राजनीति
अमित शाह ने वीर बाल दिवस और उधम सिंह की जयंती पर उनके बलिदानों को किया याद

नई दिल्ली, 26 दिसंबर : गुरु गोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादों, बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी के असाधारण साहस और बलिदान को याद करते हुए भारत सरकार 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ मना रही है। वहीं आज ही स्वतंत्रता सेनानी सरदार उधम सिंह की भी जयंती है। इस मौके पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उनके बलिदान को याद कर नमन किया। अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा कि गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों ने छोटी उम्र में भी मातृभूमि व धर्म की रक्षा हेतु दुश्मनों का बहादुरी से सामना किया। उनकी शौर्यगाथा हमारी धरोहर हैं जिसका स्मरण कर मोदी सरकार ‘वीर बाल दिवस’ मना रही है। साहिबजादों, माता गुजरी व गुरु गोविंद सिंह जी की वीरता व बलिदान को सादर नमन।
वहीं अमित शाह ने उधम सिंह को याद करते हुए लिखा कि अदम्य साहस व शौर्य के परिचायक सरदार उधम सिंह की जयंती पर उन्हें नमन करता हूं। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेकर उन्होंने साहस व बलिदान का नया अध्याय लिखा। उनके पराक्रम पर देश सदा गौरव करता रहेगा।
गौरतलब है कि इस वर्ष नौ जनवरी को श्री गुरू गोबिन्द सिंह के प्रकाश परब पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी। आज ही के दिन गुरू गोबिन्द सिंह के पुत्र साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह और साहिबजादा बाबा फतेह सिंह ने बलिदान दिया था। वहीं आज ही स्वतंत्रता सेनानी शहीद उधम सिंह की भी जयंती है।
राजनीति
पहलगाम हमले पर भारत की जवाबी कार्रवाई ने आतंकवाद की ओर दुनिया का ध्यान फिर से खींचा: पूर्व भारतीय राजदूत मंजीव पुरी

नई दिल्ली, 24 जुलाई। 22 अप्रैल के कायराना पहलगाम आतंकी हमले के लगभग तीन महीने बीत जाने के बाद, पूर्व भारतीय राजदूत मंजीव सिंह पुरी ने कहा है कि जिस तरह’ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए भारत ने आतंकवादियों को सबक सिखाया था, उसने दुनिया का ध्यान आतंकवाद की ओर वापस खींचा। सबने एक सुर में सभी प्रकार के आतंकवाद की निंदा की।
यह बयान पूर्व राजनयिक पुरी ने बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित एक सम्मेलन में दिया। इस सम्मेलन का आयोजन वैश्विक मामलों पर केंद्रित थिंक टैंक ‘द सेंटर फॉर ग्लोबल इंडिया इनसाइट्स’ और ‘इंडिया एंड द वर्ल्ड’ पत्रिका द्वारा किया गया था। इस सम्मेलन में भारत की सैन्य प्रतिक्रिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के पीछे के गहन विश्लेषण और चिंतन पर चर्चा की गई।
ऑपरेशन सिंदूर, भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ)’ द्वारा 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या का सख्त जवाब लेने के लिए शुरू की गई थी।
इस सम्मेलन में कई पूर्व रक्षा विश्लेषकों, राजनयिकों, राजनीतिक नेताओं, मीडियाकर्मियों और प्रतिष्ठित हस्तियों ने भाग लिया, जिन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को एक शक्तिशाली सैन्य प्रतिक्रिया के रूप में चर्चा, विश्लेषण और विचार-विमर्श किया और नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा स्थापित एक नया सामान्य और सिद्धांत स्थापित किया कि भारतीय धरती पर पाकिस्तान द्वारा किए गए आतंकवादी हमलों को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पहलगाम आतंकी हमले के तीन महीने बाद, पूर्व भारतीय राजदूत पुरी ने कहा, “पाकिस्तान आतंकवाद का एक प्रमुख केंद्र है और लोग इस बात से वाकिफ हैं। हालांकि, विभिन्न कारणों से, हाल के दिनों में आतंकवाद की ओर वैश्विक ध्यान थोड़ा कम हुआ है। हमने दुनिया को स्पष्ट कर दिया है कि यह ध्यान भटकना नहीं चाहिए, वैश्विक निगाहें आतंकवाद पर ही टिकी रहनी चाहिए… ठीक उसी तरह जैसे 10 साल पहले ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में पकड़ा गया था। वैश्विक आतंकवाद, सीमा पार आतंकवाद और सीमा पार आतंकवाद ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर दुनिया का ध्यान केंद्रित है। पाकिस्तान वित्तीय और अन्य चीजों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है और उसे यह समझना होगा कि उसकी धरती से पनपने वाले आतंकवाद की एक कीमत चुकानी पड़ती है, जिसका असर अंततः पाकिस्तान के लोगों पर पड़ता है। भारत और पाकिस्तान एक ही समय में आजाद हुए थे, लेकिन आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसकी प्रति व्यक्ति आय उच्च जीडीपी है, जबकि पाकिस्तान को जल्द से जल्द आतंकवाद का त्याग करना चाहिए और यह एहसास पाकिस्तान को जल्द से जल्द महसूस होना चाहिए। उन्हें (पाकिस्तान को) अपने लोगों के हितों के बारे में सोचना चाहिए और अपनी भलाई के लिए आतंकवाद का त्याग करना चाहिए।”
