राजनीति
कांग्रेस मप्र, राजस्थान कलह के बाद राज्य प्रभारियों के काम की करेगी समीक्षा
राजस्थान में राजनीतिक उथल-पुथल भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि पुरानी राजनीतिक पार्टी को बहुत बड़ा सबक मिला है। मध्य प्रदेश, गोवा और मणिपुर में हुए राजनीति घमासान की पुनरावृत्ति से बचने के लिए अब पार्टी हर राज्य में पार्टी संगठन का जायजा लेने की योजना बना रही है। पार्टी अब सभी स्थानीय मुद्दों का निपटारा राज्य स्तर पर ही करने की योजना बना रही है।
कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा : राज्य प्रभारी, केंद्रीय नेतृत्व में बैठे सुप्रीमो और राज्य संगठन के बीच का पुल होता है, जो राज्य से संबंधित मुद्दों को हल करने के साथ ही अगर कुछ भी गलत होता है, तो वह पार्टी अध्यक्ष को मामले की रिपोर्ट देता है।
हालांकि राजस्थान और उससे पहले मध्य प्रदेश में जो समस्या उत्पन्न हुई उसे देखते हुए यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि राज्य के प्रभारी इन समस्याओं की गंभीरता का अनुमान लगाने में विफल रहे।
मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया को हटाकर जहां मुकुल वासनिक को बिठाया गया, वहीं राजस्थान में भी सूत्रों का कहना है कि सचिन पायलट राज्य के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडेय के पक्षपातपूर्ण रवैये से नाखुश हैं।
कांग्रेस में कभी महासचिव के पद को बहुत ही शक्तिशाली पद माना जाता था, हालांकि इसकी चमक तब कम हो गई, जब संगठन में हल्के व्यक्तित्व वाले और अनुभवहीन लोगों को प्रभारी बनाया जाने लगा। ऐसे में पार्टी के कार्य समिति के सदस्य ने कहा कि शक्तिशाली मुख्यमंत्री या नेता उन्हें हल्के में लेने लगते हैं।
बी.के. हरिप्रसाद साल 2006 से 2018 तक कई राज्यों में महासचिव रह चुके हैं, इसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और गोवा सहित कई राज्य शामिल हैं। इन सभी राज्यों में कांग्रेस को हाल ही में समस्याओं का सामना करना पड़ा।
हालांकि हरिप्रसाद का कहना है, “एक प्रभारी महासचिव की भूमिका एक अंपायर और संगठनात्मक सेटअप के सूत्रधार की तरह होती है, और पीसीसी (राज्य संगठन) और सीएलपी (विधानसभा में विधायक दल के नेता) के बीच समन्वय स्थापित करने का होता है, जो या तो मुख्यमंत्री होते हैं या विपक्ष का नेता।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य के प्रभारियों को तटस्थ भूमिका अपनानी चाहिए और राज्यों में पार्टी मामलों के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष को स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए।
इसी सप्ताह मणिपुर में कांग्रेस को बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा है, जहां छह विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है।
गोवा में भी सदन में फ्लोर लीडर सहित 10 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है।
एक पूर्व महासचिव ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, “इससे पहले हम हफ्ते में एक बार कांग्रेस अध्यक्ष (सोनिया गांधी) के साथ बैठक करते थे, ताकि राज्यों में सीएलपी (कांग्रेस विधायक दल) और पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) की स्थिति के बारे में उन्हें अवगत करा सकें, लेकिन मैं इन दिनों की प्रणाली के बारे में टिप्पणी नहीं करना चाहता।”
पार्टी को गुजरात में भी निराशा देखनी पड़ी, जहां उसे राज्यसभा की इकलौती सीट से हाथ धोना पड़ा। वहीं कर्नाटक में कांग्रेस ने अपनी गठबंधन वाली सरकार खो दी, क्योंकि कांग्रेस पार्टी अपने विधायकों के भाजपा में पलायन को रोक नहीं सकी।
कांग्रेस पार्टी पंजाब में भी आंतरिक कलह का सामना कर रही है। यहां मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा के बीच शब्दयुद्ध जारी है। हालांकि राज्य प्रभारी आशा कुमारी ने किसी भी तरह के कलह को खारिज कर दिया है। साथ ही उन्होंने असंतुष्ट सदस्यों को चेतावनी भी दी कि “जिसे भी अगर किसी से कोई समस्या है या किसी के खिलाफ शिकायत करनी है तो वह पार्टी के नेताओं से बात करें और पार्टी फॉरम में अपने मुद्दे को उठाए। प्रेस के माध्यम से बात करना स्वीकार्य नहीं है।”
