राष्ट्रीय समाचार
1967 की लड़ाई भारत-चीन सैन्य इतिहास का महत्वपूर्ण मोड़ है : प्रबल दासगुप्ता
इंडिया नैरेटिव डॉट कॉम के राहुल कुमार ने भारतीय सेना के पूर्व दिग्गज और लेखक प्रबल दासगुप्ता से उनकी किताब ‘वॉटरशेड 1967: इंडियाज फॉरगॉटेन विक्ट्री ओवर चाइना’ के बारे में बात की और 1967 की लड़ाई के लंबे समय तक चलने वाले प्रभाव पर चर्चा की।
दासगुप्ता एक अमेरिकी कंपनी के सलाहकार हैं और फिलहाल मुंबई में रहते हैं। ‘वॉटरशेड 1967’ उनकी पहली किताब है।
पेश है साक्षात्कार के कुछ प्रमुख अंश:
प्रश्न: लड़ाई के कई दशकों बाद ‘वॉटरशेड 1967: इंडियाज फॉरगॉटेन विक्ट्री ओवर चाइना’ किताब लिखने के लिए आपको किस चीज ने प्रेरित किया?
उत्तर: इस किताब को लिखने का एक मुख्य कारण यह है कि भारत और चीन पर अंतिम प्रतिक्रिया हमेशा 1962 का युद्ध ही रहा है। चीन लगातार इस पर अपमानजनक तरीके से तंज कसता है। आज लोग गलवान घाटी के बारे में बात करते हैं, क्योंकि उन्होंने इसे टीवी पर देखा है। लेकिन वे अभी भी चीन के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। सड़क पर मौजूद आदमी पाकिस्तान के साथ युद्धों के बारे में तो फिर भी जानता है, मगर वह चीन के बारे में नहीं जानता। दो पीढ़ियां बीत चुकी हैं, लेकिन चीन के बारे में हमारी अधिकांश समझ 1962 के युद्ध से ही बनी हुई है।
चीन के बारे में समझ की बड़ी कमी है। 1962 के युद्ध का एक विस्तृत और गलत संदर्भ मौजूद है, जबकि नाथू ला और चो ला की 1967 की लड़ाई के बारे में नहीं लिखा गया है।
1967 के बारे में कुछ भी नहीं लिखा गया है। हमारे देश में कई लोगों, जिनमें सशस्त्र बल भी शामिल हैं, उन्होंने 1967 में चीन के साथ हमारी लड़ाई के बारे में नहीं सुना है, जहां हमने उन्हें हरा दिया था। इसलिए 1967 से इस जानकारी और यादों को सामने लाना महत्वपूर्ण था। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो इतिहास की दरारों में ही फंसकर रह गई। यह एक ऐसी कहानी थी, जिसका इंतजार इसलिए भी किया जा रहा था, क्योंकि कोई भी इसे नहीं जानता था।
प्रश्न: पुस्तक लिखना अपने आप में एक परियोजना ( प्रोजेक्ट ) है। आपने इसे किस तरह से शुरू किया?
उत्तर: एक दिन मैं एक दोस्त के साथ हैदराबाद में दोपहर का भोजन (लंच) कर रहा था, जो एक लेखक है। मैंने उसे इस लड़ाई के बारे में बताया कि भारत ने 1967 में चीन के खिलाफ जीत हासिल की थी। उसने मुझे बड़े आश्चर्य से देखा और फिर कहा, आप इस बारे में लिख क्यों नहीं रहे हैं। जब मैंने इसके बारे में शोध करना शुरू किया तो मैंने महसूस किया कि मुझे इसका केवल 20 प्रतिशत ही पता था।
मैंने 1967 के युद्ध में भाग लेने वाले बचे हुए सैनिकों से बातचीत करना शुरू किया। मुझे पता चला कि लोगों के पास उस समय की मजबूत यादें हैं और उन्होंने आखिरी मिनट तक की घटनाओं को याद किया। मैंने अपने कार्यालय से छुट्टी ली और दो साल में देश भर में यात्रा करते हुए लोगों से बातचीत की।
मैंने सिक्किम में सैनिकों, अधिकारियों, नौकरशाहों और स्थानीय लोगों के साथ भी बात की। इनमें से अधिकांश लोगों को धुंधली याद थी और उन्होंने इस मुद्दे पर अलग-अलग ²ष्टिकोण रखा। सिक्किम की सीमा पर बसे गांवों के लोग भी उस समय के उस शोर को याद करते हैं, जो गोले छोड़े जाने के बाद आता है। मैंने बटालियनों के दिग्गजों से भी बातचीत की, जो उस लड़ाई में लड़े थे। मैं मेजर जनरल रणधीर सिंह से मिला, जिन्होंने इस लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
मैं लड़ाई और उस जगह से जुड़े तमाम लोगों से मिला, जो वहां लड़े थे।
प्रश्न: यह तो गर्व की बात है और अगर 1967 की लड़ाई इतनी महत्वपूर्ण है, तो हम इसके बारे में बात क्यों नहीं करते?
