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Tuesday,09-December-2025
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वांग यी ने ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की वीडियो बैठक में भाग लिया

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CMG

चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने 4 सितंबर को ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की एक वीडियो बैठक में भाग लिया। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने बैठक की अध्यक्षता की। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर, दक्षिण अफ्रीकी विदेश मंत्री नलदेई पंडोर और ब्राजील के विदेश मंत्री अर्नेस्टो आराजो ने बैठक में भाग लिया। वांग यी ने कहा कि ब्रिक्स देशों ने कोविड-19 महामारी के प्रभाव को दूर करते हुए अर्थव्यवस्था, व्यापार व वित्त, राजनीतिक सुरक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्रों में सिलसिलेवार गतिविधियों का आयोजन किया और पूरी तरह अर्थव्यवस्था, राजनीति, संस्कृति आदि के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया। जिससे एक-दूसरे को समर्थन देने और एक साथ कठिनाइयों को दूर करने वाले साझेदारी संबंधों को दशार्या गया। ब्रिक्स देशों को अंतरराष्ट्रीय शांति और वैश्विक विकास की जिम्मेदारी लेनी, संयुक्त रूप से महामारी की चुनौतियों का मुकाबला करना, बहुपक्षवाद को बढ़ाना, विश्व आर्थिक बहाली को तेज करना और गर्म मुद्दों के राजनीतिक समाधान को बढ़ावा देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अगले चरण में सभी पक्षों को वार्ता की तैयारी करनी चाहिए और राजनीतिक सुरक्षा सहयोग के आधार को मजबूत करना चाहिए। साथ ही आर्थिक, व्यापारिक और वित्तीय सहयोग की इमारत का निर्माण करने की जरूरत है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान व सहयोग के बंधन को मजबूत करना होगा। जब तक हम एकजुट रहेंगे और एक साथ सहयोग करेंगे, तब तक ब्रिक्स देश विश्व शांति और स्थिरता बनाए रखने की शक्ति, वैश्विक सामान्य विकास को प्रेरित करने की शक्ति, और अंतर्राष्ट्रीय निष्पक्षता व न्याय को बढ़ावा देने की शक्ति बन सकता है। यह न केवल ब्रिक्स देशों के समान हितों के अनुरूप है, बल्कि पूरी दुनिया को भी इससे लाभ मिलेगा।

बैठक में उपस्थित पाँच पक्षों ने वैश्विक स्थिति, क्षेत्रीय गर्म मुद्दों और ब्रिक्स देशों के सहयोग पर गहन रूप से चर्चा की। सभी पक्षों ने सहमति जताते हुए कहा कि वर्तमान स्थिति में ब्रिक्स देशों को एकता मजबूत करते हुए चुनौतियों का सामना करना चाहिए।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

ट्रंप का बड़ा कृषि राहत पैकेज, लेकिन भारत के चावल आयात को ‘टैरिफ की धमकी’

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TRUMP

वाशिंगटन, 9 दिसंबर: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किसानों के लिए कई अरब डॉलर की राहत योजना का ऐलान किया और भारत सहित एशियाई देशों से आने वाली कृषि आयात पर अपनी नाराजगी भी जताई। व्हाइट हाउस में किसानों और अधिकारियों के साथ बैठक में उन्होंने कहा कि अमेरिकी किसानों की सुरक्षा के लिए शुल्क (टैरिफ) का कड़ा इस्तेमाल किया जाएगा।

ट्रंप ने बताया कि सरकार किसानों को लगभग 12 अरब डॉलर की आर्थिक मदद देगी, जिसे अमेरिका ट्रेडिंग पार्टनर्स से मिल रहे टैरिफ रेवेन्यू से फंड करेगा। उन्होंने कहा कि बीते वर्षों की महंगाई और कमजोर दामों से किसान परेशान हैं, इसलिए यह मदद जरूरी है। ट्रंप ने किसानों को अमेरिका की रीढ़ बताते हुए कहा कि शुल्क लगाना कृषि क्षेत्र को संभालने की उनकी योजना का अहम हिस्सा है।

