राष्ट्रीय
आईडीबीआई बैंक की नाकामी हमारी ऋण वसूली प्रक्रियाओं में खामियों को उजागर करती है

वायर एजेंसी आईएएनएस ने 20 दिसंबर को एक सनसनीखेज रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया था कि नीरव मोदी जैसे हीरा कारोबारी ने आईडीबीआई बैंक को 6,710 करोड़ रुपये की चपत लगा दी थी। यह बैंक द्वारा 19 दिसंबर को प्रकाशित एक विज्ञापन पर आधारित था, जिसमें सांघवी एक्सपोर्ट्स इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के आठ प्रमोटर-निदेशकों की तस्वीर थी, जिसमें उन्हें, कंपनी और 12 अन्य संबंधित व्यक्तियों और संस्थाओं को विलफुल डिफॉल्टर्स घोषित किया गया था।
बैंक ने वैधानिक फाइलिंग में स्पष्ट करने की कोशिश करते हुए कहा कि डिफॉल्ट वास्तव में, मूल बकाया का सिर्फ 16.72 करोड़ रुपये था और समाचार रिपोर्ट में ‘तथ्यात्मक अशुद्धि’ थी। यह पता चलता है कि बैंक के दावे में ही ‘तथ्यात्मक अशुद्धियां’ या अर्धसत्य था। इसलिए, 21 दिसंबर को एक ‘शुद्धिपत्र’ विज्ञापन में दूसरा सुधार किया गया, जहां बैंक ने कहा कि बकाया राशि 67.13 करोड़ रुपये थी। आईएएनएस, अपनी फॉलोअप कहानी में, यह बताता है कि बकाया राशि के रूप में 161,088 डॉलर की राशि का कोई और उल्लेख नहीं है, जो पहले विज्ञापन में था।
विलफुल डिफॉल्टर वह होता है जो जानबूझकर ऋण वापस नहीं करता है और यह संदेह होता है कि उसने धन का लेन-देन किया है। यह दंडनीय है, लेकिन अब तक किसी भी बड़े व्यवसायी को दंडित नहीं किया गया है। प्रतिक्रिया से संकेत मिलता है कि सांघवी एक्सपोर्ट्स निस्संदेह एक डिफॉल्टर है और इसके वार्षिक खाते समूह संस्थाओं को बैंक ऋण के डायवर्जन का संकेत देते हैं। सूरत में स्थित प्रमोटरों में से एक ने समाचार एजेंसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी। सांघवी एक्सपोर्ट्स या किसी अन्य डिफॉल्टर के लिए कोई संक्षिप्त जानकारी नहीं रखते हुए, इस मामले की जांच करना महत्वपूर्ण है, यह समझने के लिए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) बड़े विलफुल डिफॉल्टरों की तुलना में छोटे उधारकर्ताओं के खिलाफ विभिन्न वसूली रणनीति का पालन कैसे करते हैं।
आईडीबीआई बैंक के साथ समस्या तब शुरू हुई जब इसे गलत तरीके से एक विकास वित्त संस्थान के सार्वजनिक क्षेत्र के परसेंटेज और इसके साथ आने वाले सभी सामान के बावजूद एक ‘निजी बैंक’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था। एक्सिस बैंक (तत्कालीन यूटीआई बैंक) का भी ऐसा ही हाल था, लेकिन वह भाग्यशाली था कि उसे डॉक्टर पीजे नायक के नेतृत्व में शानदार शुरूआत मिली। वहीं आईडीबीआई बैंक एक विवाद से दूसरे विवाद में फंस गया। टनिर्ंग पॉइंट 2013 में तब आया, जब यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक का इसके साथ विलय कर दिया गया था और बैंक उस ऑपरेशन से कभी उबर नहीं पाया। तब से, इसे बार-बार पुनर्पूजीकरण के रूप में राजकोष द्वारा खैरात के साथ सहारा दिया गया है। अंत में, जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को पूंजी में पंपिंग शुरू करने के लिए कहा गया और अब बैंक का 51 प्रतिशत हिस्सा है।
22 दिसंबर, 2019 की एक पीटीआई रिपोर्ट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हवाले से कहा गया है कि 2015 से आईडीबीआई बैंक में 21,157 करोड़ रुपये का निवेश किया गया था। उन्होंने आगे कहा, “जब हम सत्ता में वापस आए, तो एलआईसी ने 21,624 करोड़ रुपये का निवेश किया।” साथ में, इसने 42,781 करोड़ रुपये जोड़े, इसे प्रोम्पट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) से बाहर लाने के लिए था, जो कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा विफल बैंकों को बचाए रखने का एक आदेश है।
