राजनीति
राणा कपूर के खुलासे के बाद कांग्रेस पर बरसी भाजपा

यस बैंक के सह-संस्थापक राणा कपूर के इस आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए कि उन्हें प्रियंका गांधी वाड्रा से एम.एफ. हुसैन की पेंटिंग खरीदने के लिए दबाव दिया गया, भाजपा ने रविवार को आरोप लगाया कि गांधी परिवार और कांग्रेस न केवल जबरन वसूली करने वाले हैं, बल्कि सबसे अधिक बोली लगाने वाले को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान को भी बेचते रहे हैं। यहां पार्टी मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा, “जब कांग्रेस सत्ता में थी, प्रियंका गांधी ने यह सुनिश्चित करने के लिए दबाव डाला कि 2 करोड़ रुपये की पेंटिंग कपूर द्वारा खरीदी जाए।”
भाटिया ने कहा, “राणा कपूर पेंटिंग के लिए 2 करोड़ रुपये नहीं देना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मंत्रियों ने उन पर दबाव डाला कि अगर वह प्रियंका गांधी से पेंटिंग नहीं खरीदते हैं, तो गांधी परिवार उन पर कहर बरपाएगा। उन्हें पेंटिंग खरीदने के लिए मजबूर किया, कपूर से कहा गया कि उन्हें पद्मभूषण मिलेगा।”
भाटिया ने आगे आरोप लगाया कि जब कांग्रेस सत्ता में थी, गांधी परिवार के सदस्य कुछ लोगों पर दबाव डाला करते थे कि अपराधों की आय का उपयोग करके वे कुछ पेंटिंग खरीद लें।
भाटिया ने कहा, “प्रियंका गांधी ने कपूर पर पूर्व मंत्री के जरिए दो करोड़ रुपये की पेंटिंग खरीदने का दबाव बनाया था।”
भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेस और प्रियंका गांधी से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या राणा कपूर को पद्म विभूषण का लालच देकर ऐसी पेंटिंग 2 करोड़ रुपये में बेची गई।
भाजपा के राष्ट्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग के प्रभारी अमित मालवीय ने ट्वीट किया, “राणा कपूर के ईडी के सामने दिए गए बयान से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि गांधी पारिवार और कांग्रेस न केवल जबरन वसूली करने वाले हैं, बल्कि देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान को सबसे अधिक बोली लगाने वाले या दरबारियों को भी बेच रहे थे। यह वफादारी खरीदने का एक साधन था या मौन।”
मालवीय ने आगे कहा, “पुरस्कार वापसी गिरोह की सच्चाई अब सामने आ रही है। वे या तो ऐसे लोग हो सकते हैं, जिन्होंने इन पुरस्कारों को खरीदा था या या इसे गांधी परिवार की प्रशंसा करने वालों को वितरित किया गया था। उस समय उनकी असहमति राजनीति से प्रेरित थी और यह अब कोई रहस्य नहीं है।”
राजनीति
शिबू सोरेन की अंतिम विदाई : नेताओं ने कहा- हम उन्हें कभी नहीं भूल पाएंगे, हमेशा खलेगी कमी

रांची, 5 अगस्त। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विधायक और विधानसभा स्पीकर रबींद्रनाथ महतो ने बताया कि शिबू सोरेन को मंगलवार को पूरा झारखंड नम आंखों से विदाई देगा। किसी व्यक्ति का पूरा जीवन कैसा रहा, उसे लेकर लोग क्या सोचते हैं, लोगों के बीच उसकी छवि कैसी रही, यह उसकी जिंदगी की अंतिम यात्रा के दौरान साफ जाहिर हो जाता है। आज पूरा झारखंड इस बात को लेकर दुखी है कि गुरु जी हमारे बीच नहीं रहे।
उन्होंने मिडिया से बातचीत में कहा कि गुरु जी के नहीं रहने से न केवल झारखंड, बल्कि पूरे विश्व में गम का माहौल है। वे हमारे अभिभावक थे। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ कमाया। आज उनके चाहने वाले गमजदा हैं। आज बड़ी संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए आ रहे हैं। गुरु जी का व्यक्तित्व अतुलनीय था।
