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सपा 2022 के लिए ‘काम बोलता है’ के नारे के साथ फिर से शुरू करेगी चुनाव अभियान

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Lucknow: Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav addresses a press conference at the party office in Lucknow on March 31, 2018. (Photo: IANS)

समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए अपने लोकप्रिय नारे ‘काम बोलता है’ के नारे के साथ फिर से चुनाव मैदान में उतरेगी।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार अपनी सरकार की उपलब्धियों के बारे में ट्वीट करते रहे हैं। और यह भी बताते रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार की अधिकांश ‘उपलब्धियां’ वास्तव में उनके शासन में शुरू की गई थीं।

पार्टी अब सपा सरकार द्वारा किए गए कार्यों की तुलना भाजपा सरकार द्वारा किए गए कार्यों से करेगी। पार्टी जाति के मुद्दों को खुले तौर पर संबोधित नहीं करना चाहती है और मतदाताओं का ध्यान अपने पिछले प्रदर्शन की ओर खींचने की कोशिश करेगी।

पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, “हम अपने काम को बताएंगे। कोई बयानबाजी नहीं होगी – बस साधारण तथ्य समाने लाएंगे।”

उदाहरण के लिए, जब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुशीनगर हवाई अड्डे के लिए अंतरराष्ट्रीय दर्जा को मंजूरी दी थी, तो अखिलेश ने ट्वीट किया था। “एसपी लोगों के लिए काम करती है। जिन्होंने सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान कुशीनगर हवाईअड्डे की पहल की थी, उन्हें शुभकामनाएं। मेरठ, मुरादाबाद में सपा सरकार की लंबित हवाईअड्डा परियोजनाओं को भी मंजूरी दें।”

इससे पहले, उन्होंने गाजियाबाद-दिल्ली एलिवेटेड रोड के एक वीडियो को ‘काम बोलता है’ के रूप में टैग किया था और साथ ही जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (जेएनपीआईसी) की एक तस्वीर को भी टैग किया था,जिसका निर्माण योगी शासन में रुका हुआ है।

अखिलेश ने कहा, “क्या भाजपा हमें बता सकती है कि उन्होंने अपने दम पर किन परियोजनाओं को पूरा किया है? उनकी प्रमुख उपलब्धियां क्या हैं। असमंजस्य और नफरत फैलाने के अलावा कुछ कम नही करती है। हमारे पास आम आदमी के लाभ के लिए एक्सप्रेसवे, मेट्रो और कई अन्य परियोजनाएं थीं।”

सपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने अभियान की शुरूआत ‘काम बोलता है’ के नारे से की थी।

हालांकि, जब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सपा-कांग्रेस गठबंधन बना था, तो नारा बदलकर ‘यूपी को ये साथ पसंद है’ और पोस्टरों में अखिलेश यादव और राहुल गांधी को हाथ पकड़े हुए दिखाया गया था।

2019 के लोकसभा चुनावों में भी, सपा को यह नारा छोड़ना पड़ा जब उसने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया और उसे अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा।

पार्टी के एक कार्यकर्ता ने कहा, “हम स्पष्ट रूप से गठबंधन के लिए अपने नारे का उपयोग नहीं कर सके। इस बार, हम चुनाव लड़ रहे हैं। 2022 के चुनाव अपने बल पर और ‘काम बोलता है’ के नारे पर ही हमारा केंद्र बिंदु होगा।”

एक और नारा जो पार्टी ने चलाया है वह है ’22 में साइकिल’, जिसका इस्तेमाल पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए चुनाव पूर्व गतिविधियों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

पार्टी को एक नया चुनावी गीत भी मिला है, जिसमें लिखा है, “अखिलेश हूं मैं, प्रगति का संदेश हूं मैं” और दूसरा गीत है, “नई हवा है, नई सपना है।”

पार्टी स्पष्ट रूप से इस धारणा को दूर करने की कोशिश कर रही है कि पार्टी में दिग्गजों की कोई कमी नहीं है, जिसमें युवा नेतृत्व है – खासकर 2017 में परिवार में बहुप्रचारित झगड़े के बाद, जिसकी पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी थी।

पार्टी पहले ही चुनावी मोड में आ गई है और अखिलेश लगभग हर दिन विभिन्न जिलों के पार्टी कार्यकतार्ओं के साथ बातचीत कर रहे हैं।

