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Thursday,14-November-2024
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गाय के गोबर से बन रहे गौरी-गणेश, पर्यावरण संरक्षण का संदेश

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Gauri-Ganesh

भारतीय परंपरा में बेहद पवित्र और अपने औषधीय महत्व के कारण पंचगव्य में से एक गाय के गोबर से गौरी-गणेश की मूर्तियां बनाने की पहल शुरू की गयी है। इस बार के गणेशोत्व और दीपावली में लोग इन मूर्तियों का भी पूजन में उपयोग कर सकते हैं। बायोडिग्रेडबल होने के कारण ये मूर्तियां इको फ्रेंडली होंगी। घर के गमले में विसर्जित करने पर ये कंपोस्ट खाद में तब्दील हो जाएंगी। यह पर्यावरण संरक्षण का एक संदेश भी देंगे।

राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रही स्वयं सहयता समूह की महिलाएं भी इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। गाय के गोबर से मपर्यावरण संरक्षण के साथ इसे रोजगार का जरिया भी बना लिया है। इस बार गणेश महोत्सव के अलावा होंने वाली दीपावाली में गोबर के उत्पाद जैसे गमला, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, अगरबत्ती, हवन सामग्री भी महिलाएं तैयार कर रही हैं।

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के निदेशक सुजीत कुमार ने आईएएनएस को बताया, “हमारे समूहों द्वारा गोबर से मूर्तियां बनाने की एक अनूठी पहल की जा रही है। इससे लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। इसके लिए कई जिलों में प्रशिक्षण भी चल रहा है। इसके अलावा मुजफ्फरनगर जिले में दुर्गा समूह की सात सदस्यों द्वारा सजावटी समान, घड़ी, गमला मूर्तियां भी गाय के गोबर से तैयार हो रहे हैं। इसी जिले की नवजागरण स्वयं सहयता की 6 महिलाएं भी इसी कार्य में लगी हुई हैं। झांसी में तीन, जलौन में चार और प्रतापगढ़ में सात स्वयं समूह सहयता में करीब 20 महिलाएं गोबर से बने उत्पादों को बनाने में लगी हैं।”

उन्होंने बताया, “ये लोग अपने हुनर से पांच सौ से लेकर हजार रूपये तक कमा लेती हैं। इसके साथ ही लखनऊ , सुल्तानपुर, हरदोई, गजियाबाद आदि जिलों में भी गोबर से मूर्तियों और पूजन समाग्री बनाने का प्रशिक्षण चल रहा है।”

सिटीजन डेवलपमेंट फोउंडेशन संस्था के माध्यम से प्रवासी महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दी गई। गोबर से गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बनाने और उनकी धार्मिक मान्यताओं से रूबरू करा कर उन्हें इस काम से जोड़ा गया। करीब 300 प्रवासी महिलाओं के समूह को रोजगार मिल गया है। शालिनी सिंह ने बताया, 20 हजार गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमाओं को बनाने का ऑर्डर भी महिलाओं को मिला है। ऐसे इस दीपावली मां लक्ष्मी इन महिलाओं के घरों में समृद्घ का संचार करेंगी। राजधानी के कृष्णानगर और मलीहाबाद में प्रशिक्षण के साथ बनाने का कार्य चल रहा है।

उन्होंने बताया कि गोबर की बनी इको फ्रेंडली प्रतिमाओं का दाम भी सामान्य प्रतिमाओं के मुकाबले कम होगा जबकि पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य के लिए फोयदेमंद होगा। ऐसे में आने वाले गणेशोत्सव और दीपोत्सव पर ऐसी प्रतिमाओं का पूजन कर आप आस्था के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं।

एक अन्य समूह की महिला ने बताया कि मूर्ति बनाने में बेल का गुदा, उड़द की दाल का चूरा और हल्की मिट्टी के अलावा गोबर के प्रयोग से मूर्तियां बन रही हैं। यह पूर्णतया प्राकृतिक है। इसमें सभी चीजें नेचुरल इस्तेमाल हो रही हैं। इनको बनाते समय इनमें औषधीय महत्व के पौधे मसलन तुलसी और गिलोय आदि के बीज भी डाले जाएंगे। बाद में ये घर की औषधीय वाटिका में शामिल होकर पूरे परिवार की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर होंगे।

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मानसून अवकाश के बाद 150 साल पुरानी नेरल-माथेरान टॉय ट्रेन की सेवाएं फिर से शुरू

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मुंबई: मानसून के मौसम में ब्रेक के बाद, सेंट्रल रेलवे ने नेरल को माथेरान से जोड़ने वाली प्रतिष्ठित टॉय ट्रेन की सेवाएं फिर से शुरू कर दी हैं। प्रसिद्ध हिल स्टेशन पर जाने वाले पर्यटक बहुत खुश हैं, खासकर बच्चे जो 150 साल पुरानी इस मिनी ट्रेन में सवार होने का इंतजार कर रहे हैं।

