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प्याज के दाम पर लगी लगाम, आयात भी जोर पकड़ा

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प्याज के भंडारण की सीमा निर्धारित होने से आसमान छूते दाम पर तत्काल लगाम लग गई है, लेकिन उपभोक्ता को सस्ता प्याज तभी मिल पाएगा, जब घरेलू उत्पाद की आवक बढ़ेगी, क्योंकि आयातित प्याज भी ऊंचे भाव पर ही आ रहा है। हालांकि, भाव ऊंचा होने से आयात धीरे-धीरे जोर पकड़ता जा रहा है। कारोबारियों से मिली जानकारी के अनुसार, नवंबर के पहले सप्ताह में 8000 टन आयातित प्याज भारत पहुंचेगा। केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और विदेशी प्याज के घरेलू बाजार में उतरने से प्याज की महंगाई पर लगाम लगी है और अगले महीने कीमतों में कुछ और नरमी की उम्मीद की जा रही है, हालांकि कारोबारी बताते हैं कि विदेशों से जो प्याज आ रहा है उसकी लागत 40 रुपये प्रति किलो से उपर पड़ रही है, ऐसे में उपभोक्ताओं को बहुत राहत मिलने की उम्मीद नहीं है।

मुंबई के कारोबारी और हॉर्टिकल्चर प्रोड्यूस एक्सपोटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजित शाह ने आईएएनएस को बताया, “प्याज आयात की लागत इस समय 40 रुपये प्रति रुपये किलो से उपर आ रही है। इस भाव पर आयात अभी बढ़ेगा, क्योंकि देश के किसानों को भी फिलहाल आयात से कोई नुकसान नहीं है। अगर, प्याज का आयात नहीं होता तो दाम और बढ़ जाता क्योंकि घरेलू आपूर्ति का टोटा बना हुआ है।”

अजित शाह ने बताया, “देशभर में इस समय अच्छी क्वालिटी के प्याज का थोक भाव करीब 55 रुपये से 65 रुपये प्रति किलो चल रहा है। अगले महीने के पहले सप्ताह में करीब 8000 टन प्याज विदेशों से आने वाला है। भारत इस समय ईरान, हॉलैंड, मिश्र और टर्की से प्याज मंगा रहा है। इसके अलावा, अफगानिस्तान से पंजाब के रास्ते प्याज आ रहा है।”

उधर, बाजार सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्याज का भाव उंचा होने से किसान खेतों से अपनी फसल समय से पहले निकालने लगे हैं जिससे नवंबर में घरेलू आवक भी बढ़ जाएगी।

एशिया में फलों और सब्जियों की सबसे बड़ी मंडी में शुमार दिल्ली की आजादपुर मंडी स्थित कृषि उपज विपणन समिति यानी एपीएमसी की कीमत सूची के अनुसार, “मंगलवार को लगातार तीसरे दिन प्याज का थोक भाव 12.50 रुपये 35 रुपये प्रति किलो पर स्थिर रहा। इससे पहले 22 अक्टूबर को आजादपुर मंडी में प्याज का भाव 40 रुपये प्रति किलो तक चला गया था, लेकिन 23 अक्टूबर को केंद्र सरकार द्वारा प्याज भंडारण की सीमा तय करने के बाद कीमत में थोड़ी नरमी आई है। हालांकि देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाके में प्याज का खुदरा भाव अभी भी 70 रुपये से 90 रुपये प्रति किलो है।”

हालांकि, आजादपुर मंडी पोटैटो ऑनियन मर्चेंट एसोसिएशन यानी पोमा के जनरल सेक्रेटरी राजेंद्र शर्मा का कहना है कि प्याज के दाम में नरमी तभी आएगी, जब घरेलू आवक बढ़ेगी। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से कीमतों में हो रही वृद्धि थम गई है, लेकिन अभी भाव घटा नहीं है। इस समय आयातित पीला प्याज 40 रुपये से 45 रुपये प्रति किलो जबकि लाल प्याज 50 रुपये से 55 रुपये प्रति किलो थोक में बिक रहा है।”

महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई प्याज उत्पादक जिलों में भारी वर्षा के चलते प्याज की खरीफ फसल खराब हो जाने से देश में प्याज की कीमतों में हो रही वृद्धि को देखते हुए केंद्र सरकार ने पहले 14 सितंबर को प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। उसके बाद 23 अक्टूबर को प्याज भंडारण की सीमा तय कर दी गई। इस सीमा के मुताबिक 31 दिसंबर तक थोक विक्रेता के लिए अधिकतम 25 टन और खुदरा विक्रेता अधिकतम दो टन प्याज का स्टॉक रखने की इजाजत दी गई है।

केंद्र सरकार ने कहा कि आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 में यह प्रावधान है कि कुछ खास परिस्थितियों में जब कीमतें सामान्य से ज्यादा बढ़ जाएं तो सरकार स्टॉक लिमिट लगा सकती है।

केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्याज की औसत खुदरा कीमतों में 21 अक्टूबर तक विविधता देखी गई है जो कि पिछले साल की तुलना में 22.12 प्रतिशत (45.33 रूपए से 55.60 रूपए प्रति किलो) और पिछले पांच सालों की तुलना में 114.16 प्रतिशत (25.87 से 55.60 रूपए प्रति किलो) रही है। इस तरह पिछले पांच साल की कीमतों से तुलना में प्याज की कीमतों में 100 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है और आवश्यक वस्तु अधिनियम के मुताबिक ये कीमतों में वृद्धि को छू गई है। इसलिए प्याज पर आज से स्टॉक लिमिट लगाई गई है।

इसके अलावा, नेफेड के पास पड़े बफर स्टॉक से भी प्याज निकाला जा रहा है। नेफेड ने बीते फसल वर्ष में एक लाख टन प्याज का बफर स्टॉक रखा था, लेकिन बताया जा रहा है कि उसमें से करीब 25 फीसदी प्याज खराब हो गया।

रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर के दूसरे हफ्ते से प्याज को देश की बड़ी मंडियों के साथ-साथ खुदरा वितरण केंद्रों जैसे सफल, केंद्रीय भंडार, एनसीसीएफ, टीएएनएचओडीए एवं टीएएनएफईडी (तमिलनाडु सरकार), और बड़े शहरों में और राज्यों में एनएएफईडी केंद्रों तक तेजी से पहुंचाया जा रहा है।

प्याज के आयात के लिए निजी आयातकों को बढ़ावा देने के लिए यह भी तय किया गया कि एमएमटीसी लाल प्याज का आयात करेगा, ताकि आपूर्ति में आ रही कमी को पूरा किया जा सके।

राजनीति

मतगणना प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की पहल, चुनाव आयोग ने जारी किए निर्देश

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नई दिल्ली, 25 सितंबर चुनाव आयोग ने गुरुवार को पिछले छह महीनों में अपने 30वें बड़े कदम के तौर पर एक नया निर्देश जारी किया। इसका उद्देश्य मतगणना प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना है, खासकर डाक मतपत्रों की गिनती के लिए।

आयोग के प्रेस नोट में इस कदम के बारे में बताया गया, जिसका उद्देश्य वोटों की गिनती में देरी को कम करने के साथ-साथ पारदर्शिता और एकरूपता सुनिश्चित करना है।

चुनाव आयोग का यह फैसला पोस्टल बैलेट की संख्या में हुई भारी बढ़ोतरी के मद्देनजर लिया गया है। यह बढ़ोतरी विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) और 85 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के लिए घर पर मतदान जैसी हाल की पहलों का परिणाम है।

हालांकि, आमतौर पर पोस्टल बैलेट की गिनती इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से वोटों की गिनती से पहले पूरी हो जाती है, लेकिन यह नया नियम इस प्रक्रिया को औपचारिक बनाने के लिए है।

नए निर्देश के अनुसार, चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम/वीवीपैट की मतगणना का दूसरा अंतिम चरण तब तक शुरू नहीं होगा जब तक डाक मतपत्रों (पोस्टल बैलट) की गिनती पूरी नहीं हो जाती उस मतगणना केंद्र पर जहां डाक मतपत्रों की गिनती हो रही है।

