राजनीति
राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में यूपी के दिग्गजों की अनदेखी

राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 3,570 किलोमीटर लंबी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ बुधवार से शुरू हो रही है। मगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को न तो सूचित किया गया है और न ही उन्हें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। उत्तर प्रदेश की टीम में मुख्य रूप से प्रियंका गांधी वाड्रा के निजी सचिव संदीप सिंह, अमेठी सेवा दल के अध्यक्ष राम बरन कश्यप, यूपीसीसी अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष शाहनवाज आलम, यूपीसीसी मछुआरा कांग्रेस के अध्यक्ष देवेंद्र निषाद और यूपीसीसी सचिव (उन्नाव प्रभारी) प्रतिभा अटल पाल शामिल हैं।
पार्टी के एक नेता ने कहा, “हमारे पास यात्रियों की तीन श्रेणियां हैं- भारत पदयात्री (जो पूरे रास्ते राहुल के साथ होंगे), अतिथि पदयात्री (जो कुछ समय के लिए शामिल होंगे) और राज्य पदयात्री (जो अपने-अपने राज्यों में राहुल के साथ होंगे) उत्तर प्रदेश से 14 भारत यात्री हैं।”
भारत जोड़ो यात्रा के जम्मू-कश्मीर जाने के रास्ते में राजस्थान से बुलंदशहर पहुंचने और वहां से दिल्ली के लिए रवाना होने की उम्मीद है।
जैसा कि भारत जोड़ो यात्रा राज्य में ढाई दिनों की संक्षिप्त अवधि के लिए रहने की उम्मीद है, पार्टी ने राज्य की लंबाई और चौड़ाई को कवर करते हुए चार से पांच छोटी यात्राएं करने का प्रस्ताव रखा है। छोटी यात्राओं का बुलंदशहर में विलय होगा।
कांग्रेस विधायक दल की नेता आराधना मिश्रा ‘मोना’ ने कहा, “हां, पार्टी बुलंदशहर में मुख्य यात्रा में शामिल होने से पहले विभिन्न क्षेत्रों में छोटी यात्राएं करेगी। मुख्य यात्रा तीन भागों में की जाएगी, जिसमें पहला भाग 7 बजे से होगा, दूसरा सुबह 10.30 बजे से और तीसरा 12 से। इस दौरान 13 किमी की दूरी तय की जाएगी।”
इस बीच पार्टी के दिग्गज नेता एक बार फिर नजरअंदाज किए जाने से खफा हैं।
यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा, “ऐसी पार्टी में रहने का क्या मतलब है जो आपकी मौजूदगी को भी नहीं पहचानती? कम से कम हमें किसी समय यात्रा में शामिल होने के निमंत्रण की उम्मीद थी। दल के सदस्य सभी प्रियंका की मंडली के सदस्य हैं और अगर कांग्रेस भविष्य के लिए उन पर निर्भर रहना चाहती है, तो समय आ गया है कि हम भी आगे बढ़ें।”
राजनीति
वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में होगा पेश, भाजपा-कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने जारी किया व्हिप

नई दिल्ली, 2 अप्रैल। वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 बुधवार को निचले सदन लोकसभा में पेश होगा। इस पर चर्चा के लिए स्पीकर ओम बिरला ने 8 घंटे का समय निर्धारित किया है। वक्फ अधिनियम, 1995 में पहली बार संशोधन नहीं किया जा रहा है। इस कानून में 2013 में यूपीए की सरकार के समय भी संशोधन हुए थे।
बिल पर बहस के लिए सत्ताधारी गठबंधन को 4 घंटे 40 मिनट का समय दिया गया है। लोकसभा में बहस के लिए भाजपा, कांग्रेस, जदयू, टीडीपी समेत पार्टियों ने अपने सांसदों के लिए व्हिप जारी कर दिया है।
मंगलवार को संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने दोहराया कि सरकार बिल पर चर्चा चाहती है और इस पर सभी राजनीतिक दलों को बोलने का अधिकार है। देश भी जानना चाहता है कि किस पार्टी का क्या स्टैंड है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर विपक्ष चर्चा में शामिल नहीं होना चाहता तो ऐसा रोकने से उन्हें कोई रोक भी नहीं सकता।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के उद्देश्यों और कारणों के विवरण में कहा गया है कि वर्ष 2013 में अधिनियम में व्यापक संशोधन किए गए थे।
इसमें आगे कहा गया है, “संशोधनों के बावजूद, यह देखा गया है कि राज्य वक्फ बोर्डों की शक्तियों, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और सर्वेक्षण, अतिक्रमणों को हटाने, वक्फ की परिभाषा सहित संबंधित मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए अधिनियम में अब भी और सुधार की आवश्यकता है।”
इसमें कहा गया है कि 2013 में अधिनियम में संशोधन न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों और वक्फ और केंद्रीय वक्फ परिषद पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर और अन्य हितधारकों के साथ विस्तृत परामर्श के बाद किया गया था।
विधेयक 2024 का एक प्रमुख उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 करना है।
बता दें, केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड एक्ट में करीब 40 बदलाव करना चाहती है। एक अहम बदलाव वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश हो सकता है। इसका मकसद महिलाओं और अन्य मुस्लिम समुदाय की सहभागिता को बढ़ाना है। साथ ही नए बिल में बोर्ड पर सरकार का नियंत्रण बढ़ाया जा सकता है।
विधेयक पर चर्चा और उसके बाद उसे मंजूरी मिलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार द्वारा निचले सदन में एनडीए की संख्यात्मक श्रेष्ठता का दावा करने के लिए शक्ति प्रदर्शन के अवसर के रूप में भी देखा जा रहा है।
महाराष्ट्र
ईद पर मुंबई में तीन लाख तीर्थयात्री हाजी अली पहुंचे