वहीं, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हसनैन ने कहा, “यह (ऑपरेशन सिंदूर) 88 घंटे लंबी लड़ाई थी, जो लगभग चार दिनों तक चली, लेकिन पूरा देश इसमें शामिल था। आज के आधुनिक युद्ध केवल सेना नहीं लड़ती। देश का हर अंग इसमें योगदान देता है, चाहे वह आर्थिक रूप से हो, तकनीकी रूप से हो, सैन्य रूप से हो, या आम जनता की भागीदारी के माध्यम से हो… यह एक जटिल स्थिति थी और ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियान का एक तिहाई भी केवल तीन महीनों में विश्लेषण नहीं किया जा सकता, अब तक 20 प्रतिशत का भी विश्लेषण नहीं किया गया है। पैनल चर्चा और सेमिनार जैसे आयोजनों से ऑपरेशन सिंदूर जैसी भारत की सैन्य प्रतिक्रिया के बारे में जनता में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलेगी और आतंकवाद से सख्ती से निपटने के लिए भारत को विदेशों में एक मजबूत राष्ट्र के रूप में पेश किया जा सकेगा।”
सेंटर फॉर ग्लोबल इंडिया इनसाइट्स के संस्थापक और सीईओ मनीष चंद ने कहा, “…अभी भी कई सवाल हैं। संसद में यह एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और देश के विकास से जुड़ा है। ऑपरेशन सिंदूर पर इस सम्मेलन का उद्देश्य लोगों को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ – इसके वैचारिक और मनोवैज्ञानिक आयामों – के बारे में जानकारी देना था। पहलगाम आतंकी हमला भी एक आर्थिक युद्ध था, जिसका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था, खासकर जम्मू-कश्मीर की पर्यटन-आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना था…। इसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ एक भू-राजनीतिक चाल के रूप में भी किया गया था क्योंकि भारत आज एक राष्ट्र के रूप में उभर रहा है जबकि पाकिस्तान ऐसा नहीं कर सका।”
भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृज लाल ने कहा, “…आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बेनकाब करने के नरेंद्र मोदी सरकार के वैश्विक प्रयासों के तहत, सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों ने 33 देशों का दौरा किया। मैं भी ऐसे ही एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा था जिसने जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, मलेशिया और इंडोनेशिया का दौरा किया था। वहां यह महत्वपूर्ण था कि यह विभिन्न राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल था। हमने वहां बताया कि राजनीतिक और वैचारिक रूप से अलग-अलग होने के बावजूद सभी राजनीतिक दल आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हैं। कई अन्य मुद्दों पर दोनों एक जैसे थे, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों पर एकमत थे। इससे पहले जब उरी और पठानकोट में आतंकी हमले हुए थे, तो नरेंद्र मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी। इसी तरह, पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक की और अब पहलगाम आतंकी हमले का बदला लेने के लिए ऑपरेशन सिंदूर चलाया गया।
महाराष्ट्र
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 मुंबई ट्रेन धमाकों के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के बरी करने के फैसले पर लगाई रोक

नई दिल्ली, 24 जुलाई 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 के मुंबई उपनगरीय ट्रेन धमाकों के मामले में पहले दोषी ठहराए गए 12 लोगों को बरी करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के हालिया फैसले पर रोक लगा दी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कानूनी प्रक्रिया जारी रहने तक आरोपियों को फिलहाल फिर से जेल नहीं भेजा जाएगा।
यह कदम महाराष्ट्र सरकार द्वारा हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के कुछ ही दिनों बाद आया है। सरकार ने सभी 12 दोषियों को बरी किए जाने पर गंभीर चिंता जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर अगली सुनवाई तक अस्थायी रूप से रोक लगा दी है।
मामले की पृष्ठभूमि
