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Wednesday,18-June-2025
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एलएसी : चीन पीछे नहीं हट रहा, भारत लंबी दौड़ के लिए तैयार

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China-&-India-Flag

भारत और चीन के बीच के हुए विवाद के बाद पूर्वी लद्दाख में अवरोध की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसका कारण चीनी सैनिकों का वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से पीछे नहीं हटना है। चीन का यह रवैया दोनों देशों के बीच हुई वार्ता के दौरान बनी आम सहमति के अनुरूप है। सैनिकों को पर्याप्त राशन और अन्य सामानों की आपूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर लॉजिस्टिकल अभ्यास शुरू कर दिया गया है, क्योंकि टकराव के क्षेत्र में अभी भी अस्थिरता का माहौल बना हुआ है।

बीते 14 जुलाई को कोर कमांडर स्तर की बैठक के दौरान एक रोडमैप तैयार किया गया था, जिसके अनुसार चीन को अपने सैनिकों को पूरी तरह से पीछे हटाना था, हालांकि वह उस रोडमैप का पालन नहीं कर रहा है। चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवान पीछे नहीं हटे हैं।

भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठानों ने कहा कि चीनी सैनिक थोड़ा पीछे हटे थे और फिर वापस आ गए। इसलिए भारतीय और चीनी सैन्य प्रतिनिधियों के बीच बैठकों के दौरान तय हुई आम सहमति के निरंतर सत्यापन की आवश्यकता है।

यह देखा गया कि भारतीय और चीनी सैनिकों ने पेंगोंग झील में 2 किलोमीटर तक अपने सैनिकों को पीछे हटाया है और फिंगर 4 रिक्त है। हालांकि, चीनी अभी भी रिज लाइन पर डेरा डाले हुए हैं। इससे यह स्पष्ट है कि चीनी फिंगर 4 पर डेरा डाले हुए हैं, जो परंपरागत रूप से भारतीय नियंत्रण में है।

चीनी सैनिक फिंगर 8 से फिंगर 4 तक भारतीय क्षेत्र में आठ किलोमीटर तक अंदर आ गए थे। वहीं भारत का कहना है कि एलएसी फिंगर 8 से चलता है। गौरतलब है माउंटेन स्पर्स को फिंगर के रूप में संदर्भित किया जाता है।

पैट्रोलिंग पॉइंट 14 कहे जाने वाले गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच की दूरी तीन किलोमीटर है, जबकि पैट्रोलिंग पॉइंट 15 पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच की दूरी करीब 8 किलोमीटर है।

हालांकि पैट्रोलिंग प्वाइंट 17 यानी हॉट स्प्रिंग्स में दोनों तरफ की 40-50 सैन्य टुकड़ियां सिर्फ 600-800 मीटर की दूरी पर हैं। चीनी सेना आम सहमति के अनुसार पीछे हट गई थी, लेकिन फिर से लौट आई।

चीनी रवैये को देखते हुए भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को भारतीय वायु सेना की परिचालन क्षमताओं और फॉरवार्ड लॉकेशन पर तैनाती की समीक्षा करते हुए बल को चीन के साथ सीमा पर किसी भी तरह की घटना को संभालने के लिए तैयार रहने का आग्रह किया।

सिंह ने यह आग्रह बुधवार को नई दिल्ली में तीन दिवसीय एयर फॉर्स कमांडर्स कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में अपने संबोधन के दौरान कहा था।

मंत्री ने पिछले सप्ताह अपने लद्दाख दौरे के दौरान कहा था कि भारत शांति चाहता है लेकिन चीन के साथ वार्ता के अंतिम परिणाम की कोई गारंटी नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय समाचार

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दक्षिण सूडान के खिलाफ हथियार प्रतिबंध को रिन्यू किया

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संयुक्त राष्ट्र, 31 मई। सुरक्षा परिषद ने दक्षिण सूडान के खिलाफ हथियार प्रतिबंध को एक साल के लिए रिन्यू करने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया, जो 31 मई, 2026 तक लागू रहेगा। इसके साथ ही व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ यात्रा प्रतिबंध और संपत्ति जब्त करने के लक्षित प्रतिबंध भी लागू होंगे।

मिडिया ने बताया कि ये प्रस्ताव 2781, जिसे नौ वोट के पक्ष में और छह वोट के बहिष्कार के साथ अपनाया गया। इस प्रस्ताव में विशेषज्ञों के पैनल का कार्यकाल भी 1 जुलाई, 2026 तक बढ़ा दिया गया है। यह पैनल दक्षिण सूडान प्रतिबंध समिति के काम में मदद करता है।

सुरक्षा परिषद के अफ्रीकी सदस्य – अल्जीरिया, सिएरा लियोन, सोमालिया ने चीन, पाकिस्तान और रूस के साथ वोट देने से परहेज किया।

इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि सुरक्षा परिषद हथियार प्रतिबंधों की समीक्षा करने के लिए तैयार है। अगर दक्षिण सूडान 2021 के प्रस्ताव 2577 में तय किए गए मुख्य लक्ष्यों पर प्रगति करता है, तो इन प्रतिबंधों को बदला, निलंबित किया या धीरे-धीरे हटाया जा सकता है। यह दक्षिण सूडान के अधिकारियों को इस संबंध में और प्रगति हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

सुरक्षा परिषद ने यह भी तय किया है कि इन प्रतिबंधों की लगातार समीक्षा की जाएगी। सुरक्षा परिषद ने स्थिति के जवाब में उपायों को समायोजित करने की तत्परता व्यक्त की है, जिसमें उपायों में संशोधन, निलंबन, हटाने या सुदृढ़ करना शामिल है।

