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चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार, लेकिन नई दिल्ली कम नहीं करेगा पहरा

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India,-China

 भारत और चीन के बीच कड़वी गालवान घाटी की झड़प के लगभग एक साल बाद, नई दिल्ली ने धीरे-धीरे बीजिंग से लंबित निवेश प्रस्तावों को मंजूरी देना शुरू कर दिया है। जहां छोटे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रस्तावों को शुरूआती चरण में मंजूरी दी जा रही है। वहीं सूत्रों ने कहा कि भारत चीनी एफडीआई का विरोध नहीं कर रहा है। नाम न छापने की शर्त पर एक नीति निर्माता ने कहा “भारत ने कभी भी चीनी एफडीआई पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। नियामक ढांचे में एकमात्र बदलाव चीनी कंपनियों के निवेश के लिए अधिकारियों से अनुमोदन की आवश्यकता है। यह एक बहुत ही प्रतिगामी कदम नहीं है और हां हम सावधानी बरतेंगे और मुझे नहीं लगता कि इस तरह की चिंताओं को जन्म देना चाहिए।”

यह भी पता चला है कि भारत एक-एक करके प्रस्तावों का अध्ययन करेगा और जिन मामलों में सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होगा, उन्हें मंजूरी दी जाएगी।

उन्होंने कहा, “सरकार ने हमेशा कहा है कि आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों के लिए स्वस्थ एफडीआई प्रवाह की जरूरत है।”

अप्रैल 2020 से, भारत को चीन से लगभग 1.63 बिलियन डॉलर के 120 से अधिक एफडीआई प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं।

इंडिया ब्रीफिंग के अनुसार, इनमें से अधिकतर निवेश ब्राउनफील्ड परियोजनाओं के लिए हैं।

उन्होंने यह भी नोट किया कि प्रचार के बावजूद भी हालांकि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है। नई दिल्ली में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का वास्तविक अनुपात केवल 2.43 बिलियन डॉलर-कुल प्रवाह का 0.51 प्रतिशत है। सिंगापुर, मॉरीशस, नीदरलैंड, जापान, यूएस, अमेरिका उन देशों की सूची में शामिल है जहां से भारत को एफडीआई का सबसे बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ है।

हालांकि, भारत को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि चीन स्टार्टअप सहित भारतीय कंपनियों में अपने निवेश को तेजी से बढ़ा रहा है।

एसोचैम के महासचिव दीपक सूद ने इंडिया नैरेटिव बताया कि, “ऐसे फैसलों में बहुत सारे बदलाव शामिल हैं। मुझे नहीं लगता कि इन्हें जल्दबाजी में संभाला जा सकता है। अधिकारियों को देश के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेने होंगे।”

पिछले साल, सरकार ने गलवान घाटी की घटना से पहले ही अपने पड़ोसी देशों द्वारा घरेलू कंपनियों में किसी भी ‘अवसरवादी’ अधिग्रहण या अधिग्रहण पर रोक लगाने के लिए अपनी एफडीआई नीति में संशोधन किया था। इस कदम का उद्देश्य घरेलू कंपनियों को कोविड 19 महामारी के कारण गिरते मूल्यांकन के बीच शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण से बचाना था।

रिपोटरें ने सुझाव दिया कि इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना (आईसीबीसी) और चाइना इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन (सीआईसी) सहित कई चीन समर्थित फंड आक्रामक रूप से विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों में निवेश के अवसरों की तलाश कर रहे थे क्योंकि उनका मूल्यांकन महामारी के प्रसार के साथ प्रभावित हुआ था।

भारत में, एफडीआई को या तो स्वचालित मार्ग के माध्यम से अनुमति दी जाती है, जहां कंपनियों को किसी सरकारी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है या सरकारी मार्ग के माध्यम से, जिसके लिए कंपनियों को सरकार की मंजूरी लेनी होती है।

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा एक प्रेस नोट में कहा गया है “एक अनिवासी संस्था भारत में निवेश कर सकती है, जो उन क्षेत्रों/गतिविधियों को छोड़कर एफडीआई नीति के अधीन है जो निषिद्ध हैं। हालांकि, एक देश की एक इकाई, जो भारत के साथ भूमि सीमा साझा करती है या जहां भारत में निवेश के लाभकारी मालिक स्थित है या ऐसे किसी देश का नागरिक है, केवल सरकारी मार्ग के तहत निवेश कर सकता है।”

चीनी राज्य समर्थित ग्लोबल टाइम्स ने जनवरी में एक लेख में कहा था “चीन-भारत आर्थिक और व्यापार संबंधों के लचीलेपन को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए। यह सच है कि मोदी सरकार ने घरेलू औद्योगिक विकास का समर्थन करने के लिए आत्मनिर्भरता की रणनीति पर जोर दिया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि स्थानीय बाजार में एकीकृत हो जाने से चीनी आपूर्ति से अलग हो जाना चाहिए। ।”