बैठक में भारत का जिक्र खास तौर पर चावल आयात के मुद्दे पर आया। लुइज़ियाना की एक चावल उत्पादक कंपनी की सीईओ मेरिल कैनेडी ने कहा कि भारत, थाईलैंड और चीन जैसे देश बहुत सस्ता चावल भेज रहे हैं, जिससे अमेरिकी किसान मुश्किल में हैं। उन्होंने ट्रंप से कहा कि शुल्क बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने भारत के खिलाफ डब्ल्यूटीओ केस का ज़िक्र करते हुए कड़ी पाबंदियां लगाने की अपील की।

ट्रंप को जब बताया गया कि अमेरिका में बिकने वाले दो बड़े चावल ब्रांड भारतीय कंपनियों के हैं, तो ट्रंप ने कहा कि वह तुरंत कार्रवाई करेंगे और टैरिफ लगाने से समस्या कुछ ही मिनट में हल हो जाएगी।

बैठक में सोयाबीन और अन्य फसलों पर भी चर्चा हुई। ट्रंप ने बताया कि उन्होंने हाल ही में चीन के राष्ट्रपति से बातचीत की है और चीन भारी मात्रा में अमेरिकी सोयाबीन खरीद रहा है। अधिकारियों ने बताया कि चीन आने वाले समय में बड़ी मात्रा में सोयाबीन खरीदने का वादा कर चुका है।

कई लोगों के लिए, भारत से जुड़े व्यापार मुद्दे ग्लोबल कॉम्पिटिशन और अमेरिकी कमोडिटी बाजारों के भविष्य की चिंताओं से जुड़े हुए थे। केनेडी ने प्रशासन से चावल को “राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा” मानने का आग्रह किया और चेतावनी दी कि सब्सिडी वाला विदेशी चावल विदेशों में अमेरिकी उत्पादों की जगह ले रहा है। कई किसानों ने तेजी से कदम उठाने की मांग की। वहीं, कुछ अधिकारियों ने दावा किया कि बाइडेन सरकार के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर हुई।

बता दें कि भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार पिछले एक दशक में काफी बढ़ा है। भारत अमेरिका को बासमती चावल, मसाले और समुद्री उत्पाद निर्यात करता है, जबकि अमेरिका से बादाम, कपास और दालें खरीदता है। लेकिन चावल और चीनी पर सब्सिडी जैसे मुद्दों पर विवाद अक्सर सामने आते रहते हैं।

ट्रंप का नया शुल्क-आधारित रुख संकेत देता है कि आने वाले महीनों में एशियाई देशों, खासकर भारत के लिए परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

श्रीलंका : भारतीय सेना ने हजारों पीड़ितों का किया उपचार, सेना के फील्ड हॉस्पिटल जाएंगे श्रीलंकाई राष्ट्रपति

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नई दिल्ली, 9 दिसंबर: चक्रवात दित्वाह से प्रभावित श्रीलंका के कई इलाकों में स्वास्थ्य, सड़क, भोजन, पानी जैसे कई मानवीय संकट उत्पन्न हुए हैं। इस संकट के बीच, ‘ऑपरेशन सागर बंधु’ के तहत भारतीय सेना ने श्रीलंका में 3,300 से अधिक मरीजों का इलाज किया है।

गौरतलब है कि शीघ्र ही श्रीलंका के राष्ट्रपति द्वारा अस्पताल का दौरा किए जाने की भी संभावना है। वहीं बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए सड़क मार्ग की मरम्मत भी सेना द्वारा शुरू की गई है। भारतीय सेना यहां अनेक पुलों को ठीक या निर्माण कर रही है। सेना के मुताबिक 10 दिसंबर तक श्रीलंका में एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा। जाफना और चिलाव में तीव्र प्रगति से ये कार्य पूरा किया जा रहा है।