इस बैंक के लिए वित्त मंत्रालय की भविष्य की योजनाएं हमारे लिए अधिक प्रासंगिक हैं क्योंकि यह पूरी गड़बड़ी अंतत: एलआईसी द्वारा एक मेगा इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) के माध्यम से खुदरा निवेशकों (या तो सीधे या म्यूचुअल फंड के माध्यम से) की गोद में उतरेगी।
सरकार की विनिवेश योजना के हिस्से के रूप में, एलआईसी को एक मेगा आईपीओ बनाना था, जिससे आईडीबीआई बैंक और अन्य के बड़े खैरात की भरपाई करने में मदद मिलती। सीतारमण ने यह भी घोषणा की कि वह आईडीबीआई बैंक में सरकार की 46.5 प्रतिशत हिस्सेदारी ‘निजी, खुदरा और संस्थागत निवेशकों को स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से’ बेचने का प्रस्ताव रखती है। इससे सरकार को उस पैसे की वसूली करने की अनुमति मिल जाती, जो उसने बैंक को बेलआउट करने के लिए लगाया था। यह फरवरी 2020 में प्रस्तावित किया गया था। लाइन के दो साल बाद, कोई भी योजना अमल में नहीं आई है, जबकि पूंजी बाजार अशांत हो गया है और आईपीओ मूल्यांकन का मूर्खतापूर्ण मौसम भी समाप्त हो सकता है।
कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर होने के बाद, सरकार भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के लिए बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक 2021 नामक एक विधेयक के माध्यम से छेड़छाड़ करने के बारे में सतर्क हो गई है। यदि आईडीबीआई बैंक सरकार को एलआईसी से बाहर निकलने देता है तो 51 शेष प्रतिशत मालिक और जवाबदेही और पारदर्शिता में कोई बदलाव नहीं हुआ, तो खुदरा निवेशक (या तो सीधे या संस्थागत निवेश के माध्यम से) जोखिम वहन करेंगे और बैंक की सभी खामियों की कीमत चुकाएंगे। आदर्श रूप से, आईडीबीआई बैंक के अपमानजनक ‘टाइपो’ और इसके लिए जाने वाली प्रक्रियाओं पर सवाल उठाने की जरूरत है। दुर्भाग्य से, अब तक केवल कुछ विपक्षी राजनेताओं से ही सवाल आए हैं।
संघवी एक्सपोर्ट्स के संदर्भ में, यह अंतर करना महत्वपूर्ण है कि बैंक ने इस फर्म के साथ कैसा व्यवहार किया है और यह बड़े डिफॉल्टरों के साथ कैसा व्यवहार करता है। सांघवी परिवार की तस्वीरों और विवरण वाले विज्ञापन का उद्देश्य उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित करना था। क्या आईडीबीआई बैंक ने ऐसा किया होता, यदि बकाया ऋण वास्तव में 6,710 करोड़ रुपये था? क्या आपने वास्तव में बड़े बकाएदारों के बारे में कोई खुलासे और सार्वजनिक नोटिस देखे हैं? इसके विपरीत, बोर्ड भर के बैंक 100 करोड़ रुपये से अधिक की चूक पर किसी भी जानकारी को इस हद तक देने से इनकार करते हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट के एक स्पष्ट आदेश के बावजूद सूचना के अधिकार (आरटीआई) के प्रश्नों को भी रोक देते हैं।
सी शिवशंकरन और आईडीबीआई बैंक की इस कुख्यात प्रमोटर के 5,000 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट को निपटाने की उत्सुकता का मामला अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग स्ट्रोक की उसकी नीति का सबसे अच्छा उदाहरण है।
एकतरफा वसूली प्रक्रिया और बड़े डिफॉल्टरों के लिए अनुकूल व्यवहार इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज को कभी भी आरबीआई के दिशानिर्देशों के पूर्ण उल्लंघन में विलफुल डिफॉल्टर के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था। तेल और उपभोक्ता उत्पाद समूह पर 64,838 करोड़ रुपये का बकाया कर्ज था और बैंक इसे 95.85 प्रतिशत की कटौती पर वेदांत समूह को देना चाहते हैं।