चुनाव आयोग ने यह भी निर्देश दिया कि जहां डाक मतपत्रों की संख्या अधिक हो, वहां रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) को यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्याप्त संख्या में टेबल और गिनती कर्मचारी उपलब्ध हों ताकि कोई देरी न हो और मतगणना प्रक्रिया को और सुचारू बनाया जा सके।

प्रेस नोट में इस बात पर जोर दिया गया है कि यह पूरी प्रक्रिया को और अधिक सुव्यवस्थित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

यह पहल चुनाव आयोग की ओर से पिछले छह महीनों में किए गए व्यापक चुनावी सुधारों की श्रृंखला का एक हिस्सा है।

आयोग के पिछले 29 उपायों में मतदाताओं की सुविधा बढ़ाने, चुनावी प्रणाली को मजबूत करने और तकनीक के उपयोग को बेहतर बनाने की पहल शामिल रही हैं।

इनमें मतदाताओं के लिए मोबाइल डिपॉजिट सुविधा, 808 रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को सूची से हटाना, भीड़ कम करने के लिए एक मतदान केंद्र में 1,200 से अधिक मतदाता न रखना, बीएलओ को स्टैंडर्ड फोटो आईडी कार्ड जारी करना, ईआरओ, डीईओ और सीईओ स्तर पर देश भर में 4,719 सर्वदलीय बैठकें आयोजित करना, ईसीआईएनईटी डिजिटल प्लेटफॉर्म का शुभारंभ आदि शामिल हैं।

पोस्टल बैलेट पर नया निर्देश चुनाव आयोग की चुनावी प्रणाली की कार्यक्षमता और पारदर्शिता में सुधार के प्रति उसकी निरंतर प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है।

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राष्ट्रीय

7 सितंबर को लगेगा. साल का आखिरी चंद्र ग्रहण, इन राशि वालों को रहना होगा सतर्क

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नई दिल्ली, 6 सितंबर। इस साल का दूसरा और आखिरी पूर्ण चंद्र ग्रहण 7 सितंबर को है। जब धरती सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और अपनी छाया चांद पर डालती है, तब चंद्र ग्रहण होता है। यह खगोलीय घटना न सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए खास है, बल्कि धार्मिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

इस बार का चंद्र ग्रहण रात 9 बजकर 58 मिनट पर शुरू होगा और 8 सितंबर की रात 1 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा। चंद्रमा पूरी तरह धरती की छाया में डूब जाएगा, जिसे आम भाषा में ‘ब्लड मून’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चंद्रमा उस समय हल्के लाल रंग का दिखता है। यह पूरा ग्रहण लगभग 3 घंटे 28 मिनट तक चलेगा और भारत के सभी हिस्सों में आसानी से दिखाई देगा।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्र ग्रहण के समय सूतक काल लगता है, जिसे अशुभ काल कहा जाता है। इस बार सूतक काल दोपहर 12 बजकर 57 मिनट से शुरू होगा, जो ग्रहण मोक्ष यानी समाप्ति के समय रात 1:26 बजे तक जारी रहेगी। इस दौरान मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। पूजा-पाठ, भोजन बनाना, या खाना खाना मना होता है। गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे कि नुकीली चीजों से दूर रहना और बाहर न निकलना। इस समय केवल भगवान का नाम जपना, मंत्र जाप करना और ध्यान लगाना ही शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दौरान मंत्रों की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

ज्योतिष के मुताबिक, यह चंद्र ग्रहण भी बेहद खास है क्योंकि यह शनि की राशि कुंभ और गुरु के नक्षत्र पूर्वाभाद्रपद में लग रहा है। साथ ही राहु चंद्रमा के साथ युति बना रहा है, जिससे ग्रहण योग बनता है। यह योग कुछ राशियों के लिए थोड़ी मुश्किलें लेकर आ सकता है। वृषभ, तुला और कुंभ राशि वाले लोगों को खास सतर्क रहने की जरूरत है। वृषभ राशि वालों को स्वास्थ्य और व्यापार में परेशानी हो सकती है, तुला राशि के लोगों को मानसिक तनाव और धन के मामलों में नुकसान झेलना पड़ सकता है, जबकि कुंभ राशि में तो ग्रहण लग ही रहा है, इसलिए उनके लिए यह समय काफी संवेदनशील माना जा रहा है।

