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Tuesday,09-December-2025
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नागोर्नो-काराबाख युद्धविराम को विफल होते देखना निराशाजनक : डोनाल्ड ट्रंप

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर अमेरिकी मध्यस्थता से आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच हुए युद्धविराम को विफल होते देखकर उन्हें बहुत निराशा हुई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, ट्रंप ने पत्रकारों द्वारा अजरबैजान और आमेर्निया के बीच नए युद्धविराम समझौते को तोड़े जाने के सवाल पर कहा, “यह देखना निराशाजनक है, लेकिन ऐसा होता है जब आपके पास ऐसे देश होते हैं जो लंबे समय से ऐसे मसलों में उलझे हुए हैं।”

वहीं, विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने अर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोलस पशिनियन और अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव के साथ अलग-अलग फोन पर बातचीत की।

बयान में कहा गया कि पोम्पियो ने दोनों देशों के नेताओं से शत्रुता को खत्म करने, अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करने के लिए और ओएससीई मिन्स्क समूह के सह अध्यक्षों के तत्वावधान में नागोर्नो-काराबाख संघर्ष के लिए एक राजनयिक समाधान निकालने के लिए कहा।

गौरतलब है कि अमेरिका, अजरबैजान और अर्मेनिया की ओर से रविवार को संयुक्त बयान में कहा गया था कि दोनों युद्धरत देशों के बीच नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में एक नए मानवीय संघर्ष विराम पर सहमत हुईं, जो सोमवार से प्रभावी होगा।

हालांकि, युद्धविराम के प्रभावी होने के कुछ ही समय बाद, दोनों पक्षों ने युद्धविराम को तोड़ दिया और एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते हुए हमला कर दिया।

अंतरराष्ट्रीय समाचार

एनडीएए के तहत बड़ी घोषणा: अमेरिका की परमाणु और हिंद-प्रशांत योजनाओं में भारत प्रमुख भागीदार

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वाशिंगटन, 8 दिसबंर: अमेरिका के नए रक्षा प्राधिकरण बिल में भारत को इंडो–प्रशांत क्षेत्र और परमाणु नीति में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है। इस विधेयक में कहा गया है कि अमेरिका भारत के साथ मिलकर उसकी परमाणु दायित्व नीति पर लगातार बातचीत करेगा और भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करेगा जो चीन की चुनौती से निपटने के लिए नई रक्षा व्यवस्था तैयार कर रहे हैं।

अमेरिकी कांग्रेस के नेताओं ने वित्त वर्ष 2026 के लिए राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (एनडीएए) का संयुक्त मसौदा जारी किया है। इस अधिनियम में भारत को अमेरिका की कई रणनीतियों में विशेष स्थान दिया गया है-जैसे नागरिक परमाणु सहयोग, रक्षा सह-उत्पादन और समुद्री सुरक्षा। यह बिल छह दशकों से हर साल पारित होता रहा है। इस सप्ताह के अंत में बिल हाउस से पारित होने की उम्मीद है।

बिल में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है कि अमेरिका और भारत मिलकर एक संयुक्त परामर्श तंत्र स्थापित करेंगे। यह तंत्र 2008 के नागरिक परमाणु समझौते के क्रियान्वयन की नियमित समीक्षा करेगा। इसके साथ ही भारत के घरेलू परमाणु दायित्व नियमों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने पर भी चर्चा की जाएगी और इन मुद्दों पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय राजनयिक जुड़ाव के लिए “एक रणनीति विकसित करने” का भी काम सौंपा गया है।

अमेरिका को पांच वर्षों तक हर साल कांग्रेस में इस समीक्षा की रिपोर्ट देनी होगी।

बिल के अन्य भाग में भारत को वैश्विक नागरिक परमाणु सहयोग में “सहयोगी देश” के रूप में रखा गया है। इसके अलावा, यह कानून प्रशासन को अमेरिकी परमाणु निर्यात का विस्तार करने के लिए 10-वर्षीय रणनीति स्थापित करने और रूस तथा चीन से होने वाली प्रतिस्पर्धा का विश्लेषण करेगा।

इंडो–प्रशांत क्षेत्र से जुड़े प्रावधानों में भारत को प्राथमिक सहयोगियों की सूची में रखा गया है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं। इन देशों के साथ मिलकर रक्षा उद्योग, आपूर्ति श्रृंखला और नई तकनीक पर संयुक्त काम आगे बढ़ाया जाएगा।

