अंतरराष्ट्रीय
भारत के बढ़ते मुद्रा भंडार से परेशान हुए चीन और तुर्की
चीन को इन दिनों एक खास तरह की परेशानी खाए जा रही है, वह अपने पड़ोसी देश भारत के बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार से खासा चिंतित है। खुद चीन का न तो व्यापार बढ़ रहा है और न ही उसके विदेशी मुद्रा भंडार में कोई बढ़ोतरी हो रही है, हालांकि चीन के पास इस समय 3.236 खरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, लेकिन वह यह नहीं देख सकता कि किसी दूसरे देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़े इसलिए चीन ने भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया है, जिसे हम आम भाषा में ‘खिसयानी बिल्ली खंभा नोंचे’ कहते हैं। इस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 642.453 अरब डॉलर है, हाल ही में इसमें 8.895 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है। ये डाटा भारतीय रिजर्व बैंक ने जारी किया है। इतना ही नहीं, इसमें हर सप्ताह 5 से 6 अरब डॉलर का इजाफा भी हो रहा है। इसे देखते हुए चीन ने आशंका जताई है कि इससे भारत के अन्य देशों को कर्ज देने की क्षमता में बढ़ोतरी होगी, जिससे भारत अफ्ऱीकी महाद्वीप में चीन के बढ़ते विस्तारवाद को चुनौती दे सकता है।
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्ह्वा ने भारत के बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार को चीन के लिए कई मोर्चो पर चीन की राह में रोड़ा बताया है। चीन के शासन तंत्र को इस बात की चिंता है कि चीन जैसे कर्ज देता रहा है, उसी तरह भारत भी कर्ज देने की अपनी क्षमता बढ़ा सकता है। चीन को इस समय यह चिंता सता रही है कि चीन की जो कर्ज देने की नीति है, ठीक वैसी ही नीति भारत लाकर चीन का प्रतिद्वंद्वी बन सकता है। लेकिन चीन को यह नहीं मालूम कि भारत ने आजतक किसी देश को कर्ज देकर उसे अपने कर्जजाल में नहीं फंसाया, उस देश की अर्थव्यवस्था और व्यापार को चौपट नहीं किया, कर्ज लेने वाले देश को भारत ने कभी अपना आर्थिक गुलाम नहीं बनाया। जबकि चीन दुनियाभर में इस बात के लिए बदनाम है कि वह गरीब देशों को कर्ज देकर अपने आर्थिक जाल में फंसा लेता है, फिर उनका आर्थिक शोषण करता है।
चीन को इस बात से भी परेशानी है कि भारत के तेजी से बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार से भारत की सैन्य और सामरिक क्षमता और अंतरिक्ष मिशन को तेजी मिलेगी। चीन चाहता है कि हथियारों और अंतरिक्ष मिशन में केवल वही सफल होकर आगे निकले, बाकी दुनिया उससे पीछे रहे।
चीन को यह नहीं भूलना चाहिए कि 90 के दशक में जब अमेरिका ने भारत को उसके अंतरिक्ष मिशन के लिए क्रायोजेनिक इंजन नहीं दिए और भारत ने जब रूस से क्रायोजेनिक इंजन लेने का प्रयास किया तो अमेरिका द्वारा रूस पर दबाव के कारण रूस ने भी अपने कदम पीछे खींच लिए। तब भारतीय वैज्ञानिकों ने तय किया कि अब हम खुद क्रायोजेनिक इंजन बनाएंगे और इसमें 17-18 वर्ष लगेंगे। इतने ही वर्षो में भारत ने क्रायोजेनिक इंजन पूरी तरह देसी तकनीक से बना लिया।
