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Friday,12-December-2025
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महंगाई, जासूसी विवाद पर विपक्ष के हंगामे की वजह से लोकसभा दो बार स्थगित

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महंगाई, कथित पेगासस जासूसी और कृषि कानूनों के मुद्दों पर सरकार के खिलाफ विपक्ष के विरोध के बीच बुधवार को लोकसभा की कार्यवाही दो बार स्थगित कर दी गई। पहला स्थगन सुबह 11.14 बजे से 11.30 बजे तक और दूसरा 11.35 बजे से दोपहर 12 बजे तक हुआ।

पहले स्थगन के बाद सुबह 11.30 बजे सदन शुरू होने के तुरंग बाद उपाध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल ने प्रश्नकाल जारी रखने की कोशिश की, लेकिन विपक्षी सदस्य नारेबाजी करते रहे और कुर्सी पर तख्तियां दिखाते रहे।

वेल में विरोध कर रहे सदस्यों से अपनी सीटों पर जाने की अपील करते हुए उपाध्यक्ष ने कहा कि गलती करने वाले सदस्यों के व्यवहार से सदन की मर्यादा को ठेस पहुंची है, जिससे उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।

अग्रवाल ने विपक्षी सदस्यों से कहा, “जब अध्यक्ष कुछ अपील कर रहा हो, तो आपको तख्तियां नहीं दिखानी चाहिए और आप सभी को अपनी सीटों पर वापस जाना चाहिए। वेल में तख्तियां दिखाना सही नहीं है और मयार्दा के खिलाफ है और इस पर कार्रवाई की जा सकती है।”

लेकिन वे वेल में ही रहे और अपना विरोध जारी रखा जिसके बाद उपाध्यक्ष ने सदन को दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।

पूर्वाह्न् 11.00 बजे जब सदन की बैठक शुरू हुई, तो अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन के आठ पूर्व सदस्यों के निधन पर शोक व्यक्त किया और शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की और सदन ने उन पूर्व सदस्यों के संबंध में मौन रखा।

श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद, अध्यक्ष ने प्रश्नकाल शुरू किया, और जल्द ही विपक्षी सदस्य बैनरों को प्रदर्शित करते हुए वेल में आ गए और नारेबाजी करने लगे।

बिरला ने उन्हें समझाने की कोशिश की और अपनी-अपनी सीटों पर जाने की अपील की और वह प्रश्नकाल के साथ आगे बढ़े लेकिन उनकी सलाह का सदस्यों पर कोई असर नहीं पड़ा।

सदन की कार्यवाही पूर्वाह्न् 11.30 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।

प्रश्नकाल की संक्षिप्त अवधि के दौरान, भाजपा विधायक धर्मबीर सिंह ने हरियाणा में रुकी हुई रेलवे परियोजनाओं पर एक सवाल उठाया, जबकि बीजद सदस्य अनुभव मोहंती ने रेल मंत्रालय से अपने निर्वाचन क्षेत्र केंद्रपाड़ा के लिए एक रेलवे लिंक पर पुनर्विचार करने की मांग की।

राजनीति

इंडिगो पर डीजीसीए का बड़ा एक्शन, निरीक्षकों को निकाला और सीईओ को दोबारा समन किया

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नई दिल्ली, 12 दिसंबर: देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो पर नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने बड़ा एक्शन लिया है और उन चार फ्लाइट निरीक्षकों को निकाल दिया है, जो कि इंडिगो की सुरक्षा और ऑपरेशनल मानकों के लिए जिम्मेदार थे।

डीजीसीए ने यह कदम एयरलाइन की ओर से इस महीने की शुरुआत में हजारों फ्लाइट्स रद्द करने के कारण उठाया है।

इसके अलावा विमानन नियामक ने इंडिगो के सीईओ पीटर एल्बर्स को दोबारा समन भेजा है और उन्हें शुक्रवार को अधिकारियों के समक्ष फिर से पेश होने के लिए कहा गया है।

सूत्रों के अनुसार, निरीक्षण और निगरानी ड्यूटी में लापरवाही पाए जाने के बाद डीजीसीए ने निरीक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की है।

नियामक ने अब इंडिगो के गुरुग्राम कार्यालय में दो विशेष निगरानी दल तैनात किए हैं ताकि एयरलाइन के संचालन पर कड़ी नजर रखी जा सके।

यह दल प्रतिदिन शाम 6 बजे तक डीजीसीए को रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। एक दल इंडिगो के बेड़े की क्षमता, पायलटों की उपलब्धता, चालक दल के उपयोग के घंटे, प्रशिक्षण कार्यक्रम, ड्यूटी विभाजन पैटर्न, अनियोजित अवकाश, स्टैंडबाय क्रू और चालक दल की कमी के कारण प्रभावित उड़ानों की संख्या की निगरानी कर रहा है।

यह एयरलाइन की औसत उड़ान अवधि और नेटवर्क की भी समीक्षा कर रहा है ताकि परिचालन में होने वाली बाधा के पूरे पैमाने को समझा जा सके।

