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Wednesday,12-February-2025
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महाराष्ट्र सरकार का बड़ा फैसला: गाय को राज्यमाता घोषित किया, ऐसा करने वाला देश का दूसरा राज्य बना

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गाय को राज्यमाता घोषित किया: महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए गौमाता को राज्य माता घोषित किया है। इस ऐतिहासिक कदम को लेकर सरकार ने आदेश भी जारी कर दिया है। आदेश में कहा गया है कि गाय को भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। गाय का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि चिकित्सा और कृषि में भी गाय के कई फायदे देखने को मिलते हैं। इसके साथ ही महाराष्ट्र गाय को राजमाता घोषित करने वाला दूसरा राज्य बन गया है।

उत्तराखंड गाय को राजमाता घोषित करने वाला पहला राज्य

भारत में गाय को “राजमाता” या “राष्ट्रमाता” घोषित करने वाला पहला राज्य उत्तराखंड है। उत्तराखंड विधानसभा ने 19 सितंबर 2018 को इस संबंध में एक संकल्प पारित किया, जिसमें गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा देने की मांग की गई थी। यह संकल्प सर्वसम्मति से पारित हुआ और इसे केंद्र सरकार को भेजा गया। अब महाराष्ट्र की शिंदे सरकार की कैबिनेट ने राजमाता का दर्जा दिया गया है। 

आयुर्वेद और पंचगव्य चिकित्सा पद्धति में गाय का महत्व  

महाराष्ट्र सरकार ने आदेश में गाय के महत्व को और भी विस्तार से समझाया है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और पंचगव्य उपचार में गाय का योगदान अनमोल माना जाता है। पंचगव्य पद्धति, जिसमें गाय का दूध, मूत्र, गोबर, घी और दही शामिल होते हैं, को विभिन्न बीमारियों के इलाज में उपयोगी बताया गया है। इसके अलावा, जैविक खेती में गोमूत्र का भी व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।

गाय का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

हिंदू धर्म में गाय को विशेष स्थान प्राप्त है। इसे ‘गौमाता’ का दर्जा दिया गया है और धार्मिक अनुष्ठानों में इसकी पूजा की जाती है। गोमूत्र और गोबर को पवित्र माना जाता है, और विभिन्न धार्मिक कार्यों में इनका उपयोग होता है। गाय का दूध न केवल शारीरिक रूप से लाभकारी होता है, बल्कि इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

भारतीय संस्कृति में गाय का योगदान  

भारत में गाय को हमेशा से ही सम्मान दिया गया है। वैदिक काल से लेकर आज तक, गाय को धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के रूप में देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि गाय में देवी-देवताओं का वास होता है, और इसलिए इसे माता का दर्जा दिया गया है। महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय से राज्य की संस्कृति और धर्म को और मजबूती मिलेगी।

जैविक खेती में गोमूत्र की भूमिका  

गाय का केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व ही नहीं है, बल्कि इसे जैविक खेती में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। गोमूत्र का उपयोग कृषि में किया जाता है, जो फसलों के लिए लाभकारी होता है। महाराष्ट्र सरकार ने अपने फैसले में इस बात को ध्यान में रखते हुए गौमाता को राज्य माता का दर्जा दिया है।

 सरकार के फैसले की सराहना  

महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय राज्य के कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों द्वारा सराहा गया है। गौमाता को राज्य माता का दर्जा देने का यह फैसला न केवल सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि समाज में गौमाता के प्रति सम्मान बढ़ाने का भी प्रयास है। 

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क्या आप भी घंटों बैठकर करते हैं चेयर पर काम, तो ऐसे रखें अपने हेल्थ का ध्यान

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नई दिल्ली, 10 फरवरी। अक्सर सीटिंग जॉब करने वाले लोगों को कई तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन कई बार वो इन समस्याओं को लेकर अवेयर नहीं रहते हैं, जिसका नतीजा यह होता है कि उन्हें आगे चलकर इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

शुरुआती दौर में जब सीटिंग जॉब करने वाले क‍िसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्या होती है, तो वो इस मामले में लापरवाही बरतते हैं। अगर वो उसी समय गंभीरता दिखाएं, तो उनकी स्थिति गंभीर नहीं होगी।

उधर, सीटिंग जॉब करने वाले लोगों को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है? और वो कैसे इससे बच सकते हैं? इस बारे में मीडिया ने सीके बिरला अस्पताल के डॉ. अंकुश गर्ग से खास बातचीत की।

