राजनीति
मुलायम सिंह यादव के निधन से लोकसभा में शून्य हुआ ‘यादव परिवार’

समाजवादी पार्टी के संस्थापक और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन से देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा लोकसभा से शून्य हो चुका है। कभी लोकसभा में मुलायम परिवार के आधे दर्जन सदस्य हुआ करते थे, लेकिन अब उनके निधन के बाद अब लोकसभा में इस परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा है। इस बार के लोकसभा में सपा मुखिया अखिलेश यादव भी चुने गए थे। लेकिन कुछ माह पहले उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था।
2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम परिवार से दो सदस्य ही सदन पहुंचे थे। इसमें एक मुलायम स्वयं मैनपुरी चुने गए थे। दूसरे अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुने गए थे। बाद में 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। वह वर्तमान में यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं।
कई दशक बाद ऐसा मौका आया है, जब लोकसभा मुलायम परिवार विहीन हो गया है।
मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव की सियासत ऐसी थी कि 1989 से आज तक लोकसभा चुनाव में कोई भी मुलायम या उनके चुने हुए प्रत्याशी को शिकस्त नहीं दे सका। 1996 में मैनपुरी से ही जीतकर मुलायम सिंह यादव केंद्र सरकार में रक्षामंत्री भी बने। 2019 में आखिरी बार खुद नेताजी ने मैनपुरी सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता। वर्तमान में वह मैनपुरी सीट से सांसद थे।
मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी सीट पर 1996, 2004, 2009, 2014 और 2019 तक सासंद रहे। 1996 में पहली बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल पहली बार केंद्र में मंत्री भी बने। लेकिन साल 1998 में लोकसभा विघटित कर दी गई। साल 1998 से 1999 के लिए वो संभल से लोकसभा के लिए चुने गए। सांसद के तौर पर ये उनका दूसरा कार्यकाल था। लोकसभा विघटित कर दी गई। मुलायम सिंह यादव 1999 से 2004 तक तीसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए। उन्होंने मैनपुरी, कन्नौज दो जगहों से चुनाव जीता। कन्नौज से उन्होंने 2000 में इस्तीफा दे दिया।
इसी सीट पर मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव पहली बार वर्ष 2000 में कन्नौज लोकसभा सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में ही उपचुनाव जीते थे। 2004 में हुए आम चुनाव में वह दूसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए। सांसद के रूप में हैट्रिक लगाते हुए 2009 में हुए आम चुनाव में उन्होंने एक बार फिर जीत दर्ज की। साल 2012 में वह मुख्यमंत्री बने और उन्होंने यह सीट छोड़ दी। 2019 में उन्होंने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए आजमगढ़ से चुनाव लड़े और जीते।
मुख्यमंत्री बनते ही अखिलेश ने कन्नौज सीट से अपनी पत्नी डिंपल को उपचुनाव लड़ाया जो कि निर्विरोध चुनाव जीती। 2014 की मोदी लहर के बावजूद भी डिंपल ने यहां से चुनाव जीत लिया, लेकिन 2019 के चुनाव में उन्हें भाजपा से शिकस्त झेलनी पड़ी।
मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई अभय राम यादव के बेटे धर्मेद्र यादव ने 2004 में मैनपुरी से लोकसभा चुना लड़ा और भारी जीत के साथ लोकसभा सांसद चुने गए। 2009 में बदायूं लोकसभा सीट वह चुनाव जीते। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद इन्होंने बदायूं से जीत हासिल की थी, लेकिन 2019 में जीत नहीं सके।
साल 2014 में नेताजी ने मैनपुरी लोकसभा सीट छोड़ दी। इस बार उन्होंने अपने पौत्र तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा। चार लाख से अधिक वोटों से तेजप्रताप यादव ने जीत दर्ज की। यह मैनपुरी लोकसभा चुनाव में अब तक सबसे बड़ी जीत थी।
सपा महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे मुलायम सिंह यादव के भतीजे अक्षय यादव ने
साल 2014 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर पहली बार संसद पहुंचे, लेकिन 2019 में शिवपाल यादव के चुनाव मैदान में उतरने से वे हार गए।