व्यापार

एफपीआई ने अक्टूबर में भारतीय शेयर बाजारों में की वापसी, फ्रांस रहा सबसे आगे

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मुंबई, 7 नवंबर: एनएसडीएल के डेटा के अनुसार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने अक्टूबर में भारतीय शेयर बाजारों में अपनी जोरदार वापसी दर्ज करवाई है, जो कि उनकी तीन महीनों की लगातार बिकवाली के बाद एक महत्वपूर्ण बदलाव है।

एफपीआई द्वारा भारतीय शेयर बाजारों में निवेश को लेकर फ्रांस सबसे आगे रहा है, जिसने 2.58 अरब डॉलर का निवेश भारतीय शेयरों और 152 मिलियन डॉलर का निवेश डेट इंस्ट्रूमेंट में किया है।

एफपीआई की ओर से संयुक्त रूप से भाारतीय शेयरों में बीते महीने 1.66 अरब डॉलर का निवेश किया गया है। जबकि इससे पहले सितंबर में एफपीआई की ओर से 2.7 अरब डॉलर की बिकवाली दर्ज की गई थी।

फ्रांस के अलावा, अमेरिका और जर्मनी भी भारतीय शेयरों में निवेश करने को लेकर आगे रहे हैं। दोनों ही देशों में प्रत्येक ने भारतीय शेयरों में 520 मिलियन डॉलर का निवेश किया है।

इसके अलावा, अमेरिका की ओर से डेट इंस्ट्रूमेंट में 765 मिलियन डॉलर और जर्मनी की ओर से 309 मिलियन डॉलर का निवेश दर्ज किया गया है।

कुछ और देशों का भारतीय शेयर बाजारों की ओर सकारात्मक रुख दर्ज किया गया। आयरलैंड ने 400 मिलियन डॉलर इक्विटी में और 138 मिलियन डॉलर का निवेश डेट इंस्ट्रूमेंट में किया। मलेशिया की ओर से 342 मिलियन डॉलर इक्विटी में और 68 मिलियन डॉलर का निवेश डेट इंस्ट्रूमेंट में किया।

हांग कांग ने भारतीय इक्विटी में 177 मिलियन डॉलर का निवेश किया और डेनमार्क और नॉर्वे दोनों की ओर से करीब 100 मिलियन डॉलर का निवेश भारतीय इक्विटी में किया गया।

मजबूत कॉर्पोरेट अर्निंग, यूएस फेडरल द्वारा ब्याज दरों में कटौती और भारत-अमेरिका के बीच संभावित व्यापार वार्ता जैसे कारकों के कारण एफपीआई की ओर से खरीदारी दर्ज की गई।

हालांकि, सिंगापुर की ओर से इस महीने इक्विटी से 98 मिलियन डॉलर की बिकवाली दर्ज की गई है, जबकि 260 मिलियन डॉलर का निवेश डेट मार्केट में किया गया है। जिससे सिंगापुर की नेट पॉजिशन सकारात्क दर्ज की गई। इसके अलावा, अन्य देशों की ओर से 3 अरब डॉलर की बिकवाली रही।

विदेशी निवेशकों की वापसी के साथ बीते महीने अक्टूबर में भारतीय बेंचमार्क सूचकांकों सेंसेक्स और निफ्टी में प्रत्येक ने 4.5 प्रतिशत की बढ़त दर्ज करवाई।

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व्यापार

भारत में करीब 50 प्रतिशत मिलेनियल्स को एआई से नौकरी खोने का डर : रिपोर्ट

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मुंबई, 3 नवंबर: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के बढ़ते चलन के कारण भारत में 50 प्रतिशत मिलेनियल्स को अगले तीन से पांच वर्षों में नौकरी खोने का डर है। यह जानकारी सोमवार को एक रिपोर्ट में दी गई।

ग्रेट प्लेस टू वर्क इंडिया की ओर से जारी रिपोर्ट में बताया गया कि भारतीय कर्मचारी काम पर एआई के बढ़ते असर के साथ कैसे तालमेल बिठा रहे हैं।

रिपोर्ट में बताया गया कि पूरे भारत में 54 प्रतिशत कर्मचारियों का मानना ​​है कि उनकी ऑर्गनाइजेशन अभी एआई इम्प्लीमेंटेशन के पायलट या इंटरमीडिएट स्टेज पर हैं। यह ज्यादा टेक-पावर्ड और कुशल काम के माहौल की ओर लगातार हो रही तरक्की को दिखाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 10 में से चार कर्मचारियों को लगता है कि एआई अगले तीन से पांच सालों में उनकी जगह ले सकता है। यह डर किसी एक खास ग्रुप तक सीमित नहीं है, बल्कि हर स्तर के कर्मचारियों में है।

