राष्ट्रीय
स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भारतीयों के बीच पसंदीदा के रूप में उभरा सरसों का तेल

भारतीयों में जैसे-जैसे स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ती जा रही है, बड़ी संख्या में लोग अब अपने आपको फिट रखने के लिए सरसों के तेल को तवज्जो दे रहे हैं।
हम अक्सर यह देखते हुए सुनते आए हैं कि हमारे नाना-नानी या दादा-दादी हमेशा से ही कच्ची घानी के सरसों के तेल के गुणों से अच्छी तरह से परिचित थे, अब वैज्ञानिकों के नए शोध ने भी इसके गुणों की सटीक प्रकृति पर प्रकाश डालने में मदद की है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली और सेंट जॉन अस्पताल, बेंगलुरू के साथ हार्वर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन द्वारा किए गए एक ऐतिहासिक अध्ययन से पता चला है कि सरसों के तेल को प्राथमिक तौर पर खाना पकाने और डीप-फ्राइंग तेल के रूप में सेवन करने से कोरोनरी हृदय रोग से जुड़े जोखिम को 70 प्रतिशत से भी ज्यादा हद तक कम किया जा सकता है।
यही वजह है कि आज के समय में डॉ. एस. सी. मनचंदा जैसे कई प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ स्पष्ट रूप से स्वस्थ हृदय और संवहनी प्रणाली के लिए कोल्ड-प्रेस्ड (कच्ची घानी के रूप में भी जाना जाता है) सरसों के तेल की सलाह देते हैं। पोषण विशेषज्ञ और आहार विशेषज्ञ भी इस बात को लेकर एकमत हैं कि सरसों का तेल स्वास्थ्यप्रद खाना पकाने के तेलों में से एक है, जिसे आप बाजार में पा सकते हैं।
एक प्रमुख पोषण विशेषज्ञ, आहार विशेषज्ञ और वजन प्रबंधन सलाहकार कविता देवगन का मानना है, ” आज के समय में उपलब्ध खाना पकाने के तेलों में से सरसों के तेल जैसे प्राकृतिक कोल्ड-प्रेस्ड तेलों को चुनना बेहतर है, जो मोनोअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (एमयूएफए) और पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (पीयूएफए) से भरपूर होते हैं लेकिन सेचुरेटेड फैटी एसिड (एसएफए) में कम होते हैं।”
पुरी ऑयल मिल्स लिमिटेड (पी मार्क मस्टर्ड ऑयल के निमार्ता) के महाप्रबंधक (मार्कोम) उमेश वर्मा ने कहा, ” हमारी कंपनी द्वारा आयोजित एक वेबिनार में बोलते हुए, सुश्री देवगन ने बताया था कि कोल्ड-प्रेस्ड सरसों का तेल कई मायनों में इसकी संरचना में एक आदर्श खाना पकाने का माध्यम है। इसमें आदर्श अनुपात में सभी सही फैटी एसिड होते हैं और यह प्राकृतिक विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। अपनी निर्माण प्रक्रियाओं में हम सरसों के तेल की इस प्राकृतिक संरचना को पूरी तरह से बरकरार रखने की कोशिश करते हैं, ताकि हमारे उपभोक्ता उन सभी पोषक तत्वों और स्वास्थ्य लाभों का आनंद उठा सकें, जिन्हें लेकर कोल्ड प्रेस्ड सरसों के तेल में वादा किया जाता ”
सरसों के तेल में विशेष रूप से शून्य ट्रांस फैटी एसिड (टीएफए) होता है और यह स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण मानदंड है।
कविता के अनुसार, ” कोल्ड-प्रेस्ड सरसों के तेल का प्रमुख लाभ यह है कि इसमें ओमेगा-6 और ओमेगा-3 का आदर्श अनुपात होता है।”
समकालीन आहार और भोजन की आदतों ने ओमेगा-6 और ओमेगा-3 अनुपात में एक बड़ा असंतुलन पैदा कर दिया है और सरसों का तेल इसे ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
कविता के अनुसार, ” सरसों के तेल को अपना प्राथमिक खाना पकाने का तेल बनाने के लिए केवल यही लाभ पर्याप्त कारण है।”
पोषण विशेषज्ञ और आहार सलाहकार नेहा पटोदिया भी कविता देवगन से तहे दिल से सहमत हैं और इनका कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 5:4 (ओमेगा-6 से ओमेगा-3) के अनुपात की सिफारिश की है। कोल्ड-प्रेस्ड सरसों का तेल 1:1 के अनुपात के साथ इस बेंचमार्क के सबसे करीब आता है।
