राजनीति
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए जाति की जगह प्रियंका ने जेंडर का चला नया दांव
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का आधी आबादी को साधने का अभियान जारी है। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने जाति की जगह जेंडर (महिला) मुद्दा छेड़कर दूसरी पार्टियों के सामने चुनौती खड़ी कर रही है। हालांकि इसमें कितनी सफलता मिलेगी यह तो आने वाला समय ही तय करेगा, लेकिन एक बात तो तय है कि इस फारमूले की काट ढूढने में निश्चित तौर से सभी पर्टियां लग गयी हैं।
कांग्रेस के इस नए दांव को नौकरी पेशा वर्ग की महिलाओं और गृहणियों को आकर्षित करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। इसके कई उदाहरण साफ तौर पर देखे गये हैं। वो बाराबंकी में प्रतिज्ञा यात्रा का शुभारंभ करने पहुंचीं सड़क पर बैठी बालिकाओं से मुलाकात की। इसके बाद धान के खेत पर पहुंचीं। यहां पहले से मौजूद महिलाओं से चर्चा की। उनके साथ खाना भी खाया।
आगरा जाते समय एक्सप्रेस-वे पर जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का काफिला रुकने पर प्रियंका जब अपनी गाड़ी से उतरीं तो आसपास खड़ीं महिला पुलिसकर्मियों को देखकर मुस्कुराने लगीं। प्रियंका को मुस्कुराते देख महिला पुलिसकर्मी उनके करीब पहुंचीं। इस बीच एक महिला सिपाही ने अपना मोबाइल निकाला। यह देख प्रियंका ने पास खड़ी एक महिला दारोगा और सिपाही के कंधे पर हाथ रखा तो सिपाही ने सेल्फी ले ली। उनका यह वीडियो कुछ देर बाद इंटरनेट मीडिया पर वायरल होने लगा। काफी चर्चा में रहा है। इसके बाद 31 अक्टूबर का गोरखपुर में हुई प्रतिज्ञा रैली में आयी भीड़ खासकर महिलाओं की उसने कांग्रेस को संजीवनी देंने का काम किया है। ऐसे कई उदाहरण जिनमें देखा जा सकता है कि महिलाओं के मुद्दे को लेकर कांग्रेस आगे बढ़ती दिखाई दे रही है।
राजनीतिक विषेषज्ञों की मानें तो खासकर यहां की राजनीति जाति-धर्म पर आधारित है जिसमें महिलाएं मुद्दा नहीं होती हैं। राजनीति में महिलाओं की नेतृत्व क्षमता अभी भी सर्व स्वीकार्य नहीं है और अक्सर पुरुष रिश्तेदारों के हस्तक्षेप के कारण कई सवाल उठाए जाते हैं। इसके उदाहरण महिला प्रधान तो पुरूष ही उसका काम देखते है। जिला पंचायत से लेकर ब्लाक प्रमुख हर जगह यही चीजें देखने को मिलती रही है, लेकिन कुछ जगह बदलाव भी हो रहे हैं।
राजनीति के जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि प्रियंका के इस दांव से नई प्रतिभा सामने आएगी। 40 प्रतिशत सिर्फ महिलाओं को टिकट देने की बात करके उन्हें एक बड़ा गेम खेला है। अभी भाजपा, सपा, बसपा के मुकाबले भी कांग्रेस का जमीन में संगठन भी उतना मजबूत नहीं है। इसके लिए कांग्रेस संगठन मजबूत करने की बहुत जरूरत है। उनके इस वादे से दूसरे दल किसी न किसी रूप में महिलाओं कुछ नया करने प्रयास करेंगे। जैसे घोषणापत्र में महिलाओं के लिए कुछ नयी घोषणा महिलाओं के लिए कर सकते हैं।
हलांकि भाजपा की प्रवक्ता साक्षी दिवाकर कांग्रेस के इन वादों को खोखला मान रही है। उनका कहना है कि पहले इनकी जहां सरकारें वहीं सारे वादों को लागू करना चाहिए। चाहे छत्तीसगढ़ और राजस्थान वहां पर यह लागू करना चाहिए। राजस्थान में महिलाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। अपनी सरकारों के समय जो यहां की दुर्दशा कांग्रेस ने की है वह किसी से छिपी नहीं है। भाजपा सरकार उसे ठीक कर रही है। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए मोदी और योगी सरकार ने बहुत सारे काम किए हैं।
कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह का कहना है कि प्रियंका गांधी यूपी की प्रभारी है इसीलिए उन्होंने 40 प्रतिशत महिलाओं के टिकट के आरक्षण बात कर रही है। इसके बाद उनके सुझाव पर केन्द्रीय नेतृत्व अन्य राज्यों पर भी करेगा। छत्तीसगढ़ में हम 2500 वहां धान की कीमत दे रहे हैं। वहां पर गोधन योजना चल रही है। कर्जमाफी भी गयी है। भाजपा ने महिलाओं से किए गये एक भी वादे पूरे नहीं कर पायी इसीलिए वह बौखला गए हैं। उन्होंने बताया कि बनारस और गोरखपुर की रैली में जिस प्रकार से महिलाओं की भागीदारी देखकर परेषान है। अगर एक महिला महिलाओं के सषक्तिकरण की बात कर रही हैं तो इससे अन्य राजनीतिक दल परेशान क्यों हो रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
सुरक्षा परिषद ने ट्रंप की गाजा शांति योजना का समर्थन करने वाले ऐतिहासिक प्रस्ताव को मंजूरी दी

संयुक्त राष्ट्र, 18 नवंबर: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सोमवार को एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पास किया, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गाजा शांति योजना को मंजूरी दी गई। इस मंजूरी के बाद अब गाजा में एक अंतरराष्ट्रीय बल भेजने का रास्ता साफ हो गया है, जिससे युद्ध से तबाह इलाकों में शांति और व्यवस्था बहाल की जा सकेगी।
यह निर्णय ट्रंप के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। प्रस्ताव में ट्रंप के नेतृत्व वाले ‘‘बोर्ड ऑफ़ पीस’’ (बीओपी) को गाजा की अंतरिम प्रशासनिक संस्था के रूप में मान्यता दी गई है, ताकि दो साल से चले आ रहे संकट के बाद वहाँ सामान्य स्थिति बहाल हो सके।
संयुक्त राष्ट्र के कट्टर आलोचक ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया, यह संयुक्त राष्ट्र के इतिहास की सबसे बड़ी मंजूरियों में से एक के रूप में दर्ज होगा, दुनिया भर में शांति को बढ़ावा देगा और यह एक सच्चे ऐतिहासिक क्षण का प्रतीक है।”
इस प्रस्ताव की एक खास बात यह है कि इसमें फिलिस्तीन को अपने स्वतंत्र राष्ट्र बनने का रास्ता भी दिया गया है, जबकि ट्रंप प्रशासन पहले इसका विरोध करता रहा था। सुरक्षा परिषद ने एक दुर्लभ कदम उठाते हुए ट्रंप की पूरी 20 सूत्रीय योजना को प्रस्ताव में शामिल कर दिया।
रूस ने इस पर आपत्ति की थी और अपना अलग प्रस्ताव तैयार किया था, लेकिन जब अरब और मुस्लिम देशों ने अमेरिकी योजना का समर्थन किया, तो रूस ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया और मतदान में हिस्सा न लेते हुए परहेज़ किया। इससे अमेरिकी प्रस्ताव पारित हो गया।
अल्जीरिया के स्थायी प्रतिनिधि अमर बेंडजामा ने कहा कि उच्चतम स्तर पर फिलिस्तीनी प्राधिकरण, साथ ही मुस्लिम और अरब देशों ने अमेरिकी प्रस्ताव का समर्थन किया। हालांकि उन्होंने कहा कि स्थायी शांति तभी संभव है जब फिलिस्तीन को राष्ट्र का दर्जा मिल जाए।
महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने प्रस्ताव का स्वागत किया और कहा कि अब ज़मीन पर जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र और अन्य संगठनों द्वारा मानवीय सहायता बढ़ाने और गाजा में बिना रोक-टोक प्रवेश की मांग भी रखी गई है।