11 जुलाई 2006 को मुंबई की वेस्टर्न रेलवे लाइन की लोकल ट्रेनों में शाम के व्यस्त समय के दौरान एक के बाद एक कई धमाके हुए थे। इन सिलसिलेवार धमाकों में लगभग 190 लोगों की मौत हुई थी और 800 से अधिक घायल हुए थे। यह भारत के इतिहास में सबसे भीषण आतंकी हमलों में से एक था।
2015 में एक विशेष अदालत ने आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत 12 लोगों को दोषी ठहराया था। इनमें से पांच को मौत की सज़ा और बाकी को उम्रकैद दी गई थी। हालांकि, जुलाई 2025 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इन दोषियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके खिलाफ पेश सबूत कमजोर, अविश्वसनीय थे और गवाहियों में विरोधाभास तथा जांच में प्रक्रियात्मक खामियां थीं।
सुप्रीम कोर्ट की दखलअंदाजी
राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट के बरी करने के आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि भले ही हाई कोर्ट का आदेश फिलहाल निलंबित है, लेकिन जिन आरोपियों को रिहा किया जा चुका है, उन्हें इस समय वापस जेल जाने की जरूरत नहीं है।
सरकार का पक्ष
महाराष्ट्र सरकार ने हाई कोर्ट के निर्णय को अत्यंत चिंताजनक बताया। सरकार का कहना है कि निचली अदालत में हुई सुनवाई पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए हुई थी और अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए महत्वपूर्ण साक्ष्यों—जैसे कबूलनामे और जब्त सामग्रियां—को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मूल दोषसिद्धि को बहाल करने की अपील की, ताकि पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय मिल सके।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट अब हाई कोर्ट के फैसले और अभियोजन पक्ष द्वारा पेश साक्ष्यों की गहन समीक्षा करेगा। अंतिम निर्णय यह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है कि भविष्य में आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच और अभियोजन किस प्रकार किया जाएगा—विशेषकर कबूलनामों, फोरेंसिक सबूतों और कानूनी प्रक्रियाओं के पालन के संदर्भ में।
यह मामला अपनी ऐतिहासिक गंभीरता और न्याय प्रणाली पर इसके प्रभावों के कारण पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। पीड़ितों के परिवार, कानून विशेषज्ञ और मानवाधिकार कार्यकर्ता इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
‘वोक एआई’ पर ट्रंप ने लगाई पाबंदी, एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी

वाशिंगटन, 24 जुलाई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी एजेंसियों में वोक (डब्ल्यूओकेई) एआई के उपयोग पर रोक लगाने का एक कड़ा एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी कर दिया है। अपने आदेश में ट्रंप ने आरोप लगाया है कि ऐसे एआई से फैक्ट्स प्रभावित होते हैं।
ट्रंप ने अपने आदेश में कहा, कई एआई सिस्टम्स विविधिता, समानता, समावेशन (डाइवर्सिटी, इक्विटी, इंक्लूजन यानी डीईआई) जैसे वैचारिक एजेंडों से प्रभावित हैं, जिससे इतिहास, विज्ञान और तथ्यों की विश्वसनीयता पर आंच आती है।”
आदेश में स्पष्ट किया गया है कि अब से एजेंसियां केवल उन्हीं लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (एलएलएम) को खरीद सकेंगी जो सत्य और वैचारिक तटस्थता के दो सिद्धांतों का गंभीरता से पालन करेंगे।
इस आदेश में कई अहम बातें कही गई हैं, जैसे कि एआई को वैचारिक रूप से तटस्थ बनाना जरूरी होगा। ट्रंप प्रशासन के मुताबिक, एआई मॉडल्स को सिर्फ सच्चाई और फैक्ट्स के आधार पर जवाब देने चाहिए। उन्हें किसी विचारधारा, जैसे डीईआई, को तवज्जो नहीं देनी चाहिए। इसके साथ ही इसमें लिखा गया है कि एलएलएम विक्रेताओं को ये सुनिश्चित करना होगा कि मॉडल किसी एक पक्ष से प्रभावित न हो, वरना उनका अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा।
इसके साथ ही ट्रंप ने ये भी दावा किया कि उनका देश दुनिया का उन्नत एआई ढांचा तैयार करेगा। उन्होंने कहा, ” मेरा प्रशासन यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव साधन का उपयोग करेगा कि संयुक्त राज्य अमेरिका पृथ्वी पर कहीं भी सबसे बड़ा, सबसे शक्तिशाली और सबसे उन्नत एआई बुनियादी ढांचे का निर्माण और रखरखाव कर सके।”
वोक शब्द मूल रूप से एक सकारात्मक सामाजिक शब्द था, जिसका मतलब- सामाजिक अन्याय, नस्लवाद, लैंगिक भेदभाव, अलगाववाद जैसे मुद्दों के प्रति लोगों को जागरूक करना है, लेकिन हाल के वर्षों में इसका अर्थ और इस्तेमाल बदल चुका है। ये शब्द इन दिनों खुद को पोलिटिकली करेक्ट साबित करने की कोशिश के तहत किया जाता है।
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