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Tuesday,16-September-2025
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राष्ट्रीय समाचार

दिल्ली के खानपुर इलाके में 3 ठिकानों पर ईडी ने की छापेमारी

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नई दिल्ली, 1 अगस्त। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली के खानपुर इलाके में तीन जगहों पर छापेमारी की है। यह कार्रवाई एक फर्जी कॉल सेंटर से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में की गई। इस कॉल सेंटर पर पायरेटेड सॉफ्टवेयर बेचकर अमेरिकी नागरिकों को ठगने का आरोप है।

दिल्ली के खानपुर में छापेमारी गुरुवार रात करीब 10:30 बजे शुरू हुई और अभी भी जारी है। यह कार्रवाई धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों के तहत की जा रही है।

प्रारंभिक जांच से सामने आया कि कॉल सेंटर ऐसे व्यक्तियों द्वारा चलाया जा रहा था, जो माइक्रोसॉफ्ट विंडोज जैसे असली सॉफ्टवेयर की आड़ में ‘पायरेटेड’ सॉफ्टवेयर बेच रहे थे। आरोपियों ने अमेरिका समेत अन्य देशों के नागरिकों को गुमराह करके यह सॉफ्टवेयर बेचे। प्रवर्तन निदेशालय को संदेह है कि संचालकों को 2016-17 और 2024-25 के बीच लगभग 100 करोड़ रुपए की विदेशी धनराशि प्राप्त हुई। फिलहाल इस मामले में ईडी की जांच जारी है।

इसके अलावा, ‘नकली बैंक गारंटी रैकेट’ मामले में भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जांच शुरू कर दी है। नवंबर 2024 में दिल्ली की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने एक मामला दर्ज किया था। इसी आधार पर प्रवर्तन निदेशालय ने कार्रवाई शुरू की है।

मामले में ईडी ने ओडिशा और पश्चिम बंगाल में कई ठिकानों पर छापे मारे। भुवनेश्वर में बिस्वाल ट्रेडलिंक प्राइवेट लिमिटेड और उसके निदेशकों से जुड़े 3 परिसर पर छापेमारी की गई। कोलकाता में एक सहयोगी के ठिकाने पर कार्रवाई हुई।

जांच में खुलासा हुआ कि ओडिशा स्थित बिस्वाल ट्रेडलिंक प्राइवेट लिमिटेड, उसके निदेशक और सहयोगी 8 प्रतिशत कमीशन पर फर्जी बैंक गारंटी जारी करने में शामिल थे। इन लोगों ने कमीशन के लिए फर्जी बिल जारी किए। कई अघोषित बैंक खातों का पता चला है, जिनमें कथित तौर पर करोड़ों रुपए के संदिग्ध लेनदेन हुए। ईडी की जांच में कई कंपनियों के साथ संदिग्ध वित्तीय लेनदेन का भी पता चला है।

अपराध

मालेगांव ब्लास्ट केस: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- बरी करने के फैसले के खिलाफ हर कोई अपील नहीं कर सकता

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मुंबई, 16 सितंबर। महाराष्ट्र के मालेगांव में साल 2008 में हुए विस्फोट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करने का अधिकार हर किसी को नहीं है। यह अधिकार उन्हीं को है जो ट्रायल में गवाह रहे हों या सीधे तौर पर पीड़ित पक्ष से जुड़े हों।

दरअसल, मालेगांव ब्लास्ट में मारे गए छह लोगों के परिजनों ने एनआईए की विशेष अदालत द्वारा दिए गए बरी करने के आदेश को चुनौती दी है। परिजन हाईकोर्ट पहुंचे और 31 जुलाई को एनआईए कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को कानून के खिलाफ बताते हुए रद्द करने की मांग की।

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या मृतकों के परिजनों को ट्रायल में गवाह बनाया गया था। अदालत ने विशेष रूप से अपीलकर्ता निसार अहमद के मामले का जिक्र किया, जिनके बेटे की मौत धमाके में हुई थी। पीड़ित पक्ष के वकील ने बताया कि निसार अहमद गवाह नहीं बने थे। इस पर अदालत ने कहा कि अगर बेटे की मौत हुई थी तो पिता को गवाह होना चाहिए था। कोर्ट ने निर्देश दिया कि बुधवार को अगली सुनवाई में इस बारे में पूरी जानकारी पेश की जाए।

अपीलकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा कि जांच एजेंसियों की खामियां या कमजोरियां किसी आरोपी को बरी करने का आधार नहीं हो सकतीं। उनका दावा है कि धमाके की साजिश गुप्त तरीके से रची गई थी, ऐसे में इसका प्रत्यक्ष सबूत मिलना संभव नहीं था।

परिजनों का आरोप है कि जब मामला एनआईए को सौंपा गया, तो एजेंसी ने आरोपियों के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों को कमजोर कर दिया। अपील में कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन की कमियों को दूर करने की बजाय केवल पोस्ट ऑफिस की तरह काम किया और उसका फायदा आरोपियों को मिला।

दरअसल, 31 जुलाई को विशेष एनआईए कोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट मामले के सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया था। इनमें पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल थे।

अपीलकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि अदालत को केवल मूक दर्शक नहीं बने रहना चाहिए था। जरूरत पड़ने पर उसे सवाल पूछने और अतिरिक्त गवाह बुलाने के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए था। इस मामले पर बॉम्बे हाईकोर्ट में बुधवार को फिर से सुनवाई होगी, जिसमें यह तय किया जाएगा कि पीड़ित परिवारों की अपील सुनवाई योग्य है या नहीं और ट्रायल में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण रही थी।

