राष्ट्रीय
वसई विरार यातायात पुलिस ने बिना आवश्यक दस्तावेजों के चल रहे 50 रिक्शा जब्त किए
पालघर: वसई विरार में यातायात पुलिस ने प्रगति नगर, अलकापुरी और तुलिंज रोड क्षेत्रों में लाइसेंस, बैज, परमिट और प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) प्रमाण पत्र सहित दस्तावेजों के बिना चल रहे 50 वाहनों को जब्त किया है।
वरिष्ठ निरीक्षक प्रशांत लांघी के अनुसार, इलाके में अनधिकृत रिक्शा चलाने वालों पर कार्रवाई जारी रहेगी। वसई विरार में कथित तौर पर 30-40% रिक्शा बिना वैध दस्तावेजों के चल रहे हैं और वे अक्सर यातायात नियमों का उल्लंघन करते हैं।
सबसे ज़्यादा अनधिकृत रिक्शा प्रगट नगर, अलकापुरी, मोरेगांव, गाला नगर, शिरडी नगर, तुलिंज, संतोष भुवन, वसई फाटा और नालासोपारा के दूसरे इलाकों में हैं। हालाँकि, क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) के पास इन अवैध रिक्शा के खिलाफ़ कार्रवाई करने का अधिकार है; लेकिन ऐसा लगता है कि अधिकृत रिक्शा संचालन पर कोई रोक नहीं है।
राष्ट्रीय
“स्वामित्व” योजना के तहत गांवठान भूमि मानचित्र प्रमाणपत्र वितरण कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों संपन्न
ठाणे प्रतिनिधि : गांवठान भूमि क्षेत्र की संपत्तियों के सीमांकन और मालिकाना हक देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अवधारणा से साकार हुई “स्वामित्व” योजना के तहत आज गांवठान भूमि मानचित्र प्रमाणपत्र वितरण कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी के हाथों वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आयोजित किया गया। ठाणे जिले के प्रमाणपत्र वितरण कार्यक्रम का स्थानीय आयोजन उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की उपस्थिति में जिला अधिकारी कार्यालय के नियोजन भवन में हुआ।
इस अवसर पर सांसद नरेश म्हस्के, विधायक संजय केळकर, विधायक निरंजन डावखरे, जिला अधिकारी अशोक शिनगारे, मुख्य कार्यकारी अधिकारी रोहन घुगे, और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।
“स्वामित्व” योजना: ग्रामविकास का आंदोलन
यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्तियों के सीमांकन और मालिकाना हक की प्रक्रिया को सरल बनाती है। इस अवसर पर बोलते हुए उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा, “गांवों में आज भी कई नागरिकों के पास उनकी संपत्तियों का ठोस प्रमाण नहीं होता, जिसके कारण भूमि विवाद, कोर्ट केस और अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई स्वामित्व योजना ग्रामीण भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण क्रांति है।”
उन्होंने आगे कहा, “यह योजना सिर्फ संपत्तियों का प्रमाणपत्र नहीं, बल्कि गरीबों के लिए ‘स्वाभिमान कार्ड’ है। इस योजना के माध्यम से कई परिवारों का जीवन बदल गया है और उन्हें संपत्ति के लोन के लिए बैंकों के दरवाजे खुले हैं।”
ड्रोन और जीआईएस तकनीक का उपयोग
स्वामित्व योजना में आधुनिक तकनीक का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। ड्रोन के माध्यम से गांवठान भूमि का सर्वेक्षण किया जाता है और जीआईएस तकनीक से नक्शे तैयार किए जाते हैं। देश में 2.19 करोड़ प्रॉपर्टी कार्ड तैयार किए गए हैं और महाराष्ट्र में 15,327 गांवों के नक्शे अंतिम रूप से तैयार किए गए हैं।
लाभार्थियों को मिली राहत
