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Sunday,14-December-2025
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सैन फ्रांसिस्को नगर निकाय में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित

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San-Francisco

अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा संचालित सैन फ्रांसिस्को नगरपालिका परिषद ने सर्वसम्मति से भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और संबंधित अन्य विधानों का विरोध करते हुए प्रस्ताव पारित किया है।

प्रस्ताव रखने वाले गॉर्डन मार ने मंगलवार को वोट से पहले दावा किया कि भारत में मुसलमानों के साथ-साथ महिलाओं, दलितों, समलैंगिकों और ट्रांसजेंडर लोगों को ‘बड़े पैमाने पर हिरासत केंद्रों में कैद’ किया जा रहा है।

प्रस्ताव में नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन्स (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का भी विरोध करते हुए इन्हें भेदभावपूर्ण बताया गया है।

इस निकाय को औपचारिक रूप से पर्यवेक्षकों के बोर्ड (बोर्ड आफ सुपरवाइजर्स) के रूप में जाना जाता है और इसके सभी 11 निर्वाचित सदस्य डेमोक्रेट हैं जिनके पास पर्यवेक्षक (सुपरवाइजर) का पद है।

सिलिकन वैली के केंद्र में स्थित इस नगर निकाय ने प्रस्ताव में भारतीय कानून और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ जोड़ा है और इसमें ‘सैन फ्रांसिस्को के दक्षिण एशियाई समुदाय के साथ एकजुटता’ जताई गई है।

मार ने दावा किया कि ‘धुर दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी ट्रम्प के सबसे बड़े प्रवासी दानदाता (डोनर) हैं’ और चेतावनी दी कि ‘हिंदू राष्ट्रवादी पारिस्थितिकी तंत्र बे एरिया से सिलिकॉन वैली तक फैला हुआ है।’

पर्यवेक्षकों में से एक, आरोन पेसकिन ने नगरपालिका निकाय को अंतर्राष्ट्रीय मामलों में कदम रखने के बारे में आगाह करते हुए कहा कि ‘हम कोई कांग्रेस (अमेरिकी संसद) के सदस्य नहीं हैं। हमें इस तरह के मामलों में बहुत एहतियात से कदम उठाना चाहिए,’ लेकिन उन्होंने भी अन्य 10 डेमोक्रेट के साथ प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया।

सैन फ्रांसिस्को में डेमोक्रेटिक पार्टी में वामपंथी हिस्से का दबदबा है जो पार्टी के भीतर शक्तिशाली बनकर उभर रहा है और भारत के प्रति एजेंडा सेट करने की कोशिश कर रहा है।

इसी वामपंथ के असर में पूर्व उप राष्ट्रपति जो बिडेन ने अपने ‘एजेंडा फार मुस्लिम अमेरिकन कम्युनिटीज’ में मुस्लिम मतदाताओं से कश्मीर और सीएए के मुद्दों को लेकर खुलेआम सांप्रदायिक अपील की है। बिडेन का पार्टी का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनना तय माना जा रहा है।

इस बीच, वाशिंगटन राज्य में सिएटल में, मिनेसोटा में सेंट पॉल, मैसाचुसेट्स में कैम्ब्रिज और न्यूयॉर्क में अल्बानी नगर निकाय भी इस्लामिक संगठनों द्वारा आगे बढ़ाए गए ऐसे ही प्रस्तावों को पारित कर चुके हैं।

हालांकि, वे अफगानिस्तान और पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों पर हमलों और वहां मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चुप रहे हैं।

मार ने प्रस्ताव पेश करते हुए भारत के साथ तीन अरब डालर के अमेरिकी हथियारों के सौदे का उल्लेख किया। प्रस्ताव में भारत के खिलाफ प्रतिबंधों की संभावनाओं का पता लगाने का भी उल्लेख है।

डेमोक्रेटिक पार्टी नियंत्रित नगरपालिकाओं द्वारा भारत के खिलाफ ऐसे कदम ट्रम्प के विरोध और आने वाले राष्ट्रपति चुनाव से भी प्रेरित हैं।

सैन फ्रांसिस्को के प्रस्ताव में कहा गया है, “राष्ट्रपति ट्रम्प की अमेरिका के भीतर धार्मिक आधार पर भेदभाव करने की नीति, कमजोर समुदायों को निशाना बनाने, नागरिकता छीनने, संकटों को गढ़ने और घृणा फैलाने की नीति सहित कई नीतियां भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी हिंदू चरमपंथी भारतीय जनता पार्टी सरकार और उनकी हिंदू नस्लीय और सांस्कृतिक रूप से दूसरों से बेहतर हैं, जैसी खतरनाक विचारधारा से मेल खाती हैं।”

