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Sunday,09-March-2025
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बॉलीवुड

क्या आप जानते हैं? नागा चैतन्य की फिल्म थंडेल के इस गाने के लिए शूटिंग से पहले 8 दिनों तक प्रैक्टिस की गई थी!

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नागा चैतन्य साउथ फिल्म इंडस्ट्री के सबसे टैलेंटेड एक्टर्स में से एक हैं। 2009 में डेब्यू करने के बाद से, उन्होंने कई क्रिटिकली अक्लेम्ड और बॉक्स ऑफिस पर हिट फिल्में दी हैं। अब, थंडेल के साथ, उन्होंने अपने करियर में एक नया मील का पत्थर हासिल किया है, क्योंकि यह फिल्म 100 करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी है।

दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म के एक गाने के पीछे एक अनोखी कहानी छिपी है, जिसके लिए शूटिंग से पहले पूरे 8 दिनों तक प्रैक्टिस की गई थी।

जी हां, नागा चैतन्य और थंडेल की टीम ने इस फिल्म को बनाने में पूरी जान लगा दी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है फिल्म का गाना नमो नमः शिवाय। इस गाने के लिए नागा चैतन्य और फीमेल लीड साई पल्लवी ने कड़ी मेहनत की। इस गाने की कोरियोग्राफी आम डांस स्टाइल से थोड़ी अलग थी, जिसके कारण इसमें ज्यादा मेहनत और परफेक्शन की जरूरत थी। दोनों एक्टर्स ने लगभग 8-9 दिनों तक लगातार प्रैक्टिस की, जिसके बाद फाइनल कट शूट किया गया।

थंडेल एक इमोशनल फिल्म है, जिसमें एक मछुआरे की कहानी दिखाई गई है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा में पाकिस्तानी सेना द्वारा पकड़ लिया जाता है। इस फिल्म ने दर्शकों के दिलों को गहराई से छू लिया और थिएटर से निकलते वक्त कई लोग भावुक नजर आए। फिल्म में नागा चैतन्य और साई पल्लवी की जोड़ी को खूब सराहा गया, और उनकी परफॉर्मेंस को दर्शकों से जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला।

बॉलीवुड

अभिनेता नाना पाटेकर के खिलाफ तनुश्री दत्ता का मीटू मामला खारिज

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मुंबई: फिल्म अभिनेत्री तनुश्री दत्ता द्वारा मुंबई के फिल्म अभिनेता नाना पाटकर के खिलाफ #MeToo यौन उत्पीड़न और उत्पीड़न मामले को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। अंधेरी कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पाया है कि चूंकि नाना पाटेकर , गणेश आचार्य सारंग और समी सिद्दीकी के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, इसलिए जांच अधिकारी ने पहले बी समरी रिपोर्ट दाखिल की थी जिसमें आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला था। यह मामला 23 मार्च 2008 का है, जिसमें तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर और अन्य पर एक फिल्म की शूटिंग के दौरान यौन उत्पीड़न और गलत तरीके से छूने का आरोप लगाया था। यह मामला काफी देरी से दर्ज किया गया था। कोर्ट ने पाया कि चूंकि यह मामला साबित नहीं हो सका, लेकिन यह मामला न तो झूठा है और न ही सच है, इसलिए मामले का निपटारा किया जाता है और केस खारिज किया जाता है, जिससे नाना पाटेकर और अन्य को राहत मिली है।