कार्यक्रम में उपस्थित भिवंडी के बलीराम माणेकर का उल्लेख करते हुए शिंदे ने कहा, “स्वामित्व योजना के तहत उन्हें उनकी भूमि का मालिकाना हक मिला, जिसके बाद उन्हें बैंक से 60 लाख का कर्ज मंजूर हुआ और वे आत्मनिर्भर बने।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “स्वामित्व योजना ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए प्रभावी साबित हो रही है। यह योजना ग्रामीण समुदाय को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य हासिल कर रही है।”
उपमुख्यमंत्री की निर्देश
कार्यक्रम के अंत में उपमुख्यमंत्री शिंदे ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि “योजना को समय सीमा के भीतर और सही तरीके से पूरा करने के लिए उचित योजना बनाई जाए। यह योजना केवल कागजी नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का एक मजबूत कदम बननी चाहिए।”
ग्रामविकास को गति
यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में प्रॉपर्टी कार्ड तैयार करके गांवठान विवादों को सुलझाने में मदद कर रही है। साथ ही ग्राम पंचायतों को विकास योजनाओं के लिए मार्गदर्शन भी प्रदान कर रही है।
कार्यक्रम का समापन उपमुख्यमंत्री शिंदे के मार्गदर्शन में हुआ। जिला अधिकारी कार्यालय, भूमि अभिलेख विभाग और जिला परिषद के अधिकारियों ने इस सफल आयोजन के लिए अथक प्रयास किए।
राष्ट्रीय
राज्य में किलों पर अतिक्रमण हटाने और रोकने के लिए जिलास्तरीय समिति – सांस्कृतिक कार्य मंत्री ॲड. आशिष शेलार
मुंबई प्रतिनिधि : राज्य में किलों पर अतिक्रमण हटाने और भविष्य में अतिक्रमण न हो, इसके लिए जिल्हाधिकारियों की अध्यक्षता में जिलास्तरीय समिति का गठन किया गया है, इस बात की जानकारी राज्य के सांस्कृतिक कार्य मंत्री ॲड. आशिष शेलार ने आज पत्रकार सम्मेलन में दी।
मंत्री शेलार ने कहा कि महाराष्ट्र राज्य में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत 47 केंद्र संरक्षित किले और राज्य पुरातत्व विभाग के तहत 62 राज्य संरक्षित किले हैं। इन किलों के संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए अतिक्रमण रोकना अत्यंत आवश्यक है।
“केंद्र और राज्य संरक्षित किलों के साथ-साथ लगभग 300 असंरक्षित किलों पर अतिक्रमण हो रहा है, जो शासन के ध्यान में आया है। इससे किलों की सुंदरता नष्ट हो रही है और कानून व्यवस्था भी खतरे में पड़ सकती है,” शेलार ने कहा। मुख्यमंत्री के निर्देशों के तहत इन अतिक्रमणों को हटाने के लिए जिलास्तरीय समिति गठित की गई है।
समिति के सदस्यों में संबंधित पुलिस आयुक्त, जिल्हा परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला पुलिस अधीक्षक, नगर परिषद के अधिकारी, वन क्षेत्राधिकारी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी, राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारी, और संबंधित प्राधिकरणों के अधिकारी शामिल होंगे।
समिति को 31 जनवरी 2025 तक किलों पर अतिक्रमण की सूची तैयार करके शासन को प्रस्तुत करना होगा। इसके बाद, 1 फरवरी 2025 से 31 मई 2025 तक अतिक्रमण हटाने का काम तय समय में किया जाएगा। सभी अतिक्रमण हटाने के बाद, समिति यह सुनिश्चित करेगी कि पुनः अतिक्रमण न हो।
समिति हर महीने बैठक करेगी और उसका रिपोर्ट शासन को प्रस्तुत किया जाएगा। मंत्री शेलार ने कहा कि इस कार्यवाही के द्वारा राज्य के किलों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित होगा।
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गौ आधारित खेती है पुण्य, बचत और सतत विकास का आधार, किसानों की हो रही बचत
लखनऊ, 28 दिसंबर। गौ आधारित खेती केवल पर्यावरण संरक्षण का माध्यम नहीं, बल्कि किसानों की आर्थिक समृद्धि और देश की आत्मनिर्भरता का मजबूत आधार बन रही है। इससे किसान प्रति एकड़ 10-12 हजार रुपये तक बचा सकते हैं।