राजनीति

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के खिलाफ अनुपातहीन संपत्ति के मामले में जांच की मांग वाली याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

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मुंबई, 22 दिसंबर: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ उनकी ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक संपत्ति रखने के आरोप में जांच की मांग करने वाली याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

यह याचिका अभय भिडे और उनकी बेटी गौरी भिडे ने दायर की थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि 2021-22 में दर्ज कराई गई उनकी शिकायतों पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई थी।

न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति आर.आर. भोंसले की पीठ ने गौर किया कि भीडे परिवार द्वारा दायर इसी तरह की एक जनहित याचिका (PIL) को उच्च न्यायालय ने मार्च 2023 में पहले ही खारिज कर दिया था, इसलिए वर्तमान याचिका को उसके मौजूदा स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई जनवरी में करेगा।

भीडे परिवार ने फिर से उच्च न्यायालय का रुख करते हुए दावा किया कि पहले दिए गए आश्वासनों के बावजूद, मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने उनकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि ठाकरे परिवार के पास आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति है।

याचिका के अनुसार, गौरी भिडे ने सर्वप्रथम 11 जुलाई, 2022 को मुंबई पुलिस आयुक्त को शिकायत सौंपी थी, जिसे उसी दिन ईओडब्ल्यू को भेज दिया गया था। 26 जुलाई, 2022 को एक अनुस्मारक भेजा गया था।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि दिसंबर 2022 में राज्य सरकार ने जांच शुरू करने का फैसला किया था, लेकिन न तो कोई बयान दर्ज किया गया और न ही शिकायतकर्ता को किसी भी प्रगति के बारे में सूचित किया गया।

याचिका में मांग की गई थी कि जांच को ईओडब्ल्यू से केंद्रीय एजेंसियों, जिनमें सीबीआई और ईडी शामिल हैं, को स्थानांतरित किया जाए ताकि नई जांच और फोरेंसिक ऑडिट की जा सके। इसमें अदालत की निगरानी में स्थिति रिपोर्ट जारी करने और अधिवक्ताओं के कल्याण कोष में 25,000 रुपये के भुगतान के पूर्व निर्देश को वापस लेने की भी मांग की गई थी।

मार्च 2023 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने भीडे द्वारा दायर इसी तरह की एक जनहित याचिका को “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” करार देते हुए खारिज कर दिया था। उस समय, ठाकरे परिवार के वकील ने इस याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि यह अनुमानों पर आधारित है और इसमें ठोस सबूतों का अभाव है।

चिनॉय ने बताया था कि याचिकाकर्ता के पास मजिस्ट्रेट के समक्ष निजी शिकायत दर्ज करने का वैकल्पिक उपाय भी मौजूद है। उच्च न्यायालय ने यह भी ध्यान दिया था कि ईओडब्ल्यू ने प्रारंभिक जांच शुरू कर दी थी और याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।

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अपराध

दिल्ली साइबर पुलिस ने क्यूआर कोड फ्रॉड के मास्टरमाइंड को राजस्थान से गिरफ्तार किया

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CRIME

नई दिल्ली, 23 दिसंबर: दिल्ली पुलिस की साइबर सेल, नॉर्थ डिस्ट्रिक्ट ने एक सनसनीखेज क्यूआर कोड फ्रॉड केस को सुलझाया है। आरोपी ने दुकानों के मूल क्यूआर कोड में छेड़छाड़ कर ग्राहकों के पेमेंट को अपने अकाउंट में डायवर्ट कर दिया था। पुलिस ने इंटर-स्टेट ऑपरेशन कर राजस्थान के जयपुर से 19 साल के आरोपी मनीष वर्मा को गिरफ्तार किया।

केस की शुरुआत 13 दिसंबर 2025 को हुई, जब एक शख्स चांदनी चौक की मशहूर कपड़े की दुकान पर 2.50 लाख रुपए का लहंगा खरीदने गया। उसने दुकान पर दिखाए QR कोड को स्कैन कर 90,000 और 50,000 रुपए के दो पेमेंट किए। लेकिन दुकान वाले ने कहा कि पैसे उनके ऑफिशियल अकाउंट में नहीं आए। स्क्रीनशॉट दिखाने के बावजूद दावा किया गया कि कोई पेमेंट नहीं हुआ। पीड़ित ने ऑनलाइन शिकायत की, जिस पर साइबर नॉर्थ पुलिस स्टेशन में बीएनएस की संबंधित धाराओं के तहत ई-एफआईआर दर्ज हुई।