रबींद्रनाथ महतो ने कहा कि गुरुजी जी को महामानव कहना ज्यादा उचित रहेगा। वे अपने जीवन काल में झारखंड के लोगों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहे। उनकी भूमिका को कभी भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। वहीं, इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है कि जो कोई भी इस संसार में आया है, वह एक दिन हमें छोड़कर चला ही जाता है, और यह हमारे लिए दुख की बात है कि आज गुरुजी जी हमारे बीच नहीं रहे। उनका हमारे बीच नहीं रहना एक अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती है।
उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए झारखंड के लोगों के लिए कई ऐसे फैसले लिए जो आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने हमारे बीच एक ऐसा आदर्श छोड़ा है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।
भाजपा नेता लोबिन हेम्ब्रोम ने शिबू सोरेन की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज मैंने अपनी जिंदगी में अगर राजनीति में यह मुकाम हासिल किया है, तो उसकी मूल वजह गुरूजी हैं। उन्होंने ही हमें राजनीति का ककहरा सिखाया है। हम उनके साथ कई तरह के आंदोलन में शामिल रहे। वे हमारे मार्गदर्शक रहे। उन्होंने आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में कई काम किए। उन्होंने जल, जीवन और जंगल को बचाने के लिए कई उल्लेखनीय कदम उठाए। झारखंड की जनता उन्हें कभी नहीं भूल सकती है। वे मेरे राजनीतिक गुरू रहे।
अपराध
मैसूर ड्रग फैक्ट्री मामला : ‘शर्ट की फोटो’ के जरिए होती थी तस्करी, जांच में बड़ा खुलासा

DRUG
मुंबई, 5 अगस्त। कर्नाटक के मैसूर में पकड़ी गई 434 करोड़ रुपए की ड्रग्स फैक्ट्री के मामले में मुंबई की साकीनाका पुलिस ने जांच के दौरान एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। इस मामले में महाराष्ट्र तक ड्रग्स की तस्करी के लिए एक अनोखा और बेहद गुप्त तरीका अपनाया गया था। पुलिस के मुताबिक, इस नेटवर्क में ‘शर्ट की फोटो’ को कोडवर्ड के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था।
जांच में सामने आया कि ड्रग्स की सप्लाई और निर्माण की प्रक्रिया दो अलग-अलग गिरोहों द्वारा अंजाम दी जा रही थी। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि इन दोनों गैंग के सदस्य एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे। यही इस पूरे ऑपरेशन की सबसे खतरनाक और शातिर ‘मॉडस ओपेरेंडी’ थी। इस तरह की व्यवस्था से नेटवर्क की परतें खोलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
साकीनाका पुलिस स्टेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मैसूर में तैयार की गई एमडी ड्रग्स की खेप को एक गैंग सबसे पहले बेंगलुरु पहुंचाता था। वहां मुंबई गैंग का एक सदस्य पहले से मौजूद होता था। इसके बाद खेप लाने वाले व्यक्ति को एक शर्ट की फोटो व्हाट्सएप पर भेजी जाती थी, ताकि वह व्यक्ति उसी शर्ट को देखकर सही व्यक्ति को माल सौंप सके। इस तरह खेप को बेंगलुरु से मुंबई तक लाया जाता था। यहां इसे मुंबई के विभिन्न इलाकों में स्थानीय सप्लायर्स के जरिए वितरित किया जाता था। ड्रग्स का पूरा ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम सड़क मार्ग पर आधारित था, ताकि हवाई या ट्रेन मार्गों में होने वाली जांच से बचा जा सके।
पुलिस जांच में सामने आया है कि यह नेटवर्क ड्रग्स को बसों और निजी वाहनों के माध्यम से ट्रांसपोर्ट करता था। मैसूर से बेंगलुरु और फिर मुंबई तक का सफर तय कर ड्रग्स को छिपाकर पहुंचाया जाता था। इस तरह की रणनीति से सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देने में काफी हद तक सफलता भी मिली।
इस मामले में अब इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की भी एंट्री हो चुकी है। सोमवार को आईबी अधिकारियों ने गिरफ्तार आरोपियों से लंबी पूछताछ की। जांच एजेंसियों को शक है कि यह ड्रग्स फैक्ट्री सिर्फ स्थानीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय ड्रग नेटवर्क का हिस्सा हो सकती है। साथ ही यह भी आशंका है कि इसका लिंक अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की डी-कंपनी से भी हो सकता है।