भारतीय सेना यहां नागरिक प्रशासन के साथ समन्वय में निरंतर राहत एवं पुनर्निर्माण कार्यों को गति दे रही है। इस अभियान में पुलों की पुनर्स्थापन और उच्चस्तरीय चिकित्सा सहायता प्रमुख रूप से शामिल हैं। भारतीय सेना की इंजीनियर टास्क फोर्स ने जाफना में क्षतिग्रस्त पुलियाम्पोक्कनाई ब्रिज के पैनलों को हटाने (डी-लॉन्चिंग) का कार्य प्रारंभ कर दिया है। इस कार्य में श्रीलंका के रोड डेवलपमेंट अथॉरिटी को सेना सहयोग दे रही है।

सेना के मुताबिक, इस कार्य के लिए पहिएदार एक्सकेवेटर का प्रयोग किया जा रहा है। यह कार्य तेजी से प्रगति पर है और 10 दिसंबर तक पूर्ण होने की संभावना है। इसके बाद शनिवार दोपहर को यहां पहले बेली ब्रिज को लॉन्च करने की योजना है। वहीं जाफना में 120 फीट के ड्यूल कैरिजवे के निर्माण हेतु आवश्यक सामग्री का 70 प्रतिशत पहले ही स्टोर यार्ड से साइट पर पहुंचाया जा चुका है। शेष सामग्री के बुधवार शाम तक पहुंचने की उम्मीद है।

चिलाव में अगले 48 घंटों के भीतर पुल के लिए पियर निर्माण शुरू किए जाने की संभावना है। एक पूर्ण बेली ब्रिज सेट पहले ही वहां पहुंच चुका है, जिससे पुनर्स्थापन प्रयासों को और मजबूती मिली है। सेना ने बताया कि इसी क्रम में चौथे बेली ब्रिज सेट की लोडिंग यहां भारत के पठानकोट में जारी है। यह बेली ब्रिज 09 दिसंबर को भारत से श्रीलंका रवाना किया जाएगा।

आत्मनिर्भर भारत और भारतीय सेना के आधुनिकीकरण व तकनीकी नवाचार की दिशा में यहां स्वदेशी ड्रोन व सोनार आधारित लेजर रेंज फाइंडर इस्तेमाल किए जा रहे हैं। रिमोटली ऑपरेटेड कॉम्बैट क्रूजर यूजीवी तथा अन्य नई पीढ़ी के उपकरणों को भी जाफना और चिलाव के पुल स्थलों पर विस्तृत टोही के लिए तैनात किया गया है। इससे ऑपरेशनल समय-सीमा में उल्लेखनीय तेजी आई है। वहीं भारतीय सेना के पैरा फील्ड हॉस्पिटल द्वारा उत्कृष्ट मानवीय चिकित्सा सेवाएं लगातार प्रदान की जा रही हैं। इस हॉस्पिटल में अब तक 3,338 मरीजों का उपचार किया जा चुका है।

सेना ने बताया कि 08 दिसंबर को ही अस्पताल में 1,128 मरीजों का इलाज किया गया। 73 छोटी चिकित्सकीय प्रक्रियाएं व 4 सर्जरी की गई हैं। सेना के अनुसार स्थानीय समुदायों से अस्पताल को अत्यंत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। सेना ने श्रीलंका में समन्वित इंजीनियरिंग प्रयासों, प्रभावशाली चिकित्सा सहायता और उन्नत स्वदेशी तकनीक की तैनाती की है। भारतीय सेना ने एक बार फिर ‘पड़ोसी प्रथम, और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना के अनुरूप कार्य किया है। सेना के मुताबिक उनके ये कार्य संकट की इस घड़ी में श्रीलंका को मानवीय सहायता प्रदान करने की अटूट प्रतिबद्धता को दोहराते हैं।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

एनडीएए के तहत बड़ी घोषणा: अमेरिका की परमाणु और हिंद-प्रशांत योजनाओं में भारत प्रमुख भागीदार