चीन ने भी मतदान में हिस्सा न लेते हुए परहेज़ किया, जबकि बाकी 13 देशों ने समर्थन दिया। सुरक्षा परिषद में अल्जीरिया ही एकमात्र अरब देश है।
अब, जब गाजा में युद्धविराम लागू है, ट्रम्प योजना के अगला चरण में ‘‘अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल’’ (आईएसएफ) भेजने की आवश्यकता होगी, जो हमास को निशस्त्र करेगा, कानून-व्यवस्था स्थापित करेगा और फिलिस्तीन सुरक्षा बल को प्रशिक्षित करेगा।
आईएसएफ संयुक्त राष्ट्र का शांति मिशन नहीं होगा और न ही परिषद को रिपोर्ट करेगा, जो बीजिंग और मास्को के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा था।
संयुक्त राष्ट्र महासभा कई वर्षों से फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की मांग करती रही है। हाल ही में फ्रांस, ब्रिटेन और कुछ पश्चिमी देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता देने की घोषणा भी की, जबकि अमेरिका ने इस पर अलग रुख रखा।
प्रस्ताव में विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को गाजा के पुनर्निर्माण में योगदान देने का ढाँचा भी शामिल है।
अपराध
मुंबई: नवाब मलिक को बड़ा झटका, कोर्ट ने डिस्चार्ज याचिका खारिज की, आज तय होंगे आरोप

मुंबई, 18 नवंबर: महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में बड़ा झटका लगा है। पीएमएलए की एक विशेष अदालत ने मलिक और उनकी कंपनी की ओर से दायर डिस्चार्ज याचिका को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया है कि 18 नवंबर को आरोप तय करने की प्रक्रिया के दौरान सभी आरोपी कोर्ट में मौजूद रहें। इस फैसले के बाद नवाब मलिक को मंगलवार को कोर्ट में पेश होना है।
मलिक की कंपनी ‘मलिक इन्फ्रास्ट्रक्चर’ की ओर से डिस्चार्ज याचिका दायर की गई थी। कंपनी की ओर से कहा गया कि ईडी का पूरा मामला अंदाजों और अनुमान पर आधारित है, क्योंकि जिस समय कथित अवैध सौदा हुआ, उस समय कंपनी का अस्तित्व ही नहीं था।
कोर्ट ने कंपनी की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि मामले में पर्याप्त प्राथमिक सबूत मौजूद हैं। कोर्ट ने कहा कि शुरुआती जांच से यह स्पष्ट होता है कि नवाब मलिक ने डी-कंपनी से जुड़ी हसीना पारकर, सलीम पटेल और आरोपी सरदार खान के साथ मिलकर कुर्ला स्थित एक कीमती प्लॉट को अवैध रूप से कब्जे में लिया और फिर उसे मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए वैध बनाने की कोशिश की। इस प्लॉट में 16 करोड़ रुपए की अपराध से अर्जित धन शामिल बताया गया है।
पूर्व मंत्री ने कोर्ट से यह प्रक्रिया 6 हफ्ते तक टालने की गुहार लगाई थी। उनका कहना था कि बॉम्बे हाई कोर्ट में उनकी याचिका पर जल्द सुनवाई होनी है, इसलिए फैसला आने तक निचली अदालत को इंतजार करना चाहिए। उनके वकील तारक सैयद का दावा है कि ईडी ने कई ऐसे दस्तावेज कोर्ट में पेश नहीं किए हैं जो आरोपी के पक्ष में हैं। उनका कहना था कि यदि सभी दस्तावेज पेश किए जाएं तो आरोप तय करने की स्थिति ही नहीं बनती।
हालांकि, स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर सुनील गोंसाल्वेस ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस मामले पर कोई स्टे नहीं दिया है, इसलिए निचली अदालत की सुनवाई रोकी नहीं जा सकती।