एक प्रमुख पोषण विशेषज्ञ और फिटनेस विशेषज्ञ रुजुता दिवेकर भी सरसों के तेल जैसे कोल्ड-प्रेस्ड पारंपरिक तेलों की जोरदार सिफारिश करती हैं।
उनका मानना है कि यदि स्थानीय व्यंजनों को तैयार करने के लिए हजारों वर्षों से किसी विशेष क्षेत्र में तेल का उपयोग किया गया है, तो इसका मतलब है कि तेल उस क्षेत्र की स्वास्थ्य और आहार संबंधी जरूरतों के लिए फिट हो चुका है।
इस पहलू को आज भी तेल की खपत के पैटर्न में देखा जा सकता है। उत्तर भारत और कुछ पूर्वी क्षेत्रों में सरसों का तेल प्रमुख तेल है।
दक्षिणी राज्यों में, प्रमुख तेल पारंपरिक रूप से नारियल का तेल रहा है।
पोषण विशेषज्ञ और आहार विशेषज्ञ विजया अग्रवाल के अनुसार, ” वनस्पति स्रोतों से निकाले गए तेल उचित पोषण के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनमें ओमेगा-3 जैसे कुछ आवश्यक फैटी एसिड होते हैं, जिन्हें मानव शरीर द्वारा संश्लेषित नहीं किया जा सकता है।”
सरसों के तेल जैसे पौधे आधारित (प्लांट बेस्ड) तेलों में फाइटोस्टेरॉल होते हैं, जो खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को शरीर में अवशोषित होने से रोकते हैं। ऐसा ही एक फाइटोस्टेरॉल है अल्फा लिनोलेनिक एसिड (एएलए), जो हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और एथेरोस्क्लेरोसिस के जोखिम को काफी कम करता है।
डॉ. मंजरी चंद्रा, जो चिकित्सीय पोषण और नैदानिक डायटेटिक्स में विशेषज्ञता रखती हैं, कोल्ड प्रेस्ड सरसों के तेल को एक शक्तिशाली विषहरण एजेंट के रूप में देखती हैं, खासकर जब इसे सही खाद्य पदार्थों के साथ जोड़ा जाता है – विशेष रूप से बीटा कैरोटीन, लाइकोपीन, फ्लेवोनोइड्स, आइसोथियोसाइनेट्स जैसे स्वस्थ फाइटोकेमिकल्स से भरी सब्जियां आदि।
सिमरन सैनी एक पोषण विशेषज्ञ और वजन घटाने के लिए एक सलाहकार के काम करतीं हैं, जो दैनिक आधार पर जीवनशैली से संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों जैसे कि उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर, उच्च रक्तचाप जैसे मुद्दों पर सलाह देती हैं, उनका भी सरसों के तेल में खासा विश्वास है।
वह सरसों के तेल का दैनिक सेवन करने की सलाह देती हैं, क्योंकि यह मोनोअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (एमयूएफए) में समृद्ध है, जो स्वस्थ कोलेस्ट्रॉल संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। इसके अलावा जैसे कि विजया अग्रवाल ने पहले बताया था कि इसमें अल्फा लिनोलेनिक एसिड (एएलए) भी होता है, जो हृदय और रक्त वाहिकाओं को स्वस्थ रखता है, इस लिहाज से सरसों का तेल स्वास्थ्य के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
नुपुर आर्य, जो कि एक आहार विशेषज्ञ हैं और एक प्रमाणित शाकाहारी शेफ भी हैं, उन्होंने भी अन्य तेलों की अपेक्षा सरसों के तेल में ही विश्वास जताया है। उन्होंने सरसों के तेल को स्वास्थ्य के ²ष्टिकोण से और साथ ही खाना पकाने के ²ष्टिकोण से भी देखते हुए इसे कहीं अधिक बेहतर तेल बताया है।
उनका कहना है कि कोल्ड-प्रेस्ड सरसों के तेल के बारे में स्वास्थ्यप्रद बात यह है कि इसे कम से कम संसाधित किया जाता है और यही कारण है कि यह अपने सभी प्राकृतिक पोषक तत्वों को बरकरार रखता है।
खाना पकाने के माध्यम के रूप में, सरसों का तेल अपने हाई स्मोकिंग प्वाइंट (लगभग 250 डिग्री सेल्सियस) के साथ भारतीय खाना पकाने के लिए आदर्श होता है, जिसके लिए लंबे समय तक उच्च लौ हीटिंग की आवश्यकता होती है। सरसों के तेल की खासियत यह है कि उच्च तापमान पर भी इसमें सभी पोषक तत्व स्थिर और बरकरार रहते हैं।
प्रमुख पोषण विशेषज्ञों की सलाह काफी निर्णायक है, जो सरसों के तेल को तवज्जो दे रहे हैं। उनकी सामूहिक राय में कोल्ड-प्रेस्ड सरसों का तेल सबसे स्वास्थ्यप्रद खाना पकाने के तेलों में से एक है, जिसे आप चुन सकते हैं।
राष्ट्रीय
7 सितंबर को लगेगा. साल का आखिरी चंद्र ग्रहण, इन राशि वालों को रहना होगा सतर्क