एक शीर्ष बैंकर ने मुझे बताया कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बैंक छोटे कर्जदारों को निचोड़ते और अपमानित करते हुए बड़े डिफॉल्टरों के सामने झुक जाते हैं। एक और विचार यह है कि वे लूट में पूरी तरह से शामिल हैं। आयकर (आई-टी) विभाग की 15 दिसंबर की एक प्रेस विज्ञप्ति से संकेत मिलता है कि संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियां (एआरसी) भी इसका हिस्सा हैं।
चीजें तभी बदलनी शुरू होंगी जब बैंकों को हर कॉरपोरेट डिफॉल्ट के साथ अधिक गंभीरता और इक्विटी के साथ व्यवहार करने के लिए कहा जाएगा। आईडीबीआई बैंक प्रकरण से पता चलता है कि हम इससे बहुत दूर हैं।
राष्ट्रीय
7 सितंबर को लगेगा. साल का आखिरी चंद्र ग्रहण, इन राशि वालों को रहना होगा सतर्क

नई दिल्ली, 6 सितंबर। इस साल का दूसरा और आखिरी पूर्ण चंद्र ग्रहण 7 सितंबर को है। जब धरती सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और अपनी छाया चांद पर डालती है, तब चंद्र ग्रहण होता है। यह खगोलीय घटना न सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए खास है, बल्कि धार्मिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इस बार का चंद्र ग्रहण रात 9 बजकर 58 मिनट पर शुरू होगा और 8 सितंबर की रात 1 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा। चंद्रमा पूरी तरह धरती की छाया में डूब जाएगा, जिसे आम भाषा में ‘ब्लड मून’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चंद्रमा उस समय हल्के लाल रंग का दिखता है। यह पूरा ग्रहण लगभग 3 घंटे 28 मिनट तक चलेगा और भारत के सभी हिस्सों में आसानी से दिखाई देगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्र ग्रहण के समय सूतक काल लगता है, जिसे अशुभ काल कहा जाता है। इस बार सूतक काल दोपहर 12 बजकर 57 मिनट से शुरू होगा, जो ग्रहण मोक्ष यानी समाप्ति के समय रात 1:26 बजे तक जारी रहेगी। इस दौरान मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। पूजा-पाठ, भोजन बनाना, या खाना खाना मना होता है। गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे कि नुकीली चीजों से दूर रहना और बाहर न निकलना। इस समय केवल भगवान का नाम जपना, मंत्र जाप करना और ध्यान लगाना ही शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दौरान मंत्रों की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
ज्योतिष के मुताबिक, यह चंद्र ग्रहण भी बेहद खास है क्योंकि यह शनि की राशि कुंभ और गुरु के नक्षत्र पूर्वाभाद्रपद में लग रहा है। साथ ही राहु चंद्रमा के साथ युति बना रहा है, जिससे ग्रहण योग बनता है। यह योग कुछ राशियों के लिए थोड़ी मुश्किलें लेकर आ सकता है। वृषभ, तुला और कुंभ राशि वाले लोगों को खास सतर्क रहने की जरूरत है। वृषभ राशि वालों को स्वास्थ्य और व्यापार में परेशानी हो सकती है, तुला राशि के लोगों को मानसिक तनाव और धन के मामलों में नुकसान झेलना पड़ सकता है, जबकि कुंभ राशि में तो ग्रहण लग ही रहा है, इसलिए उनके लिए यह समय काफी संवेदनशील माना जा रहा है।
इन समस्याओं के समाधान के तौर पर वृषभ राशि के लोग सफेद वस्त्र पहनें और दूध का दान करें। तुला राशि के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करें और वस्त्र दान करें, और कुंभ राशि के जातक महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। ग्रहण समाप्त होने के बाद हर व्यक्ति को स्नान करके साफ वस्त्र पहनने चाहिए, भगवान को भोग लगाना चाहिए, और जरूरतमंदों को दान देना चाहिए। इससे मन को शांति और जीवन में शुभ ऊर्जा मिलती है।