मैनपुरी के रास्ते ही सैफई परिवार की तीन पीढ़ियों ने संसद का सफर तय किया। चुनावी रथ पर सवारी चाहे किसी की भी रही हो, लेकिन उस रथ के सारथी हमेशा मुलायम सिंह यादव ही रहे। मुलायम के निधन से मैनपुरी सीट के लिए उत्तराधिकारी पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। मैनपुरी में नेताजी की विरासत संभालने के लिए चार चेहरों पर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं। इसमें सबसे पहला स्थान उनके बेटे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का ही आता है। उनके बाद डिंपल यादव धर्मेद्र, तेजप्रताप यादव के नाम तेजी से चर्चा का विषय बने हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो अभी तक मुलायम के लोकसभा में रहने से दिल्ली और राष्ट्रीय राजनीति पर सपा की भी अलग पहचान बनी हुई थी। अब लोकसभा में दो सांसद सपा से हैं और दोनों मुसलमान हैं। राज्यसभा में तीन में एक यादव, एक मुसलमान और एक जया बच्चन हैं। ऐसे में कुछ विश्लेषकों कहते हैं कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजनीति में सपा की धाक जमाने के लिए किसी मजबूत आदमी को मैनपुरी से चुनकर भेजना होगा जो पार्टी की पताका को फहराता रहे।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि आमतौर पर मुलायम के रहते वह यह बात सुनिश्चित करते थे। उनके अपने बाहुल्य इलाके से उनके परिवार लोग चुन लिए जाए, क्योंकि यहां अन्य क्षेत्रों से चुनना आसान रहता था। लेकिन जब से मुलायम की सक्रियता कम हुई और अखिलेश के हाथों में पार्टी की बागडोर आई, तब से सपा का ओवर ऑल ग्राफ खराब हुआ। यह इस बात का संकेत है कि परिवार के सदस्यों की जीत के पीछे मुलायाम का संदेश और उनकी सक्रियता मायने रखती थी। ऐसा संदेश देने में अखिलेश कामयाब नहीं हुए हैं। अगर यही हाल रहा तो आने वाले चुनाव तक अपने प्रभुत्व वाले क्षेत्र से यादव परिवार से किसी का लोकसभा में जाना कठिन हो सकता है।
राजनीति
मानसून सत्र के अंतिम दिन भी लोकसभा-राज्यसभा में ही नहीं चल सका प्रश्नकाल

LOKSABHA
नई दिल्ली, 21 अगस्त। मानसून सत्र के अंतिम दिन भी संसद में हंगामा बरकरार रहा। गुरुवार को मौजूदा संसद सत्र का आखिरी दिन था हालांकि हंगामे के कारण सत्र के आखिरी दिन भी लोकसभा और राज्यसभा दोनों की ही कार्यवाही बाधित हुई।
राज्यसभा और लोकसभा दोनों में ही प्रश्नकाल नहीं चल सका और सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। गौरतलब है कि प्रश्न काल के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसद, सरकार के मंत्रियों से उनके विभाग संबंधी प्रश्न पूछते हैं। केंद्र के मंत्रियों द्वारा इन प्रश्नों के उत्तर दिए जाते हैं।
प्रश्नों के लिखित उत्तर भी सदन में प्रस्तुत किए जाते हैं। हालांकि मौजूदा सत्र के अधिकांश कार्य दिवसों में प्रश्नकाल हंगामे की भेंट चढ़ गया और सत्र के अंतिम दिन भी सदन में यही स्थिति रही। दरअसल विपक्ष संसद में मतदाता सूची खासतौर पर बिहार में चुनाव आयोग द्वारा करवाए जा रहे मतदाता सूची के गहन रिव्यू पर चर्चा चाहता है। लेकिन आसन से इसकी मंजूरी नहीं मिली है।
राज्यसभा के उपसभापति का कहना है कि अदालत में विचाराधीन विषयों पर सदन में चर्चा की अनुमति नहीं हैं। गुरुवार को राज्यसभा में ऐसा ही हंगामा देखने को मिला। हंगामे के कारण राज्यसभा में सदन की कार्यवाही प्रारंभ होने के कुछ देर बाद ही दोपहर दो बजे तक स्थगित करनी पड़ी।
राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश नारायण ने सदन की कार्यवाही को दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया। दरअसल राज्यसभा की कार्यवाही प्रारंभ होने के कुछ ही देर उपरांत उप सभापति ने बताया कि उन्हें 4 अलग अलग विषयों पर चर्चा के लिए नोटिस दिए गए हैं। ये सभी नोटिस नियम संख्या 267 के अंतर्गत दिए गए थे। उप सभापति ने बताया कि उन्हें दिए गए सभी नोटिसों में से कोई भी नोटिस नियमानुसार नहीं दिया गया है, इसलिए उन्होंने इन सभी नोटिसों को अस्वीकार कर दिया।
वहीं नोटिस अस्वीकार होने पर विपक्षी सांसद अपने स्थानों से उठकर नारेबाजी करने लगे। यह देखकर उप सभापति ने कहा कि आप नहीं चाहते कि शून्यकाल चले। आप शून्यकाल चलाना नहीं चाहते। इसके बाद सदन की कार्यवाही दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। उधर दूसरी ओर लोक सभा में तो सदन की कार्यवाही प्रारंभ होते ही हंगामा शुरू हो गया। विपक्षी सांसद बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के गहन रिव्यू (एसआईआर) के मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहे थे।
सदन की कार्यवाही प्रारंभ होते ही विपक्षी सांसद अपनी इस मांग को लेकर अपनी सीटों से उठकर आगे आ गए और एसआईआर पर चर्चा को लेकर नारेबाजी करने लगे। इस पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि यह इस सत्र का अंतिम दिन है, आप प्रश्नकाल नहीं चलने दे रहे हैं। इसके बाद उन्होंने हंगामे को देखते हुए सदन की कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