उत्तर: कई कारक इसके कारण हैं। यह एक ऐसी लड़ाई थी, जिसकी योजना राजनेताओं ने नहीं बनाई थी। कहने का मतलब यह है कि यह सैन्य कमांडरों के नेतृत्व में लड़ी गई एक लड़ाई थी, लेकिन राजनेता इसमें शामिल नहीं थे।
इसके अलावा इसके बाद 1971 का युद्ध हुआ और हर कोई 1967 को भूल गया। इसी तरह से हम 1961 में पुर्तगाली सेना और भारतीय सेना के बीच झड़प के बारे में ज्यादा बात नहीं करते हैं। आधिकारिक तौर पर यह केवल पुलिस कार्रवाई के रूप में जाना जाता है, जो यह नहीं था। भारतीय सेना गोवा को भारत में एकीकृत करने में शामिल थी।
प्रश्न: इस युद्ध का चीन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: इस लड़ाई ने भारत के लिए 50 वर्षों तक के इतिहास को बदल दिया। गलवान घाटी के घटनाक्रम तक, चीन ने सैन्य विद्रोह का सामना करने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि हमने 1967 में मनोवैज्ञानिक जीत दर्ज की थी। इसमें अन्य नियंत्रण उपायों जैसे समझौतों और प्रोटोकॉल भी बीच में थे, लेकिन 1967 ने खाका तय किया। यही नहीं चीन ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हस्तक्षेप नहीं किया, भले ही वह ऐसा करने के लिए प्रलोभन दे रहा था। संक्षेप में कहूं तो चीन के पास पाकिस्तान के समर्थन में भारत के खिलाफ कई विकल्प थे, लेकिन उसने ऐसा करने से परहेज किया। इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि 1967 में उसकी हार हुई थी।
एक और कारण यह था कि 1967 के संघर्ष पर शोध करने वाले कई पश्चिमी लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि चीन को एहसास हो चुका है कि वह भारत को सैन्य रूप से परास्त नहीं कर सकता।
राजनीति
केरल सरकार ने एसआईआर को स्थगित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका, आईयूएमएल ने भी की मांग

SUPRIM COURT
तिरुवनंतपुरम, 18 नवंबर: केरल सरकार ने निर्वाचन आयोग के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राज्य सरकार ने याचिका में मांग की है कि स्थानीय निकाय चुनावों के समाप्त होने तक एसआईआर को स्थगित किया जाए।
राज्य सरकार के साथ ही, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एसआईआर प्रक्रिया को तत्काल रोकने की मांग की है। दोनों याचिकाओं में मुख्य तर्क यही है कि एसआईआर और स्थानीय निकाय चुनावों का एक साथ होना प्रशासनिक रूप से असंभव है और इससे मतदाताओं के अधिकारों का हनन होगा।
केरल सरकार की याचिका आर्टिकल 32 के तहत दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य में 1,200 स्थानीय स्वशासन संस्थाएं (एलएसजीआई) हैं, जिनमें 941 ग्राम पंचायतें, 152 ब्लॉक पंचायत, 14 जिला पंचायत, 87 नगर पालिकाएं और 6 निगम शामिल हैं। इनके कुल 23,612 वार्डों के लिए चुनाव दो चरणों में 9 और 11 दिसंबर को होने हैं, जबकि गिनती 13 दिसंबर को होगी।
एसआईआर प्रक्रिया 4 नवंबर से शुरू हो चुकी है और ड्राफ्ट मतदाता सूची 4 दिसंबर को प्रकाशित होनी है। याचिका में तर्क दिया गया कि इन चुनावों के लिए 1,76,000 कर्मियों और 68,000 सुरक्षा बलों की जरूरत है, जबकि एसआईआर के लिए अतिरिक्त 25,668 कर्मी चाहिए। इससे प्रशासनिक मशीनरी पर भारी दबाव पड़ेगा और सामान्य शासन व्यवस्था ठप हो जाएगी।
सरकार ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243-ई और 243-यू तथा केरल पंचायत राज अधिनियम की धारा 38 और नगर निगम अधिनियम की धारा 94 के तहत स्थानीय निकाय चुनाव पिछले परिषदों की पहली बैठक के पांच वर्ष के भीतर अनिवार्य हैं। वहीं, एसआईआर के लिए कोई ऐसा संवैधानिक बाध्यकारी प्रावधान नहीं है।
याचिका में निर्वाचन आयोग से अपील की गई है कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक एसआईआर को स्थगित किया जाए, क्योंकि इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होगा। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह SIR की वैधता पर बाद में सवाल उठा सकती है, लेकिन फिलहाल केवल स्थगन की मांग कर रही है।
राष्ट्रीय समाचार
मुंबई एयरपोर्ट पर मल्टी-एजेंसी रेडियोलॉजिकल इमरजेंसी मॉक ड्रिल, कई एजेंसियों ने लिया हिस्सा