चीन को इस बात का भी डर है कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम गुणवत्ता में सर्वोत्तम और दुनिया में सबसे सस्ता है, जिससे इस बाजार में भी चीन भारत से पिछड़ जाएगा। भारत ने जो भी तकनीक हासिल की है, वह या तो खुद बनाई है या फिर विदेशी कंपनियों से साझेदारी की है। कभी किसी तकनीक की चोरी नहीं की, जो चीन हमेशा हर क्षेत्र में करता रहता है, चाहे वो क्षेत्र मोबाइल, इंटरनेट, ऑटोमोटिव, तेल शोधन, हथियार या फिर अंतरिक्ष का ही क्यों न हो।
इन सारे क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए शोध की खासी जरूरत होती है, जिसके लिए धन की आवश्यकता है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने से भारत को इन सभी परियोजनाओं में कामयाबी मिलेगी।
चीनी मीडिया ने भी कहा है कि तुर्की भारत के तजी से बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार को सही नहीं मानता। शिन्ह्वा के अनुसार, “तुर्की का मानना है कि अगर भारत का विदेशी मुद्रा भंडार ऐसे ही बढ़ता रहा, तो वह तुर्की और पाकिस्तान के हितों को जरूर नुकसान पहुंचाएगा। वहीं, अगर हम तुर्की की बात करें तो उसका विदेशी मुद्रा भंडार अर्श से फर्श पर आ गिरा है और तुर्की के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार कम होने की वजह से तुर्की की ढेर सारी सैन्य परियोजनाएं भी बंद हो चुकी हैं। इसके अलावा तुर्की अपना खुद का अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने वाला है। लेकिन तुर्की के पास अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने के लिए बजट नहीं है, जिस वजह से तुर्की की यह परियोजना अधर में लटकी हुई है।”
ऐसे में भारत के इन ‘शत्रु’ देशों का भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने से परेशान होना लाजिमी है, क्योंकि इन्हें लगता है कि इसके बाद भारत अपनी वर्चस्व मजबूत करेगा और वैश्विक स्तर पर इनके लिए चुनौती बनेगा, लेकिन ये दोनों देश इस बात को भूल जाते हैं कि भारत ने जब तरक्की की है तो अपने मित्र देशों के साथ-साथ पिछड़े देशों को आगे बढ़ाने के लिए भी काम किया है। बावजूद इसके, अगर इन देशों को भारत की तरक्की से ईष्र्या होती है तो इस ईष्र्या को सहने की इन्हें आदत डाल लेनी चाहिए, क्योंकि अब तो भारत सिर्फ तरक्की ही करेगा।
व्यापार
भारत में बढ़ती आय के चलते घर खरीदना बन रहा अफोर्डेबल : रिपोर्ट

नई दिल्ली, 3 दिसंबर: भारत में तेजी से बढ़ती आय के कारण घर खरीदना पिछले 1.5 दशक के मुकाबले काफी अफोर्डेबल हो गया है। इस दौरान देश का प्राइस-टू-इनकम रेश्यो 2025 में 45.3 हो गया है, जो कि 2010 में 88.5 पर था। यह जानकारी बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में दी गई।
कोलियर्स इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान देश में औसत आय में चार गुना की वृद्धि हुई है और यह करीब 10 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रही है और हालांकि, समीक्षा अवधि में घरों की कीमत में 5-7 प्रतिशत का ही इजाफा हुआ है, जो दिखाता है कि घर पहले के मुकाबले काफी किफायती हो गए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सुधार आवासीय क्षेत्र में नीतिगत परिवर्तनों, आर्थिक झटकों और नए नियमों के कारण कई उतार-चढ़ावों के बावजूद आया है।