अंतरराष्ट्रीय
डोनाल्ड ट्रंप का 50 प्रतिशत वाला टैरिफ बम, भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’

PM MODI
नई दिल्ली, 8 अगस्त। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रह-रहकर भारत को टैरिफ का दिखाया जा रहा डर अब उनके लिए ही परेशानी का कारण बनता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से अमेरिका भारत के खिलाफ टैरिफ बम फोड़ने की धमकी दे रहा है, उसका माकूल जवाब भारत सरकार की तरफ से दिया जा रहा है।
दरअसल, भारत एक ऐसा वैश्विक बाजार बन चुका है, जिसकी जरूरत दुनिया के देशों को अपना व्यापार चलाने के लिए है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। भारत इस मामले में अमेरिका से आगे है और यही वजह है कि भारत के बाजार पर पूरी दुनिया की नजर है।
पिछले कुछ दिनों में भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा दी जा रही टैरिफ धमकी का जवाब जिस तरह से दिया जा रहा है, वह भारत की वैश्विक ताकत को दिखाता है। एक तरफ जहां भारत के खिलाफ टैरिफ की धमकी अमेरिका के राष्ट्रपति दे रहे हैं तो उनका जवाब भारत की तरफ से देने के लिए विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता सामने आ रहे हैं। मतलब दुनिया के सबसे ताकतवर देश होने का दंभ भरने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति की धमकी का जवाब भी भारत के प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री स्तर के नेता के द्वारा नहीं दिया जा रहा है।
अब एक बार भारत की तरफ से किए गए निश्चय पर ध्यान दें तो आपको पता चल जाएगा कि आखिर भारत अमेरिका की टैरिफ वाली धमकी को इतनी गंभीरता से क्यों नहीं ले रहा है। भारत ने ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी पर जो जवाब दिया है, उसका संदेश साफ है। भारत की तरफ से दिए गए जवाब को देखेंगे तो इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका के टैरिफ की भारत को कोई चिंता नहीं है और इसकी सबसे बड़ी वजह भारत का खुद आत्मनिर्भर बनना है। चाहे वह रक्षा का मामला हो या सुरक्षा का। दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि अमेरिका से डील की किसी डेडलाइन की चिंता भारत में दिख नहीं रही है और सरकार की तरफ से साफ संदेश जा रहा है कि भारत प्रेशर में आने वाला नहीं है, ना ही प्रेशर में आकर कोई डील करेगा। इसके साथ ही भारत ट्रंप की मंशा भी अच्छी तरह से समझ रहा है कि अमेरिका भारत के पूरे बाजार में बेरोकटोक एक्सेस चाहता है जो किसी हाल में भारत देने को तैयार नहीं है।
इसके साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार देश के किसानों और छोटे व्यवसायियों को किसी भी हाल में नुकसान होने देने के मूड में नहीं दिख रही है। वहीं, अमेरिका की तरफ से इस टैरिफ धमकी के जरिए इस पर भी दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है कि भारत अपने सबसे पुराने मित्र रूस से अपनी दोस्ती समाप्त कर ले तो भारत का यह संदेश भी स्पष्ट है कि ऐसा कभी होने वाला नहीं है।
भारत की अर्थव्यवस्था को ‘डेड’ बताने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी पता है कि भारत का बाजार जिस दिन अमेरिका के लिए बंद हुआ, उस दिन उनकी कई कंपनियों पर ताले लग जाएंगे। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। अब एक बार जानिए कि परचेजिंग पावर पैरिटी है क्या?