दूसरी टीम यात्रियों पर संकट के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसमें एयरलाइन और ट्रैवल एजेंट दोनों से रिफंड की स्थिति, नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं (सीएआर) के तहत दी जाने वाली क्षतिपूर्ति, समय पर उड़ान भरना, सामान की वापसी और समग्र रद्दीकरण की स्थिति की जांच करना शामिल है।

इंडिगो को अपने परिचालन में 10 प्रतिशत की कटौती करने का आदेश दिया गया है ताकि उड़ानों का शेड्यूल स्थिर हो सके और आगे की व्यवधानों को नियंत्रित किया जा सके।

एयरलाइन आमतौर पर प्रतिदिन लगभग 2,200 उड़ानें संचालित करती है, जिसका अर्थ है कि अब एयरलाइन प्रतिदिन 200 से अधिक उड़ानें कम भरेगी।

नागर विमानन मंत्री राम मोहन नायडू ने कहा कि इंडिगो द्वारा क्रू रोस्टर, उड़ान समय और संचार के कुप्रबंधन के कारण यात्रियों को “गंभीर असुविधा” का सामना करना पड़ा है।

इंडिगो के सीईओ एल्बर्स के साथ बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एयरलाइन को किराए की सीमा और प्रभावित यात्रियों की सहायता के उपायों सहित मंत्रालय के सभी निर्देशों का पालन करना होगा।

डीजीसी की जांच जारी है और इंडिगो के सीईओ को आगे स्पष्टीकरण के लिए तलब किया गया है। एयरलाइन ने 3 से 5 दिसंबर के बीच अत्यधिक देरी का सामना करने वाले यात्रियों के लिए मुआवजे की घोषणा की है।

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राजनीति

न्यायपालिका को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है भाजपा: शिवसेना (यूबीटी)

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मुंबई, 12 दिसंबर: शिवसेना (यूबीटी) ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से भाजपा पर एक बार फिर तीखा हमला बोला है। संपादकीय में शिवसेना (यूबीटी) ने आरोप लगाया गया है कि भाजपा न्यायपालिका को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है और संवैधानिक मुद्दों पर अदालतों का रुख बदलने में लगी है।

संपादकीय के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट दलबदल, भ्रष्टाचार और विधायकों की खरीद-फरोख्त जैसे गंभीर संवैधानिक मामलों पर फैसले देने में पीछे हटता दिखता है, जबकि धार्मिक तनाव बढ़ाने वाली याचिकाओं पर अदालतें असामान्य रूप से सक्रिय दिखती हैं। शिवसेना (यूबीटी) का आरोप है कि भाजपा अदालतों और चुनाव आयोग पर दबाव बनाकर हिंदुत्व के मुद्दों को अपनी सुविधा अनुसार मोड़ रही है।

संपादकीय के मुताबिक जस्टिस स्वामीनाथन मामले ने हिंदुत्व की राजनीति को नए तरीके से भड़काया है। संपादकीय में जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन पर सीधा आरोप लगाया गया है कि वे भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हैं और उनकी अदालत में उपस्थिति लोकतंत्र तथा संविधान के लिए खतरा बनती जा रही है। सर्वोच्च, उच्च और जिला अदालतों में ऐसे कई न्यायाधीश नियुक्त किए जा रहे हैं जो एक विशेष राजनीतिक विचारधारा के करीब माने जाते हैं।

संपादकीय में तो यहां तक लिखा गया है कि विपक्ष पहले ही मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला चुका है, जिस पर सौ से अधिक सांसद हस्ताक्षर कर चुके हैं। वहीं भाजपा नेताओं (अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस) ने इस कदम को गलत बताते हुए शिवसेना सांसदों की आलोचना की है।

सामना संपादकीय में सवाल उठाया गया है कि अगर कोई न्यायाधीश हिंदुत्ववादी विचारधारा से जुड़ा है तो क्या यह उसे महाभियोग से बचा लेने का आधार बन सकता है? अदालत में जाति, धर्म और संप्रदाय को तूल देना न्यायिक परंपराओं के विरुद्ध है और मौजूदा सरकार में न्यायपालिका के कई परंपरागत प्रतीक कमजोर हुए हैं।

शिवसेना (यूबीटी) ने यह भी दावा किया है कि संघ परिवार भारत में धार्मिक तनाव बढ़ाकर राजनीतिक लाभ उठाने की रणनीति पर काम कर रहा है। संपादकीय में कहा गया है कि चुनावों से पहले योजनाबद्ध तरीके से विवाद खड़े किए जाते हैं, फिर उन मामलों को अदालतों में ले जाकर मनचाहे फैसले प्राप्त किए जाते हैं। स्वामीनाथन का हालिया फैसला भी इसी रणनीति का हिस्सा बताया गया है, जिससे ‘मंदिर बनाम दरगाह’ जैसा नया विवाद खड़ा हुआ है।