पिछले दो दशकों में, बाजार ने पीएमएवाई, विमुद्रीकरण, रेरा, एनबीएफसी संकट, एसडब्ल्यूएएमआईएच फंडिंग सपोर्ट और जीएसटी कार्यान्वयन जैसे प्रमुख घटनाक्रमों का सामना किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश में घरों की बिक्री भी मजबूत बनी हुई है। कोरोना महामारी के बाद घरों की वार्षिक बिक्री बढ़कर 3-4 लाख यूनिट्स हो गई है। इसकी वजह बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर, अफोर्डेबिलिटी में इजाफा होना, अच्छी मौद्रिक नीति और आय का बढ़ना है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बिक्री की मजबूत गति को आय में लगातार वृद्धि का समर्थन प्राप्त है, जो संपत्ति की कीमतों में वृद्धि से कहीं अधिक है।
कोलियर्स इंडिया के सीईओ और एमडी बादल याज्ञनिक के अनुसार, अनुकूल ब्याज दरों और उच्च आय स्तरों के कारण आवास की मांग मजबूत बनी हुई है।
याज्ञनिक ने आगे कहा, “हालांकि कच्चे माल की लागत ने हाल के वर्षों में आवास की कीमतों को बढ़ा दिया है, लेकिन आय में तेज वृद्धि ने खरीदारों को गति बनाए रखने में मदद की है।”
आठ प्रमुख टियर-I शहरों में, 2010 के बाद से अफोर्डेबिलिटी के स्तर में तेजी से सुधार हुआ है।
अहमदाबाद और हैदराबाद जैसे शहर सबसे किफायती आवासीय बाजारों में से एक बनकर उभरे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रमुख निर्माण सामग्रियों पर जीएसटी दरों के कम होने से विशेष रूप से किफायती और मध्यम आय वर्ग के आवास क्षेत्रों में सेंटीमेंट में और सुधार होने की उम्मीद है।
व्यापार
भारत में मजबूत आउटपुट ग्रोथ से सर्विसेज पीएमआई नवंबर में बढ़कर 59.8 हो गया

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नई दिल्ली, 3 दिसंबर: एसएंडपी ग्लोबल द्वारा बुधवार को जारी एचएसबीसी इंडिया सर्विसेज परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) सर्वे के अनुसार, नए बिजनेस में तेज बढ़ोतरी आउटपुट ग्रोथ को बढ़ाने में प्रभावी रही और नवंबर में भारत की सर्विस एक्टिविटी को एक महत्वपूर्ण बढ़ावा मिला।
एचएसबीसी इंडिया सर्विसेज पीएमआई बिजनेस एक्टिविटी इंडेक्स अक्टूबर के 58.9 से नवंबर में बढ़कर 59.8 हो गया, जो कि आउटपुट में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विस्तार को दिखाता है।
एचएसबीसी की चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी ने कहा, “नए बिजनेस के बढ़ने से आउटपुट ग्रोथ बढ़ी और इंडिया सर्विसेज पीएमआई बिजनेस एक्टिविटी इंडेक्स नवंबर में बढ़कर 59.8 हो गया। रोजगार में बढ़ोतरी मामूली रही और अधिकतर कंपनियों ने पेरोल नंबर में किसी तरह के बदलाव न होने की जानकारी दी। इस बीच, भारत का कंपोजिट पीएमआई मजबूत रहा, हालांकि नवंबर में यह थोड़ा कम होकर 59.7 पर आ गया, जो फैक्ट्री प्रोडक्शन की ग्रोथ में कमी को दिखाता है।”
रिपोर्ट के अनुसार, असल में भारतीय सर्विसेज की मांग लगातार मजबूत बनी रही, जो कि नए बिजनेस में बढ़ोतरी से स्पष्ट होता है। वृद्धि की यह दर इससे पिछले महीने अक्टूबर से तेज थी और इसके लॉन्ग-रन एवरेज से भी अधिक थी।
दूसरी ओर, तीसरी तिमाही के बीच नए एक्सपोर्ट ऑर्डर में थोड़ी बढ़ोतरी हुई। वृद्धि की दर अच्छी थी, लेकिन आठ महीने के सबसे निचले स्तर पर आ गई।
जहां एक्सटर्नल सेल्स बढ़ीं, वहीं एशिया, यूरोप और मिडिल ईस्ट में कंपनियों ने लाभ की जानकारी दी।