इन समस्याओं के समाधान के तौर पर वृषभ राशि के लोग सफेद वस्त्र पहनें और दूध का दान करें। तुला राशि के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करें और वस्त्र दान करें, और कुंभ राशि के जातक महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। ग्रहण समाप्त होने के बाद हर व्यक्ति को स्नान करके साफ वस्त्र पहनने चाहिए, भगवान को भोग लगाना चाहिए, और जरूरतमंदों को दान देना चाहिए। इससे मन को शांति और जीवन में शुभ ऊर्जा मिलती है।

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अंतरराष्ट्रीय

डोनाल्ड ट्रंप का 50 प्रतिशत वाला टैरिफ बम, भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’

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PM MODI

नई दिल्ली, 8 अगस्त। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रह-रहकर भारत को टैरिफ का दिखाया जा रहा डर अब उनके लिए ही परेशानी का कारण बनता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से अमेरिका भारत के खिलाफ टैरिफ बम फोड़ने की धमकी दे रहा है, उसका माकूल जवाब भारत सरकार की तरफ से दिया जा रहा है।

दरअसल, भारत एक ऐसा वैश्विक बाजार बन चुका है, जिसकी जरूरत दुनिया के देशों को अपना व्यापार चलाने के लिए है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। भारत इस मामले में अमेरिका से आगे है और यही वजह है कि भारत के बाजार पर पूरी दुनिया की नजर है।

पिछले कुछ दिनों में भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा दी जा रही टैरिफ धमकी का जवाब जिस तरह से दिया जा रहा है, वह भारत की वैश्विक ताकत को दिखाता है। एक तरफ जहां भारत के खिलाफ टैरिफ की धमकी अमेरिका के राष्ट्रपति दे रहे हैं तो उनका जवाब भारत की तरफ से देने के लिए विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता सामने आ रहे हैं। मतलब दुनिया के सबसे ताकतवर देश होने का दंभ भरने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति की धमकी का जवाब भी भारत के प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री स्तर के नेता के द्वारा नहीं दिया जा रहा है।

अब एक बार भारत की तरफ से किए गए निश्चय पर ध्यान दें तो आपको पता चल जाएगा कि आखिर भारत अमेरिका की टैरिफ वाली धमकी को इतनी गंभीरता से क्यों नहीं ले रहा है। भारत ने ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी पर जो जवाब दिया है, उसका संदेश साफ है। भारत की तरफ से दिए गए जवाब को देखेंगे तो इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका के टैरिफ की भारत को कोई चिंता नहीं है और इसकी सबसे बड़ी वजह भारत का खुद आत्मनिर्भर बनना है। चाहे वह रक्षा का मामला हो या सुरक्षा का। दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि अमेरिका से डील की किसी डेडलाइन की चिंता भारत में दिख नहीं रही है और सरकार की तरफ से साफ संदेश जा रहा है कि भारत प्रेशर में आने वाला नहीं है, ना ही प्रेशर में आकर कोई डील करेगा। इसके साथ ही भारत ट्रंप की मंशा भी अच्छी तरह से समझ रहा है कि अमेरिका भारत के पूरे बाजार में बेरोकटोक एक्सेस चाहता है जो किसी हाल में भारत देने को तैयार नहीं है।

इसके साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार देश के किसानों और छोटे व्यवसायियों को किसी भी हाल में नुकसान होने देने के मूड में नहीं दिख रही है। वहीं, अमेरिका की तरफ से इस टैरिफ धमकी के जरिए इस पर भी दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है कि भारत अपने सबसे पुराने मित्र रूस से अपनी दोस्ती समाप्त कर ले तो भारत का यह संदेश भी स्पष्ट है कि ऐसा कभी होने वाला नहीं है।

भारत की अर्थव्यवस्था को ‘डेड’ बताने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी पता है कि भारत का बाजार जिस दिन अमेरिका के लिए बंद हुआ, उस दिन उनकी कई कंपनियों पर ताले लग जाएंगे। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। अब एक बार जानिए कि परचेजिंग पावर पैरिटी है क्या?