सामना संपादकीय के मुताबिक, किसी भी न्यायाधीश से अपेक्षा होती है कि वह संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप निर्णय दे, लेकिन स्वामीनाथन पर आरोप है कि वे संघ की विचारधारा से प्रभावित हैं और उसी आधार पर फैसला सुनाते हैं। कई पूर्व न्यायाधीश भी उनकी कार्यशैली पर आपत्ति जता चुके हैं।

संपादकीय में यह भी कहा गया कि हिंदुओं की पूजा-पद्धति पर किसी का कोई हस्तक्षेप नहीं है, इसलिए अन्य धर्मों की भावनाओं को चोट पहुंचाने की कोई आवश्यकता नहीं। मंदिर के पास दरगाह या मस्जिद होना कोई नई बात नहीं है और ऐसी स्थितियों में अदालत से संयमित निर्णय की अपेक्षा की जाती है। यदि अदालतें किसी धार्मिक संगठन की इच्छा के अनुरूप फैसले सुनाने लगेंगी, तो भविष्य में बड़े विवाद पैदा हो सकते हैं।

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राजनीति

शिवराज पाटिल से जुड़े दो विवाद, जब उन्हें देशभर में आलोचनाओं का करना पड़ा था सामना

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नई दिल्ली, 12 दिसंबर: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का शुक्रवार सुबह निधन हो गया है। वे अपने शांत स्वभाव और संयमित राजनीतिक शैली के लिए जाने जाते थे। हालांकि अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्हें अपने बयानों और लाइफ स्टाइल की वजह से कड़ी आलोचना का सामना भी करना पड़ा।

इसमें से एक विवाद शिवराज पाटिल के श्रीमद्भवत गीता को लेकर दिए बयान से जुड़ा है, जिसके बाद राजनीतिक गलियारों से लेकर टीवी डिबेट तक घमासान मच गया था।

दरअसल दिल्ली में एक बुक लॉन्च इवेंट के दौरान शिवराज पाटिल ने कहा था कि जिहाद की अवधारणा केवल कुरान में ही नहीं, बल्कि गीता और ईसाइयों से जुड़े ग्रंथों में भी देखने को मिलती है। उन्होंने कहा था कि इस्लाम धर्म में जिहाद पर बहुत चर्चा होती है। तमाम कोशिशों के बाद भी अगर कोई साफ विचारों को नहीं समझता है तो ताकत का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह अवधारणा सिर्फ कुरान शरीफ में ही नहीं, बल्कि महाभारत में भी है। महाभारत में गीता के जिस हिस्से में श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म के लिए युद्ध करने की प्रेरणा दी, वह भी जिहाद के समान है।” शिवराज पाटिल ने कहा था कि ईसा मसीह के तलवार उठाने का जिक्र करते हुए कहा कि आप इसे जिहाद नहीं कह सकते और आप इसे गलत नहीं कह सकते, यही बात हमें समझनी चाहिए।

उनके इस बयान पर विभिन्न धर्मों के नेताओं, सामाजिक संगठनों और विपक्षी पार्टियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। कई लोगों ने इसे धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ बताया। हालांकि पाटिल अपनी बात पर कायम रहे और इसे केवल धर्मग्रंथों की ‘दार्शनिक व्याख्या’ बताया था।

शिवराज पाटिल से जुड़ा दूसरा विवाद वर्ष 2008 में सामने आया था, जब दिल्ली में सीरियल बम ब्लास्ट वाली शाम को करीब चार घंटे में उन्हें तीन अलग-अलग

परिधानों में देखा गया। एक और ब्लास्ट के पीड़ित अस्पताल में तड़प रहे हैं, वहीं दूसरी ओर तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल को उनके कपड़े बदलने के लिए जमकर घेरा गया। दरअसल ब्लास्ट वाली शाम को उन्हें सबसे पहले सीडब्ल्यूसी की बैठक, फिर ब्लास्ट के बाद मीडिया से मुखातिब होते समय और इसके बाद घटनास्थल के जायजे के दौरान अलग-अलग कपड़ों में देखा गया।

इसके बाद एक टीवी इंटरव्यू में शिवराज पाटिल ने आलोचना का जवाब देते हुए कहा था, “मैं साफ-सुथरे तरीके से रहने वाला व्यक्ति हूं। अगर मैं ऐसे समय शांति से अपना काम करता हूं तो भी लोग मुझमें कमी निकालते हैं। आप नीतियों की आलोचना कीजिए, कपड़ों की नहीं।” उन्होंने कहा कि इस तरह की आलोचना राजनीतिक मर्यादा के खिलाफ है और इसका मूल्यांकन जनता करेगी।

भाजपा समेत विरोधी दलों ने पाटिल के कृत्य को असंवेदनशीलता बताया था। हालांकि बिहार के पूर्व मंत्री शकील अहमद ने कहा था कि कपड़ों पर विवाद निरर्थक है। हर इंसान को अच्छा दिखने का अधिकार है। किसी मंत्री का मूल्यांकन उसकी नीतियों और उसके काम से होना चाहिए, न कि उसकी वेशभूषा से। उन्होंने इसे बेतुका विवाद बताया था।

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