दरअसल, क्रय-शक्ति समता (परचेजिंग पावर पैरिटी- पीपीपी) अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है। जिसको आसान भाषा में समझिए कि यह एक-दूसरे देश में जीवन शैली पर किए गए व्यय के अनुपात को दर्शाता है। इसके अनुसार विभिन्न देशों में एकसमान वस्तुओं की कीमत समान रहती है। मतलब परचेजिंग पावर पैरिटी विभिन्न देशों में कीमतों का माप है, जो देशों की मुद्राओं की पूर्ण क्रय शक्ति की तुलना करने के लिए विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों का उपयोग करती है।
यानी प्रत्येक देश में सामान और सेवाएं खरीदने के लिए एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित करना होता है। अब इसे ऐसे समझें कि भारत के मध्यम वर्ग के लिए एक साल का बजट अगर 25 लाख का होता है, तो अमेरिका के मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यही बजट यहां की मुद्रा के अनुसार 80 लाख से ज्यादा होता है।
अब भारत ने अमेरिका के उस दोहरे रवैये को भी उजागर कर दिया है, जिसमें अमेरिका भारत को रूस से दोस्ती और व्यापार खत्म करने के लिए धमकी दे रहा है। वहीं, वह खुद रूस से भारी मात्रा में तेल, गैस और फर्टिलाइजर खरीदता है।
हालांकि, भारत का विपक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत के ‘डेड’ इकोनॉमी वाले दावे पर सरकार को घेरने की कोशिश तो कर रहा है। लेकिन, विपक्ष के शशि थरूर, मनीष तिवारी और राजीव शुक्ला के साथ कई अन्य नेता भी हैं, जो ट्रंप के इस दावे को भद्दा मजाक तक बता दे रहे हैं। मतलब भारत में तो ट्रंप के दावे को भी मजाक में ही लिया जा रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता में वापसी के बाद दुनिया के 70 से ज्यादा देशों पर टैरिफ बम फोड़ रखा है और उसे भी यह पता है कि इससे अमेरिका को भी बड़ा नुकसान होने वाला है। इसको सबसे पहले टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने समझा और उन्होंने सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति का विरोध करते हुए उनका साथ छोड़ दिया। ट्रंप के टैरिफ बम वाले दिखावे की वजह से अमेरिका के उद्योगपति भी घबराए हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप के साथ जिन देशों ने ट्रेड डील करने का दावा किया, उन्हें भी इस टैरिफ के मामले में नहीं बख्शा गया है। अब पाकिस्तान को हीं देख लें, जिस देश का सेना प्रमुख डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग कर रहा है, उस पर भी ट्रंप ने 19 प्रतिशत टैरिफ ठोंक रखा है।
वैसे भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की व्यापक सफलता के बाद से भारत में निर्मित हथियारों की दुनिया में तेजी से मांग बढ़ी है। ऐसे में अमेरिका, जो अपने आप को आधुनिक हथियारों का सबसे बड़ा डीलर मानता है, उसकी चिंता ज्यादा बढ़ गई है।
दूसरा, भारत तेल की खरीदारी भी भारी मात्रा में रूस से करता है, जबकि अमेरिका इस पर भी नजरें गड़ाए बैठा है कि भारत रूस को छोड़कर उससे तेल का सौदा करे। लेकिन, इस सब के बीच जैसे ही ट्रंप ने भारत के खिलाफ 50 प्रतिशत टैरिफ की बात कही, उससे पहले पीएम मोदी के चीन दौरे और फिर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे की खबर ने उसकी बेचैनी बढ़ा दी है। अमेरिका जानता है कि रूस, चीन और भारत अगर एक बेस पर आ गए तो अमेरिका के लिए यह बड़ा महंगा पड़ सकता है। डोनाल्ड ट्रंप भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत के खिलाफ जो उनका टैरिफ बम है, वह उनके देश की सेहत को भी नुकसान पहुंचाएगा। अमेरिका में दवाएं, ज्वेलरी, गोल्ड प्लेटेड गहने, स्मार्टफोन, तौलिये, बेडशीट, बच्चों के कपड़े तक महंगे हो जाएंगे।