मालेगांव विस्फोट 29 सितंबर, 2008 की शाम को हुआ था, जब महाराष्ट्र के नासिक जिले के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील शहर मालेगांव में भिक्कू चौक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर बंधे बम में विस्फोट हुआ था। रमजान के दौरान और नवरात्रि से कुछ दिन पहले हुए इस हमले में छह लोग मारे गए थे और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

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राजनीति

महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश, 31 जनवरी 2026 तक कराने होंगे चुनाव

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SUPRIM COURT

नई दिल्ली, 16 सितंबर। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और राज्य चुनाव आयोग को स्पष्ट निर्देश दिया है कि राज्य में लंबे समय से लंबित स्थानीय निकाय चुनाव 31 जनवरी 2026 तक हर हाल में कराए जाएं। अदालत ने कहा कि चुनाव की तारीख आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी और इसके लिए तय समयसीमा के भीतर सभी प्रक्रियाएं पूरी की जाएं।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि 31 अक्टूबर तक परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि चुनाव प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए कर्मचारियों को रिटर्निंग ऑफिसर के रूप में तुरंत नियुक्त किया जाए।

राज्य निर्वाचन आयोग को आदेश दिया गया है कि दो सप्ताह के भीतर कर्मचारियों की सूची मुख्य सचिव को सौंपें, ताकि चुनाव की तैयारियों में किसी तरह की देरी न हो।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि ईवीएम की उपलब्धता को लेकर 31 नवंबर तक एक हलफनामा दाखिल किया जाए। सरकार ने अदालत को बताया कि राज्य के पास वर्तमान में 65,000 ईवीएम मशीनें हैं और करीब 50,000 अतिरिक्त मशीनों की आवश्यकता है। इसके लिए ऑर्डर दिए जा चुके हैं।

सुनवाई के दौरान अदालत ने महाराष्ट्र सरकार की कार्यशैली पर नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि सरकार की निष्क्रियता और देरी उसकी अक्षमता को दर्शाती है। कोर्ट ने सवाल किया कि मई में दिए गए आदेश के बावजूद अब तक चुनाव क्यों नहीं कराए गए।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 में ही एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए चार महीने के भीतर यानी सितंबर के अंत तक चुनाव कराने का निर्देश दिया था। यह चुनाव 2022 से लंबित थे, क्योंकि ओबीसी आरक्षण से जुड़ी मुकदमेबाजी के चलते इन्हें टाल दिया गया था।

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि राज्य में पहली बार एक साथ 29 नगर निगमों के चुनाव कराए जाने हैं। इतने बड़े स्तर पर चुनाव आयोजित करने के लिए अतिरिक्त समय की जरूरत है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इस दलील से संतुष्ट नहीं हुआ और जनवरी 2026 तक चुनाव कराना अनिवार्य कर दिया।

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राजनीति

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की तैयारी तेज, प्रदेश समिति का किया गठन

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नई दिल्ली, 16 सितंबर। बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश चुनाव समिति के गठन के प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से मंजूरी दे दी है। प्रदेश समिति के गठन का ऐलान पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने किया है।

महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बताया कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रदेश चुनाव समिति के गठन के प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से मंजूरी दे दी है। इस समिति में 39 नेताओं को जगह दी गई है, जिनमें शकील अहमद खान, मदन मोहन झा, संजीव प्रसाद टोनी और राजेश कुमार राम शामिल हैं।

इसके अलावा, कांग्रेस पार्टी ने इस समिति में जितेंद्र गुप्ता, शकील-उज-जमान अंसारी, मोतीलाल शर्मा, कपिल देव प्रसाद यादव, अंशुल अविजित, ब्रजेश कुमार पांडेय, जमाल अहमद भल्लू, मंजू राम, आजमी बारी, नागेंद्र कुमार विकास, कैलाश पाल, राजेश राठौर, निर्मलेंदु वर्मा, कैसर अली खान, प्रभात कुमार सिंह, कमल देव नारायण शुक्ला, कुमार आशीष, जमोत्री ममता निषाद, शकील-उर-रहमान, संतोष कुमार श्रीवास्तव, डॉ. विश्वनाथ सर्राफ, डॉ. रमेश प्रसाद यादव और शशि रंजन को जगह दी है।

साथ ही, सुबोध मंडल, नदीम अख्तर अंसारी, नीतू निषाद, फौजिया राणा, रामशंकर कुमार, उदय मांझी, रेखा सोरेन, तारक चौधरी, विश्वनाथ बैठा, सुनील कुमार पटेल, साधना रजक और खुशबू कुमारी को भी प्रदेश चुनाव समिति में शामिल किया गया है।

बिहार कांग्रेस ने समिति में शामिल किए गए नेताओं को बधाई दी। बिहार कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिस्ट को साझा किया।

उन्होंने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रदेश चुनाव समिति के गठन को मंजूरी दी है। नई समिति का गठन तत्काल प्रभाव से किया गया है। हम सब मिलकर बिहार में कांग्रेस पार्टी के संगठन और जनआंदोलन को और मजबूत बनाएंगे।

बिहार कांग्रेस ने आगे कहा कि सभी सम्मानित साथियों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

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