मुंबई: मुंबई में ईद-उल-फितर शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। मुसलमानों ने सादगी के साथ ईद मनाई और बांहों पर काली पट्टी बांधकर नमाज अदा कर वक्फ विधेयक का विरोध किया। ईद-उल-फितर के बाद हाजी अली और माहिम दरगाहों पर जायरीनों की भीड़ उमड़ पड़ी। तीन लाख तीर्थयात्रियों ने हाजी अली का दर्शन किया, जिसके लिए पुलिस ने कड़े सुरक्षा इंतजाम किए थे।
बसी ईद 2025 के मौके पर हाजी अली दरगाह पर 300,000 से अधिक जायरीन पहुंचे। हाजी अली दरगाह ट्रस्ट के साथ की गई तैयारियों के अनुसार,
200 स्वयंसेवक
25 तैराक
मुख्य सड़क के साथ-साथ दरगाह परिसर में 78 सीसीटीवी कैमरे, सीसीटीवी कैमरा ऑपरेटर, सार्वजनिक घोषणा की व्यवस्था की गई थी। मुख्य सड़क के साथ-साथ दरगाह परिसर में भी प्राथमिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध थीं।
तलाशी के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया गया था, अवरोधक और रस्सियों की भी व्यवस्था की गई थी। मुंबई में ईद और बसी ईद शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गई और किसी भी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। मुंबई पुलिस आयुक्त विवेक पंचालकर के निर्देश पर पुलिस ने दरगाहों और मस्जिदों पर अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था की थी।
राजनीति
दिल्ली : सीएम रेखा गुप्ता ने प्रदूषण से संबंधित कैग रिपोर्ट विधानसभा में की पेश

नई दिल्ली, 1 अप्रैल। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार को विधानसभा में प्रदूषण और उसके रोकथाम से संबंधित नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पेश की।
रिपोर्ट के अनुसार, सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों की संख्या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के अनुरूप नहीं थी, जिसके चलते वायु गुणवत्ता सूचकांक का डेटा अविश्वसनीय रहा। उचित निगरानी के लिए आवश्यक प्रदूषक सांद्रता डेटा उपलब्ध नहीं था और लेड के स्तर की माप भी नहीं की गई। प्रदूषण स्रोतों पर वास्तविक समय का डेटा न होने से जरूरी अध्ययन नहीं हो सके।
वाहनों से होने वाले उत्सर्जन का कोई आकलन नहीं किया गया, जिससे स्रोत-विशिष्ट रणनीतियां बनाने में मुश्किलें आईं। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 24 निगरानी स्टेशनों में से 10 में बेंजीन का स्तर तय सीमा से अधिक था, लेकिन पेट्रोल पंपों से होने वाले उत्सर्जन की प्रभावी निगरानी नहीं हुई।
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था भी चिंता का विषय रही। दिल्ली में 9,000 बसों की आवश्यकता के मुकाबले केवल 6,750 बसें उपलब्ध थीं। बस प्रणाली में संचालन संबंधी अक्षमताएं, जैसे बसों का ऑफ-रोड रहना और तर्कहीन मार्ग योजना, भी सामने आईं। साल 2011 के बाद ग्रामीण-सेवा वाहनों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, जबकि जनसंख्या लगातार बढ़ी और पुराने वाहन प्रदूषण बढ़ाते रहे।
वैकल्पिक परिवहन साधनों (मोनोरेल, लाइट रेल ट्रांजिट, ट्रॉली बस) के लिए आवंटित बजट पिछले सात वर्षों से अप्रयुक्त पड़ा रहा।
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि सार्वजनिक परिवहन बसों की उत्सर्जन जांच, जो माह में दो बार अनिवार्य है, नियमित रूप से नहीं हुई।
प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र जारी करने में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामने आईं, जिसमें अत्यधिक उत्सर्जन वाले वाहनों को भी पास कर दिया गया। प्रदूषण जांच केंद्रों का कोई निरीक्षण या थर्ड पार्टी ऑडिट नहीं हुआ।
आधुनिक तकनीकों, जैसे रिमोट सेंसिंग डिवाइस, को अपनाने में देरी और वाहन फिटनेस परीक्षणों का ज्यादातर मैन्युअल तरीके से होना भी चिंताजनक रहा।
वित्त वर्ष 2018-19 में 64 प्रतिशत वाहन, जो फिटनेस परीक्षण के लिए नियत थे, परीक्षण के लिए नहीं पहुंचे। स्वचालित वाहन निरीक्षण इकाइयों का उपयोग न्यूनतम रहा और बिना उचित परीक्षण के फिटनेस प्रमाणपत्र जारी किए गए।
दिल्ली में भाजपा सरकार बनने के बाद, विधानसभा में आबकारी नीति से संबंधित रिपोर्ट, स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित रिपोर्ट और दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) से संबंधित रिपोर्ट सहित अब तक पांच कैग रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जा चुकी हैं।
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