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Sunday,26-October-2025
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भारतीयता का मतलब समावेशिता है: शबाना आजमी

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Shabana-Azmi

दिग्गज अभिनेत्री शबाना आजमी ने कट्टरवाद पर हमला बोलते हुए कहा है कि इस्लाम में संगीत और कला प्रतिबंधित कतई नहीं है। शहनाई के दिग्गज रहे उस्ताद स्वर्गीय बिस्मिल्लाह खान और दिवंगत सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान जैसे महान लोगों के उदाहरण का हवाला देते हुए शबाना कहती हैं कि धार्मिक चरमपंथ से दूर रहने पर ही सच्ची कला का निर्माण होता है। वह कहती हैं कि भारतीयता का मतलब ही समावेशिता है।

शबाना ने कहा, “हमें ऐसे निर्थक सवालों को उठने से रोकना होगा जो कला के अभ्यास को रोकते हैं और कला के बीच में धार्मिक चरमपंथ लाते हैं। ऐसा कहने वाले कई लोग हैं कि इस्लाम में संगीत और कला प्रतिबंधित है। लेकिन उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, उस्ताद अली अकबर खान जैसे कई और प्रतिष्ठित कलाकार यदि इन सवालों की निर्थक न बनाते तो वे कैसे अपनी कला के लिए इतना सम्मान और सफलता हासिल कर पाते? यदि हम एक प्रगतिशील समाज का निर्माण करना चाहते हैं, तो हमें ऐसे सवालों से छुटकारा पाना होगा।”

शबाना आजमी के ऐसे ही विचारों पर आधारित है उनकी फिल्म ‘मी रक्सम’, जो कि इसी सप्ताह के अंत तक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई है। अभिनेत्री द्वारा पेश की गई इस फिल्म से उनके भाई और अनुभवी छायाकार बाबा आजमी ने निर्देशन में कदम रखा है। यह फिल्म एक ऐसी मुस्लिम लड़की के बारे में है, जो एक भरतनाट्यम नर्तकी बनने की इच्छा रखती है, लेकिन उसके समुदाय के कट्टरपंथी लोग उसके सपने के बीच इसलिए आ जाते हैं क्योंकि उनका मानना है कि नृत्य की इस विद्या का संबंध हिन्दू माइथोलॉजी से है।

इसे लेकर फिल्म में केन्द्रीय भूमिका निभा रहे अभिनेता दानिश हुसैन ने कहा, “अगर भरतनाट्यम की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं में निहित है, तो जाहिर है कि इस नृत्य पर हिंदू देवी-देवताओं का प्रभाव होगा। उदाहरण के लिए कव्वाली संगीत का ऐसा रूप है जो सूफी परंपरा और अमीर खुसरो से निकलकर आई है, इसलिए इसमें इस्लामिक प्रभाव रहेगा। अब देखिए कि ध्रुव सांगरी कितने प्रतिभाशालीकव्वाली गायक हैं, लेकिन कव्वाली हिंदू पौराणिक कथाओं से नहीं आई है तो क्या इसका मतलब यह है कि ध्रुव कव्वाली नहीं गा सकते हैं। हमें ये बाधाएं तोड़नी होगी। कोई भी व्यक्ति कला के जिस रूप में रुचि रखता है, वह इसे सीख सकता है और इसका अभ्यास कर सकता है, भले ही उस कला की उत्पत्ति कहीं से भी हुई हो।”

बता दें कि ज़ी5 पर रिलीज हुई इस फिल्म में दानिश हुसैन के साथ अदिति सूबेदी, सुदीप्ता सिंह, राकेश चतुवेर्दी ओम, कौस्तुभ शुक्ला, जुहिना अहसन और शिवांगी गौतम हैं। वहीं नसीरुद्दीन शाह एक विशेष भूमिका में हैं।

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मनोरंजन

नहीं रहे अपनी कॉमिक टाइमिंग से सबको गुदगुदाने वाले सतीश शाह, किडनी फेल होने से हुआ निधन

