अपराध
किसी को भी टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को टीका लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने कहा कि विभिन्न संगठनों, संस्थानों और सरकारों द्वारा बिना टीकाकरण वाले लोगों पर लगाए गए प्रतिबंध आनुपातिक नहीं हैं। पीठ ने सुझाव दिया कि जब तक संख्या कम न हो, राज्य सरकारों को इस तरह के प्रतिबंधों को हटाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि शारीरिक स्वायत्तता/शारीरिक अखंडता एक संवैधानिक अधिकार है, इसलिए किसी भी व्यक्ति को टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार की मौजूदा कोविड-19 नीति मनमानी नहीं है।
शीर्ष अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह कोविड-19 टीकाकरण की प्रतिकूल घटनाओं पर डेटा सार्वजनिक करे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारों ने यह साबित करने के लिए कोई डेटा दिया कि टीका लगाए गए लोगों की तुलना में गैर-टीकाकरण वाले लोग ज्यादा वायरस फैलाते हैं, और जिन लोगों को टीका नहीं लगाया गया है, उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर जाने से नहीं रोका जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत का फैसला टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के पूर्व सदस्य जैकब पुलियेल द्वारा दायर एक याचिका पर आया, जिसमें क्लिनिकिल ट्रायल और कोविड के टीकों के प्रतिकूल प्रभावों के डेटा की मांग की गई थी और कुछ राज्य सरकारों द्वारा जारी किए गए वैक्सीन मैंडेट को भी चुनौती दी गई थी। पुलियेल का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने किया।
सुनवाई के दौरान, केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि 13 मार्च को, कोविड-19 टीकों की 180 करोड़ से अधिक खुराक दी गई है और्र समय-समय पर दर्ज की गई प्रतिकूल घटनाएं 12 मार्च तक 77,314 थीं, जो कि कुल टीकाकरण का 0.004 प्रतिशत है। केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि जनहित याचिका दायर करने की आड़ में अलग-अलग क्लिनिकल डेटा की मांग किसी के द्वारा नहीं की जा सकती है
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट के सामने सरकार का पक्ष रखा।
अधिवक्ता विपिन नायर के प्रतिनिधित्व वाली भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कोवैक्सिन के सभी आवश्यक क्लिनिकल परीक्षण हो चुके हैं और तीसरे चरण के प्रभावकारिता परीक्षणों से पता चला है कि यह कोविड के खिलाफ 77.8 प्रतिशत प्रभावी है।
वैक्सीन निर्माता ने कहा कि इसने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध प्रतिष्ठित पीयर रिव्यू जर्नल्स और अपनी वेबसाइट पर क्लिनिकल ट्रायल के निष्कर्षों को बड़े पैमाने पर प्रकाशित किया है।
अपराध
महाराष्ट्र : सपा नेता फहद आजमी पर मारपीट का आरोप, पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की

FIR
महाराष्ट्र, 15 अक्टूबर: मुंबई के गोवंडी इलाके में बैगनवाड़ी डंपिंग ग्राउंड पर बने एक ओपन जिम के उद्घाटन समारोह में उस समय तनाव पैदा हो गया, जब समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता फहद आजमी पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया। उस वक्त पार्टी विधायक तथा महाराष्ट्र अध्यक्ष अबू आसिम आजमी भी मौके पर मौजूद थे।
मामला तब शुरू हुआ जब अब्दुल करीम बादशाह खान नामक एक युवक विधायक अबू आजमी के साथ फोटो खिंचवाने गया था। उसी समय वहां पर मौजूद करीम ने आरोप लगाया कि सपा नेता फहद आजमी और उनके साथियों ने उसे धक्का दिया और हमला कर भी किया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं। फिर देखते ही देखते यह घटना दो समूहों के बीच हिंसक झड़प में बदल गई।
इस मामले में मुंबई की शिवाजीनगर पुलिस ने दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की हैं और जांच शुरू कर दी है।
पहली एफआईआर करीम की शिकायत पर दर्ज की गई है, जिसमें समाजवादी पार्टी के नेता फहद आजमी और दो अज्ञात लोगों पर मारपीट करने और जान से मारने की धमकी देने का मामला दर्ज किया गया है।
करीम ने तहरीर में बताया कि 13 अक्टूबर की शाम जब वह अबू आजमी के साथ फोटो खिंचवाने आगे बढ़ा, तो फहद आजमी ने उसे धक्का दिया और कान पर थप्पड़ जड़ा था। इसके बाद फहद के साथ मौजूद दो अज्ञात व्यक्तियों ने भी उसकी पिटाई कर दी।
वहीं, दूसरी एफआईआर सपा कार्यकर्ता की शिकायत पर दर्ज कराई गई है, जिसमें करीम और उसके तीन साथियों पर मारपीट और डकैती का आरोप लगाया गया है। शेख ने बताया कि उद्घाटन समारोह के बाद, बुर्का पहने एक महिला ने विधायक को इलाके में हो रही बदमाशी की शिकायत की थी।
पुलिस ने दोनों मामलों में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। यह घटना विधायक की पुलिस सुरक्षा में चूक को लेकर भी गंभीर चिंताएं पैदा करती है, क्योंकि हिंसा उनके काफिले के ठीक बीच में भड़की थी।
अपराध
मुंबई : 48 साल से फरार हत्या के प्रयास का आरोपी गिरफ्तार, 1977 में दर्ज हुआ था मामला