वहीं पार्टी में कई लोगों को लगता है कि कांग्रेस के पुनर्गठन की जरूरत है।
राजनीति
सुप्रीम कोर्ट ने बीएलओ की सुरक्षा पर जारी किया नोटिस

नई दिल्ली, 9 दिसंबर: पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया में शामिल बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नया नोटिस जारी किया है। यह कदम राज्य में बीएलओ की बढ़ती सुरक्षा चिंताओं और उनके कार्यभार के बढ़ते दबाव के मद्देनजर उठाया गया है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि तमाम राजनेता इस मुद्दे को लेकर कोर्ट पहुंच रहे हैं। ऐसा लगता है कि यह मंच उन्हें हाईलाइट करने का माध्यम बन गया है।”
सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्य बागची ने कहा कि बीएलओ पर बढ़ती धमकियों और हिंसा के कई मामलों में सिर्फ एक एफआईआर दर्ज है। याचिका में उठाई गई बाकी हिंसा की घटनाएं पुरानी हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आम तौर पर चुनाव से पहले पुलिस प्रशासन सीधे चुनाव आयोग के नियंत्रण में नहीं दिया जाता।
चुनाव आयोग के वकील ने भी बीएलओ की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग का समर्थन किया।
गौरतलब है कि इससे पहले 4 दिसंबर को बीएलओ की मौत पर तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टी टीवीके द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बीएलओ की मौतों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। कोर्ट ने कहा था कि बीएलओ पर बढ़ते काम के बोझ को कम करने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती तत्काल की जानी चाहिए। देशभर में अब तक लगभग 35-40 बीएलओ अत्यधिक कार्यभार और तनाव के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। याचिकाकर्ताओं ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की भी मांग की थी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस बागची की पीठ ने कहा था कि एसआईआर प्रक्रिया एक वैध प्रशासनिक कार्रवाई है, जिसे समय पर पूरा करना बेहद आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया था कि यदि कहीं स्टाफ की कमी है, तो राज्य सरकारों को अतिरिक्त कर्मचारी नियुक्त करने का कार्य करना अनिवार्य है।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि बीमार, असमर्थ या अत्यधिक दबाव में काम कर रहे अधिकारियों के लिए राज्य सरकारों को संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए और तुरंत वैकल्पिक स्टाफ तैनात करना चाहिए। इससे बीएलओ के कार्य घंटे कम होंगे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
ट्रंप का बड़ा कृषि राहत पैकेज, लेकिन भारत के चावल आयात को ‘टैरिफ की धमकी’

TRUMP
वाशिंगटन, 9 दिसंबर: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किसानों के लिए कई अरब डॉलर की राहत योजना का ऐलान किया और भारत सहित एशियाई देशों से आने वाली कृषि आयात पर अपनी नाराजगी भी जताई। व्हाइट हाउस में किसानों और अधिकारियों के साथ बैठक में उन्होंने कहा कि अमेरिकी किसानों की सुरक्षा के लिए शुल्क (टैरिफ) का कड़ा इस्तेमाल किया जाएगा।
ट्रंप ने बताया कि सरकार किसानों को लगभग 12 अरब डॉलर की आर्थिक मदद देगी, जिसे अमेरिका ट्रेडिंग पार्टनर्स से मिल रहे टैरिफ रेवेन्यू से फंड करेगा। उन्होंने कहा कि बीते वर्षों की महंगाई और कमजोर दामों से किसान परेशान हैं, इसलिए यह मदद जरूरी है। ट्रंप ने किसानों को अमेरिका की रीढ़ बताते हुए कहा कि शुल्क लगाना कृषि क्षेत्र को संभालने की उनकी योजना का अहम हिस्सा है।
बैठक में भारत का जिक्र खास तौर पर चावल आयात के मुद्दे पर आया। लुइज़ियाना की एक चावल उत्पादक कंपनी की सीईओ मेरिल कैनेडी ने कहा कि भारत, थाईलैंड और चीन जैसे देश बहुत सस्ता चावल भेज रहे हैं, जिससे अमेरिकी किसान मुश्किल में हैं। उन्होंने ट्रंप से कहा कि शुल्क बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने भारत के खिलाफ डब्ल्यूटीओ केस का ज़िक्र करते हुए कड़ी पाबंदियां लगाने की अपील की।