कोर्ट ने ईडी की दलीलें मानते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों का त्वरित निपटारा अनिवार्य है। ऐसे में कोर्ट स्वयं से मामला स्थगित नहीं कर सकती। इस आधार पर नवाब मलिक की मांग खारिज कर दी गई।
बता दें कि ईडी ने नवाब मलिक को फरवरी 2022 में गिरफ्तार किया था। आरोप है कि उन्होंने दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की मदद से मुंबई के कुर्ला में लगभग तीन एकड़ की जमीन को गलत तरीके से कब्जे में लिया। इस सौदे में 16 करोड़ रुपए की अपराध से जुड़ी रकम शामिल होने का आरोप है। फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल का भी आरोप लगाया गया है।
इस मामले में मलिक के साथ दो कंपनियों को भी आरोपी बनाया गया है। मई 2022 से प्रक्रिया जारी है, लेकिन औपचारिक तौर पर आरोप तय नहीं हो पाए थे। अब अदालत के आदेश के बाद 18 नवंबर को सभी आरोपियों पर आरोप तय किए जाएंगे।
राजनीति
केरल सरकार ने एसआईआर को स्थगित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका, आईयूएमएल ने भी की मांग

SUPRIM COURT
तिरुवनंतपुरम, 18 नवंबर: केरल सरकार ने निर्वाचन आयोग के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राज्य सरकार ने याचिका में मांग की है कि स्थानीय निकाय चुनावों के समाप्त होने तक एसआईआर को स्थगित किया जाए।
राज्य सरकार के साथ ही, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एसआईआर प्रक्रिया को तत्काल रोकने की मांग की है। दोनों याचिकाओं में मुख्य तर्क यही है कि एसआईआर और स्थानीय निकाय चुनावों का एक साथ होना प्रशासनिक रूप से असंभव है और इससे मतदाताओं के अधिकारों का हनन होगा।
केरल सरकार की याचिका आर्टिकल 32 के तहत दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य में 1,200 स्थानीय स्वशासन संस्थाएं (एलएसजीआई) हैं, जिनमें 941 ग्राम पंचायतें, 152 ब्लॉक पंचायत, 14 जिला पंचायत, 87 नगर पालिकाएं और 6 निगम शामिल हैं। इनके कुल 23,612 वार्डों के लिए चुनाव दो चरणों में 9 और 11 दिसंबर को होने हैं, जबकि गिनती 13 दिसंबर को होगी।
एसआईआर प्रक्रिया 4 नवंबर से शुरू हो चुकी है और ड्राफ्ट मतदाता सूची 4 दिसंबर को प्रकाशित होनी है। याचिका में तर्क दिया गया कि इन चुनावों के लिए 1,76,000 कर्मियों और 68,000 सुरक्षा बलों की जरूरत है, जबकि एसआईआर के लिए अतिरिक्त 25,668 कर्मी चाहिए। इससे प्रशासनिक मशीनरी पर भारी दबाव पड़ेगा और सामान्य शासन व्यवस्था ठप हो जाएगी।
सरकार ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243-ई और 243-यू तथा केरल पंचायत राज अधिनियम की धारा 38 और नगर निगम अधिनियम की धारा 94 के तहत स्थानीय निकाय चुनाव पिछले परिषदों की पहली बैठक के पांच वर्ष के भीतर अनिवार्य हैं। वहीं, एसआईआर के लिए कोई ऐसा संवैधानिक बाध्यकारी प्रावधान नहीं है।
याचिका में निर्वाचन आयोग से अपील की गई है कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक एसआईआर को स्थगित किया जाए, क्योंकि इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होगा। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह SIR की वैधता पर बाद में सवाल उठा सकती है, लेकिन फिलहाल केवल स्थगन की मांग कर रही है।
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