मुंबई, 15 अक्टूबर: मुंबई पुलिस ने हत्या के प्रयास के एक ऐसे आरोपी को गिरफ्तार किया है, जो पिछले 48 सालों से फरार था। कोलाबा पुलिस ने 71 वर्षीय चंद्रशेखर मधुकर कालेकर को लालबाग से गिरफ्तार किया है, जिसके खिलाफ 1977 में मामला दर्ज किया गया था।
पुलिस के अनुसार, 1977 में, जब वह 23 वर्ष का था, कालेकर को अपनी प्रेमिका पर धोखा देने का शक हुआ और उसने कथित तौर पर कोलाबा में उसे चाकू मार दिया। उस समय उसे गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में कोर्ट से जमानत मिल गई।
हालांकि, जमानत पर रिहा होने के बाद वह किसी भी अदालती तारीख पर हाजिर नहीं हुआ। इसके चलते अदालत ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया था और पुलिस कई सालों से उसकी तलाश कर रही थी, लेकिन चॉल के पुनर्विकास के कारण वह कई बार ठिकाना बदल चुका था, जिससे पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली।
छह महीने पहले कोलाबा पुलिस ने इस पुराने मामले को फिर से खोला। टीम ने लालबाग स्थित उसके पुराने घर का दौरा किया, लेकिन वहां कोई नहीं मिला। पुलिस ने मुंबई के कई इलाकों में उसकी खोज की, मतदाता सूची की जांच की, लेकिन उसका नाम कहीं नहीं मिला।
जांच के दौरान, पुलिस ने आरटीओ और अदालती मामलों की जानकारी के लिए आवेदनों की जांच की, जिसमें रत्नागिरी जिले के दापोली पुलिस स्टेशन में उसके खिलाफ दर्ज 2015 के एक आपराधिक मामले का रिकॉर्ड मिला, जिसमें गाड़ी चलाते समय एक व्यक्ति को घायल करने के आरोप में उसकी गिरफ्तारी हुई थी।
दापोली पुलिस स्टेशन से मिली जानकारी के आधार पर, कोलाबा पुलिस की एक टीम उसके घर पहुंची और उसे गिरफ्तार कर लिया। 48 साल बाद पुलिस को अपने दरवाजे पर देखकर 71 वर्षीय कालेकर हैरान रह गया और लगभग उस मामले को भूल चुका था।
पुलिस अधिकारी के अनुसार, पुरानी तस्वीरों से उसे पहचानना मुश्किल था, लेकिन पूछताछ करने पर उसने अपराध स्वीकार कर लिया। आरोपी को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
अपराध
सिंडिकेट बैंक धोखाधड़ी मामला: सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ईडी ने घर खरीदारों को लौटाई संपत्ति

नई दिल्ली, 14 अक्टूबर: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सिंडिकेट बैंक (अब केनरा बैंक) धोखाधड़ी मामले में जब्त की गई ‘रॉयल राजविलास’ परियोजना की संपत्तियों को लौटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के 10 अक्टूबर को दिए गए आदेश के बाद उठाया गया है।
यह मामला 2011 से 2016 के बीच सिंडिकेट बैंक से मुख्य आरोपी भरत बंब और अन्य द्वारा की गई 1267.79 करोड़ रुपए की बड़ी धोखाधड़ी से संबंधित है। सीबीआई ने इस संबंध में प्राथमिकी और आरोपपत्र दायर किए थे। ईडी ने इस धोखाधड़ी की आय को ‘रॉयल राजविलास’ परियोजना के अधिग्रहण और विकास में लगाने के आरोप में मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम 2002 के तहत जांच शुरू की थी।
जांच के दौरान, ईडी ने 2 अप्रैल 2019 को एक अनंतिम कुर्की आदेश जारी किया था, जिसके तहत 365 बिना बिके फ्लैट, 17 वाणिज्यिक इकाइयां और 2 प्लॉट कुर्क किए गए थे। इस कुर्की की पुष्टि एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी ने भी की थी।
इसके बाद, याचिकाकर्ता कंपनी को कॉर्पोरेट देनदार के रूप में दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016 के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) में लाया गया। सीआईआरपी के तहत, मुंबई स्थित एनसीएलटी ने 24 फरवरी 2022 को न केवल समाधान योजना को मंजूरी दी, बल्कि ईडी के कुर्की आदेश को भी रद्द कर दिया।
ईडी ने एनसीएटी के इस आदेश को यह कहते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर में चुनौती दी कि एनसीएलटी के पास पीएमएलए के तहत पारित कुर्की आदेश को रद्द करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। यह कानूनी लड़ाई उच्च न्यायालय की एकल पीठ और खंडपीठ दोनों में चली। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 28 मार्च 2025 को अपने निर्णय में एकल पीठ के आदेश को रद्द कर दिया।
इसके बाद मामला मेसर्स उदयपुर वर्ल्ड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दायर एक एसएलपी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों के हितों को सर्वोपरि मानते हुए ईडी को निर्दोष घर खरीदारों को संपत्ति वापस करने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अक्टूबर के अपने आदेश में निदेशालय के इस प्रयास की सराहना करते हुए निपटारा कर दिया। हालांकि, ईडी ने यह स्पष्ट किया है कि पीएमएलए के तहत सिंडिकेट बैंक धोखाधड़ी मामले में उसकी जांच अभी भी जारी है और यदि किसी घर खरीदार द्वारा किए गए भुगतान की राशि भविष्य की जांच में अपराध की आय से जुड़ी पाई जाती है, तो निदेशालय कानून के अनुसार उचित कदम उठाने का हकदार होगा।
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