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Friday,25-July-2025
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महाराष्ट्र

उद्धव सरकार भंडारा के अस्पताल में हादसे के बाद ऐक्शन में, हर अस्पताल का होगा फायर ऑडिट

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uddhav

महाराष्ट्र के भंडारा जिले में शनिवार आधी रात हुए दर्दनाक हादसे में 10 नवजात बच्चों की मौत हो गई। इस घटना ने हर किसी को हिलाकर रख दिया है। चाइल्ड केयर में आगजनी की वजह से मरने वाले बच्चे एक से 3 महीने के थे। हादसे को लेकर सरकार ऐक्शन में आ गई है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने हादसे पर दुख जाहिर करते हुए जांच के आदेश दिए हैं। वहीं डेप्युटी सीएम अजित पवार ने सभी हॉस्पिटलों के फायर ऑडिट का आदेश जारी कर दिया है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भंडारा जिला अस्पताल में आग लगने की घटना में नवजात बच्चों की मौत पर दु:ख व्यक्त करते हुए मामले की जांच के आदेश दिए हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में बताया गया है कि घटना की जानकारी मिलने के तुरंत बाद ठाकरे ने स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे से बातचीत की। बयान में कहा गया, ‘मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से बातचीत करके उन्हें जांच करने के लिए कहा है।’

महाराष्ट्र के डेप्युटी सीएम और वित्त मंत्री अजित पवार ने घटना के बाद सभी हॉस्पिटलों का ऑडिट कराए जाने का आदेश जारी कर दिया है। भंडारा जिले में हुए इस हादसे में 10 नवजात बच्चों की जान चली गई। कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस नेता नवाब मलिक ने भी कहा कि प्रदेश के सभी अस्पतालों का फायर ऑडिट कराया जाएगा। फायर ऑडिट में अनियमितताएं मिलने पर उस अस्पताल की परमिशन रद्द कर दी जाएगी।

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने भंडारा जिला अस्पताल में आग लगने से दस नवजात शिशुओं की मौत की घटना को ‘बेहद दर्दनाक’ करार देते हुए शनिवार को इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग की। महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष फडणवीस ने एक वक्तव्य में कहा, ‘सरकार को इस मामले में अच्छी तरह से जांच करानी चाहिए और 10 शिशुओं की मौत के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिये। यह बेहद दर्दनाक घटना है।’

महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा, ‘भंडारा स्थित जिला सामान्य अस्पताल की नवजात देखभाल यूनिट में आग लगने से 10 नवजातों की मौत की खबर चौंकाने वाली और दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने भंडारा पुलिस को घटना की पूरी जांच करने का आदेश दिया है। आज मैं खुद भंडारा जिला के इस अस्पताल में जा रहा हूं।’ वहीं स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने मृतक बच्चों के परिजन को 5 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया है।

कांग्रेस के पूर्व सांसद संजय निरुपम ने सवाल उठाते हुए कहा, ‘भंडारा जिले के सरकारी अस्पताल में दर्दनाक घटना घटी है। एक आगजनी में दस नवजात बच्चे दुनिया देखने से पहले जलकर खाक हो गए। यह रुलाने वाला हादसा है। बच्चों के शोकाकुल माता-पिता को सरकार सहारा दे। अस्पताल में जहां मासूम बच्चे थे, वहीं आग क्यों लगी, इसकी जांच जरूरी है।’

महाराष्ट्र

नवी मुंबई हादसा: महापे में हाइड्रा क्रेन के कुचलने से ट्रैफिक पुलिसकर्मी की मौत

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CRIME

नवी मुंबई: 24 जुलाई की दोपहर एक दुखद घटना घटी, जहाँ महापे सर्कल पर काम कर रहे 42 वर्षीय एक ट्रैफिक कांस्टेबल को हाइड्रा क्रेन ने टक्कर मार दी और वह उसके अगले पहिये के नीचे आ गया, जिससे उसकी मौत हो गई। यह घटना गुरुवार दोपहर की है। डीसीपी (ट्रैफिक) तिरुपति काकड़े ने बताया कि दिवंगत ट्रैफिक कांस्टेबल गणेश पाटिल महापे ट्रैफिक यूनिट में तैनात थे।