प्रस्ताव में गलत तरीके से सीएए, एनसीआर और एनपीआर को मुस्लिम, दलित, महिला, एलजीबीटीक्यू विरोधी बताया गया है, जबकि एनसीआर के मुख्य उद्देश्यों में से एक भारत के पूर्वोत्तर में मूल निवासियों की संख्या को अवैध आव्रजकों से कम होने से बचाना है।

इसी तरह सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान के प्रताड़ित गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान करता है। मुस्लिम आव्रजकों के लिए अन्य नियमित नियमों के तहत भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का रास्ता पहले की तरह खुला हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय समाचार

20 अमेरिकी राज्यों ने एच-1बी वीजा फीस को लेकर ट्रंप पर किया मुकदमा

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TRUMP

वाशिंगटन, 13 दिसंबर: अमेरिका के 20 राज्यों ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर किया है। इन राज्यों का कहना है कि एच-1बी वीजा के नए आवेदनों पर 1 लाख अमेरिकी डॉलर की भारी फीस लगाना गैरकानूनी है और इससे जरूरी सार्वजनिक सेवाओं पर बुरा असर पड़ेगा।

यह मुकदमा डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी द्वारा लागू की गई एक नीति को निशाना बनाता है, जिसमें एच-1बी वीज़ा के तहत विदेशी कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए नियोक्ताओं पर अचानक बहुत ज़्यादा शुल्क लगा दिया गया। इस वीज़ा का इस्तेमाल अस्पताल, विश्वविद्यालय और सरकारी स्कूल में बड़े पैमाने पर किया जाता है।

कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बॉन्टा इस मामले का नेतृत्व कर रहे हैं। उनके कार्यालय के हवाले से कहा गया कि प्रशासन के पास इतनी बड़ी फीस लगाने का अधिकार नहीं है। बॉन्टा ने कहा कि दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते कैलिफोर्निया जानता है कि जब दुनिया भर से कुशल लोग यहाँ काम करने आते हैं, तो राज्य आगे बढ़ता है।

बॉन्टा ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा लगाई गई यह 1 लाख डॉलर की एच-1बी फीस न सिर्फ़ बेवजह है, बल्कि अवैध भी है। इससे स्कूलों, अस्पतालों और अन्य जरूरी सेवाएं देने वाले संस्थानों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और कर्मचारियों की कमी और बढ़ जाएगी।

राष्ट्रपति ट्रंप ने 19 सितंबर, 2025 को जारी एक घोषणा के ज़रिए इस फीस का आदेश दिया था। 21 सितंबर के बाद दायर किए गए एच-1बी आवेदनों पर इसे लागू किया गया। होमलैंड सिक्योरिटी सेक्रेटरी को यह तय करने का अधिकार दिया कि कौन से आवेदन इस फीस के दायरे में आएंगे या छूट के लिए योग्य होंगे।

राज्यों का कहना है कि यह नीति प्रशासनिक प्रक्रिया, कानून, और अमेरिकी संविधान का उल्लंघन करती है, क्योंकि बिना तय प्रक्रिया अपनाए नियम बनाए गए हैं और कांग्रेस की सीमा से बाहर जाकर फैसला लिया गया है। अब तक एच-1बी से जुड़ी फीस सिर्फ़ व्यवस्था चलाने के खर्च तक सीमित रहती थी।

फिलहाल नियोक्ता एच-1बी वीज़ा के लिए अलग-अलग शुल्क मिलाकर लगभग 960 से 7,595 डॉलर तक देते हैं। संघीय कानून के अनुसार उन्हें यह भी प्रमाण देना होता है कि विदेशी कर्मचारी रखने से अमेरिकी कर्मचारियों की सैलरी या काम की स्थिति पर बुरा असर नहीं पड़ेगा।

कांग्रेस अधिकांश निजी क्षेत्र के एच-1बी वीजा की संख्या सालाना 65,000 तक सीमित रखती है, जबकि उच्च डिग्री वालों के लिए 20,000 अतिरिक्त वीजा होते हैं। स्कूल, विश्वविद्यालय और अस्पताल जैसे सरकारी और गैर-लाभकारी संस्थानों को इस सीमा से छूट मिली हुई है।

