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Saturday,02-August-2025
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सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न विरोधी कानून के दायरे में लाने की याचिका खारिज की

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नई दिल्ली, 1 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न विरोधी कानून के दायरे में लाने की मांग की गई थी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा, “यह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। हम इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं? यह एक नीतिगत मामला है।”

वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता ने याचिकाकर्ता की ओर से कहा कि वे नया कानून बनाने की मांग नहीं कर रही हैं, बल्कि केवल यह चाहती हैं कि यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, जिसे ‘पॉश एक्ट’ के नाम से जाना जाता है, की व्याख्या ऐसी हो कि राजनीतिक दल भी इसके दायरे में आएं।

उन्होंने कहा कि केरल हाई कोर्ट के एक फैसले में स्पष्ट किया गया है कि किसी राजनीतिक दल को ‘पॉश’ अधिनियम के तहत आंतरिक शिकायत समिति बनाने की कानूनी जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके सदस्यों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी का रिश्ता नहीं होता। इसलिए, इस मुद्दे को पूरी तरह से इसके दायरे में नहीं माना जाना चाहिए।

इस पर, सीजेआई गवई की अगुवाई वाली पीठ ने वरिष्ठ वकील को सलाह दी कि वे सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर करके केरल उच्च न्यायालय के फैसले को स्वतंत्र रूप से चुनौती दें।

इसके बाद उन्होंने जनहित याचिका वापस लेने का फैसला किया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और फिर याचिका को वापस लेने के आधार पर खारिज कर दिया गया।

पिछले साल दिसंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी ही याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन याचिकाकर्ता को निर्देश दिया था कि वे चुनाव आयोग से संपर्क करें, क्योंकि चुनाव आयोग ही मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने के लिए आंतरिक तंत्र स्थापित करने का निर्देश देने के लिए सक्षम प्राधिकारी है।

कोर्ट ने कहा था कि अगर याचिकाकर्ता की शिकायत का समाधान नहीं होता, तो वे कानून के अनुसार न्यायिक मंच पर जा सकते हैं।

नई जनहित याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता ने इस साल मार्च में चुनाव आयोग को एक पत्र भेजा था, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।

यह याचिका मांग करती है कि राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न से बचाव के लिए कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा (पॉश) अधिनियम, 2013 का पालन करना चाहिए। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया कि पॉश अधिनियम का दायरा बढ़ाकर राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं को शामिल किया जाए, ताकि राजनीतिक दल सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने के लिए जवाबदेह हों और राजनीतिक दलों के साथ काम करने वाले लोगों को यौन उत्पीड़न से बचाया जा सके।

याचिका में केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के अलावा, कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, सीपीआई (एम), सीपीआई, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, नेशनल पीपल्स पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी को भी पक्षकार बनाया गया है।

राजनीति

कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने हिंदू धर्म को बदनाम किया: विधायक रामकदम

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मुंबई, 1 अगस्त। भाजपा विधायक रामकदम ने मालेगांव विस्फोट मामले में बरी हुए आरोपियों को लेकर शुक्रवार को तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने मिडिया से बातचीत में दावा किया कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ‘भगवा आतंकवाद’ की परिभाषा गढ़कर हिंदू धर्म को बदनाम करने की कोशिश की, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि, न्यायालय ने इन्हें अपने फैसले से जोरदार तमाचा मारा।

विधायक रामकदम ने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सत्ता में रहते हुए हमेशा सनातन धर्म को धूमिल करने की कोशिश की। इन लोगों ने हमेशा से ही सनातन धर्म की गरिमा पर प्रहार किया। साथ ही, साध्वी प्रज्ञा को प्रताड़ित भी किया गया। साजिश के तहत हमारे कई नेताओं का नाम शामिल किया गया।

उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं, संघ के सरसंघचालक का भी नाम शामिल किया गया है। उन पर कई तरह के आरोप लगाए गए। कांग्रेस सनातन धर्म को उभार देने के मकसद से उठ रही आवाजों को दबाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम कांग्रेस के इस ख्वाब को किसी भी कीमत पर मुकम्मल नहीं होने देंगे। सनातन धर्म हमेशा फलीभूत होता रहेगा।

रामकदम ने मालेगांव ब्लास्ट मामले के संदर्भ में आए कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि देर से ही सही, लेकिन आखिर हमें कोर्ट से न्याय मिला और कांग्रेस की उस सोच को भी जोरदार तमाचा लगा है, जिसके तहत उन्होंने सनातन धर्म की गरिमा पर प्रहार करने की कोशिश की थी।

उन्होंने दावा किया कि मालेगांव ब्लास्ट मामले की जांच कर रहे अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए, क्योंकि जिस तरह की जांच अधिकारियों की ओर से इस मामले के संदर्भ में की गई है, उससे उनकी भूमिका संदिग्ध नजर आती है। कांग्रेस के नेताओं ने इस मामले की जांच कर रहे अधिकारियों पर दबाव बनाने की कोशिश की, मुझे लगता है कि अब ऐसे सभी नेताओं को सामने आना चाहिए। यही नहीं, कांग्रेस को अपने किए को लेकर देश के हिंदू समुदाय से माफी मांगनी चाहिए।