जांच डीसीपी नॉर्थ के निर्देशन, एसीपी ऑपरेशंस विदुषी कौशिक की लीडरशिप और एसएचओ साइबर नॉर्थ रोहित गहलोत के सुपरविजन में हुई। टीम ने दुकान का स्पॉट इंस्पेक्शन किया, बिलिंग प्रोसेस वेरिफाई की और स्टाफ के बयान लिए। यूपीआई ट्रांजेक्शन ट्रेल से पता चला कि पैसे एक अलग अकाउंट में गए, जो राजस्थान से ऑपरेट हो रहा था।

टेक्निकल एनालिसिस, बैंक रिकॉर्ड और डिजिटल फुटप्रिंट्स के आधार पर आरोपी की लोकेशन ट्रेस की गई। जयपुर के चाकसू इलाके में छापेमारी कर मनीष वर्मा को पकड़ा गया। पूछताछ में उसने कबूल किया कि उसने एआई-बेस्ड इमेज एडिटिंग ऐप से मूल क्यूआर कोड में बदलाव कर मर्चेंट की डिटेल्स अपनी बदल दीं। फ्रॉड का आइडिया उसे साउथ इंडियन फिल्म ‘वेट्टैयान’ के एक सीन से मिला।

पुलिस ने उसके मोबाइल फोन जब्त किए, जिनमें 100 से ज्यादा एडिटेड क्यूआर कोड, चैट और फाइनेंशियल रिकॉर्ड मिले। ठगी की रकम उसके अकाउंट में ट्रेस हो गई। जांच से खुलासा हुआ कि आरोपी ने सिस्टमैटिक तरीके से कई दुकानों को टारगेट किया था। इससे अन्य पीड़ितों और ट्रांजेक्शनों की पहचान के लिए नई लाइन्स खुली हैं।

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पर्यावरण

अरावली को बचाने के लिए सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है : भूपेंद्र यादव

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नई दिल्ली, 23 दिसंबर: अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर उठ रहे सवालों और देशभर में चल रही चर्चाओं के बीच सरकार का पक्ष जानना अहम हो गया है। इसी संदर्भ में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने न्यूज एजेंसी मीडिया से विशेष बातचीत की और अरावली से जुड़े मुद्दों पर अपनी बात स्पष्ट रूप से रखी। इस बातचीत में उन्होंने सरकार की मंशा, नीतिगत सोच और पर्यावरण संरक्षण को लेकर उठाए जा रहे कदमों पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं इस खास बातचीत के प्रमुख अंश।

सवाल: अरावली को बचाने की बात अब पूरे देश में हो रही है। क्या यह सिर्फ अरावली तक सीमित मुद्दा है?

जवाब: अरावली को बचाना केवल एक पहाड़ी श्रृंखला को बचाने का सवाल नहीं है। यह देश के पर्यावरण, जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी संतुलन से जुड़ा विषय है। सरकार अरावली के संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट फैसला भी आ चुका है। खनन के उद्देश्य से अरावली और अरावली पहाड़ियों की परिभाषा तय की गई है। सबसे अहम बात यह है कि अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगे। जब तक एक वैज्ञानिक और ठोस मैनेजमेंट प्लान नहीं बन जाता, तब तक किसी भी तरह के नए खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस योजना को तैयार करने की जिम्मेदारी आईसीएफआरई को सौंपी गई है।

सवाल: क्या सुप्रीम कोर्ट ने अरावली में किसी तरह की छूट दी है?

जवाब: नहीं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कोई छूट नहीं मिली है। कोर्ट ने दो अहम बातें कही हैं। पहली, पर्यावरण मंत्रालय के ‘ग्रीन अरावली प्रोजेक्ट’ को मान्यता दी गई है। दूसरी, आईसीएफआरआई को यह जिम्मेदारी दी गई है कि जब तक पूरी वैज्ञानिक योजना नहीं बन जाती, तब तक कोई नया खनन नहीं होगा। इस योजना में अरावली पहाड़ियों और पूरे अरावली क्षेत्र की पहचान की जाएगी, उनकी इको-सेंसिटिविटी तय की जाएगी और उसके बाद ही आगे कोई निर्णय लिया जाएगा। यह फैसला अवैध खनन को रोकने और भविष्य में केवल सस्टेनेबल तरीके से खनन की अनुमति देने के लिए है।

सवाल: कहा जा रहा है कि पहली बार अरावली में 100 मीटर ऊंची पहाड़ियों तक खनन की अनुमति दी जाएगी। क्या यह सच है?

