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Saturday,21-June-2025
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राज्यसभा चुनाव अखिलेश के सामने बनेगी चुनौती!

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 राज्यसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश के सामने कड़ी चुनौती पेश करने वाले हैं। 11 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सात और सपा को तीन सीटें मिलना तय हैं। जबकि 11वीं सीट के लिए भाजपा और सपा के बीच में संघर्ष होगा। शिवपाल और आजम को लेकर पहले ही पार्टी में खींचतान हो रही है। ऐसे में यह चुनाव भी अखिलेश के सामने चुनौती पेश करने वाले होंगे। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की जो 11 सीटें खाली हो रही हैं, उनमें भाजपा के पास 5, सपा के पास 3, बसपा के पास 2 और कांग्रेस के पास एक है। एक सीट जीतने के लिए करीब 38 वोट की जरूरत होगी। भाजपा के पास 273 विधायक है। ऐसे में उनकी सात सीटों पर जीत पक्की है। एक पर दांव खेलने होगा। वहीं सपा की तीन सीटों पर जीत तय हैं। एक सीट के लिए उन्हें संघर्ष करना होगा। क्योंकि 11 विधायक बचेंगे।

विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से ही चाचा शिवपाल और आजम खान की नाराजगी देखने को मिल रही है। इसे लेकर कई दल सपा को घेर चुके हैं। आजम को लेकर उनके समर्थक भी खुले मंचों से अपना विरोध जता चुके हैं। सपा मुखिया को कई बार सफाई देने पड़ी है। उनके साथ रहने की दुहाई भी देनी पड़ी है।

सपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार आजम खान भी अपने के हितैषी के लिए टिकट चाहते हैं। इनके अलावा भी सपा के कई नेता राज्यसभा के लिए अपनी दावेदारी जता रहे हैं। लेकिन सपा के सामने निष्ठवान और जनाधार वाले नेता को राज्यसभा भेजने की बड़ी चुनौती है। सहयोगी दल के लोग भी अपने-अपने खास को चाहेंगे। ऐसे में पार्टी मुखिया को निर्णय लेना होगा। प्रसपा मुखिया शिवपाल यादव और आजम खां के समर्थक विधायकों ने भी अपना मूड बना लिया होगा। ऐसे में उन्हें भी संभालना होगा।

दशकों से राजनीति में नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेषक गिरीश पांडेय कहते हैं कि विधानसभा और विधानपरिषद के चुनाव में मिली हार के बाद अखिलेश के सामने कई चुनौतियां है। जिनसे पार पाना अभी मुश्किल दिखाई दे रहा है। जहां तक राज्यसभा चुनाव का सवाल है। उसमें आजम व शिवपाल की बड़ी भूमिका हो सकती है। क्योंकि इनके समर्थक इधर-उधर कर सकते है। ऐसे में सभी को एकजुट रखने के लिए अखिलेश के सामने चुनौती है। इसके बाद कौन-कौन से नेता राज्यसभा भेजे जाने है। इस पर भी लोग पैनी निगाह रखेंगे। क्योंकि तमाम हारे नेता अब राज्यसभा ही जाना चाहेंगे। क्योंकि सपा और सहयोगी दलों को मिलाकर इनके पास कुल 125 विधायक है। तीन सीट तो आसानी से निकाल लेगी। अगर चैथी के लिए प्रयास किया तो भाजपा से संघर्ष करना पड़ेगा। विधायकों को भी क्रास वोटिंग से बचाना होगा।

ज्ञात है कि राज्यसभा में एक सदस्य के निर्वाचन के लिए 37.63 वोटो की जरूरत होती है। सपा के पास 111 विधायक हैं। उसके गठबंधन सहयोगी रालोद के पास 8 और सुभासपा के पास 6 विधायक हैं। सपा गठबंधन अगर तीन प्रत्याषी उतरता है तो उसे 113 विधायकों की जरूरत होगी। ऐसे में उसके पास 12 विधायक अतरिक्त बचेंगे। दो सीटों का सहयोग कांग्रेस भी कर सकती है। वहीं भाजपा के पास वर्तमान में 255 विधायक हैं। सहयोगी अपना दल के पास 12 व निषाद पार्टी के पास 6 है। इस हिसाब से सात सीटे पक्की है। इसके बाद गठबंधन के बाद 12 विधायक बचते हैं। राजा भाइया की पार्टी जनसत्ता दल के दो विधायकों का साथ मिल सकता है। पार्टी को इनके समेत दूसरी वरीयता के वोटों के साथ 8 सीटें जीतने की स्थित में है। अगर 9वां प्रत्याशी उतरा तो उसे सपा के वोंटो पर सेंधमारी करनी पड़ेगी।

राजनीति

जयंती विशेष: गणेश घोष, एक क्रांतिकारी जिसने अपने जीवन के 27 साल जेल में बिताए

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नई दिल्ली, 21 जून। गणेश घोष एक क्रांतिकारी और राजनेता थे। आजादी के बाद वे कई बार विधायक, सांसद रहे और देश के नीति निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाई।

गणेश घोष का जन्म चटगांव में एक बंगाली कायस्थ परिवार में 22 जून 1900 को हुआ था। अब यह क्षेत्र बांग्लादेश में पड़ता है। विद्यार्थी जीवन में ही वे स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हो गए थे। 1922 की गया कांग्रेस में जब बहिष्कार का प्रस्ताव स्वीकार हो गया तो गणेश घोष और उनके साथी अनंत सिंह ने नगर का सबसे बड़ा विद्यालय बंद करा दिया था। इन दोनों युवकों ने चिटगाँव की सबसे बड़ी मज़दूर हड़ताल की भी अगुवाई की।