गुरुवार को, पाटिल और उनके सहयोगियों को महापे सर्कल में भारी ट्रैफिक जाम के कारण वाहनों के आवागमन को नियंत्रित करने के लिए तैनात किया गया था। मिडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि हाइड्रा क्रेन का मुख्य हुक ब्लॉक ड्राइवर की सीट के सामने खड़े पाटिल से टकराया, जिससे वह गिरकर चलती क्रेन के अगले पहिये के नीचे आ गए। फिर भी, हम सीसीटीवी रिकॉर्डिंग की जाँच करके इसकी पुष्टि करेंगे।

इससे पहले, वडगांव मावल पुलिस स्टेशन के 41 वर्षीय हेड कांस्टेबल मिथुन वसंत धेंडे की वडगांव फाटा के पास पुराने पुणे-मुंबई हाईवे पर एक तेज़ रफ़्तार ट्रक की चपेट में आने से मौत हो गई थी। पुलिस कार्रवाई के बाद ट्रक चालक रेहान इसब खान (24) और उसके सहायक उमर दीन मोहम्मद (19) को गिरफ्तार कर लिया गया। यह घटना रात करीब 9:35 बजे हुई जब ट्रक लापरवाही से चलाया जा रहा था, जिसके बाद कई राहगीरों ने अलर्ट जारी किया।

ट्रक को रोकने के बाद, वह पहले तो रुका, लेकिन जब धेंडे उसके पास पहुँचा, तो ड्राइवर ने गाड़ी तेज़ कर दी और उसे टक्कर मार दी। धेंडे की मौके पर ही मौत हो गई। महालुंगे में तलाशी अभियान के बाद गिरफ्तारियाँ हुईं और ट्रक ज़ब्त कर लिया गया। दोनों संदिग्धों पर हत्या का आरोप है। पुलिस ने धेंडे के परिवार के लिए अनुग्रह राशि और सरकारी नौकरी की व्यवस्था करने की पुष्टि की है। धेंडे इस दुखद क्षति के कारण अपने पीछे एक शोकाकुल परिवार छोड़ गए हैं।

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महाराष्ट्र

महायोति मंत्रिमंडल में फेरबदल, विवादित मंत्रियों की कुर्सी खतरे में

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मुंबई: महाराष्ट्र महायोति सरकार के मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावना अब स्पष्ट हो गई है। संजय गायकवाड़ द्वारा एमएएल छात्रावास में एक कर्मचारी पर की गई हिंसा, गोपीचंद्र पडलकर और जितेंद्र अहवत के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प और कृषि मंत्री कोकाटे द्वारा विधानसभा में जंगली रमी खेलने का वीडियो वायरल होने के बाद, कई मंत्रियों को आराम देने की योजना पर भी विचार किया जा रहा है। ऐसे में कई विवादास्पद मंत्रियों के विभाग छीने जाने की अटकलें शुरू हो गई हैं। महायोति में अजित पवार, राकांपा, शिंदे सेना और भाजपा के मंत्री शामिल हैं। ऐसे में कई मंत्रियों के खिलाफ जांच और उनके विवादास्पद बयानों से जनता के बीच सरकार की छवि धूमिल हुई है। इसे देखते हुए, महायोति मंत्रिमंडल में फेरबदल और बदलाव की संभावना अब स्पष्ट हो गई है। 100 दिनों में मंत्रियों के कामकाज का निरीक्षण और ऑडिट करने के बाद कई मंत्रियों को आराम देने की योजना है। कोकाटे पर लगे आरोपों के बाद अब एनसीपी अजित पवार गुट के धर्मराव उतरम को मंत्रालय दिए जाने की चर्चा और अफवाहें हैं। कई नए चेहरों को भी मंत्रालय में शामिल किए जाने की संभावना है।