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बॉलीवुड

देवदास से हीरामंडी तक: संजय लीला भंसाली ने कैसे गढ़ीं सबसे दमदार महिला किरदार

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संजय लीला भंसाली इंडियन सिनेमा के सबसे बेहतरीन फिल्ममेकर्स में से एक हैं, जिनकी भव्य सोच और दमदार स्टोरीटेलिंग ने इंडस्ट्री को एक अलग ऊंचाई दी है। उनकी फिल्मों की खास बात सिर्फ उनकी भव्यता नहीं, बल्कि वो किरदार हैं जो सालों तक लोगों के दिलों में बसे रहते हैं।भंसाली की फिल्मों में जो सबसे खास चीज़ है, वो है उनकी महिला किरदारों की ताकत। उनकी फिल्मों की औरतें न सिर्फ खूबसूरत और ग्रेसफुल होती हैं, बल्कि मजबूत, साहसी और प्रेरणादायक भी होती हैं। उनके संघर्ष, उनकी मजबूती, उनकी भावनाएं—हर चीज़ को भंसाली अपने अलग अंदाज में पेश करते हैं, जिससे उनके किरदार हमेशा यादगार बन जाते हैं। इस विमेंस डे पर आइए, उनकी फिल्मों की सबसे दमदार और आइकॉनिक महिला किरदारों को सलाम करते हैं, जिन्होंने बड़े पर्दे पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है!

पद्मावत में पद्मावती

संजय लीला भंसाली की पद्मावत में रानी पद्मावती सिर्फ एक रानी नहीं, बल्कि सम्मान, हिम्मत और बलिदान की जीती-जागती मिसाल हैं। उन्होंने हर चुनौती का सामना बिना झुके, बिना डरे किया और साबित कर दिया कि इज्जत किसी भी डर से बड़ी होती है। भंसाली ने उनकी कहानी को शानदार विजुअल्स और गहरी भावनाओं के साथ पेश किया, जिससे वो सिर्फ एक किरदार नहीं, बल्कि हमेशा के लिए अमर आइकन बन गईं। उनका बलिदान अडिग हौसले की ताकत को दिखाता है, जो इतिहास में हमेशा जिंदा रहेगा।

राम लीला में लीला

राम-लीला की लीला सिर्फ एक आशिक नहीं, बल्कि जुनून और बगावत की मिसाल थी। भंसाली ने उसे बेखौफ, बिंदास और अपने उसूलों पर अडिग दिखाया—जो प्यार भी दिल खोलकर करती है और लड़ना भी जानती है। परंपराओं और दुश्मनी के बीच भी उसने अपने दिल की सुनी, प्यार और दर्द को बराबर शिद्दत से जिया। लीला बस मोहब्बत करने वाली नहीं, बल्कि दिल की जंगजू थी, जो अपनी मोहब्बत के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार थी।

बाजीराव मस्तानी में काशीबाई

बाजीराव मस्तानी में संजय लीला भंसाली ने काशीबाई को सिर्फ एक दुखी पत्नी नहीं, बल्कि मजबूत, सशक्त और गरिमा से भरी औरत के रूप में दिखाया। उनका दर्द जितना गहरा था, उनका प्यार उतना ही सच्चा।काशीबाई का किरदार बदले की नहीं, बल्कि समर्पण और आत्मसम्मान की कहानी है। वो बाजीराव से बेइंतहा प्यार करती थीं, लेकिन खुद को कभी कमजोर नहीं बनने दिया। उनकी खामोश मजबूती ने उन्हें भंसाली की सबसे यादगार और दिल छू लेने वाली किरदारों में से एक बना दिया।

गंगुबाई काठियावाड़ी में गंगुबाई

गंगूबाई काठियावाड़ी में संजय लीला भंसाली ने अपनी अब तक की सबसे मजबूत और बेखौफ हीरोइन को गढ़ा। गंगूबाई सिर्फ हालात की मारी हुई औरत नहीं थी, बल्कि जिसने दर्द को ताकत में बदला और अपने हक के लिए लड़ी। हर सीन में उसकी दमदार मौजूदगी और जलते हुए तेवर दिखते हैं—चाहे वो उसकी आग उगलती स्पीच हो या समाज से इज्जत और इंसाफ छीन लेने का जज़्बा। भंसाली की नज़र ने इस कहानी को सिर्फ प्रेरणादायक नहीं, बल्कि आइकॉनिक बना दिया। गंगूबाई हमेशा याद रखी जाएगी—हौसले, हिम्मत और बगावत की पहचान बनकर।