जवाब: यह बात पूरी तरह गलत तरीके से फैलाई जा रही है। 100 मीटर ऊंचाई की कोई अलग से अनुमति नहीं दी गई है। दरअसल, अरावली पहाड़ी की पहचान की जा रही है। यह ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर का सवाल नहीं है, बल्कि धरातल से जुड़े वैज्ञानिक मानकों का मामला है। अगर कोई पहाड़ी 200 मीटर ऊंची है, तो उसके आसपास का 500 मीटर का इलाका भी अरावली रेंज का हिस्सा माना जाएगा। जहां तक संरक्षित क्षेत्रों की बात है, वे पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। खेती योग्य भूमि का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा खनन क्षेत्र से बाहर रहेगा।

सवाल: इसे 100 मीटर के रूप में कैसे परिभाषित किया जाएगा, ऊपर से या नीचे से?

जवाब: इसे ऊपर या नीचे से नहीं, बल्कि उस जिले की भौगोलिक संरचना के आधार पर तय किया जाएगा। यानी सबसे निचले जमीनी स्तर से ऊपर तक की पूरी संरचना को ध्यान में रखकर परिभाषा तय होगी।

सवाल: सुप्रीम कोर्ट में पर्यावरण मंत्रालय का रुख क्या नया है या यह पहले से चला आ रहा है?

जवाब: अवैध खनन को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एफएसआई, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सीईसी के साथ मिलकर एक संयुक्त समिति बनाई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी, जिसके आधार पर यह फैसला आया। यह कोई नया रुख नहीं है, बल्कि लंबे समय से चल रही प्रक्रिया का नतीजा है।

सवाल: कांग्रेस सरकार के समय अरावली में खनन की स्थिति क्या थी?

जवाब: उस समय बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा था। इसी वजह से लोग अदालत गए थे और यह याचिका भी उसी दौर की है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खनन को सतत, वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और सीमित तरीके से लागू किया जाएगा ताकि अरावली को बचाया जा सके।

सवाल: आपने 2018 में कहा था कि खनन की वजह से 31 पहाड़ पूरी तरह खत्म हो गए। अगर खनन से पहाड़ खत्म होंगे तो क्या होगा?

जवाब: इसी कारण हर जिले के लिए अलग-अलग मैनेजमेंट प्लान बनाया जाएगा। बिना वैज्ञानिक योजना के किसी भी तरह की गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी। उद्देश्य पहाड़ों और पर्यावरण को बचाना है।

सवाल: कहा जा रहा है कि चित्तौड़गढ़ और माधोपुर को नए मैनेजमेंट प्लान से बाहर रखा गया है। इसमें कितनी सच्चाई है?

जवाब: यह पूरी तरह गलत है। अरावली के सभी हिस्सों को इस योजना में शामिल किया जाएगा। किसी भी जिले या क्षेत्र को बाहर नहीं रखा जा रहा है।

सवाल: आप कह रहे हैं कि अरावली को लेकर एक तरह का भ्रम फैलाया जा रहा है। क्या इसके पीछे विदेशी फंडिंग का हाथ है?

जवाब: जो लोग झूठ फैला रहे हैं, वे अपनी मर्जी से ऐसा कर रहे हैं। लेकिन वे सफल नहीं हो रहे हैं। अब जनता को सच्चाई समझ में आ गई है।

सवाल: क्या यह वही स्थिति है जैसी कभी नर्मदा परियोजना को लेकर गुजरात में बनाई गई थी?

जवाब: यह कांग्रेस के राजनीतिक माहौल में फैलाया गया एक और झूठ है। लेकिन अब लोग सच्चाई पहचान चुके हैं।

सवाल: एक समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कुडनकुलम प्लांट के विरोध में एनजीओ सिस्टम की बात की थी और विदेशी एजेंसियों का जिक्र किया था। क्या अरावली के मामले में भी ऐसा कुछ है?

जवाब: अरावली को लेकर राजनीतिक विरोधी भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनका यह भ्रम पूरी तरह नाकाम हो गया है। सरकार पूरी पारदर्शिता और वैज्ञानिक सोच के साथ अरावली के संरक्षण के लिए काम कर रही है।

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