अटॉर्नी जनरल का कहना है कि नई फीस से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में कर्मचारियों की कमी और बढ़ जाएगी। यह मुकदमा बोंटा और मैसाचुसेट्स के अटॉर्नी जनरल एंड्रिया जॉय कैंपबेल ने दायर किया था, जिसमें एरिज़ोना, कोलोराडो, कनेक्टिकट, डेलावेयर, हवाई, इलिनोइस, मैरीलैंड, मिशिगन, मिनेसोटा, नेवाडा, नॉर्थ कैरोलिना, न्यू जर्सी, न्यूयॉर्क, ओरेगन, रोड आइलैंड, वर्मोंट, वाशिंगटन और विस्कॉन्सिन के अटॉर्नी जनरल भी शामिल हुए।

एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम विदेशी कुशल पेशेवरों के लिए एक अहम रास्ता है। इसके तहत बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर अमेरिका में तकनीक, स्वास्थ्य और शोध के क्षेत्र में काम करते हैं।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

शीत युद्ध की ऐतिहासिक खेल जीत से रूस-यूक्रेन संघर्ष की तुलना, ट्रंप ने 1980 के ‘मिरेकल ऑन आइस’ को किया याद

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TRUMP

वाशिंगटन, 13 दिसंबर: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को शीत युद्ध के दौर की एक प्रसिद्ध खेल जीत की तुलना आज के वैश्विक संघर्ष से की। उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की चल रही कोशिशों के बारे में बात करते हुए 1980 में सोवियत संघ पर “मिरेकल ऑन आइस” जीत का जिक्र किया।

अमेरिकी हॉकी टीम की सोवियत संघ पर मिली ऐतिहासिक जीत पर व्हाइट हाउस में आयोजित एक कार्यक्रम में ट्रंप ने कहा कि यह जीत केवल खेल तक सीमित नहीं थी, बल्कि इससे बड़े सबक मिलते हैं। उन्होंने कहा कि उस समय अमेरिकी टीम ने बेहद मजबूत सोवियत टीम को हराया था और किसी को भी इसकी उम्मीद नहीं थी। यह कार्यक्रम अमेरिकी ओलंपिक हॉकी टीम को सम्मानित करने के लिए एक बिल साइनिंग सेरेमनी के तौर पर हुआ।

जब ट्रंप से पूछा गया कि आज के संघर्षों के लिए इस जीत से क्या सीख मिलती है, तो ट्रंप ने सीधे यूक्रेन का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि स्थिति कुछ हद तक वैसी ही है और आगे क्या होता है, यह देखा जाएगा।

ट्रंप ने कहा कि उनका प्रशासन युद्ध को खत्म करने के लिए काम कर रहा है, जबकि हर महीने बड़ी संख्या में सैनिक मारे जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि रूस और यूक्रेन में पिछले महीने करीब 25 हजार सैनिकों की मौत हुई और उनका उद्देश्य इन मौतों को रोकना है।

इस मौके पर ट्रंप ने 1980 की हॉकी टीम के लिए यादगार मेडल देने वाले कानून पर साइन किए, जिसे उन्होंने “अमेरिकी खेलों के इतिहास के सबसे महान पलों में से एक” बताया। ट्रंप ने कहा कि इस टीम ने देश को एकजुट किया और लोगों को प्रेरित किया।

टीम के कप्तान माइक एरज़ियोन ने भी कहा कि समय के साथ इस मैच का राजनीतिक और ऐतिहासिक महत्व और स्पष्ट होता गया।

ट्रंप ने इस जीत को अमेरिका की बड़ी वापसी की शुरुआत बताया। वहीं सांसद पीट स्टॉबर ने कहा कि इस टीम ने देश को उस समय मजबूती दी, जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।

ट्रंप ने यह भी दावा किया कि उन्होंने पहले ही कई युद्ध रुकवाए हैं और अब एक और युद्ध को खत्म करना बाकी है। हालांकि उन्होंने कोई ठोस कूटनीतिक कदम नहीं बताए, लेकिन कहा कि इस दिशा में प्रगति हो रही है।

“मिरेकल ऑन आइस” 1980 के शीतकालीन ओलंपिक में अमेरिकी टीम की सोवियत संघ पर 4–3 की जीत को कहा जाता है, जिसके बाद फिनलैंड को हराकर स्वर्ण पदक जीता गया था। यह मैच उस समय अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध के माहौल में हुआ था और अमेरिका के आत्मविश्वास का प्रतीक बन गया।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