नई दिल्ली, 6 सितंबर। इस साल का दूसरा और आखिरी पूर्ण चंद्र ग्रहण 7 सितंबर को है। जब धरती सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और अपनी छाया चांद पर डालती है, तब चंद्र ग्रहण होता है। यह खगोलीय घटना न सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए खास है, बल्कि धार्मिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इस बार का चंद्र ग्रहण रात 9 बजकर 58 मिनट पर शुरू होगा और 8 सितंबर की रात 1 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा। चंद्रमा पूरी तरह धरती की छाया में डूब जाएगा, जिसे आम भाषा में ‘ब्लड मून’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चंद्रमा उस समय हल्के लाल रंग का दिखता है। यह पूरा ग्रहण लगभग 3 घंटे 28 मिनट तक चलेगा और भारत के सभी हिस्सों में आसानी से दिखाई देगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्र ग्रहण के समय सूतक काल लगता है, जिसे अशुभ काल कहा जाता है। इस बार सूतक काल दोपहर 12 बजकर 57 मिनट से शुरू होगा, जो ग्रहण मोक्ष यानी समाप्ति के समय रात 1:26 बजे तक जारी रहेगी। इस दौरान मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। पूजा-पाठ, भोजन बनाना, या खाना खाना मना होता है। गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे कि नुकीली चीजों से दूर रहना और बाहर न निकलना। इस समय केवल भगवान का नाम जपना, मंत्र जाप करना और ध्यान लगाना ही शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दौरान मंत्रों की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
ज्योतिष के मुताबिक, यह चंद्र ग्रहण भी बेहद खास है क्योंकि यह शनि की राशि कुंभ और गुरु के नक्षत्र पूर्वाभाद्रपद में लग रहा है। साथ ही राहु चंद्रमा के साथ युति बना रहा है, जिससे ग्रहण योग बनता है। यह योग कुछ राशियों के लिए थोड़ी मुश्किलें लेकर आ सकता है। वृषभ, तुला और कुंभ राशि वाले लोगों को खास सतर्क रहने की जरूरत है। वृषभ राशि वालों को स्वास्थ्य और व्यापार में परेशानी हो सकती है, तुला राशि के लोगों को मानसिक तनाव और धन के मामलों में नुकसान झेलना पड़ सकता है, जबकि कुंभ राशि में तो ग्रहण लग ही रहा है, इसलिए उनके लिए यह समय काफी संवेदनशील माना जा रहा है।
इन समस्याओं के समाधान के तौर पर वृषभ राशि के लोग सफेद वस्त्र पहनें और दूध का दान करें। तुला राशि के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करें और वस्त्र दान करें, और कुंभ राशि के जातक महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। ग्रहण समाप्त होने के बाद हर व्यक्ति को स्नान करके साफ वस्त्र पहनने चाहिए, भगवान को भोग लगाना चाहिए, और जरूरतमंदों को दान देना चाहिए। इससे मन को शांति और जीवन में शुभ ऊर्जा मिलती है।
अंतरराष्ट्रीय
डोनाल्ड ट्रंप का 50 प्रतिशत वाला टैरिफ बम, भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’

PM MODI
नई दिल्ली, 8 अगस्त। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रह-रहकर भारत को टैरिफ का दिखाया जा रहा डर अब उनके लिए ही परेशानी का कारण बनता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से अमेरिका भारत के खिलाफ टैरिफ बम फोड़ने की धमकी दे रहा है, उसका माकूल जवाब भारत सरकार की तरफ से दिया जा रहा है।
दरअसल, भारत एक ऐसा वैश्विक बाजार बन चुका है, जिसकी जरूरत दुनिया के देशों को अपना व्यापार चलाने के लिए है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। भारत इस मामले में अमेरिका से आगे है और यही वजह है कि भारत के बाजार पर पूरी दुनिया की नजर है।
