मुंबई प्रेस एक्सक्लूसिव न्यूज
क्या नया वक़्फ़ बिल मुस्लिम समुदाय के लिए फायदेमंद है? रिपोर्ट: क़मर अंसारी
हाल ही में सरकार द्वारा पेश किया गया नया वक़्फ़ बिल एक बार फिर मुस्लिम समुदाय में चर्चा का विषय बन गया है। इस बिल को देशभर में वक़्फ़ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन, पारदर्शिता और उनके दुरुपयोग को रोकने के उद्देश्य से लाया गया है। हालांकि, इस बिल को लेकर यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह वास्तव में मुस्लिम समुदाय के हित में है या नहीं।
नए बिल में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु शामिल किए गए हैं, जैसे वक़्फ़ बोर्ड के अधिकारों में वृद्धि, वक़्फ़ संपत्तियों की डिजिटल रजिस्ट्री, और अवैध कब्जों के खिलाफ सख्त कार्रवाई। सरकार का कहना है कि इस बिल के ज़रिए वक़्फ़ संपत्तियों की रक्षा संभव होगी और इनसे होने वाली आमदनी का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याणकारी योजनाओं में किया जा सकेगा।
हालाँकि, कुछ धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने इस बिल पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि वक़्फ़ संपत्तियाँ धार्मिक मामलों से जुड़ी होती हैं, और सरकार की सीधी दखलअंदाज़ी धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है। कुछ लोगों को आशंका है कि यह बिल वक़्फ़ संपत्तियों की आज़ादी और उनके मूल उद्देश्य को नुकसान पहुँचा सकता है।
दूसरी ओर, क़ानूनी विशेषज्ञों और कुछ सुधारवादी नेताओं का मानना है कि अगर इस बिल को ईमानदारी से लागू किया जाए, तो यह मुस्लिम समुदाय के लिए एक सकारात्मक कदम साबित हो सकता है। अब तक जिन वक़्फ़ संपत्तियों का दुरुपयोग या अवैध कब्जा होता आया है, उनके बेहतर प्रबंधन से समुदाय को वास्तविक लाभ मिल सकता है।
पुराने और नए वक़्फ़ बिल में क्या फर्क है?
पुराना वक़्फ़ कानून (1995):
1995 के “वक़्फ़ अधिनियम” के अंतर्गत राज्य वक़्फ़ बोर्डों की स्थापना की गई थी, जिनको वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी दी गई थी। इस कानून के अंतर्गत:
- राज्य वक़्फ़ बोर्डों का गठन
- वक़्फ़ संपत्तियों की देखरेख की ज़िम्मेदारी
- वक़्फ़ की पंजीकरण को अनिवार्य किया गया
- मुतवल्ली (प्रबंधक) की नियुक्ति बोर्ड की मंज़ूरी से होती थी
हालांकि, समय के साथ इस कानून में कई कमज़ोरियाँ सामने आईं। अवैध कब्जे, भ्रष्टाचार और निगरानी की कमी जैसी समस्याएँ बढ़ती चली गईं।
नया वक़्फ़ बिल (2025):
नए वक़्फ़ बिल में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जिनका उद्देश्य व्यवस्था को पारदर्शी, प्रभावी और तकनीकी रूप से सशक्त बनाना है। इसमें शामिल हैं:
- डिजिटल रजिस्ट्री: सभी वक़्फ़ संपत्तियों की ऑनलाइन पंजीकरण और निगरानी
- केंद्रीय डाटा बेस: एक राष्ट्रीय वक़्फ़ पोर्टल का निर्माण जिसमें सभी जानकारी उपलब्ध होगी
- अवैध कब्जे के खिलाफ कार्रवाई: तुरंत कानूनी कार्यवाही का प्रावधान
- प्रशासनिक पारदर्शिता: वक़्फ़ बोर्ड के कार्यों में पारदर्शिता और सख्त ऑडिट प्रणाली
- शिकायत प्रणाली: जनता के लिए एक सक्रिय शिकायत सेल की स्थापना
मुख्य अंतर का सारांश:
| पहलु | वक़्फ़ अधिनियम 1995 (पुराना कानून) | वक़्फ़ बिल 2025 (नया बिल) |
|---|---|---|
| पंजीकरण | मैनुअल रजिस्ट्री | डिजिटल रजिस्ट्री और राष्ट्रीय पोर्टल |
| निगरानी | राज्य स्तर पर | केंद्रीय निगरानी और डाटा बेस |
| पारदर्शिता | सीमित | बढ़ी हुई पारदर्शिता और सख्त ऑडिट व्यवस्था |
| अवैध कब्जा हटाने की प्रक्रिया | लंबी कानूनी प्रक्रिया | त्वरित कानूनी कार्यवाही |
| जन भागीदारी | कमज़ोर शिकायत व्यवस्था | सक्रिय और सुलभ शिकायत प्रणाली |
निष्कर्ष:
नए वक़्फ़ बिल में आधुनिक तकनीक का उपयोग, पारदर्शिता में वृद्धि और प्रशासनिक सुधार जैसे कई सकारात्मक पहलू हैं। फिर भी, कुछ विशेषज्ञों और धार्मिक संस्थाओं को यह चिंता है कि सरकार की बढ़ती हस्तक्षेप कहीं धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित न करे। इस बिल का वास्तविक प्रभाव इसके क्रियान्वयन और मुस्लिम समुदाय से विचार-विमर्श पर निर्भर करेगा।
फिलहाल यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि यह बिल मुस्लिम समुदाय के लिए पूरी तरह लाभकारी साबित होगा या नहीं। इसकी सफलता इस बात पर टिकी है कि इसे कैसे लागू किया जाता है और समुदाय की राय को किस हद तक शामिल किया जाता है।
महाराष्ट्र
एमपी पुलिस थाने से महाराष्ट्र ड्रग रैकेट का पर्दाफाश, 4 गिरफ्तार