देवदास में चंद्रमुखी

देवदास में संजय लीला भंसाली ने चंद्रमुखी को सिर्फ एक तवायफ नहीं, बल्कि निस्वार्थ प्रेम और अदम्य गरिमा की मिसाल के रूप में पेश किया। वो चमकदार, रहमदिल और बेइंतहा वफादार थी—ऐसी जो प्यार में कुछ पाने के लिए नहीं, बल्कि बस देने के लिए जीती थी। भंसाली ने अपने भव्य विजुअल्स और दिल छू लेने वाले डांस सीक्वेंस के ज़रिए उसकी पीड़ा और गरिमा को संजोया। वो ना किसी की मंजूरी की मोहताज थी, ना किसी पहचान की, बल्कि उसका प्यार ही उसकी सबसे बड़ी ताकत थी। इस तरह से चंद्रमुखी भंसाली की सबसे खूबसूरत और यादगार किरदारों में से एक बनी रहेगी।

देवदास में पारो

देवदास में भंसाली ने पारो को सिर्फ एक प्यार में पड़ी औरत नहीं, बल्कि प्यार और त्याग की मिसाल बनाया। वो जुदा होकर भी देवदास को दिल से कभी अलग नहीं कर पाई। भव्य सेट, शानदार कॉस्ट्यूम और गहरे इमोशन्स के साथ भंसाली ने उसकी मासूम लड़की से जिम्मेदार औरत बनने की कहानी दिखाई। हालात ने उसे दूर कर दिया, लेकिन उसका प्यार कभी कम नहीं हुआ, ये साबित करते हुए कि सच्चा प्यार साथ रहने का मोहताज नहीं होता। पारो का खामोश दर्द और अटूट मोहब्बत उसे भंसाली की सबसे यादगार हीरोइनों में से एक बना देता है।

हीरामंडी में मल्लीकाजान

हीरामंडी में संजय लीला भंसाली ने मल्लिकाजान को सिर्फ एक तवायफों की मालकिन नहीं, बल्कि हिम्मत, समझदारी और ताकत की मिसाल दिखाया। वो अपनी दुनिया की हुक्मरान थी, लेकिन उससे भी ज़्यादा, उन औरतों की हिफाज़त करने वाली जो उस पर निर्भर थीं। भंसाली ने उसे शक्तिशाली और भावुक दोनों रूपों में दिखाया—जो रुतबे से राज करती है, लेकिन अपने त्याग का दर्द भी छुपाए रखती है। शानदार सेट, दमदार कहानी और गहरे इमोशन्स के साथ मल्लिकाजान सिर्फ एक मालकिन नहीं, बल्कि एक जिंदा जंग थी, जो हालात से कभी नहीं टूटी।

हीरामंडी में बिबोजान

हीरामंडी में संजय लीला भंसाली ने बिबोजान को नर्मी, मजबूती और अधूरे अरमानों का मेल दिखाया। सत्ता के खेल में फंसी हुई, लेकिन फिर भी अपनी इज्जत और हौसले के साथ खड़ी रही। भंसाली ने उसे त्याग और छुपे हुए दर्द की निशानी बनाया—जहां प्यार एक ख्वाब था और जज़्बात एक लग्जरी। उसकी खामोशी में भी एक गहरी कहानी थी, जो उसे हीरामंडी की सबसे खास और असरदार किरदारों में से एक बनाती है।

यही दिखाता है कि संजय लीला भंसाली कैसे अपनी महिला किरदारों को जान डालकर परदे पर उतारते हैं—निडर, दमदार और यादगार। वो सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, बल्कि असल ज़िंदगी में भी औरतों का सम्मान और समर्थन करते हैं। अपनी माँ के नाम को खुद से जोड़ना भी उनकी गहरी इज़्जत और शुक्रगुज़ारी का प्रतीक है।