रिपोर्ट के अनुसार, एआई की वजह से अपनी नौकरी जाने को लेकर चिंतित कम से कम 40 परसेंट कर्मचारी अपनी मौजूदा कंपनी को छोड़ने की योजना बना रहे हैं। यह एचआर डिपार्टमेंट और सीनियर लीडरशिप के लिए एक जरूरी और गंभीर मुद्दा है।

ग्रेट प्लेस टू वर्क, इंडिया के सीईओ, बलबीर सिंह ने कहा, “जैसे-जैसे अलग-अलग इंडस्ट्रीज में ऑर्गनाइजेशन एआई को लागू करने में आगे बढ़ रहे हैं, लीडर्स ऐसे हाई-इम्पैक्ट एआई स्ट्रेटेजी बना रहे हैं जो इंसानी क्षमताओं को बढ़ाते हैं। अभी जिन रुकावटों पर ध्यान देने की जरूरत है, वह ऑर्गनाइजेशनल रेसिस्टेंस, साथ ही कर्मचारियों की तैयारी है।”

रिपोर्ट में आगे बताया गया कि इसके अलावा, जिन कंपनियों ने अभी तक एआई को नहीं अपनाया है, उनमें लगभग 57 प्रतिशत कर्मचारियों ने इनसिक्योर महसूस किया, जबकि एआई अपनाने के एडवांस्ड स्टेज वाली कंपनियों में यह आंकड़ा 8 प्रतिशत है।

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व्यापार

भारतीय शेयर बाजार हल्की गिरावट के साथ खुला, सरकारी बैंकिंग शेयरों में तेजी

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मुंबई, 3 नवंबर: भारतीय शेयर बाजार सोमवार के कारोबारी सत्र में हल्की गिरावट के साथ खुला। सुबह 9:19 पर सेंसेक्स 126 अंक या 0.15 प्रतिशत की गिरावट के साथ 83,811 और निफ्टी 20 अंक या 0.08 प्रतिशत की मामूली गिरावट के साथ 25,688 पर था।

शुरुआती कारोबार में सरकारी बैंकिंग शेयरों में तेजी देखी गई। निफ्टी पीएसयू बैंक करीब 2 प्रतिशत की बढ़त के साथ कारोबार कर रहा था। इसके अलावा निफ्टी फार्मा, निफ्टी मेटल, निफ्टी रियल्टी, निफ्टी हेल्थकेयर और निफ्टी ऑयल एंड गैस भी हरे निशान में थे। हालांकि, निफ्टी आईटी, निफ्टी एफएमसीजी और निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज लाल निशान में थे।

लार्जकैप की अपेक्षा मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर हरे निशान में थे। निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स 114 अंक या 0.19 प्रतिशत की तेजी के साथ 59,940 और निफ्टी स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 120 अंक या 0.66 प्रतिशत की मजबूती के साथ 18,501 पर था।

सेंसेक्स पैक में एमएंडएम, एसबीआई, टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल, भारती एयरटेल, सन फार्मा, टाटा स्टील और पावर ग्रिड हरे निशान में थे। मारुति सुजुकी, बीईएल, टाइटन, इटरनल (जोमैटो), बजाज फाइनेंस, एक्सिस बैंक, बजाज फिनसर्व, एनटीपीसी, ट्रेंट, कोटक महिंद्र बैंक, टीसीएस, टेक महिंद्रा, आईसीआईसीआई बैंक और एचडीएफसी बैंक लूजर्स थे।

चॉइस ब्रोकिंग के मुताबिक, निफ्टी एक सीमित दायरे में कारोबार कर रहा है और गिरावट के बाद भी 25,800 के ऊपर बना हुआ है, जो दिखाता है बाजार में आने समय में एक छोटा कंसोलिडेशन देखने को मिल सकता है। निफ्टी के लिए सपोर्ट 25,600 से लेकर 25,500 पर है, जबकि रुकावट का स्तर 25,800 से लेकर 26,000 के बीच है।

ब्रोकिंग फर्म ने आगे कहा कि अगर निफ्टी 26,000 के पार निकलता है, तो यह 26,100 से लेकर 26,300 तक जा सकता है।

लगातार तीन महीनों तक बिकवाली के बाद, विदेशी निवेशकों ने अक्टूबर में भारतीय शेयर बाजार में मजबूत वापसी की है और करीब 14,610 करोड़ रुपए का निवेश किया।

विदेशी निवेशकों की वापसी की वजह कॉरपोरेट आय में उछाल, अमेरिकी फेड की ओर से ब्याज दरों में कटौती करना और अमेरिका-भारत के बीच ट्रेड डील की संभावना है।

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