मुंबई : मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मध्य प्रदेश से महाराष्ट्र में ड्रग्स की तस्करी करने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ करने का दावा किया है और इसमें शामिल चार आरोपियों को एमपी से गिरफ्तार किया है। इन चारों पर महाराष्ट्र में ड्रग रैकेट चलाने का आरोप है। 3 नवंबर को, नौपारा के इमरान उर्फ बाबू खान (38), वकास अब्दुल रब खान (30), तकदीन रफीक खान (30), कमलेश अजय चव्हाण (23) को मध्य प्रदेश से ड्रग्स की आपूर्ति करने और उन्हें महाराष्ट्र में बेचने की सूचना मिली थी। इसके बाद पुलिस ने चारों को गिरफ्तार कर लिया और उनके कब्जे से एक किलो से अधिक एमडी जब्त की, जिसकी कीमत 2 करोड़ रुपये से अधिक बताई जाती है। यह जानकारी यहां डीसीपी क्राइम ब्रांच अमर सिंह जाधव ने दी। उन्होंने कहा कि एक बड़े ड्रग रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है और और गिरफ्तारियां होने की संभावना है।
महाराष्ट्र
गौतम अडानी और शरद पवार फिर आए साथ नजर, सीएम फडणवीस भी रहे मौजूद

लोनावाला : उद्योगपति गौतम अडानी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता शरद पवार एक बार फिर एक साथ नजर आए। दोनों हाल ही में महाराष्ट्र में आयोजित एक पारिवारिक शादी समारोह में शामिल हुए। यह समारोह आईपीएस अधिकारी प्रवीण रामराव पवार की बेटी और प्रशांत निलावर के बेटे की शादी के अवसर पर आयोजित किया गया था।
इस मौके पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सहित कई वरिष्ठ राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी और विशिष्ट अतिथि मौजूद थे।
अडानी और पवार की मुलाकात ने राजनीतिक हलकों में उत्सुकता बढ़ा दी, क्योंकि दोनों नेताओं को एक-दूसरे से गर्मजोशी से बातचीत करते और अभिवादन करते देखा गया। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब महाराष्ट्र की राजनीति में लगातार नए समीकरण बनते नजर आ रहे हैं।
शरद पवार अपने सौम्य स्वभाव और सभी दलों के नेताओं व उद्योगपतियों से अच्छे संबंध रखने के लिए जाने जाते हैं। वहीं गौतम अडानी का इस समारोह में शामिल होना उनके राजनीतिक और सामाजिक जुड़ाव को दर्शाता है।
यह विवाह समारोह भव्य तरीके से संपन्न हुआ, जिसमें कई नामी हस्तियों की मौजूदगी ने इसे और खास बना दिया।
महाराष्ट्र
मझगांव कोर्ट में एसीबी की बड़ी कार्रवाई: कोर्ट ऑफिसर ₹15 लाख की रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा गया, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एजाजुद्दीन काज़ी फरार

मुंबई: ( कमर अंसारी ) मुंबई एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम देते हुए मझगांव स्थित 14वीं मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट के एक कोर्ट ऑफिसर को ₹15 लाख की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया है, जबकि मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एजाजुद्दीन सल्लाउद्दीन काज़ी मौके से फरार हो गए हैं और उनकी तलाश जारी है।
पुलिस के अनुसार, गिरफ्तार आरोपी की पहचान शशिकांत रामचंद्र नाइक (उम्र 40 वर्ष) के रूप में हुई है, जो मझगांव कोर्ट नंबर 14 में कोर्ट ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे। वहीं, फरार आरोपी एजाजुद्दीन सल्लाउद्दीन काज़ी (उम्र 55 वर्ष)14वीं मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट, मझगांव, मुंबई में मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत हैं।
जांच में खुलासा हुआ है कि दोनों आरोपियों ने एक अधिवक्ता (वकील) से 2015 के एक पुराने न्यायालयीन मामले में पक्ष में निर्णय दिलाने के लिए ₹25 लाख की रिश्वत मांगी थी। बाद में यह रकम घटाकर ₹15 लाख पर तय की गई।
शिकायतकर्ता ने इस मामले की जानकारी एसीबी मुंबई को दी और लिखित शिकायत दर्ज कराई।
शिकायत की जांच और पुष्टि के बाद, एसीबी ने 10 नवम्बर 2024 को मझगांव कोर्ट नंबर 14 में जाल बिछाया। कार्रवाई के दौरान, कोर्ट ऑफिसर शशिकांत नाइक को ₹15 लाख की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया गया। यह राशि वह मजिस्ट्रेट एजाजुद्दीन काज़ी की ओर से स्वीकार कर रहे थे।
मौके से ₹15 लाख की नकदी बरामद की गई, जबकि मजिस्ट्रेट एजाजुद्दीन काज़ी फरार हो गए। उनकी गिरफ्तारी के लिए एसीबी ने सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया है।
दोनों आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7(ए) और 12 (संशोधित 2018) के तहत मामला दर्ज किया गया है, जो सरकारी अधिकारी द्वारा रिश्वत मांगने या स्वीकार करने के अपराध को कवर करती हैं।
यह कार्रवाई निमिषा सोनी (अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, एसीबी मुंबई) के मार्गदर्शन में की गई। इस ट्रैप ऑपरेशन का नेतृत्व सहायक पुलिस आयुक्त शैलेश सावंत और पुलिस निरीक्षक सुनील राजे ने किया।
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