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बॉलीवुड

ऑस्कर में रहा ‘अनोरा’ का दबदबा, पांच अवॉर्ड किए अपने नाम, ‘द ब्रूटलिस्ट’ ने जीते 3 पुरस्कार

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लॉस एंजिल्स, 3 मार्च। एक सेक्स वर्कर की कहानी को पर्दे पर बखूबी उतारने वाली सीन बेकर की फिल्म ‘अनोरा’ को 97वें अकादमी में बेस्ट फिल्म के साथ कुल पांच ऑस्कर अवॉर्ड मिले। ‘द ब्रूटलिस्ट’ को भी कुल तीन पुरस्कार मिले। ‘द ब्रूटलिस्ट’ के निर्माता-निर्देशक ब्रैडी कॉर्बेट हैं।

23 कैटेगरी (श्रेणियों) में ऑस्कर विजेताओं की घोषणा की गई। सबसे ज्यादा 5 अवॉर्ड फिल्म ‘अनोरा’ ने बेस्ट पिक्चर, बेस्ट डायरेक्शन, बेस्ट स्क्रीनप्ले, बेस्ट एडिटिंग, बेस्ट एक्ट्रेस कैटेगरी में जीते। वहीं, दूसरे नंबर पर ‘द ब्रूटलिस्ट’ को 3 अवॉर्ड मिले हैं। 97वें ऑस्कर में ‘द ब्रूटलिस्ट’ 10 कैटेगरी में नॉमिनेट हुई थी।

‘अनोरा’ ने बेस्ट फिल्म, बेस्ट एक्ट्रेस, बेस्ट डॉयरेक्टर का अवॉर्ड जीता है। सीन बेकर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘अनोरा’ एक सेक्स वर्कर पर आधारित है, जो एक रूसी लड़के से शादी करती है।

वहीं, ऑस्कर में तीन पुरस्कार जीतने वाली ‘द ब्रूटलिस्ट’ एक आर्किटेक्ट लास्जलो टोथ की कहानी है। टोथ कैसे करियर और परिवार के बीच तालमेल बिठाने की जद्दोजहद करता है ये बखूबी दिखाती है। फिल्म में एड्रियन ब्रॉडी, फेलिसिटी जोन्स, गाइ पीयर्स और जो अल्विन जैसे कलाकार अहम भूमिका में हैं।

अकादमी समारोह में जोई सल्दाना को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का पुरस्कार मिला है। जोई का यह पहला ऑस्कर अवॉर्ड है। जोई को ‘एमिलिया पेरेज’ में बेहतरीन अभिनय के लिए यह सम्मान मिला। कीरन कल्किन को ‘द रियल पेन’ के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का पुरस्कार मिला। फैमिली ड्रामा ‘आई एम स्टिल हियर’ को बेस्ट इंटरनेशनल फीचर का पुरस्कार मिला। ‘नो अदर लैंड’ को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री का ऑस्कर मिला।

97वें एकेडमी अवॉर्ड्स यानी ऑस्कर में भारत की तरफ से शॉर्ट फिल्म कैटेगरी में नॉमिनेट होने वाली फिल्म ‘अनुजा’ पुरस्कार पाने से चूक गई। इस कैटेगरी में फिल्म ‘आई एम नॉट ए रोबोट’ ने बाजी मारी। डच फिल्म निर्माता विक्टोरिया वार्मरडैम और निर्माता ट्रेंट की फिल्म ‘आई एम नॉट ए रोबोट’ के लिए बेस्ट लाइव एक्शन शॉर्ट का पुरस्कार जीतकर अनुजा के सपने को तोड़ दिया।

एडम जे ग्रेव्स और सुचित्रा मट्टई के निर्देशन में बनी ‘अनुजा’ का ऑस्कर में ‘ए लीन’, ‘आई एम नॉट ए रोबोट’, ‘द लास्ट रेंजर’ और ‘द मैन हू कुड नॉट रिमेन साइलेंस’ से मुकाबला था।

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