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नई दिल्ली, 25 अक्टूबर : कॉमेडी फिल्म में अपने रोल से सबको गुदगुदाने वाले एक्टर सतीश शाह का निधन हो गया है। निधन की खबर से फैंस के बीच शोक की लहर दौड़ पड़ी है। भारतीय निर्माता अशोक पंडित ने एक्टर के निधन की पुष्टि की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक्टर के निधन की जानकारी देते हुए भावुक पोस्ट डाला है।

भारतीय निर्माता अशोक पंडित ने सतीश रविलाल शाह की फोटो इंस्टाग्राम पर पोस्ट की है और लिखा है, “आपको यह बताते हुए दुख और आश्चर्य हो रहा है कि हमारे प्रिय मित्र और एक बेहतरीन अभिनेता सतीश शाह का कुछ घंटे पहले किडनी फेल होने के कारण निधन हो गया। उन्हें हिंदुजा अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। हमारे उद्योग के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।” अशोक पंडित ने एक्टर के घर का पता भी सोशल मीडिया पर डाला है।

सतीश शाह का जन्म एक गुजराती परिवार में हुआ था। वह टीवी और सिनेमा का हंसाने और गुदगुदाने वाला चेहरा थे। उन्होंने अपनी बेमिसाल एक्टिंग के दम पर अलग पहचान बनाई। उन्होंने टीवी पर छोटा रोल हो या पर्दे पर बड़ा रोल, दोनों को पूरे मन से निभाया है।

शाह ने अपने करियर की शुरुआत 1970 में फिल्म ‘भगवान परशुराम” से की थी, लेकिन ये फिल्म एक्टर को पहचान नहीं दिला पाई। फिर उन्हें साल 1978 में आई अरविंद देसाई की फिल्म ‘अजीब दास्तान’ में देखा गया। इस फिल्म में एक्टर का रोल छोटा था, जिसके बाद उन्हें 1983 की फिल्म ‘जाने भी दो यारों’ में देखा गया और ये फिल्म उनके करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई थी।

आखिरी बार सतीश शाह को फिल्म ‘हमशक्ल’ में देखा गया था, जो 2014 में रिलीज हुई थी। फिल्म में सैफ अली खान, रितेश देशमुख और राम कपूर जैसे स्टार्स लीड रोल में थे। इसी फिल्म में एक्टर ने छोटा सा साइड रोल किया था। इस फिल्म का निर्देशन साजिद खान ने किया था और फिल्म पर्दे पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई थी।

पर्सनल लाइफ में सतीश शाह बहुत सिंपल इंसान थे। उन्हें पार्टियों में जाना पसंद नहीं था और वह घर का खाना ज्यादा पसंद करते थे। एक इंटरव्यू में एक्टर ने खुलासा किया था कि “मैं उन कुछ लोगों में से एक हूं जिन्हें घर का बना खाना पसंद है और मेरे घर का खाना किसी भी पार्टी के खाने जितना अच्छा होता है।”

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बॉलीवुड

‘थामा’ बनी बॉक्स ऑफिस की बादशाह, पीछे रह गई ‘एक दीवाने की दीवानियत’

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मुंबई, 25 अक्टूबर : बॉलीवुड में दीपावली का सप्ताह हमेशा फिल्मों के लिए खास रहता है। इस बार भी दर्शकों को एक नहीं बल्कि दो बड़ी फिल्मों का तोहफा मिला, पहली आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना की ‘थामा’ और दूसरी हर्षवर्धन राणे और सोनम बाजवा की ‘एक दीवाने की दीवानियत’।

दोनों ही फिल्मों ने सिनेमाघरों में एक साथ दस्तक दी, जिससे बॉक्स ऑफिस पर सीधी टक्कर देखने को मिली। जहां एक तरफ ‘थामा’ अपनी अनोखी कहानी, हॉरर-रोमांस के तड़के और शानदार स्टारकास्ट के दम पर दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रही, वहीं दूसरी ओर ‘एक दीवाने की दीवानियत’ एक इमोशनल लव स्टोरी के रूप में दर्शकों के बीच उतरी।