डॉ. गर्ग बताते हैं कि आज की तारीख में बड़ी संख्या में लोग डेस्क जॉब करते हैं। वो घंटों चेयर पर बैठते हैं। ऐसा करने से उनके बैक में दर्द शुरू हो जाता है। ऐसा आमतौर पर उनके दोषपूर्ण तरीके से बैठने से होता है, तो ऐसी स्थिति में सबसे पहले अगर आप डेस्क जॉब करते हैं, तो आपको अपने बैठने की अवस्था सुधारनी होगी।

डॉ. के मुताब‍िक अगर आप डेस्क जॉब करते हैं, तो यह कोशिश कीजिए कि आप झुक कर ना बैठें। अब ऐसे में सवाल यह है कि हम कैसे बैठें? आखिर बैठने की सही अवस्था क्या है? सबसे पहले आपको कोशिश करनी चाहिए कि आप सहज अवस्था में बैठें। आपके बैक को प्राॅपर सपोर्ट मिले। अगर उसे प्रॉपर सपोर्ट नहीं मिलेगा, तो दर्द हो सकता है और यह दर्द आगे चलकर बढ़ भी सकता है।

डॉ. गर्ग बताते हैं कि डेस्क जॉब करने वाले हर व्यक्ति को 30 से 45 मिनट में ब्रेक जरूर लेना चाहिए। आप यह नियम बना लीजिए। ब्रेक लेना बिल्कुल भी मत भूलिए। इससे आपको ना महज शारीरिक, बल्कि मानसिक शांति भी मिलेगी। कई बार लोग मुझसे कहते हैं कि हमारे दफ्तर में कई बार स्थिति ऐसी बन जाती है, हमें एक दो घंटे लगातार चेयर पर बैठना पड़ता है, तो मैं उन्हें एक आसान सा तरीका बताता हूं कि आप पानी का ग्लास अपने चेयर के पास मत रखिए। जाहिर सी बात है कि आपको प्यास लगेगी और आप पानी लेने के लिए उठेंगे, तो इसी बहाने आपकी बॉडी को रिलैक्स मिलेगा। वहीं, जब कभी कॉफी पीने का समय आए, तो आप खुद कॉफी लेने जाइए। इस तरह से आप बिना कुछ किए हर 40 मिनट में ब्रेक पर चले जाएंगे।

डॉ. ने बताया क‍ि डेस्क जॉब करने वाले को रोजाना एक्सरसाइज करनी चाहिए। एक्सरसाइज करने से आपके शरीर में दर्द नहीं रहेगा। इसके अलावा, आप लैपटॉप को अपने बिस्तर पर रखकर काम ना करें, क्योंकि कई बार ऐसा करने से भी बैक में दर्द होना शुरू हो जाता है। इसके साथ ही अपने शरीर की मुद्रा सही रखें।

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रविवार, 9 फरवरी को मेगा ब्लॉक: हार्बर, सेंट्रल और वेस्टर्न लाइनों पर सेवाएं निलंबित रहेंगी; विवरण देखें

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मुंबई : मध्य रेलवे का मुंबई डिवीजन रविवार, 9 फरवरी को अपने उपनगरीय खंडों पर मेगा ब्लॉक संचालित करेगा, साथ ही पश्चिमी और हार्बर मार्गों पर भी, विभिन्न इंजीनियरिंग और रखरखाव कार्यों को पूरा करने के लिए। मध्य में, मुख्य रूप से अप और डाउन फास्ट सेवाएं प्रभावित होंगी, जो नीचे कुछ स्टेशनों के बीच धीमी ट्रैक का उपयोग करेंगी। पश्चिमी में, कुछ ट्रेनें रद्द रहेंगी।


डाउन फास्ट लाइन (सीएसएमटी से मुलुंड):

सुबह 10:58 बजे से दोपहर 3:10 बजे तक, सीएसएमटी मुंबई से रवाना होने वाली डाउन फास्ट लाइन की ट्रेनों को माटुंगा में डाउन स्लो पर डायवर्ट किया जाएगा और माटुंगा और मुलुंड स्टेशन के बीच उनके संबंधित ठहराव के अनुसार रुकेंगी। ट्रेन के 15 मिनट देरी से चलने की उम्मीद है। मुलुंड स्टेशन पर, ठाणे से आगे जाने वाली फास्ट ट्रेनों को डाउन फास्ट लाइन पर डायवर्ट किया जाएगा।

फास्ट ट्रेन सेवाएं:

ठाणे से सुबह 11:25 बजे से दोपहर 3:27 बजे तक छूटने वाली अप फास्ट लाइन की सेवाएं मुलुंड में धीमी लाइन पर डायवर्ट की गईं, जो 15 मिनट देरी से पहुंचीं।

हार्बर लाइन सेवाएं:

डाउन हार्बर लाइन की सीएसएमटी से वाशी/बेलापुर/पनवेल (सुबह 11:16 – दोपहर 4:47 बजे) और सीएसएमटी से बांद्रा/गोरेगांव (सुबह 10:48 – दोपहर 4:43 बजे) सेवाएं रद्द हैं।

पनवेल/बेलापुर/वाशी से सीएसएमटी (सुबह 9:53 बजे – दोपहर 3:20 बजे) और गोरेगांव/बांद्रा से सीएसएमटी (सुबह 10:45 बजे – शाम 5:13 बजे) तक यूपी हार्बर लाइन की सेवाएं भी रद्द हैं।

ब्लॉक के दौरान पनवेल-कुर्ला-पनवेल के बीच विशेष ट्रेनें चलेंगी। यात्री सुबह 10:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक मेन/वेस्टर्न लाइन से यात्रा कर सकते हैं।

ट्रांसहार्बर लाइन

कोई ब्लॉक नहीं

उरण रेखा

कोई ब्लॉक नहीं

पश्चिमी लाइन सेवाएं:

8 फरवरी को रात 10:00 बजे से 9 फरवरी को सुबह 11:00 बजे तक ग्रांट रोड और मुंबई सेंट्रल के बीच सभी अप/डाउन फास्ट लाइन ट्रेनें धीमी लाइनों पर चलेंगी।

कुछ ट्रेनें बांद्रा/दादर पर रद्द या समाप्त कर दी जाएंगी।

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अधिक स्क्रीन टाइम बच्चों में भाषा विकास कौशल को कम कर सकता है : अध्ययन

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नई दिल्ली, 8 फरवरी। बच्‍चों में भाषा सीखने की क्षमता पर स्क्रीन (टीवी, स्मार्टफोन आदि) का अधिक उपयोग नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार, छोटे बच्‍चों को किताबों से जोड़ना और वयस्कों के साथ मिलकर स्क्रीन देखना उनके भाषा कौशल को बेहतर बना सकता है।

20 लैटिन अमेरिकी देशों के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में 12 से 48 महीनों के 1,878 छोटे बच्‍चों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इसमें माता-पिता से पूछे गए सवालों के आधार पर बच्चों के स्क्रीन उपयोग, किताबों से जुड़ाव, भाषा विकास और अन्य पहलुओं को जांचा गया। साथ ही, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति, माता-पिता की शिक्षा और नौकरी की भी समीक्षा की गई।

जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित शोध में पाया गया कि छोटे बच्चों के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला माध्यम टीवी था, जिसे औसतन एक घंटे से अधिक समय तक देखा जाता था। यह बच्चों में भाषा विकास की गति को धीमा कर सकता है।

इसके अलावा, अध्ययन में यह भी पता चला कि मनोरंजन संबंधी कार्यक्रम बच्चों द्वारा सबसे अधिक देखे जाते हैं, जबकि संगीत और शैक्षिक कार्यक्रम दूसरे और तीसरे स्थान पर थे। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, उनमें किताबों और शैक्षिक संसाधनों का उपयोग कम पाया गया।

अधिक स्क्रीन देखने वाले बच्चों में शब्दावली (शब्दों का भंडार) सीमित होती है और वे भाषा सीखने के कुछ महत्वपूर्ण पड़ाव देर से पार करते हैं। दूसरी ओर, वे बच्चे जो किताबों से अधिक जुड़े होते हैं या वयस्कों के साथ स्क्रीन देखते हैं, उनका भाषा कौशल बेहतर पाया गया।

हालांकि, स्क्रीन उपयोग और बच्चों के शारीरिक विकास के बीच कोई ठोस संबंध नहीं पाया गया।

यह अध्ययन पहले किए गए शोधों की पुष्टि करता है कि अधिक स्क्रीन देखने से छोटे बच्चों की भाषा सीखने की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। लेकिन यदि वयस्क बच्चों के साथ स्क्रीन साझा करें और सही तरह की सामग्री उपलब्ध कराएं, तो इन प्रभावों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

भविष्य में, शोधकर्ता इस विषय पर और गहराई से अध्ययन करने की सलाह देते हैं ताकि स्क्रीन के प्रभावों को अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सके।

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