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वाशिंगटन, 8 दिसबंर: अमेरिका के नए रक्षा प्राधिकरण बिल में भारत को इंडो–प्रशांत क्षेत्र और परमाणु नीति में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है। इस विधेयक में कहा गया है कि अमेरिका भारत के साथ मिलकर उसकी परमाणु दायित्व नीति पर लगातार बातचीत करेगा और भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करेगा जो चीन की चुनौती से निपटने के लिए नई रक्षा व्यवस्था तैयार कर रहे हैं।

अमेरिकी कांग्रेस के नेताओं ने वित्त वर्ष 2026 के लिए राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (एनडीएए) का संयुक्त मसौदा जारी किया है। इस अधिनियम में भारत को अमेरिका की कई रणनीतियों में विशेष स्थान दिया गया है-जैसे नागरिक परमाणु सहयोग, रक्षा सह-उत्पादन और समुद्री सुरक्षा। यह बिल छह दशकों से हर साल पारित होता रहा है। इस सप्ताह के अंत में बिल हाउस से पारित होने की उम्मीद है।

बिल में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है कि अमेरिका और भारत मिलकर एक संयुक्त परामर्श तंत्र स्थापित करेंगे। यह तंत्र 2008 के नागरिक परमाणु समझौते के क्रियान्वयन की नियमित समीक्षा करेगा। इसके साथ ही भारत के घरेलू परमाणु दायित्व नियमों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने पर भी चर्चा की जाएगी और इन मुद्दों पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय राजनयिक जुड़ाव के लिए “एक रणनीति विकसित करने” का भी काम सौंपा गया है।

अमेरिका को पांच वर्षों तक हर साल कांग्रेस में इस समीक्षा की रिपोर्ट देनी होगी।

बिल के अन्य भाग में भारत को वैश्विक नागरिक परमाणु सहयोग में “सहयोगी देश” के रूप में रखा गया है। इसके अलावा, यह कानून प्रशासन को अमेरिकी परमाणु निर्यात का विस्तार करने के लिए 10-वर्षीय रणनीति स्थापित करने और रूस तथा चीन से होने वाली प्रतिस्पर्धा का विश्लेषण करेगा।

इंडो–प्रशांत क्षेत्र से जुड़े प्रावधानों में भारत को प्राथमिक सहयोगियों की सूची में रखा गया है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं। इन देशों के साथ मिलकर रक्षा उद्योग, आपूर्ति श्रृंखला और नई तकनीक पर संयुक्त काम आगे बढ़ाया जाएगा।

अमेरिकी रक्षा मंत्री को अधिकार होगा कि वे समझौते करें, विशेषज्ञ सहायता दें, और उद्योग व शिक्षण संस्थानों को जोड़ें ताकि संयुक्त उत्पादन और विकास को बढ़ावा दिया जा सके।

संसद ने यह भी कहा है कि अमेरिका क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा संवाद सहित भारत के साथ अपना जुड़ाव बढ़ाए, ताकि इंडो–प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला रखा जा सके। इसमें सैन्य अभ्यास, रक्षा व्यापार, मानवीय सहायता और समुद्री सुरक्षा शामिल हैं। चीन को रोकने के लिए अमेरिका अपनी क्षेत्रीय उपस्थिति और साझेदारी भी बढ़ाएगा।

विधेयक में भारतीय महासागर क्षेत्र के लिए एक विशेष राजदूत बनाने की मंजूरी भी दी गई है, जिसका काम होगा कि वह इस क्षेत्र में अमेरिका की कूटनीति का समन्वय करे और चीन के प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति बनाए।

इन सभी कदमों से यह स्पष्ट होता है कि भारत अब अमेरिका की क्षेत्रीय रणनीति का सिर्फ लाभार्थी नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण साझेदार भी है। हाल के वर्षों में भारत–अमेरिका रक्षा संबंध काफी मजबूत हुए हैं।

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