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Tuesday,06-May-2025
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राजनीति

मॉक ड्रिल को लेकर गृह मंत्रालय में उच्च स्तरीय बैठक शुरू, कई अधिकारी भी मौजूद

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नई दिल्ली, 6 मई। 7 मई को होने वाली मॉक ड्रिल पर गृह मंत्रालय में उच्च स्तरीय बैठक शुरू हो गई है। गृह सचिव 244 सिविल डिफेंस जिलों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक ले रहे हैं।

दरअसल, 7 मई को होने वाली मॉक ड्रिल को लेकर यह एक महत्वपूर्ण बैठक है, जो गृह सचिव गोविंद मोहन की अध्यक्षता में नॉर्थ ब्लॉक में आयोजित की गई है। बैठक में राज्यों के मुख्य सचिवों और वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति से यह स्पष्ट है कि सुरक्षा और आपदा प्रबंधन से जुड़ा यह एक राष्ट्रीय स्तर का समन्वय प्रयास है।

इस बैठक का उद्देश्य 7 मई को होने वाली मॉक ड्रिल की तैयारी और समन्वय को सुनिश्चित करना है। इसी के चलते एनडीआरएफ, सिविल डिफेंस डीजी, डीजी फायर और एयर डिफेंस के अधिकारियों के साथ ही राज्य सरकारों के प्रतिनिधि भी इसमें शामिल हुए हैं।

इसके अलावा, सीमावर्ती और संवेदनशील जिलों पर फोकस करना है। 244 सिविल डिफेंस जिलों और सीमावर्ती क्षेत्र के प्रतिनिधि इस मीटिंग के लिए खास तौर पर शामिल हुए हैं। साथ ही इस ड्रिल में रॉकेट, मिसाइल और हवाई हमले जैसे आपातकालीन परिदृश्यों की तैयारी पर भी फोकस किया जाएगा। इसके अलावा, सायरन और ब्लैकआउट की व्यवस्था को कैसे करना है, इस पर भी बैठक में चर्चा संभव है। यह बैठक देश की सुरक्षा और आपदा से निपटने की क्षमताओं को परखने और सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने सुरक्षा तैयारियों को लेकर बड़ा कदम उठाया है। गृह मंत्रालय ने देश के कई राज्यों को 7 मई को व्यापक नागरिक सुरक्षा (सिविल डिफेंस) मॉक ड्रिल आयोजित करने के निर्देश दिए हैं।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, मॉक ड्रिल के तहत महत्वपूर्ण गतिविधियां की जाएंगी। इस दौरान एयर रेड वार्निंग सायरनों का संचालन होगा। यह बड़े खतरे और दुश्मन की गतिविधियों को लेकर अलर्ट जारी करने से जुड़ा कदम है।

नागरिकों और छात्रों को संभावित हमलों की स्थिति में खुद को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक नागरिक सुरक्षा तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। क्रैश ब्लैकआउट की व्यवस्था की जाएगी। इसके तहत दुश्मन की हवाई निगरानी या हमले से शहरों और ढांचों को छिपाने के लिए आपातकालीन प्रोटोकॉल लागू किया जाएगा।

महाराष्ट्र

मुंबई पुलिस ने मीठी नदी से गाद निकालने के घोटाले की जांच शुरू की; EOW ने कई जगहों पर छापे मारे

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मुंबई: मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने मीठी नदी से गाद निकालने के घोटाले के मामले में मंगलवार को छापेमारी शुरू कर दी। सुबह से ही ईओडब्ल्यू की टीमें मुंबई में 8 से ज़्यादा जगहों पर छापेमारी कर रही हैं, जिनमें ठेकेदारों और बीएमसी अधिकारियों के दफ़्तर और घर शामिल हैं।

इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई है, जिसमें पांच ठेकेदारों, तीन बिचौलियों, दो कंपनी अधिकारियों और तीन बीएमसी अधिकारियों के नाम शामिल हैं। इन पर मलबा हटाने के लिए झूठे दावे पेश करके बीएमसी को गलत तरीके से नुकसान पहुंचाने का आरोप है। यह घोटाला, 1,100 करोड़ रुपये की मीठी नदी की सफाई और सौंदर्यीकरण परियोजना का हिस्सा है, जिसकी गहन जांच की जा रही है।