मुंबई, 18 नवंबर: मुंबई एयरपोर्ट पर मंगलवार को एक बड़ी रेडियोलॉजिकल इमरजेंसी मॉक ड्रिल (आरईएमई) का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। यह अभ्यास एयरपोर्ट के डिपार्चर गेट पर आयोजित किया गया, जिसमें कई महत्वपूर्ण एजेंसियों ने सक्रिय रूप से हिस्सा लेकर आपातकालीन स्थितियों से निपटने की संयुक्त क्षमता का प्रदर्शन किया।
इस मॉक ड्रिल में एनडीआरएफ, एमआईएएल, बीएआरसी, बीएमसी फायर, एआरएफएफ फायर यूनिट, मेडिकल टीम, इमिग्रेशन विभाग, बीसीएएस और एयरलाइन स्टाफ शामिल रहे। सभी टीमों ने मिलकर एक समन्वित प्रतिक्रिया प्रणाली का अभ्यास किया, जिसके माध्यम से यह परखा गया कि रेडियोलॉजिकल खतरे की स्थिति में वे कितनी जल्दी, सटीकता और प्रभावी ढंग से कार्रवाई कर सकती हैं।
एयरपोर्ट जैसे हाई-फुटफॉल वाले संवेदनशील क्षेत्र में इस तरह के मॉक अभ्यास अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन ड्रिल्स से न केवल संयुक्त एजेंसियों की तैयारी और तत्परता को मजबूत किया जाता है, बल्कि आपदा की स्थिति में तेज निर्णय लेने, जोखिम नियंत्रण और जन सुरक्षा सुनिश्चित करने की क्षमता में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी होती है।
सीआईएसएफ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस अभियान की जानकारी देते हुए लिखा, “मुंबई हवाई अड्डे पर बहु-एजेंसी रेडियोलॉजिकल आपातकालीन मॉक ड्रिल का आयोजन हुआ। मुंबई हवाई अड्डे के प्रस्थान द्वार पर एक एक आरईएमई आयोजित की गई, जिसमें एनडीआरएफ, एमआईएएल, बीएआरसी, बीएमसी फायर, एआरएफएफ फायर, चिकित्सा दल, इमिग्रेशन विभाग, बीसीएएस और एयरलाइन कर्मचारियों की सक्रिय भागीदारी रही। इसका उद्देश्य रेडियोलॉजिकल आपात स्थितियों के दौरान संयुक्त प्रतिक्रिया क्षमता और निर्बाध अंतर-संचालन को मजबूत करना था।”
सीआईएसएफ ने आगे कहा कि इस तरह की मॉक ड्रिल, उच्च-आवागमन वाले विमानन वातावरण में स्थितिजन्य तत्परता, त्वरित निर्णय लेने और रेडियोलॉजिकल आपात स्थितियों के प्रभावी प्रबंधन को बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं।
अपराध
मुंबई: नाबालिग छात्राओं से छेड़छाड़ के आरोप में वैन ड्राइवर गिरफ्तार, पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई

CRIME
मुंबई, 18 नवंबर: मुंबई के जुहू इलाके में तीन नाबालिग स्कूल छात्राओं से छेड़छाड़ का मामला सामने आया। पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए 48 वर्षीय एक प्राइवेट स्कूल वैन चालक को गिरफ्तार किया है। वैन चालक पर तीन बच्चियों के साथ अश्लील हरकतें करने का आरोप है। सभी बच्चियां शहर के एक नामी स्कूल में पढ़ती हैं।
जानकारी के मुताबिक, 8 से 11 साल की उम्र की इन बच्चियों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए उनके परिवार ने निजी वैन की व्यवस्था की थी। आरोपी ड्राइवर पिछले कई महीनों से वैन चलाकर बच्चे छोड़ने-लाने का काम कर रहा था। कुछ दिन पहले उसने अवसर पाकर तीनों बच्चियों के साथ कथित तौर पर अनुचित व्यवहार किया और उन्हें गलत तरीके से छुआ।
जुहू पुलिस ने बताया कि ड्राइवर वैन के अंदर अश्लील हरकतें करता था। एक बच्ची ने हिम्मत जुटाकर अपने परिवार को इसकी जानकारी दी। इसके बाद बच्ची के परिवार ने तुरंत पुलिस से संपर्क किया और आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
शिकायत मिलते ही जुहू पुलिस ने मामले में त्वरित कार्रवाई की और आरोपी वैन चालक को गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। पूछताछ के बाद पुलिस ने आरोपी को कोर्ट में पेश किया, जहां अदालत ने उसे पांच दिनों की पुलिस कस्टडी में भेजने का आदेश दिया है।
इसी तरह, एक अन्य कार्रवाई में सोमवार को पुलिस ने मुंबई के खार इलाके में एक विदेशी महिला से छेड़छाड़ के मामले में एक आरोपी को गिरफ्तार किया था। पुलिस के अनुसार, महिला ने एक अनजान शख्स पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। महिला का कहना था कि देर रात जब वह अपने दोस्त से मिलने के बाद घर लौट रही थीं, तो खार इलाके में एक स्कूटर सवार युवक उनके पास आया और अवसर पाते ही उन्हें गलत तरीके से छूकर तेज रफ्तार से फरार हो गया।
शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली और आरोपी की पहचान करने के बाद उसे गिरफ्तार किया। पूछताछ के दौरान आरोपी ने महिला से छेड़छाड़ करने और घटना के बाद मौके से भागने की बात कबूल कर ली।
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