ट्रेन को नेरल से माथेरान पहुंचने में 2 घंटे 30 मिनट लगते हैं, यह यात्रा हरे-भरे पेड़ों, पहाड़ों और घाटियों को पार करते हुए होती है। प्राकृतिक सुंदरता के बीच धीमी गति से यात्रा करना ही टॉय ट्रेन का मुख्य आकर्षण है।

6 नवंबर से सेवाएं फिर से शुरू की गईं और सेंट्रल रेलवे ने सेवाएं फिर से शुरू होने के बाद नेरल-माथेरान टॉय ट्रेन की पहली यात्रा का वीडियो जारी किया है। ट्रेन 20 किलोमीटर की दूरी तय करती है। अब दोनों दिशाओं में प्रतिदिन दो बार सेवाएं संचालित होंगी। माथेरान-अमन लॉज शटल सेवा, जो मानसून के दौरान चलती है, सप्ताहांत (शनिवार और रविवार) पर अतिरिक्त सेवाओं सहित कई दैनिक सेवाओं के साथ चालू होगी।

नेरल से माथेरान के लिए डाउन ट्रेनें सुबह 8.50 बजे और 10.25 बजे रवाना होंगी, जो क्रमशः सुबह 11.30 बजे और दोपहर 1.05 बजे माथेरान पहुँचेंगी। माथेरान से नेरल के लिए वापसी की ट्रेनें दोपहर 2.45 बजे और शाम 4 बजे निर्धारित हैं, जो शाम 5.30 बजे और शाम 6.40 बजे नेरल पहुँचेंगी। प्रत्येक ट्रेन में छह कोच होंगे, जिनमें तीन द्वितीय श्रेणी के कोच, एक प्रथम श्रेणी का कोच और दो द्वितीय श्रेणी-सह-सामान वैन शामिल हैं।

नेरल-माथेरान ट्रेन के टिकट नेरल और अमन लॉज के टिकट काउंटर से खरीदे जा सकते हैं, नेरल का काउंटर प्रस्थान से 45 मिनट पहले खुलता है। नेरल-माथेरान रूट के लिए टिकट की कीमत प्रथम श्रेणी के लिए 340 रुपये और द्वितीय श्रेणी के लिए 95 रुपये है। अमन लॉज-माथेरान शटल के लिए, टिकट की कीमत द्वितीय श्रेणी के लिए 55 रुपये और प्रथम श्रेणी के लिए 95 रुपये है।

सभी शटल सेवाएं (अमन लॉज – माथेरान – अमन लॉज) तीन द्वितीय श्रेणी, एक प्रथम श्रेणी कोच और दो द्वितीय श्रेणी सह सामान वैन के साथ चलेंगी।

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महाराष्ट्र सरकार का बड़ा फैसला: गाय को राज्यमाता घोषित किया, ऐसा करने वाला देश का दूसरा राज्य बना

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गाय को राज्यमाता घोषित किया: महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए गौमाता को राज्य माता घोषित किया है। इस ऐतिहासिक कदम को लेकर सरकार ने आदेश भी जारी कर दिया है। आदेश में कहा गया है कि गाय को भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। गाय का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि चिकित्सा और कृषि में भी गाय के कई फायदे देखने को मिलते हैं। इसके साथ ही महाराष्ट्र गाय को राजमाता घोषित करने वाला दूसरा राज्य बन गया है।

उत्तराखंड गाय को राजमाता घोषित करने वाला पहला राज्य

भारत में गाय को “राजमाता” या “राष्ट्रमाता” घोषित करने वाला पहला राज्य उत्तराखंड है। उत्तराखंड विधानसभा ने 19 सितंबर 2018 को इस संबंध में एक संकल्प पारित किया, जिसमें गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा देने की मांग की गई थी। यह संकल्प सर्वसम्मति से पारित हुआ और इसे केंद्र सरकार को भेजा गया। अब महाराष्ट्र की शिंदे सरकार की कैबिनेट ने राजमाता का दर्जा दिया गया है। 

आयुर्वेद और पंचगव्य चिकित्सा पद्धति में गाय का महत्व  

महाराष्ट्र सरकार ने आदेश में गाय के महत्व को और भी विस्तार से समझाया है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और पंचगव्य उपचार में गाय का योगदान अनमोल माना जाता है। पंचगव्य पद्धति, जिसमें गाय का दूध, मूत्र, गोबर, घी और दही शामिल होते हैं, को विभिन्न बीमारियों के इलाज में उपयोगी बताया गया है। इसके अलावा, जैविक खेती में गोमूत्र का भी व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।