रिपोर्ट में दी गई जानकारी के अनुसार, भारतीय सर्विसेज कंपनियों ने अपने खर्चों में मामूली बढ़ोतरी का संकेत दिया है, जिसमें इलेक्ट्रिसिटी, फूड, रेंट और सॉफ्टवेयर सब्सक्रिप्शन पर खर्च बढ़ने की जानकारी दी गई है। हालांकि, महंगाई की दर अगस्त 2020 के बाद सबसे कम हो गई है और यह अपने लंबे समय के औसत से नीचे है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियों को अच्छी मांग, सोशल मीडिया पर अधिक मौजूदगी, मार्केटिंग पहलों और कीमतों में बढ़ोतरी को कम से कम रखने की योजनाओं से जुड़ी पॉजिटिव भावना के साथ अभी भी आउटपुट ग्रोथ की उम्मीद है।
व्यापार
भारत की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री ने दर्ज करवाई शानदार बढ़त

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नई दिल्ली, 1 दिसंबर: भारत की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री शानदार बढ़त का एक और दौर दर्ज करवाने में सफल रही और कुल नए ऑडर्स और आउटपुट ट्रेंड से अधिक रेट पर बढ़े। सोमवार को जारी एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) नवंबर में 50.0 के न्यूट्रल मार्क और इसके लॉन्ग-रन एवरेज 54.2 से काफी ऊपर रहा।
एसएंडपी ग्लोबल की ओर से जारी डेटा के अनुसार, नवंबर में एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 56.6 दर्ज किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई अक्टूबर में 59.2 दर्ज किया गया था। नवंबर के नए आंकड़ों ने फरवरी के बाद से ऑपरेटिंग कंडीशन में सबसे धीमे सुधार को दिखाया।
नए एक्सपोर्ट ऑर्डर एक वर्ष से अधिक समय में सबसे कम रफ्तार से बढ़े। सेल्स में हल्की बढ़ोतरी ने खरीदारी की मात्रा और नई नौकरियों में वृद्धि को कम कर दिया, जबकि आउटपुट की संभावनाओं को लेकर पॉजिटिव सेंटिमेंट 2022 के मध्य के बाद अपने सबसे निचले लेवल पर आ गया। नवंबर में महंगाई दर कम हुई, जबकि इनपुट लागत 9 महीनों और सेलिंग चार्ज आठ महीनों में सबसे धीमी दर से बढ़े।
एचएसबीसी में चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट, प्रांजुल भंडारी ने कहा, “भारत के फाइनल नवंबर पीएमआई ने दर्शाया कि अमेरिकी टैरिफ की वजह से मैन्युफैक्चरिंग विस्तार की गति धीमी हुई। नए एक्सपोर्ट ऑर्डर पीएमआई 13 महीनों के निचले स्तर पर आ गए।”
उन्होंने आगे कहा कि फ्यूचर आउटपुट के लिए अनुमान बताते हैं कि बिजनेस कॉन्फिडेंस में नवंबर में बड़ी गिरावट आई, जो कि टैरिफ के प्रभाव को लेकर बढ़ती चिंताओं को दिखाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय मैन्युफैक्चरर्स ने ऑर्डर बुक वॉल्यूम में काफी बढ़ोतरी दर्ज की, जिसकी वजह प्रतिस्पर्धी कीमतें, मांग का सकारात्मकर ट्रेंड और क्लाइंट्स की बढ़ती दिलचस्पी रहे। हालांकि, मार्केट की चुनौतीपूर्ण स्थितियों, प्रोजेक्ट शुरू होने में देरी और फर्मों के बीच प्रतिस्पर्धा की रिपोर्ट्स के बीच ओवरऑल ग्रोथ रेट नौ महीने के सबसे निचले लेवल पर आ गई।
हालांकि कंपनियों का कहना है कि इंटरनेशनल सेल्स का ट्रेंड अच्छा बना हुआ है, जो अफ्रीका, एशिया, यूरोप और मिडिल ईस्ट में क्लाइंट्स को अच्छी सेल्स दिखाता है।
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