राष्ट्रीय समाचार
मुंबई: 14 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में ताड़देव के व्यवसायी को जमानत देने से इनकार

CRIME
मुंबई: सत्र न्यायालय ने 14 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में ताड़देव के एक व्यापारी को जमानत देने से इनकार कर दिया है।
मामले के बारे में
आरोपी बिरजू सल्ला, 2017 में एक विमान को हाईजैक करने की धमकी देने के लिए कथित तौर पर एक नोट रखने के लिए गुजरात में दर्ज एक मामले के सिलसिले में चर्चा में था। सल्ला को विशेष अदालत ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन बाद में, उसे अगस्त 2023 में गुजरात उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया।
बरी होने के बाद, सल्ला अपने पारिवारिक व्यवसाय, चाँदी के आभूषणों के व्यापार में वापस लौट गया। हालाँकि, इस साल की शुरुआत में, आर्थिक अपराध शाखा ने उस पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया और 2 जुलाई को उसे गिरफ्तार कर लिया। मामले के विवरण के अनुसार, 18 नवंबर, 2024 को, सल्ला ने शैलेश जैन नामक व्यक्ति से, जिसके साथ उसके पारिवारिक संबंध थे, बिक्री के लिए प्राचीन सोने के आभूषण, चाँदी के बर्तन और रत्न माँगे। जैन ने अनुमोदन वाउचर के आधार पर 14 करोड़ रुपये में ये कीमती सामान उपलब्ध कराए।
एक महीने से ज़्यादा समय में, सल्ला ने जैन को 1.47 करोड़ रुपये मूल्य के कीमती सामान लौटा दिए, लेकिन कथित तौर पर शेष 12.76 करोड़ रुपये न तो लौटाए और न ही उनकी कीमत चुकाई। अग्रिम ज़मानत देने से इनकार करते हुए, अदालत ने कहा, “आवेदक पहले भी उक्त अनुमोदन वाउचर पर उनके जबरन हस्ताक्षर लेने का मामला लेकर आया था, लेकिन चुप रहा और शिकायत दर्ज कराने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। प्रथम दृष्टया, रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से पता चलता है कि उसने गहने ले लिए थे… और 12.76 करोड़ रुपये मूल्य के कीमती सामान वापस नहीं किए…”
अपराध
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के ऊपर हमला करने वाले पर पहले से दर्ज हैं 9 मामले: कपिल मिश्रा

नई दिल्ली, 21 अगस्त। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर हुए हमले को दिल्ली सरकार में मंत्री कपिल मिश्रा ने इसे सुनियोजित साजिश का हिस्सा बताया है। उन्होंने गुरुवार को बताया कि आरोपी साधारण व्यक्ति नहीं है। उसका एक आपराधिक इतिहास रहा है।
कपिल मिश्रा ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि आरोपी का आपराधिक इतिहास सामने आया है। उस पर कुल नौ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें तस्करी और अवैध शराब के व्यापार से लेकर हत्या के प्रयास तक शामिल हैं। ये बहुत गंभीर आरोप हैं जिनके खिलाफ पहले से ही मामले दर्ज हैं।
उन्होंने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम को हम देखें तो पता चलता है कि आरोपी ने जिस तरह से काम किया वह एक पेशेवर अपराधी जैसा था। पहले अपने मोबाइल पर रिकॉर्डिंग की, फिर घर में घुसा, अंदर लोगों से बात की, और अंत में हमला किया। ये सभी तथ्य बताते हैं कि यह एक गंभीर पेशेवर हमला था, लेकिन हम सभी लोग दिल्ली पुलिस की जांच का इंतजार कर रहे हैं।
उन्होंने सुरक्षा के मुद्दे पर कहा कि अगर कोई बदलाव करना होगा तो इसका फैसला मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ही करेंगी।
आरोपी को लेकर मीडिया में चल रही खबरों पर उन्होंने कहा कि हमें तथ्यों पर बात करनी चाहिए। वह साधारण व्यक्ति नहीं है। उसने जिस तरह से हमला किया है वह पेशेवर हमलावर है। उन्होंने कहा कि सामने से दिखाई दे रहा है कि आरोपी ने सुनियोजित साजिश के तहत सीएम रेखा गुप्ता पर हमला किया है।
आम आदमी पार्टी के नेता गोपाल इटालिया के साथ आरोपी की फोटो पर कपिल मिश्रा ने कहा कि इस मामले में राजनीति की कोई आवश्यकता नहीं है।
सीएम रेखा गुप्ता के स्वास्थ्य को लेकर कपिल मिश्रा ने कहा कि वह ठीक हैं; उन्होंने बुधवार रात भी कुछ काम किया था और आज भी वह अपना आधिकारिक काम कर रही हैं। लेकिन अभी उन्हें आराम और स्वास्थ्य लाभ की जरूरत है, क्योंकि शारीरिक चोटें गंभीर हैं और उन्हें मानसिक तनाव भी है। यह कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि एक बहुत ही असामान्य घटना थी। फिर भी मुख्यमंत्री अपना कार्यालय का काम जारी रखे हुए हैं।
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