1922 में उन्होंने कलकत्ता के बंगाल टेक्निकल इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया। वह चटगांव युगांतर पार्टी के सदस्य रहे। 18 अप्रैल 1930 को सूर्य सेन और अन्य क्रांतिकारियों के साथ चटगांव शस्त्रागार छापे में उन्होंने भाग लिया था। इस वजह से उन्हें चटगांव से भागना पड़ा। वह हुगली के चंदननगर में रहने लगे। कुछ ही दिन के बाद पुलिस कमिश्नर चार्ल्स टेगार्ट ने चंदननगर के उनके घर पर हमला कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उस गिरफ्तारी अभियान के समय पुलिस ने उनके एक युवा साथी क्रांतिकारी जीबन घोषाल उर्फ ​​माखन को मार डाला था।

पुलिस ने गणेश घोष को गिरफ्तार करने के बाद उन पर मुकदमा किया और 1932 में पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल में भेज दिया। स्वतंत्रता के बाद भी उन्होंने अनेक आंदोलनों में भाग लिया और अपने जीवन के लगभग 27 वर्ष जेल में बिताए। 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन के बाद गणेश भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के साथ जुड़ गए। 1952, 1957 और 1962 में बेलगछिया से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए चुने गए। 1967 में कलकत्ता दक्षिण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के उम्मीदवार के रूप में चौथी लोकसभा के लिए चुने गए। 1971 की लोकसभा में वे फिर से कलकत्ता दक्षिण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। इस बार उन्हें एक युवा नेता के हाथों हार का सामना करना पड़ा।

यह युवा नेता कोई और नहीं, प्रिय रंजन दास मुंशी थे। सिर्फ 26 साल की उम्र में दास ने गणेश घोष को हराया था। गणेश घोष की मृत्यु 16 अक्टूबर, 1994 को कोलकाता में हुई थी।

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महाराष्ट्र

ईरानी नेता अयातुल्ला खुमैनी की स्मृति को सलाम: अबू आसिम आज़मी

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मुंबई: मुंबई महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के नेता और विधायक अबू आसिम आजमी ने कहा कि भाजपा के दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फिलिस्तीन की आजादी का समर्थन किया था और उस पर जुल्म और अत्याचार का विरोध किया था, लेकिन आज देश इजरायल परस्त है। उन्होंने इजरायल-ईरान युद्ध की स्थिति पर ईरान का समर्थन किया और ईरान के लिए दुआ की और कहा कि अल्लाह उसे उत्पीड़ितों के लिए कार्य क्षेत्र में सफलता प्रदान करे। मैं यही प्रार्थना करता हूं। अबू आसिम आजमी ने ईरानी धर्मगुरु और नेता अयातुल्ला खुमैनी के साहस और समर्थन को सलाम किया और कहा कि ईरान जुल्म के खिलाफ खड़ा है, इसलिए हम उसके लिए दुआ करते हैं।

आजमी ने कहा कि जिस तरह से भारतीय नागरिकों को ईरान से भारत लाया गया है, उसी तरह इजरायल में युद्ध के शिकार हुए भारतीयों को भी उनके वतन वापस लाया जाना चाहिए। आजमी ने कर्नाटक सरकार द्वारा हाउसिंग सोसाइटियों में मुसलमानों को 15% आरक्षण देने के फैसले का भी स्वागत किया और कहा कि अगर हाउसिंग सोसाइटियों में 15% आरक्षण दिया जाता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। यहां सभी को समान न्याय और अधिकार का अधिकार है।

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महाराष्ट्र

हाईकोर्ट ने पूर्व मंत्री धनंजय मुंडे को भुगतान करने का आदेश दिया

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मुंबई: हाईकोर्ट ने पूर्व मंत्री और एनसीपी नेता धनंजय मुंडे को बड़ा झटका दिया है। मुंडे को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता, भोजन और भरण-पोषण देने का आदेश दिया है। मुंबई हाईकोर्ट ने धनंजय मुंडे को चार सप्ताह के भीतर गुजारा भत्ता का 50 प्रतिशत भुगतान करने का आदेश दिया है। पत्रकारों से बात करते हुए करुणा मुंडे ने मुंडे पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि मुंडे अच्छे हैं लेकिन उनका दलाल गिरोह उन्हें गुमराह कर रहा है। करुणा मुंडे ने इस फैसले का स्वागत किया है। पूर्व मंत्री धनंजय मुंडे का मामला बांद्रा फैमिली कोर्ट में चल रहा था। करुणा ने मुंडे से गुजारा भत्ता मांगा था। मुंडे से 2 लाख रुपये गुजारा भत्ता मांगा गया था। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने मुंडे को बड़ा झटका दिया है। बांद्रा कोर्ट ने कई महीने पहले करुणा शर्मा को 1 लाख 25 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था अगस्त 2022 से जून 2025 या 34 महीने की अवधि के लिए कुल 43 लाख 75 हजार रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है और चार सप्ताह के भीतर 21 लाख 87 हजार 500 रुपये यानी 50% राशि बांद्रा कोर्ट में जमा करने का आदेश दिया है। करुणा मुंडे ने धनंजय मुंडे पर परेशान करने और धमकाने और उनके मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो भेजने का भी गंभीर आरोप लगाया है।

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