साकीनाका पुलिस और केंद्रीय एजेंसियां अब इस ऑपरेशन के पीछे की पूरी चेन, फंडिंग सोर्स, मास्टरमाइंड और सप्लायर्स नेटवर्क को खंगालने में जुट गई हैं।
राजनीति
सरकारी विज्ञापनों में पूर्व सीएम के नाम और पार्टी चिन्ह पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची तमिलनाडु सरकार

नई दिल्ली, 4 अगस्त। तमिलनाडु सरकार ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है, जिसमें सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं के विज्ञापनों में जीवित व्यक्तियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों, नेताओं या राजनीतिक पार्टी के प्रतीकों की छवियों का उपयोग करने पर रोक लगा दी गई थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के तमिलनाडु सरकार की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) का उल्लेख करने के बाद, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने इस मामले को इसी सप्ताह तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।
रोहतगी ने कहा, “यह एक अत्यंत आवश्यक और असामान्य मामला है। मद्रास उच्च न्यायालय ने आदेश पारित किया है कि राज्य सरकार की किसी भी योजना में मुख्यमंत्री या किसी अन्य राजनीतिक व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। हम (राज्य सरकार) किसी योजना का नाम क्यों नहीं रख सकते? ये योजनाएं गरीबों के कल्याण के लिए हैं।”
मद्रास उच्च न्यायालय ने 31 जुलाई को पारित एक आदेश में कहा था कि वर्तमान मुख्यमंत्री की तस्वीरें तो अनुमन्य हो सकती हैं, लेकिन सरकारी योजनाओं में वैचारिक हस्तियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों या पार्टी के चिन्हों का उपयोग सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के विरुद्ध होगा।
मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की पीठ अन्नाद्रमुक सांसद सी. वी. षणमुगम की एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी। षणमुगम ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ द्रमुक सरकार ने जन कल्याणकारी योजनाओं की ब्रांडिंग मुख्यमंत्री के नाम और तस्वीर के साथ-साथ पार्टी के पूर्व नेताओं और वैचारिक दिग्गजों की तस्वीरों के साथ करके सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है।
सरकारी विज्ञापनों की सामग्री को विनियमित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए क्रमिक निर्देशों और साथ ही भारत के चुनाव आयोग के 2014 के सरकारी विज्ञापन (सामग्री विनियमन) दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए, मुख्य न्यायाधीश एम.एम. श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक अंतरिम आदेश पारित किया। इस आदेश में तमिलनाडु सरकार को कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित विज्ञापनों में किसी भी जीवित राजनीतिक व्यक्ति का नाम, या किसी भी राजनीतिक दल के पूर्व मुख्यमंत्रियों या वैचारिक नेताओं की तस्वीरें शामिल करने पर रोक लगा दी गई।
मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा, “सरकारी योजना के नामकरण में किसी जीवित राजनीतिक व्यक्ति का नाम उल्लेखित करना स्वीकार्य नहीं होगा। इसके अलावा, किसी भी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के नाम, उसके प्रतीक चिन्ह/लोगो/प्रतीक/झंडे का उपयोग करना भी प्रथम दृष्टया सर्वोच्च न्यायालय और भारत के चुनाव आयोग के निर्देशों के विरुद्ध प्रतीत होता है।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसका आदेश सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रमों के शुभारंभ या कार्यान्वयन पर प्रतिबंध नहीं लगाता है।
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