दरअसल, क्रय-शक्ति समता (परचेजिंग पावर पैरिटी- पीपीपी) अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है। जिसको आसान भाषा में समझिए कि यह एक-दूसरे देश में जीवन शैली पर किए गए व्यय के अनुपात को दर्शाता है। इसके अनुसार विभिन्न देशों में एकसमान वस्तुओं की कीमत समान रहती है। मतलब परचेजिंग पावर पैरिटी विभिन्न देशों में कीमतों का माप है, जो देशों की मुद्राओं की पूर्ण क्रय शक्ति की तुलना करने के लिए विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों का उपयोग करती है।

यानी प्रत्येक देश में सामान और सेवाएं खरीदने के लिए एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित करना होता है। अब इसे ऐसे समझें कि भारत के मध्यम वर्ग के लिए एक साल का बजट अगर 25 लाख का होता है, तो अमेरिका के मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यही बजट यहां की मुद्रा के अनुसार 80 लाख से ज्यादा होता है।

अब भारत ने अमेरिका के उस दोहरे रवैये को भी उजागर कर दिया है, जिसमें अमेरिका भारत को रूस से दोस्ती और व्यापार खत्म करने के लिए धमकी दे रहा है। वहीं, वह खुद रूस से भारी मात्रा में तेल, गैस और फर्टिलाइजर खरीदता है।

हालांकि, भारत का विपक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत के ‘डेड’ इकोनॉमी वाले दावे पर सरकार को घेरने की कोशिश तो कर रहा है। लेकिन, विपक्ष के शशि थरूर, मनीष तिवारी और राजीव शुक्ला के साथ कई अन्य नेता भी हैं, जो ट्रंप के इस दावे को भद्दा मजाक तक बता दे रहे हैं। मतलब भारत में तो ट्रंप के दावे को भी मजाक में ही लिया जा रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता में वापसी के बाद दुनिया के 70 से ज्यादा देशों पर टैरिफ बम फोड़ रखा है और उसे भी यह पता है कि इससे अमेरिका को भी बड़ा नुकसान होने वाला है। इसको सबसे पहले टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने समझा और उन्होंने सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति का विरोध करते हुए उनका साथ छोड़ दिया। ट्रंप के टैरिफ बम वाले दिखावे की वजह से अमेरिका के उद्योगपति भी घबराए हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप के साथ जिन देशों ने ट्रेड डील करने का दावा किया, उन्हें भी इस टैरिफ के मामले में नहीं बख्शा गया है। अब पाकिस्तान को हीं देख लें, जिस देश का सेना प्रमुख डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग कर रहा है, उस पर भी ट्रंप ने 19 प्रतिशत टैरिफ ठोंक रखा है।

वैसे भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की व्यापक सफलता के बाद से भारत में निर्मित हथियारों की दुनिया में तेजी से मांग बढ़ी है। ऐसे में अमेरिका, जो अपने आप को आधुनिक हथियारों का सबसे बड़ा डीलर मानता है, उसकी चिंता ज्यादा बढ़ गई है।

दूसरा, भारत तेल की खरीदारी भी भारी मात्रा में रूस से करता है, जबकि अमेरिका इस पर भी नजरें गड़ाए बैठा है कि भारत रूस को छोड़कर उससे तेल का सौदा करे। लेकिन, इस सब के बीच जैसे ही ट्रंप ने भारत के खिलाफ 50 प्रतिशत टैरिफ की बात कही, उससे पहले पीएम मोदी के चीन दौरे और फिर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे की खबर ने उसकी बेचैनी बढ़ा दी है। अमेरिका जानता है कि रूस, चीन और भारत अगर एक बेस पर आ गए तो अमेरिका के लिए यह बड़ा महंगा पड़ सकता है। डोनाल्ड ट्रंप भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत के खिलाफ जो उनका टैरिफ बम है, वह उनके देश की सेहत को भी नुकसान पहुंचाएगा। अमेरिका में दवाएं, ज्वेलरी, गोल्ड प्लेटेड गहने, स्मार्टफोन, तौलिये, बेडशीट, बच्चों के कपड़े तक महंगे हो जाएंगे।