इससे पहले अप्रैल में, EOW ने 10 ठेकेदारों से पूछताछ की और BMC से उसके आधिकारिक पोर्टल पर अपलोड की गई CCTV फुटेज जमा करने को कहा, जिसमें कथित तौर पर नदी तल से हटाए गए मलबे की मात्रा का दस्तावेजीकरण किया गया था। पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि क्या मलबा वास्तव में हटाया गया था, और क्या हटाने की प्रक्रिया को वजन, वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी के माध्यम से प्रलेखित किया गया था, जैसा कि अनुबंधों में अनिवार्य है।

जांच में गाद निकालने और सौंदर्यीकरण के लिए दिए गए ठेकों की लेखापरीक्षा, नियम व शर्तों की समीक्षा, तथा बीएमसी और मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) द्वारा रखे गए अभिलेखों का सत्यापन भी शामिल है।

यह जांच मुंबई में नागरिक अनुबंध अनियमितताओं की जांच के लिए ईओडब्ल्यू द्वारा गठित छठी एसआईटी है, इससे पहले खिचड़ी घोटाला, कोविड-19 केंद्र घोटाला, लाइफलाइन अस्पताल घोटाला और बॉडी बैग खरीद घोटाले जैसे मामले सामने आए थे।

मार्च में, ईओडब्ल्यू अधिकारियों ने टेंडर प्रक्रिया और मलबे के निपटान की निगरानी में सीधे तौर पर शामिल छह नागरिक अधिकारियों के बयान दर्ज किए थे। भौतिक साक्ष्य एकत्र करने के लिए बांद्रा और कुर्ला सहित फोकस क्षेत्रों के साथ मीठी नदी के 17 किलोमीटर के हिस्से में फील्ड निरीक्षण भी किए गए थे।

मीठी नदी की गाद निकालने की परियोजना जुलाई 2005 की बाढ़ के बाद की है, जब महाराष्ट्र सरकार ने 17.8 किलोमीटर लंबे नदी क्षेत्र को चौड़ा करने और गाद निकालने का फैसला किया था। इसमें से बीएमसी को पवई से कुर्ला तक 11.84 किलोमीटर लंबे हिस्से की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जबकि एमएमआरडीए ने कुर्ला से माहिम कॉजवे तक के शेष छह किलोमीटर हिस्से की जिम्मेदारी संभाली थी।

अगस्त 2024 में, महाराष्ट्र विधान परिषद ने भाजपा एमएलसी प्रसाद लाड और प्रवीण दारकेकर द्वारा परिषद में चिंता जताए जाने के बाद कथित वित्तीय गड़बड़ी की जांच के लिए एक एसआईटी के गठन का निर्देश दिया था।

प्रारंभिक जांच के हिस्से के रूप में, EOW SIT ने पहले तीन ठेकेदारों, ऋषभ जैन, मनीष कासलीवाला और शेरसिंह राठौड़ को तलब किया और उनसे पूछताछ की। बाद में जांच का दायरा बढ़ाकर बीएमसी अधिकारियों को भी शामिल किया गया, क्योंकि टेंडर निष्पादन में अनियमितताओं के सबूत सामने आने लगे थे।

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राजनीति

सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद का समाधान मिलजुलकर निकालें पंजाब-हरियाणा सरकार : सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली, 6 मई। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हरियाणा और पंजाब के बीच एसवाईएल (सतलुज-यमुना लिंक कैनाल) नहर विवाद को लेकर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा कि दोनों राज्य सौहार्दपूर्ण समाधान तक पहुंचने के लिए केंद्र का सहयोग करें।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर समाधान नहीं निकला तो पीठ इस मामले पर 13 अगस्त को सुनवाई करेगी।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से एएसजी ने कहा कि जल शक्ति मंत्री ने बैठक की और जल बंटवारे पर विचार करने के लिए समिति गठित की गई है। दोनों राज्यों के मुख्य सचिव समिति के अध्यक्ष हैं और 1 अप्रैल 2025 को इस मामले में एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल किया गया है।

इस पर हरियाणा सरकार के वकील श्याम दीवान ने कहा कि बातचीत से कोई समाधान नहीं हो पा रहा है। जहां तक नहर के निर्माण की बात है, तो हरियाणा ने अपने इलाके का काम पूरा कर लिया है। एक अहम मुद्दा है कि पानी नहीं छोड़ा जा रहा है।