ट्रंप को जब बताया गया कि अमेरिका में बिकने वाले दो बड़े चावल ब्रांड भारतीय कंपनियों के हैं, तो ट्रंप ने कहा कि वह तुरंत कार्रवाई करेंगे और टैरिफ लगाने से समस्या कुछ ही मिनट में हल हो जाएगी।
बैठक में सोयाबीन और अन्य फसलों पर भी चर्चा हुई। ट्रंप ने बताया कि उन्होंने हाल ही में चीन के राष्ट्रपति से बातचीत की है और चीन भारी मात्रा में अमेरिकी सोयाबीन खरीद रहा है। अधिकारियों ने बताया कि चीन आने वाले समय में बड़ी मात्रा में सोयाबीन खरीदने का वादा कर चुका है।
कई लोगों के लिए, भारत से जुड़े व्यापार मुद्दे ग्लोबल कॉम्पिटिशन और अमेरिकी कमोडिटी बाजारों के भविष्य की चिंताओं से जुड़े हुए थे। केनेडी ने प्रशासन से चावल को “राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा” मानने का आग्रह किया और चेतावनी दी कि सब्सिडी वाला विदेशी चावल विदेशों में अमेरिकी उत्पादों की जगह ले रहा है। कई किसानों ने तेजी से कदम उठाने की मांग की। वहीं, कुछ अधिकारियों ने दावा किया कि बाइडेन सरकार के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर हुई।
बता दें कि भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार पिछले एक दशक में काफी बढ़ा है। भारत अमेरिका को बासमती चावल, मसाले और समुद्री उत्पाद निर्यात करता है, जबकि अमेरिका से बादाम, कपास और दालें खरीदता है। लेकिन चावल और चीनी पर सब्सिडी जैसे मुद्दों पर विवाद अक्सर सामने आते रहते हैं।
ट्रंप का नया शुल्क-आधारित रुख संकेत देता है कि आने वाले महीनों में एशियाई देशों, खासकर भारत के लिए परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।
राजनीति
नागरिकता से पहले वोटर लिस्ट में कैसे जुड़ा नाम? सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी

नई दिल्ली, 9 दिसंबर: बिना भारतीय नागरिकता हासिल किए मतदाता सूची में नाम शामिल कराने से जुड़े मामले में दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने मंगलवार को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है। यह नोटिस वकील विकास त्रिपाठी द्वारा दायर रिवीजन पिटीशन पर जारी किया गया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 6 जनवरी, 2026 को होगी।
वकील विकास त्रिपाठी का कहना है कि सोनिया गांधी का नाम 1980 की नई दिल्ली की वोटर लिस्ट में शामिल था, जबकि उन्होंने 30 अप्रैल 1983 को भारत की नागरिकता हासिल की। इसी आरोप के आधार पर मजिस्ट्रेट कोर्ट में मुकदमा दर्ज कर जांच कराने की मांग की गई थी, लेकिन सितंबर 2025 में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था।
मजिस्ट्रेट कोर्ट के इसी आदेश को चुनौती देते हुए त्रिपाठी ने रिवीजन पिटीशन दाखिल की, जिस पर अब राऊज एवेन्यू कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है।
दाखिल याचिका में कहा गया है कि 1980 की वोटर लिस्ट में सोनिया गांधी का नाम कैसे शामिल हुआ, जबकि तब तक उन्होंने भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं की थी। याचिका में यह भी पूछा गया है कि 1982 में उनका नाम वोटर लिस्ट से हटाया गया था, तो आखिर किन कारणों से यह कार्रवाई हुई?
याचिका में यह भी कहा गया कि यदि 1983 में ही नागरिकता मिली, तो 1980 में नाम शामिल कराने के लिए किन दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया? क्या उस समय फर्जी दस्तावेजों के आधार पर वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराया गया?
राऊज एवेन्यू कोर्ट ने सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया है कि वे आरोपों पर विस्तृत जवाब दाखिल करें।
बता दें कि इससे पहले, मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सितंबर 2025 में दायर उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें सोनिया गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच कराने की मांग की गई थी। बाद में, इसी आदेश को चुनौती देते हुए रिवीजन पिटीशन दाखिल की गई, जिस पर कोर्ट ने अब जवाब मांगा है।
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