अभी ये तो भारत की बात थी, लेकिन देखिए कैसे अमेरिका के खिलाफ दुनिया के और देश आगे आए हैं। भारत की वैश्विक ताकत का अंदाजा इससे लगाइए कि अभी कुछ दिन पहले विदेशी मीडिया की खबरों के अनुसार ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने अमेरिकी टैरिफ के मुद्दे को सुलझाने के लिए ट्रंप से बात करने के सवाल पर साफ कह दिया कि उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। इसके बजाय वे भारत के पीएम नरेंद्र मोदी को कॉल कर लेंगे, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कॉल कर लेंगे, लेकिन वे ट्रंप को कॉल नहीं करेंगे।
लूला ने जो कहा उसके अनुसार, ”मैं ट्रंप को कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे बात ही नहीं करना चाहते हैं, मैं शी जिनपिंग को कॉल करूंगा, मैं पीएम मोदी को कॉल करूंगा, मैं पुतिन को इस समय कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे अभी यात्रा करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन मैं कई और राष्ट्रपतियों को कॉल करूंगा।”
लूला के इस बयान से ट्रंप को कैसी मिर्ची लगी होगी, यह तो सभी जानते हैं। उधर, पीएम मोदी का जिस अंदाज में लूला ने नाम लिया, वह भी ट्रंप के लिए चुभने वाला है। लूला ने तो ट्रंप की नीतियों को “ब्लैकमेल” बताते हुए साफ कर दिया कि अमेरिका ब्राजील पर टैरिफ लगाकर देखे, ब्राजील भी इसका जवाब शुल्क लगाकर देगा।
इसके साथ ही भारत और रूस की दोस्ती ही केवल अमेरिकी राष्ट्रपति की घबराहट की वजह नहीं है। दरअसल, भारत-पाकिस्तान और कंबोडिया और थाइलैंड के बीच सीजफायर को लेकर ट्रंप ने जैसे अपनी पीठ बिना किसी बात के थपथपाई वही कोशिश वह रूस-यूक्रेन के बीच भी सीजफायर होने के बाद करना चाह रहे थे। लेकिन, यूक्रेन-रूस की जंग रोकने के लिए ट्रंप ने जितने हथकंडे अपनाए सब फेल हो गए। पुतिन को ट्रंप ने हाई टैरिफ की धमकी भी दी, लेकिन रूस पर फिर भी कोई असर नहीं पड़ा तो ट्रंप बैखला गए। इसके बाद ट्रंप ने रूस के मित्र देशों और उनके साथ व्यापार करने वालों को निशाना बनाना शुरू किया। इसमें सबसे पहले ट्रंप के निशाने पर भारत, चीन और ब्राजील आए, लेकिन तीनों ही देशों पर ट्रंप की धमकी का वैसा ही असर पड़ा, जैसा रूस पर पड़ा था। अब ट्रंप गुस्से से आग बबूला होकर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं।
वहीं, ट्रंप ब्रिक्स देशों के फाउंडर रहे भारत के खिलाफ तो टैरिफ की धमकी दे ही रहे हैं। वह ब्रिक्स में शामिल अन्य देशों के खिलाफ भी 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दे चुके हैं। ब्रिक्स दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें, ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साउथ अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात शामिल है। इन ब्रिक्स देशों की तरफ से एक-दूसरे से अपनी करेंसी में ट्रेड किया जाता है, वहीं इस समूह ने एक प्रपोजल भी दिया था कि इन देशों के बीच ट्रेड के लिए एक इंटरनेशनल करेंसी तैयार की जाए, ऐसे में डॉलर पर बड़े देशों या कहें कि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों की निर्भरता कम हो जाने से अमेरिका का विश्व में प्रभुत्व बरकरार रखने पर भी खतरा मंडराएगा। ट्रंप को यह चिंता भी सता रही है।
जिस तरह से भारत डोनाल्ड ट्रंप की तमाम धमकियों के बाद भी अपने रुख पर अड़ा हुआ है और भारतीय बाजार को अमेरिका के लिए उसकी शर्तों पर खोलने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। इससे भी ट्रंप के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ उभर आई हैं। ऐसे में अब ट्रंप को भारत से जिस भाषा में जवाब मिल रहा है, वह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि अमेरिका की टैरिफ धमकी भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’ जैसी है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ को बढ़ावा देने के लिए नौ देशों में चार प्रोजेक्ट्स शुरू