अमेरिकी रक्षा मंत्री को अधिकार होगा कि वे समझौते करें, विशेषज्ञ सहायता दें, और उद्योग व शिक्षण संस्थानों को जोड़ें ताकि संयुक्त उत्पादन और विकास को बढ़ावा दिया जा सके।

संसद ने यह भी कहा है कि अमेरिका क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा संवाद सहित भारत के साथ अपना जुड़ाव बढ़ाए, ताकि इंडो–प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला रखा जा सके। इसमें सैन्य अभ्यास, रक्षा व्यापार, मानवीय सहायता और समुद्री सुरक्षा शामिल हैं। चीन को रोकने के लिए अमेरिका अपनी क्षेत्रीय उपस्थिति और साझेदारी भी बढ़ाएगा।

विधेयक में भारतीय महासागर क्षेत्र के लिए एक विशेष राजदूत बनाने की मंजूरी भी दी गई है, जिसका काम होगा कि वह इस क्षेत्र में अमेरिका की कूटनीति का समन्वय करे और चीन के प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति बनाए।

इन सभी कदमों से यह स्पष्ट होता है कि भारत अब अमेरिका की क्षेत्रीय रणनीति का सिर्फ लाभार्थी नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण साझेदार भी है। हाल के वर्षों में भारत–अमेरिका रक्षा संबंध काफी मजबूत हुए हैं।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

न्यूयॉर्क की महिला पर लगा भारतीयों को कनाडा-अमेरिका बॉर्डर पार कराकर स्मगलिंग करने का आरोप

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वाशिंगटन, 6 दिसंबर: अमेरिका के न्यूयॉर्क राज्य के उत्तरी भाग में रहने वाली 42 वर्षीया महिला, स्टेसी टेलर, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को अवैध रूप से अमेरिका में घुसाने वाले गिरोह में शामिल होने का आरोप लगा है। आरोप है कि इंटरनेशनल ह्यूमन स्मगलिंग नेटवर्क में सक्रिय यह गिरोह मुख्य रूप से भारत के नागरिकों को इस वर्ष कई बार गैर-कानूनी तरीके से यूएस-कनाडा सीमा पार करा रहा था।

स्टेसी टेलर को सोमवार को अदालत में पेश किया गया। इससे पहले 2 अक्टूबर को अल्बानी की एक संघीय जूरी ने उनके विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया था। उन पर साजिश के तहत अवैध ढंग से लोगों को सीमा पार कराने का एक आरोप और लाभ कमाने के उद्देश्य से लोगों की तस्करी करने के चार आरोप लगे हैं। इनमें से तीन आरोप दोहराए गए अपराध माने गए हैं। अगर वह दोषी पाई जाती हैं, तो उन्हें फायदे के लिए की गई हर स्मगलिंग के लिए कम से कम पांच साल जेल की सजा होगी, और बार-बार अपराध करने पर अतिरिक्त सजा भी मिलेगी।

अदालत के दस्तावेजों के अनुसार, 20 जनवरी को सीमा सुरक्षा अधिकारियों ने न्यूयॉर्क के चुरूबस्को क्षेत्र के पास भोर में उनकी कार रोकी। कार में चार विदेशी नागरिक मिले, जिसमें तीन भारतीय और एक कनाडाई था। जांच में पता चला कि ये लोग बिना जांच-पड़ताल कराए गैर-कानूनी तरीके से यूएस-कनाडा बॉर्डर पार करके आए थे।

टेलर के मोबाइल फ़ोन की जांच में कई टेक्स्ट मैसेज मिले, जिनसे पता चला कि वह इससे पहले भी ऐसे कई अवैध कामों में शामिल रही थीं। अधिकारियों का कहना है कि जनवरी में पकड़े जाने के बाद भी अगस्त 2025 में वह एक और संदिग्ध तस्करी मामले में रोकी गई और सितंबर 2025 में भी उनका नाम ऐसी ही गतिविधि में सामने आया।

इन आरोपों की घोषणा जस्टिस डिपार्टमेंट के क्रिमिनल डिवीजन के एक्टिंग असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल मैथ्यू आर. गैलेओटी और न्यूयॉर्क के नॉर्दर्न डिस्ट्रिक्ट के यूएस अटॉर्नी जॉन ए. सरकोन III ने की।

पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका-कनाडा की उत्तरी सीमा पर अवैध रूप से घुसने की घटनाएं बढ़ी हैं, विशेषकर भारत से आने वाले प्रवासियों से सम्बन्धित मामलों में। तस्करी करने वाले गिरोह अब दूर-दराज़ और बर्फीले इलाकों का इस्तेमाल कर लोगों को अमेरिका में प्रवेश कराने की कोशिश करते हैं। 2022 से इस सीमा पर अवैध प्रवेश लगातार बढ़ रहा है, जिसके कारण गश्त और दोनों देशों के बीच सहयोग और सख्त कर दिया गया है।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

संयुक्त राष्ट्र ने दिया दिव्यांग लोगों के प्रति सोच बदलने पर जोर

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संयुक्त राष्ट्र, 4 दिसंबर: संयुक्त राष्ट्र के एक वैश्विक प्रतिनिधि ने दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने के लिए सोच बदलने की जरूरत पर जोर दिया।

न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में बुधवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाइल्स ड्यूली ने कहा कि तीन साल तक दिव्यांग व्यक्तियों के यूएन ग्लोबल एडवोकेट के तौर पर उनके अधिकारों की वकालत करने के बाद भी उन्हें लगता है कि वे उनकी आवाज दुनिया तक नहीं पहुंचा पाए। यह उनके कार्यकाल का अंतिम दिन था।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेशनल डे ऑफ़ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज पर उन्होंने कहा कि दिव्यांग लोगों के प्रति सोच की वजह से सिस्टम फेल हो रहा है। दिव्यांगों को आज भी बोझ की तरह देखा जाता है, जो एक बड़ी समस्या है।

डूली, जिन्होंने अफगानिस्तान में तीन अंग खो दिए थे, बोले कि दिव्यांगता को “प्रेरणा की कहानी” बनाकर पेश करना गलत है।

अफगानिस्तान में अपने तीन हाथ-पैर खोने वाले ड्यूली ने कहा, “जब भी मुझे संयुक्त राष्ट्र या किसी संस्था में बोलने बुलाया जाता है, लोग कहते हैं कि एक प्रेरक भाषण दीजिए। लेकिन मेरा काम लोगों को प्रेरित करना नहीं है। मेरा काम सच्चाई बताना है और सच्चाई यह है कि दिव्यांग लोगों के हालात जमीन पर आज भी नहीं बदले। मुश्किलों में हमेशा वही लोग पीछे छूट जाते हैं जो पहले से समाज में हाशिये पर हैं।”

उन्होंने कहा कि खिलाड़ी या पर्वतारोहियों की प्रेरक कहानियाँ अच्छी लगती हैं, पर वे ज्यादा लोगों की हकीकत नहीं हैं। वास्तविकता यह है कि ऐसे लोग तभी आगे बढ़ पाते हैं जब उनके सामने की रुकावटें हटाई जाती हैं।

डूली ने कहा कि हमें दिव्यांगों को न तो दया का पात्र समझना चाहिए और न ही उन्हें प्रेरणा के तौर पर भी देखना चाहिए।

उन्होंने कहा, “हमें सिर्फ यह समझना है कि समाज ने ही उनके रास्ते में बाधाएं खड़ी की हैं। हमारा काम है इन बाधाओं को हटाना और उन्हें खुद को सशक्त करने का मौका देना।”

इंटरनेशनल डे के लिए एक मैसेज में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने संदेश दिया कि दिव्यांग व्यक्तियों को समाज में पूरी तरह शामिल करना बहुत ज़रूरी है।

उन्होंने कहा, “दिव्यांग लोग समाज में बदलाव ला रहे हैं, इनोवेशन को लीड कर रहे हैं, नीतियों को प्रभावित कर रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं। परंतु ज्यादातर समय उन्हें फैसले लेने की जगह पर शामिल ही नहीं किया जाता। दिव्यांग व्यक्तियों को शामिल किए बिना स्थायी विकास संभव नहीं।”

गुटेरेस ने बताया कि आज भी भेदभाव, गरीबी और असुलभ सेवाएं जैसी कई रुकावटें दुनिया के एक अरब से ज्यादा दिव्यांग लोगों की भागीदारी रोकती हैं।

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