प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र महासचिव से अनुरोध किया गया है कि वे दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन और विशेषज्ञों के पैनल के साथ निकट परामर्श में 15 अप्रैल, 2026 तक प्रमुख मानदंडों पर हासिल की गई प्रगति का आकलन करें।

इसके साथ ही दक्षिण सूडान के अधिकारियों से भी अनुरोध किया गया है कि वे उसी तारीख तक इस संबंध में हासिल की गई प्रगति पर सैंक्शन कमेटी को रिपोर्ट करें।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

यूएस सुप्रीम कोर्ट ने किया ट्रंप सरकार का रास्ता साफ, 5 लाख लोगों पर मंडराया निर्वासन का खतरा

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न्यूयॉर्क, 31 मई। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप सरकार का रास्ता साफ कर दिया है। कोर्ट ने फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के उस आदेश को हटा दिया है, जिसके तहत क्यूबा, ​​हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला के चार देशों के पांच लाख से अधिक प्रवासियों के लिए मानवीय पैरोल सुरक्षा को बरकरार रखा गया था।

मिडिया रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने ट्रंप प्रशासन को एक अन्य मामले में लगभग 350,000 वेनेजुएला के प्रवासियों के लिए अस्थायी कानूनी स्थिति को रद्द करने की भी अनुमति दी है।

स्थानीय मीडिया ने शुक्रवार को बताया कि इस कदम ने ट्रंप प्रशासन के लिए हजारों प्रवासियों के लिए अस्थायी कानूनी सुरक्षा को फिलहाल खत्म करने का रास्ता साफ कर दिया है और निर्वासन के दायरे में आने वाले लोगों की कुल संख्या को लगभग दस लाख तक पहुंचा दिया है।

अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर आने वाले प्रवासियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, बाइडेन प्रशासन ने 2022 के अंत और 2023 की शुरुआत में क्यूबा, ​​हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला के लोगों के लिए पैरोल कार्यक्रम बनाया, जिसके तहत उन्हें कुछ प्रोसेस से गुजरने के बाद दो साल तक अमेरिका में काम करने की इजाजत दी गई। इस प्रोग्राम ने लगभग 5,32,000 लोगों को निर्वासन से बचाया।

लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के तुरंत बाद, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने होमलैंड सिक्योरिटी सेक्रेटरी क्रिस्टी नोएम को सभी पैरोल प्रोगाम को टर्मिनेट करने का निर्देश देते हुए एक कार्यकारी आदेश जारी किया। कार्यकारी आदेश पर कार्रवाई करते हुए नोएम ने मार्च में पैरोल प्रोग्राम को समाप्त करने की घोषणा की, जिसके तहत पैरोल के किसी भी अनुदान की वैधता 24 अप्रैल तक समाप्त हो जाएगी।

मैसाचुसेट्स में एक फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज ने नोएम द्वारा प्रवासियों की अस्थायी कानूनी स्थिति को पूरी तरह से रद्द करने के फैसले को रोकने पर सहमति जताई। उस समय कई पैरोलियों और एक गैर-लाभकारी संगठन सहित 23 व्यक्तियों के एक ग्रुप ने नोएम द्वारा प्रोग्राम को समाप्त करने को चुनौती दी थी।

ट्रंप प्रशासन ने पहले पहले सर्किट के लिए यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स में अपील की, जिसने अपील लंबित रहने तक जिला न्यायालय के आदेश को रोकने से इनकार कर दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की।

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अमेरिकी युद्धविराम प्रस्ताव फिलिस्तीनी मांगों पर खरा नहीं : हमास

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गाजा, 30 मई। हमास के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि गाजा पट्टी में युद्ध रोकने के लिए अमेरिका का जो प्रस्ताव आया है, उस पर विचार किया जा रहा है। हालांकि, यह प्रस्ताव हमास और फिलिस्तीनी लोगों की मुख्य मांगों को पूरा नहीं करता।

मिडिया के मुताबिक, हमास के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य बासम नईम ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि उन्हें अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ द्वारा पिछले हफ्ते दिए गए युद्धविराम प्रस्ताव पर इजरायल की प्रतिक्रिया मिल गई है।

नईम के मुताबिक, इजरायल ने फिलिस्तीन की मुख्य मांगों को नहीं माना। इनमें लड़ाई को पूरी तरह खत्म करना और गाजा पर लगी पुरानी नाकेबंदी हटाना शामिल है।

उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव युद्धविराम के दौरान भी इजरायल के कब्जे और लोगों की तकलीफों को जारी रहने देगा।

नईम ने कहा, “इसके बावजूद हमास का नेतृत्व फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ जारी हिंसा और मानवीय संकट को ध्यान में रखते हुए ज़िम्मेदारी के साथ इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है।”

हमास ने पहले कहा था कि उसे मध्यस्थों के जरिए नया युद्धविराम प्रस्ताव मिला है। वह इसका मूल्यांकन इस तरह कर रहा है कि यह फिलिस्तीनी लोगों के हितों की रक्षा करे और गाजा के लोगों के लिए स्थायी शांति और राहत लाने में मदद करे।

हमास ने पहले कहा था कि वह विटकॉफ के साथ एक समझौते के “सामान्य ढांचे” पर सहमत हो गया है। इस समझौते का मकसद स्थायी युद्धविराम करना, इजरायल की गाजा से पूरी तरह वापसी सुनिश्चित करना, राहत सामग्री की आपूर्ति शुरू करना और हमास से एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी समिति को सत्ता सौंपना है।

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