अभी ये तो भारत की बात थी, लेकिन देखिए कैसे अमेरिका के खिलाफ दुनिया के और देश आगे आए हैं। भारत की वैश्विक ताकत का अंदाजा इससे लगाइए कि अभी कुछ दिन पहले विदेशी मीडिया की खबरों के अनुसार ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने अमेरिकी टैरिफ के मुद्दे को सुलझाने के लिए ट्रंप से बात करने के सवाल पर साफ कह दिया कि उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। इसके बजाय वे भारत के पीएम नरेंद्र मोदी को कॉल कर लेंगे, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कॉल कर लेंगे, लेकिन वे ट्रंप को कॉल नहीं करेंगे।

लूला ने जो कहा उसके अनुसार, ”मैं ट्रंप को कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे बात ही नहीं करना चाहते हैं, मैं शी जिनपिंग को कॉल करूंगा, मैं पीएम मोदी को कॉल करूंगा, मैं पुतिन को इस समय कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे अभी यात्रा करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन मैं कई और राष्ट्रपतियों को कॉल करूंगा।”

लूला के इस बयान से ट्रंप को कैसी मिर्ची लगी होगी, यह तो सभी जानते हैं। उधर, पीएम मोदी का जिस अंदाज में लूला ने नाम लिया, वह भी ट्रंप के लिए चुभने वाला है। लूला ने तो ट्रंप की नीतियों को “ब्लैकमेल” बताते हुए साफ कर दिया कि अमेरिका ब्राजील पर टैरिफ लगाकर देखे, ब्राजील भी इसका जवाब शुल्क लगाकर देगा।

इसके साथ ही भारत और रूस की दोस्ती ही केवल अमेरिकी राष्ट्रपति की घबराहट की वजह नहीं है। दरअसल, भारत-पाकिस्तान और कंबोडिया और थाइलैंड के बीच सीजफायर को लेकर ट्रंप ने जैसे अपनी पीठ बिना किसी बात के थपथपाई वही कोशिश वह रूस-यूक्रेन के बीच भी सीजफायर होने के बाद करना चाह रहे थे। लेकिन, यूक्रेन-रूस की जंग रोकने के लिए ट्रंप ने जितने हथकंडे अपनाए सब फेल हो गए। पुतिन को ट्रंप ने हाई टैरिफ की धमकी भी दी, लेकिन रूस पर फिर भी कोई असर नहीं पड़ा तो ट्रंप बैखला गए। इसके बाद ट्रंप ने रूस के मित्र देशों और उनके साथ व्यापार करने वालों को निशाना बनाना शुरू किया। इसमें सबसे पहले ट्रंप के निशाने पर भारत, चीन और ब्राजील आए, लेकिन तीनों ही देशों पर ट्रंप की धमकी का वैसा ही असर पड़ा, जैसा रूस पर पड़ा था। अब ट्रंप गुस्से से आग बबूला होकर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं।

वहीं, ट्रंप ब्रिक्स देशों के फाउंडर रहे भारत के खिलाफ तो टैरिफ की धमकी दे ही रहे हैं। वह ब्रिक्स में शामिल अन्य देशों के खिलाफ भी 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दे चुके हैं। ब्रिक्स दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें, ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साउथ अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात शामिल है। इन ब्रिक्स देशों की तरफ से एक-दूसरे से अपनी करेंसी में ट्रेड किया जाता है, वहीं इस समूह ने एक प्रपोजल भी दिया था कि इन देशों के बीच ट्रेड के लिए एक इंटरनेशनल करेंसी तैयार की जाए, ऐसे में डॉलर पर बड़े देशों या कहें कि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों की निर्भरता कम हो जाने से अमेरिका का विश्व में प्रभुत्व बरकरार रखने पर भी खतरा मंडराएगा। ट्रंप को यह चिंता भी सता रही है।

जिस तरह से भारत डोनाल्ड ट्रंप की तमाम धमकियों के बाद भी अपने रुख पर अड़ा हुआ है और भारतीय बाजार को अमेरिका के लिए उसकी शर्तों पर खोलने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। इससे भी ट्रंप के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ उभर आई हैं। ऐसे में अब ट्रंप को भारत से जिस भाषा में जवाब मिल रहा है, वह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि अमेरिका की टैरिफ धमकी भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’ जैसी है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

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