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राजनीति

विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को लिखा पत्र, मतदाता सूची पुनरीक्षण पर विशेष चर्चा की मांग

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LOCKSABHA

नई दिल्ली, 1 अगस्त। बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर कई विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को संयुक्त रूप से पत्र लिखा है। उन्होंने इस मुद्दे पर सदन में विशेष चर्चा की मांग की है।

सांसदों ने अपने पत्र में इस प्रक्रिया की टाइमिंग और मंशा पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि यह कदम बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उठाया गया है, जिससे संदेह पैदा होता है।

पत्र में कहा गया है, “हम, विपक्षी दलों के प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदगण, बिहार में चल रहे मतदाता सूची संशोधन को लेकर अपनी गंभीर शंका व्यक्त करते हैं। यह कई गंभीर सवाल खड़े करता है।”

सांसदों ने यह भी बताया कि चुनाव आयोग ने संकेत दिए हैं कि ऐसी ही प्रक्रिया अन्य राज्यों में भी जल्द शुरू हो सकती है।

पत्र में आगे लिखा गया है, “पारदर्शिता, समय और इस प्रक्रिया के पीछे की मंशा को लेकर जो व्यापक चिंता है, उसे देखते हुए यह विषय तत्काल सदन की गंभीरता से सुनवाई का पात्र है।”

सांसदों ने याद दिलाया कि इस मुद्दे को विपक्ष पहले दिन से ही सत्र में उठाता आ रहा है और 20 जुलाई को हुई सर्वदलीय बैठक में भी यह मामला सामने रखा गया था। हालांकि, सरकार ने सभी मुद्दों पर चर्चा की इच्छा जताई थी, लेकिन अब तक मतदाता सूची संशोधन पर चर्चा के लिए कोई समय तय नहीं किया गया है।

पत्र में कहा गया कि मतदाता सूची में कोई भी बदलाव नागरिकों के मतदान के मूल अधिकार और देश में निष्पक्ष चुनाव की प्रणाली को सीधे प्रभावित करता है।

उन्होंने लिखा, “लोकसभा में विशेष चर्चा से सदस्यों को इस विषय पर स्पष्टता मांगने, वैध चिंताओं को उठाने और पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने का अवसर मिलेगा।”

अंत में सांसदों ने आग्रह किया, “हम आपसे निवेदन करते हैं कि इस मुद्दे पर बिना किसी देरी के लोकसभा में विशेष चर्चा सुनिश्चित करें।”

इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई, लालजी वर्मा, सुप्रिया सुले, अभय कुमार सिन्हा सहित कई अन्य विपक्षी सांसद शामिल हैं।

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राजनीति

मालेगांव ब्लास्ट का फैसला, भारतीय न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता का उदाहरण: पूर्व सांसद साबले

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पुणे, 1 अगस्त। पूर्व राज्यसभा सांसद अमर साबले ने मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 31 जुलाई को एनआईए की विशेष अदालत के फैसले का स्वागत किया, जिसमें साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। उन्होंने इस फैसले को भारत की न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता का उदाहरण बताया।

साबले ने दावा किया कि मोदी सरकार के नेतृत्व में देश में न्याय सुनिश्चित हो रहा है और सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास’ के सिद्धांत पर कार्य कर रही है।

पूर्व राज्यसभा सांसद ने शुक्रवार को मिडिया से बातचीत में मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में एनआईए की विशेष अदालत के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं हो सकता।

उन्होंने दावा किया कि इस मामले में भगवा आतंकवाद के नाम पर निर्दोष लोगों को झूठे केस में फंसाया गया, जिसके कारण साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात आरोपियों को 9 साल तक कष्ट सहना पड़ा। साबले ने गलत जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।

उन्होंने इस धमाके में मारे गए 6 लोगों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की।

पूर्व सांसद ने एनआईए की विशेष अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि भारत की न्यायिक व्यवस्था सत्य के साथ है और इससे लोगों का कोर्ट पर भरोसा बढ़ा है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से षड्यंत्र रचा गया और निर्दोष लोगों को जेल में डाला गया, यह गलत था। बोले, “2008 में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में, मुंबई बम ब्लास्ट के मद्देनजर, एक समुदाय को खुश करने के लिए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात लोगों को झूठे केस में फंसाया गया।”

मोदी सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि यह किसी जाति या धर्म की सरकार नहीं है, बल्कि ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास’ के सिद्धांत पर काम करती है।

उन्होंने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से संसद परिसर में हुई बातचीत का जिक्र किया। कहा, “उन्होंने जेल में जो सहन किया उसे सुनकर प्रार्थना करता हूं कि ऐसी स्थिति किसी के जीवन में न आए। कानून को अपना काम करना चाहिए और गलत जांच करने वाली व्यवस्था को दंडित करने का सिस्टम बनना चाहिए।”

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