श्रीलंका में चक्रवात से तबाह हुए पुलों और सड़कों को दोबारा बना रही है भारतीय सेना

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नई दिल्ली, 12 दिसंबर: विनाशकारी चक्रवात दितवाह से प्रभावित श्रीलंका की जनता को त्वरित मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए भारत ऑपरेशन ‘सागर बंधु’ चला रहा है। इसी अभियान के तहत भारतीय सेना की एक 48 सदस्यीय इंजीनियर टास्क फोर्स को श्रीलंका में तैनात किया गया है।

भारतीय सेना की यह विशेष टीम युद्धस्तर पर राहत एवं बचाव से जुड़े काम कर रही है। राहत कार्यों के लिए की गई यह पहल भारत की पड़ोसी प्रथम नीति के अनुरूप है। भारतीय सेना के मुताबिक टास्क फोर्स की प्राथमिक जिम्मेदारी चक्रवात से क्षतिग्रस्त सड़कों और पुलों की मरम्मत एवं पुनर्निर्माण है।

गौरतलब है कि चक्रवात, तेज बारिश और बाढ़ के कारण कई इलाकों में सड़क संपर्क टूट गया है। अब यहां टूटी हुई सड़कों की मरम्मत की जा रही है ताकि राहत सामग्री और आवश्यक सेवाओं की आवाजाही सुचारू रूप से हो सके। भारतीय सेना की इस टीम में विशेष रूप से ब्रिजिंग एक्सपर्ट, सर्वेयर, वॉटरमैनशिप विशेषज्ञ, भारी इंजीनियरिंग उपकरणों, ड्रोन और अनमैन्ड सिस्टम संचालन में दक्ष कर्मी शामिल हैं। सभी विशेषज्ञ मिलकर सटीक, तेज और प्रभावी इंजीनियरिंग सहायता उपलब्ध करा रहे हैं। इस सहायता में बुरी तरह क्षतिग्रस्त सड़कों का पुनर्निर्माण, टूटे हुए पुलों को जोड़ना और अन्य ढांचागत सुविधाएं बहाल करना शामिल है।

भारतीय सेना की इंजीनियर टास्क फोर्स के पास यहां श्रीलंका में फिलहाल चार सेट बेली ब्रिज उपलब्ध हैं। इन्हें भारतीय वायुसेना के सी-17 विमान से श्रीलंका पहुंचाया गया है। इनके माध्यम से कटे हुए इलाकों में त्वरित संपर्क बहाली की जाएगी। इसके अतिरिक्त टास्क फोर्स के पास पन्यूमैटिक नावें, आउटबोर्ड मोटर, हेवी पेलोड ड्रोन, रिमोट-कंट्रोल्ड बोट आदि अत्याधुनिक उपकरण भी उपलब्ध हैं।

सेना का कहना है कि इन्हीं संसाधनों के दम पर टीम राहत व बचाव कार्य, अस्थायी आश्रय, सड़कों और पुल जैसी महत्वपूर्ण संरचनाओं के निर्माण में सक्षम है। श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा बताए गए आवश्यक स्थानों के आधार पर, भारतीय इंजीनियर टास्क फोर्स ने श्रीलंका सेना और अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर कई पुल स्थलों का रेकी का काम किया है। इन पुलों को तत्काल मरम्मत की आवश्यकता है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कई पुलों पर कार्य प्रारंभ भी कर दिया गया है। यहां मॉड्यूलर बेली ब्रिज स्थापित किया जा रहा है, जिसे आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न कॉन्फिगरेशन में लगाया जा सकता है। इसके तैयार होते ही इस क्षेत्र की कनेक्टिविटी बहाल हो जाएगी।

सेना के अनुसार ऑपरेशन ‘सागर बंधु’ सिर्फ राहत कार्य नहीं, बल्कि भारत की पड़ोसी देशों के प्रति प्रतिबद्धता, त्वरित सहायता और मानवीय सहयोग की भावना का प्रतीक है। भारतीय सेना की यह इंजीनियर टास्क फोर्स श्रीलंका के संकटग्रस्त क्षेत्रों में आशा और सहायता दोनों का महत्त्वपूर्ण स्तंभ बनकर काम कर रही है।

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