प्राकृतिक खेती न केवल गोवंश संरक्षण को बढ़ावा देती है, बल्कि उर्वरकों के आयात पर निर्भरता घटाकर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत करती है। यह जल, जमीन और मानव स्वास्थ्य में स्थायी सुधार का जरिया बन रही है। सरकार द्वारा प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता और प्रमाणीकरण जैसी योजनाओं के माध्यम से इसे किसानों के लिए एक लाभदायक और टिकाऊ विकल्प बनाया जा रहा है।
खेती के लिए सबसे बड़ी लागत बीज और उर्वरक हैं। उत्तर प्रदेश अपनी बीज जरूरतों का केवल आधा ही स्थानीय स्तर पर उत्पादन कर पाता है, जबकि शेष अन्य राज्यों से आयात किया जाता है। वहीं, भारत हर साल उर्वरकों के आयात पर अरबों रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च करता है।
आंकड़ों के मुताबिक, साल 2023-24 में भारत ने 2127 करोड़ रुपये का यूरिया आयात किया। फास्फेट और पोटाश जैसे उर्वरकों के लिए भारत पूरी तरह आयात पर निर्भर है। गौ आधारित प्राकृतिक खेती इस निर्भरता को कम कर सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक गाय के गोबर और गोमूत्र से लगभग चार एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती संभव है। यह विधा न केवल किसानों की लागत को कम करती है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाती है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गौ आधारित कृषि के बड़ी पैरवी करते हैं। उन्होंने इसे बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रमों के माध्यम से समय समय पर जागृत करते रहते हैं।
उत्तर प्रदेश में 2.78 करोड़ किसान और लगभग 2 करोड़ गोवंश हैं। यदि हर किसान एक गाय पालें, तो इससे न केवल उनकी खेती की लागत घटेगी, बल्कि गोवंश का संरक्षण और संवर्धन भी होगा। गौ आधारित खेती में गाय का गोबर और गोमूत्र मुख्य भूमिका निभाते हैं, जिनका उपयोग खाद और कीटनाशक के रूप में किया जाता है। इससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता घटती है और मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है।
गौ आधारित खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। हर गो आश्रय को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। किसानों को परंपरागत ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीक का उपयोग सिखाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
सरकार चयनित किसानों को तीन वर्षों तक आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है। पहले वर्ष 4800 रुपये, दूसरे वर्ष 4 हजार रुपये और तीसरे वर्ष 3600 रुपये की आर्थिक मदद दी जा रही है। इसके अतिरिक्त, कैटल शेड और गोबर गैस संयंत्र के लिए भी अनुदान दिया जा रहा है। प्राकृतिक उत्पादों को प्रमाणीकरण के जरिए बाजार में स्थापित करने के लिए मंडल स्तर पर आउटलेट्स खोले जा रहे हैं।
कोविड-19 के बाद से लोग स्वास्थ्य को लेकर अधिक जागरूक हुए हैं। जैविक और प्राकृतिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है। लोग अब स्थानीय उत्पादों और क्षेत्रीय स्वाद को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह प्रवृत्ति न केवल स्थानीय स्तर पर जैविक उत्पादों के लिए अवसर पैदा कर रही है, बल्कि निर्यात के भी नए रास्ते खोल रही है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. आदित्य कुमार द्विवेदी का कहना है कि जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने में मददगार हो रही है। प्राकृतिक खेती के उत्पादों की गुणवत्ता और सेहत पर इसके सकारात्मक प्रभाव के कारण उपभोक्ता इसे तेजी से अपना रहे हैं।
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