आयुष्मान खुराना, रश्मिका मंदाना, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और परेश रावल स्टारर ‘थामा’ ने रिलीज के पहले ही दिन शानदार ओपनिंग लेकर सबको चौंका दिया। सैकनिल्क की रिपोर्ट के मुताबिक, फिल्म ने पहले दिन यानी मंगलवार को 24 करोड़ रुपये की धमाकेदार कमाई की। दूसरे दिन बुधवार को फिल्म की कमाई में थोड़ी गिरावट देखने को मिली, लेकिन फिर भी 18.6 करोड़ रुपये का मजबूत कारोबार किया। वहीं तीसरे दिन यानी गुरुवार को फिल्म की कमाई घटकर 13 करोड़ रुपये रह गई।

चौथे दिन शुक्रवार को फिल्म का ग्राफ और नीचे आया, और शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक फिल्म ने सिर्फ 3.79 करोड़ रुपये की कमाई की। इस तरह चार दिनों में ‘थामा’ का कुल भारत नेट कलेक्शन 59.39 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।

वहीं, वर्ल्डवाइड कलेक्शन की बात करें तो यह आंकड़ा 76.7 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा है। हालांकि फिल्म की कमाई में गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन पहले हफ्ते में ही लगभग 60 करोड़ का कारोबार करना अपने आप में बड़ी बात है। आयुष्मान और रश्मिका की जोड़ी को दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं, जबकि नवाजुद्दीन सिद्दीकी की रहस्यमयी भूमिका ने कहानी को और भी रोमांचक बना दिया है।

वहीं, दूसरी ओर हर्षवर्धन राणे और सोनम बाजवा की ‘एक दीवाने की दीवानियत’ ने भी दर्शकों का ध्यान खींचने की कोशिश की, लेकिन फिल्म उतनी बड़ी कमाई नहीं कर पाई जितनी मेकर्स को उम्मीद थी। इस रोमांटिक ड्रामा ने पहले दिन 9 करोड़ रुपये की कमाई के साथ ठीक-ठाक शुरुआत की।

इसके बाद फिल्म का कलेक्शन धीरे-धीरे नीचे जाता गया। दूसरे दिन ‘एक दीवाने की दीवानियत’ ने 7.4 करोड़ रुपये कमाए, जबकि तीसरे दिन यह गिरकर 6.35 करोड़ रुपये रह गया। चौथे दिन यानी शुक्रवार को फिल्म ने केवल 2.2 करोड़ रुपये का कारोबार किया। चार दिनों में फिल्म की कुल कमाई भारत में 24.95 करोड़ रुपये रही, जबकि वर्ल्डवाइड स्तर पर इसने 28.65 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया।

अगर बात करें इस हफ्ते की बॉक्स ऑफिस रेस की, तो यहां बाजी साफ तौर पर ‘थामा’ के हाथ लगी है।

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मनोरंजन

भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज पीयूष पांडे का निधन, प्रणव अदाणी ने कहा- हमेशा खलेगी कमी

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मुंबई, 24 अक्टूबर: भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज और ओगिल्वी इंडिया के क्रिएटिव लीडर पीयूष पांडे अब हमारे बीच नहीं रहे। 70 साल की उम्र में गुरुवार को उनका निधन हो गया। पांडे को सिर्फ एक विज्ञापन विशेषज्ञ के रूप में ही नहीं बल्कि ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता था, जिन्होंने भारतीय विज्ञापन को उसकी अपनी भाषा और आत्मा दी।

पीयूष पांडे के निधन को लेकर लेखक और कमीडियन सुहेल सेठ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने लिखा, “मेरे सबसे प्यारे दोस्त पीयूष पांडे जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के निधन से मैं बेहद दुखी और स्तब्ध हूं। भारत ने विज्ञापन जगत की एक महान हस्ती ही नहीं, बल्कि एक सच्चे देशभक्त और एक सज्जन इंसान को खोया है। अब जन्नत में भी गूंजेगा ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा।’

