निष्कर्ष उपचार में सुधार और सफल इलाज की दर में वृद्धि के लिए नए अवसर खोल सकता है।

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ठाणे: भिवंडी में फर्नीचर की दुकान में लगी भीषण आग आसपास की पांच दुकानों तक फैल गई; किसी के हताहत होने की खबर नहीं

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भिवंडी के खांडू पाड़ा इलाके में रविवार को एक फर्नीचर की दुकान में भीषण आग लग गई। अग्निशमन अधिकारियों ने बताया कि आग पहले फर्नीचर की दुकान में लगी और बाद में पांच अन्य दुकानों में फैल गई। सौभाग्य से, किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।

अग्निशमन अधिकारियों के अनुसार, उन्हें रविवार सुबह करीब 6:30 बजे आग लगने की सूचना मिली। जवाब में, उन्होंने तीन दमकल गाड़ियाँ और तीन पानी के टैंकर घटनास्थल पर भेजे और आग बुझाने में कामयाब रहे। तीन घंटे के भीतर आग पर काबू पा लिया गया और उसके बाद कूलिंग ऑपरेशन चलाया गया। आग लगने के सही कारणों की अभी भी जांच की जा रही है। अधिकारियों ने पुष्टि की है कि फर्नीचर की दुकान, एक कबाड़ गोदाम और एक प्लास्टिक गोदाम सहित पाँच दुकानें आग की चपेट में आ गईं और उनका सामान जलकर राख हो गया।

भिवंडी फायर स्टेशन के प्रमुख राजेश पवार ने कहा, “आग पर दोपहर एक बजे तक काबू पा लिया गया। सौभाग्य से, किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। आग लगने का कारण अभी पता नहीं चल पाया है।”

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