गाय का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

हिंदू धर्म में गाय को विशेष स्थान प्राप्त है। इसे ‘गौमाता’ का दर्जा दिया गया है और धार्मिक अनुष्ठानों में इसकी पूजा की जाती है। गोमूत्र और गोबर को पवित्र माना जाता है, और विभिन्न धार्मिक कार्यों में इनका उपयोग होता है। गाय का दूध न केवल शारीरिक रूप से लाभकारी होता है, बल्कि इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

भारतीय संस्कृति में गाय का योगदान  

भारत में गाय को हमेशा से ही सम्मान दिया गया है। वैदिक काल से लेकर आज तक, गाय को धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के रूप में देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि गाय में देवी-देवताओं का वास होता है, और इसलिए इसे माता का दर्जा दिया गया है। महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय से राज्य की संस्कृति और धर्म को और मजबूती मिलेगी।

जैविक खेती में गोमूत्र की भूमिका  

गाय का केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व ही नहीं है, बल्कि इसे जैविक खेती में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। गोमूत्र का उपयोग कृषि में किया जाता है, जो फसलों के लिए लाभकारी होता है। महाराष्ट्र सरकार ने अपने फैसले में इस बात को ध्यान में रखते हुए गौमाता को राज्य माता का दर्जा दिया है।

 सरकार के फैसले की सराहना  

महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय राज्य के कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों द्वारा सराहा गया है। गौमाता को राज्य माता का दर्जा देने का यह फैसला न केवल सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि समाज में गौमाता के प्रति सम्मान बढ़ाने का भी प्रयास है। 

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कोलकाता डॉक्टर बलात्कार-हत्या मामला: प्रदर्शनकारी चिकित्सक कल आंशिक रूप से हड़ताल खत्म करेंगे; आवश्यक सेवाओं के लिए ड्यूटी पर लौटेंगे

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कोलकाता: राज्य में बाढ़ जैसी स्थिति के कारण प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने शनिवार से अपना ‘काम बंद’ आंशिक रूप से वापस ले लिया है।

मीडिया से बात करते हुए प्रदर्शनकारी डॉक्टर अनिकेत महात ने कहा कि वे ‘त्वरित न्याय’ की मांग को लेकर शुक्रवार को दोपहर 3 बजे स्वास्थ्य भवन से सीजीओ कॉम्प्लेक्स स्थित सीबीआई मुख्यालय तक मार्च निकालेंगे।

“अभया क्लिनिक’ और ‘अभया रिलीफ कैंप’ के नाम से हम बाढ़ प्रभावित सभी इलाकों में आम लोगों के साथ खड़े होंगे। हमारी एकमात्र मांग बलात्कार और हत्या पीड़िता के लिए न्याय है और कई आम लोग हमारे साथ खड़े हैं। अब जरूरत के समय में हम लोगों के साथ खड़े होंगे,” महात ने कहा।

महाता ने यह भी कहा कि न्याय मिलने तक उनका विरोध जारी रहेगा।

एक अन्य प्रदर्शनकारी डॉक्टर ने कहा कि वे 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और राज्य सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों के क्रियान्वयन पर नजर रखेंगे।

आंदोलनकारी डॉक्टर ने कहा, “हमें प्रशासन से मेल मिला है कि केंद्रीकृत रेफरल सिस्टम को जल्द से जल्द चालू किया जाएगा। डॉक्टरों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाएगी। जल्द से जल्द एक केंद्रीकृत पैनिक कॉल बटन भी बनाया जाएगा। हम नहीं चाहते कि जो हुआ है, वैसी ही कोई दूसरी घटना हो। हम संस्कृति के खतरे को खत्म करना चाहते हैं। हम अपने कॉलेजों में वापस जाएंगे और आवश्यक सेवाओं को वापस पाने के लिए एक एसओपी बनाएंगे। अगर जरूरत पड़ी तो हम फिर से विरोध प्रदर्शन करेंगे।”

डॉक्टर ओपीडी और ओटी सेवाओं में शामिल नहीं होंगे

विशेष रूप से, प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे ओपीडी और ओटी सेवाओं में वापस शामिल नहीं होंगे।

“हमने मुद्दों पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री से मुलाकात की है। हम सीपी विनीत गोयल को हटाने में सफल रहे। संदीप घोष को भी गिरफ्तार किया गया है। स्वास्थ भवन में अभी भी भ्रष्टाचार है और हम लोगों के व्यापक हित के लिए भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं,” प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने आगे बताया।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कई बार प्रदर्शनकारी डॉक्टरों से काम पर लौटने का आग्रह किया है, ताकि राज्य के लोगों को इलाज मिल सके।

ममता ने पहले भी कहा था कि जूनियर डॉक्टरों के काम पर कब्जा करने के कारण कई लोगों की जान चली गई है।

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