नई दिल्ली, 2 अगस्त। ‘साउथ-साउथ कोऑपरेशन’ यानी दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए भारत और संयुक्त राष्ट्र ने नौ साझेदार देशों में चार कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स के पहले चरण की शुरुआत की है। यह पहल ‘इंडिया-यूएन ग्लोबल कैपेसिटी बिल्डिंग इनिशिएटिव’ के तहत शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजीएस) को हासिल करने में देशों की मदद करना है।
इस पहल का शुभारंभ शुक्रवार को विदेश मंत्रालय (एमईए) के सचिव (पश्चिम) तन्मय लाल ने किया।
इन नौ सहयोगी देशों में जाम्बिया, लाओस, नेपाल, बारबाडोस, बेलीज, सेंट किट्स एंड नेविस, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो और दक्षिण सूडान शामिल हैं।
इस कार्यक्रम में विभिन्न देशों के मिशनों के प्रमुख, संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प, राजनयिक, भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (आईटीईसी) की कार्यान्वयन संस्थाओं के अधिकारी, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां और अन्य साझेदार संगठनों ने भी हिस्सा लिया।
विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने ‘एक्स’ पर लिखा, “एसडीजी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ को बढ़ावा! ‘इंडिया-यूएन ग्लोबल कैपेसिटी बिल्डिंग इनिशिएटिव’ के तहत नौ साझेदार देशों में चार परियोजनाओं के पहले चरण की सचिव (पश्चिम) तन्मय लाल ने शुरुआत की। मिशनों के प्रमुख, यूएन रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प, राजनयिक, आईटीईसी संस्थाओं के अधिकारी, यूएन एजेंसियां और अन्य साझेदार संगठन कार्यक्रम में शामिल हुए। ये परियोजनाएं खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, व्यावसायिक प्रशिक्षण और जनगणना की तैयारियों पर केंद्रित हैं।”
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए तन्मय लाल ने कहा कि “एसडीजी-17 और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना में, वैश्विक क्षमता निर्माण के लिए यह नई भारत-संयुक्त राष्ट्र पहल और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। इसका उद्देश्य एसडीजी से संबंधित प्रमुख क्षेत्रों में अनुभव साझा करना और वैश्विक दक्षिण साझेदारों को सशक्त बनाना है।”
‘इंडिया-यूएन ग्लोबल कैपेसिटी बिल्डिंग इनिशिएटिव’ के तहत, संयुक्त राष्ट्र अपनी वैश्विक पहुंच का उपयोग करते हुए भारत की श्रेष्ठ कार्यप्रणालियों और संस्थानों को अन्य देशों से जोड़ने में मदद करेगा, ताकि सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजीएस) को हासिल करने की गति तेज की जा सके। इस पहल में स्किल्स ट्रेनिंग, नॉलेज एक्सचेंज, और साझेदार देशों में पायलट प्रोजेक्ट्स जैसी कई गतिविधियां शामिल हैं, जिन्हें नए ‘यूएन इंडिया एसडीजी कंट्री फंड’ और आईटीईसी कार्यक्रम के जरिए लागू किया जाएगा।
यूएन रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प ने कहा, “वसुधैव कुटुम्बकम (दुनिया एक परिवार है) की भावना के तहत, भारत एसडीजी को गति देने के लिए ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ में अपनी लंबे समय से चली आ रही नेतृत्वकारी भूमिका को विस्तार दे रहा है, जिसमें भारतीय संस्थानों और यूएन प्रणाली की नवाचार और साझेदारी क्षमता का भरपूर उपयोग किया जा रहा है।”
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