अदाणी ग्रुप में एग्रो और ऑयल एंड गैस के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रणव अदाणी ने पीयूष पांडे के निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने लिखा, ”मेरे प्रिय मित्र पीयूष पांडे के निधन से स्तब्ध हूं, वह रचनात्मक प्रतिभा जिन्होंने भारतीय विज्ञापन जगत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में आकार दिया। उनके विचार उद्योग के मानक बने। उन्होंने कई पीढ़ियों के कहानीकारों को प्रेरित किया। उनकी गर्मजोशी और बुद्धिमता की बहुत कमी खलेगी। ओम शांति।”

वहीं फिल्ममेकर हंसल मेहता ने भी ‘एक्स’ पोस्ट में लिखा, ”फेविकोल का जोड़ टूट गया। विज्ञापन जगत ने आज अपनी चमक खो दी। पीयूष पांडे, आप हमेशा याद आएंगे।”

पीयूष पांडे का जन्म 1955 में जयपुर में हुआ था। उनके परिवार में नौ बच्चे थे, जिनमें सात बहनें और दो भाई शामिल थे। उनके भाई प्रसून पांडे फिल्म निर्देशक हैं, जबकि बहन ईला अरुण गायिका और अभिनेत्री थीं। उनके पिता राजस्थान राज्य सहकारी बैंक में कार्यरत थे। उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और 1982 में विज्ञापन जगत में कदम रखा और ओगिल्वी इंडिया में क्लाइंट सर्विसिंग एक्जीक्यूटिव के रूप में शामिल हुए।

उनका पहला प्रिंट विज्ञापन सनलाइट डिटर्जेंट के लिए लिखा गया। छह साल बाद वे क्रिएटिव विभाग में आए और लूना मोपेड, फेविकोल, कैडबरी और एशियन पेंट्स जैसे ब्रांड्स के लिए कई प्रसिद्ध विज्ञापन बनाए। इसके बाद उन्हें क्रिएटिव डायरेक्टर और फिर राष्ट्रीय क्रिएटिव डायरेक्टर बनाया गया। 1994 में उन्हें ओगिल्वी इंडिया के निदेशक मंडल में भी स्थान मिला। उनके नेतृत्व में ओगिल्वी इंडिया ने लगातार 12 वर्षों तक भारत की नंबर 1 एजेंसी का दर्जा हासिल किया।

पीयूष पांडे द्वारा बनाए गए विज्ञापन आज भी लोगों की यादों में बसे हुए हैं। उन्होंने एशियन पेंट्स के लिए ‘हर खुशी में रंग लाए,’ कैडबरी के लिए ‘कुछ खास है,’ फेविकोल के लिए आइकॉनिक ‘एग’ विज्ञापन और हच के पग वाले विज्ञापन जैसी रचनाएं तैयार कीं। इसके अलावा, उन्होंने 2014 में भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनावी नारा ‘अबकी बार, मोदी सरकार’ दिया। उनका योगदान केवल व्यावसायिक विज्ञापन तक सीमित नहीं था। उन्होंने राष्ट्रीय एकता गीत ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ लिखा और कई सामाजिक अभियान जैसे पोलियो जागरूकता और धूम्रपान विरोधी अभियानों में भी सक्रिय भूमिका निभाई।

पांडे को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 2016 में पद्म श्री से नवाजा गया और 2024 में एलआईए लीजेंड अवार्ड दिया गया। इसके अलावा, उन्हें क्लियो लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, मीडिया एशिया अवार्ड्स और कान्स लायंस में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिल चुके हैं। उनके नेतृत्व में ओगिल्वी इंडिया को वैश्विक स्तर पर सबसे रचनात्मक कार्यालयों में से एक माना गया। उनकी रचनात्मकता, सहजता और भारतीय विज्ञापन को दी गई दिशा उन्हें हमेशा यादगार बनाएगी।

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