कोकाटे ने उतरम की आलोचना करते हुए कहा है कि मेरे पास 30 से 35 साल का अनुभव है, मैंने कई मंत्रालय संभाले हैं, मुझे पता है कि लोगों से अच्छे संबंध कैसे बनाए रखने हैं। उन्होंने कहा कि मंत्रालय मिलने के बाद पाबंदियाँ लगती हैं और उसी के अनुसार विचार-विमर्श करना होता है और इन पाबंदियों का ध्यान रखना भी ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि उतरम के बारे में फैसला एनसीपी नेता अजित पवार लेंगे। स्थानीय निकाय चुनावों को देखते हुए महायोद्धा सरकार ने भी तैयारी शुरू कर दी है और अजित पवार अपने विदर्भ दौरे के दौरान उतरम के बारे में फैसला ले सकते हैं। विवादित मंत्रियों और माणिक राव कोकाटे की कुर्सी खतरे में है। स्थानीय निकाय चुनावों से पहले बदलाव तय है।

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महाराष्ट्र

सुप्रीम कोर्ट ने 2006 मुंबई ट्रेन धमाकों के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के बरी करने के फैसले पर लगाई रोक

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नई दिल्ली, 24 जुलाई 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 के मुंबई उपनगरीय ट्रेन धमाकों के मामले में पहले दोषी ठहराए गए 12 लोगों को बरी करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के हालिया फैसले पर रोक लगा दी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कानूनी प्रक्रिया जारी रहने तक आरोपियों को फिलहाल फिर से जेल नहीं भेजा जाएगा।

यह कदम महाराष्ट्र सरकार द्वारा हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के कुछ ही दिनों बाद आया है। सरकार ने सभी 12 दोषियों को बरी किए जाने पर गंभीर चिंता जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर अगली सुनवाई तक अस्थायी रूप से रोक लगा दी है।

मामले की पृष्ठभूमि

11 जुलाई 2006 को मुंबई की वेस्टर्न रेलवे लाइन की लोकल ट्रेनों में शाम के व्यस्त समय के दौरान एक के बाद एक कई धमाके हुए थे। इन सिलसिलेवार धमाकों में लगभग 190 लोगों की मौत हुई थी और 800 से अधिक घायल हुए थे। यह भारत के इतिहास में सबसे भीषण आतंकी हमलों में से एक था।

2015 में एक विशेष अदालत ने आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत 12 लोगों को दोषी ठहराया था। इनमें से पांच को मौत की सज़ा और बाकी को उम्रकैद दी गई थी। हालांकि, जुलाई 2025 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इन दोषियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके खिलाफ पेश सबूत कमजोर, अविश्वसनीय थे और गवाहियों में विरोधाभास तथा जांच में प्रक्रियात्मक खामियां थीं।

सुप्रीम कोर्ट की दखलअंदाजी

राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट के बरी करने के आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि भले ही हाई कोर्ट का आदेश फिलहाल निलंबित है, लेकिन जिन आरोपियों को रिहा किया जा चुका है, उन्हें इस समय वापस जेल जाने की जरूरत नहीं है।

सरकार का पक्ष

महाराष्ट्र सरकार ने हाई कोर्ट के निर्णय को अत्यंत चिंताजनक बताया। सरकार का कहना है कि निचली अदालत में हुई सुनवाई पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए हुई थी और अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए महत्वपूर्ण साक्ष्यों—जैसे कबूलनामे और जब्त सामग्रियां—को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मूल दोषसिद्धि को बहाल करने की अपील की, ताकि पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय मिल सके।

आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट अब हाई कोर्ट के फैसले और अभियोजन पक्ष द्वारा पेश साक्ष्यों की गहन समीक्षा करेगा। अंतिम निर्णय यह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है कि भविष्य में आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच और अभियोजन किस प्रकार किया जाएगा—विशेषकर कबूलनामों, फोरेंसिक सबूतों और कानूनी प्रक्रियाओं के पालन के संदर्भ में।

यह मामला अपनी ऐतिहासिक गंभीरता और न्याय प्रणाली पर इसके प्रभावों के कारण पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। पीड़ितों के परिवार, कानून विशेषज्ञ और मानवाधिकार कार्यकर्ता इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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