पंजाब सरकार के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने कहा कि डिक्री अतिरिक्त पानी के लिए थी, लेकिन नहर का निर्माण अभी होना बाकी है। हरियाणा को अतिरिक्त पानी मिलना चाहिए या नहीं, यह मुद्दा ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित है।

इसके अलावा, केंद्र सरकार की तरफ से एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि हमने मध्यस्थता के लिए प्रयास किए थे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में कहा गया है कि दोनों मध्यस्थता के लिए सहमत हो गए हैं।

वहीं, हरियाणा के वकील ने कहा कि पंजाब के मुख्यमंत्री ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि हम सहयोग नहीं करने जा रहे हैं, इसलिए वार्ता विफल हो गई है। साल 2016 से हम प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आगे कुछ नहीं हुआ।

दरअसल, हरियाणा और पंजाब के बीच पानी का विवाद बहुत पुराना है। एसवाईएल विवाद 1966 में हरियाणा के पंजाब से अलग होने के बाद 1981 के जल-बंटवारे समझौते से जुड़ा है।

हरियाणा में खेतों की सिंचाई के लिए पानी की बेहद कमी थी। केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद सतलुज-यमुना लिंक नहर को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच जल संधि हुई थी।

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दुर्घटना

बांद्रा लिंक स्क्वायर मॉल आग: बीएमसी का सतर्कता विभाग अवैध बदलावों और अग्निशमन चूक की जांच कर रहा है

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मुंबई: बीएमसी के सतर्कता विभाग ने पिछले सप्ताह बांद्रा के लिंक स्क्वायर मॉल में लगी भीषण आग की जांच शुरू कर दी है, जिसमें करीब 200 दुकानें जलकर खाक हो गई थीं। जांच के हिस्से के रूप में, अधिकारियों ने विकास योजना (डीपी) विभाग से लेआउट विवरण मांगा है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या कोई अवैध बदलाव किया गया था। जांच का उद्देश्य अग्निशमन उपायों में खामियों की पहचान करना भी है, जिसकी वजह से आग तेजी से फैली। 

मुंबई फायर ब्रिगेड (एमएफबी) के अधिकारी घटना की जांच और निरीक्षण कर रहे हैं, जिसमें इमारत की मंजूरी, अग्नि सुरक्षा मंजूरी और संबंधित दस्तावेजों की गहन समीक्षा शामिल है। एक अलग जांच में, नगर आयुक्त भूषण गगरानी ने संयुक्त आयुक्त डी. गंगाधरन को गहराई से जांच करने के लिए नियुक्त किया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि आग बुझाने के प्रयासों के दौरान कोई परिचालन संबंधी चूक हुई थी या नहीं। गंगाधरन जो सतर्कता विभाग का भी नेतृत्व करते हैं, उनसे एक सप्ताह में जांच रिपोर्ट सौंपने की उम्मीद है। 

नागरिक सूत्रों ने बताया कि जांच में सहायता के लिए डीपी विभाग से आग से प्रभावित संरचना की लेआउट योजनाएँ माँगी गई हैं। जांच में यह पता लगाया जाएगा कि अग्निशमन कार्यों में देरी किस कारण से हुई, आग के तेजी से बढ़ने के पीछे क्या कारण थे और क्या फायर ब्रिगेड की ओर से कोई चूक हुई थी। प्रारंभिक निष्कर्षों से पता चलता है कि आग का तेजी से फैलना एक गैर-कार्यात्मक अग्निशमन प्रणाली और इमारत में उचित वेंटिलेशन सिस्टम की अनुपस्थिति के कारण था। 

29 अप्रैल को ग्राउंड प्लस तीन मंजिला इमारत के बेसमेंट-लेवल क्रोमा शोरूम में भीषण आग लग गई, जो जल्द ही लेवल 4 की आग (गंभीर आग) में बदल गई। एमएफबी को आग बुझाने में करीब 22 घंटे लग गए, जिससे इसकी प्रतिक्रिया की प्रभावशीलता पर गंभीर चिंताएं पैदा हो गईं। एनसीपी नेता जीशान सिद्दीकी ने एमएफबी की देरी और अपर्याप्त कार्रवाई की आलोचना की, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि इसने इमारत को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।

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