पिछले कुछ दिनों में भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा दी जा रही टैरिफ धमकी का जवाब जिस तरह से दिया जा रहा है, वह भारत की वैश्विक ताकत को दिखाता है। एक तरफ जहां भारत के खिलाफ टैरिफ की धमकी अमेरिका के राष्ट्रपति दे रहे हैं तो उनका जवाब भारत की तरफ से देने के लिए विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता सामने आ रहे हैं। मतलब दुनिया के सबसे ताकतवर देश होने का दंभ भरने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति की धमकी का जवाब भी भारत के प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री स्तर के नेता के द्वारा नहीं दिया जा रहा है।
अब एक बार भारत की तरफ से किए गए निश्चय पर ध्यान दें तो आपको पता चल जाएगा कि आखिर भारत अमेरिका की टैरिफ वाली धमकी को इतनी गंभीरता से क्यों नहीं ले रहा है। भारत ने ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी पर जो जवाब दिया है, उसका संदेश साफ है। भारत की तरफ से दिए गए जवाब को देखेंगे तो इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका के टैरिफ की भारत को कोई चिंता नहीं है और इसकी सबसे बड़ी वजह भारत का खुद आत्मनिर्भर बनना है। चाहे वह रक्षा का मामला हो या सुरक्षा का। दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि अमेरिका से डील की किसी डेडलाइन की चिंता भारत में दिख नहीं रही है और सरकार की तरफ से साफ संदेश जा रहा है कि भारत प्रेशर में आने वाला नहीं है, ना ही प्रेशर में आकर कोई डील करेगा। इसके साथ ही भारत ट्रंप की मंशा भी अच्छी तरह से समझ रहा है कि अमेरिका भारत के पूरे बाजार में बेरोकटोक एक्सेस चाहता है जो किसी हाल में भारत देने को तैयार नहीं है।
इसके साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार देश के किसानों और छोटे व्यवसायियों को किसी भी हाल में नुकसान होने देने के मूड में नहीं दिख रही है। वहीं, अमेरिका की तरफ से इस टैरिफ धमकी के जरिए इस पर भी दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है कि भारत अपने सबसे पुराने मित्र रूस से अपनी दोस्ती समाप्त कर ले तो भारत का यह संदेश भी स्पष्ट है कि ऐसा कभी होने वाला नहीं है।
भारत की अर्थव्यवस्था को ‘डेड’ बताने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी पता है कि भारत का बाजार जिस दिन अमेरिका के लिए बंद हुआ, उस दिन उनकी कई कंपनियों पर ताले लग जाएंगे। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। अब एक बार जानिए कि परचेजिंग पावर पैरिटी है क्या?
दरअसल, क्रय-शक्ति समता (परचेजिंग पावर पैरिटी- पीपीपी) अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है। जिसको आसान भाषा में समझिए कि यह एक-दूसरे देश में जीवन शैली पर किए गए व्यय के अनुपात को दर्शाता है। इसके अनुसार विभिन्न देशों में एकसमान वस्तुओं की कीमत समान रहती है। मतलब परचेजिंग पावर पैरिटी विभिन्न देशों में कीमतों का माप है, जो देशों की मुद्राओं की पूर्ण क्रय शक्ति की तुलना करने के लिए विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों का उपयोग करती है।
यानी प्रत्येक देश में सामान और सेवाएं खरीदने के लिए एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित करना होता है। अब इसे ऐसे समझें कि भारत के मध्यम वर्ग के लिए एक साल का बजट अगर 25 लाख का होता है, तो अमेरिका के मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यही बजट यहां की मुद्रा के अनुसार 80 लाख से ज्यादा होता है।
अब भारत ने अमेरिका के उस दोहरे रवैये को भी उजागर कर दिया है, जिसमें अमेरिका भारत को रूस से दोस्ती और व्यापार खत्म करने के लिए धमकी दे रहा है। वहीं, वह खुद रूस से भारी मात्रा में तेल, गैस और फर्टिलाइजर खरीदता है।
हालांकि, भारत का विपक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत के ‘डेड’ इकोनॉमी वाले दावे पर सरकार को घेरने की कोशिश तो कर रहा है। लेकिन, विपक्ष के शशि थरूर, मनीष तिवारी और राजीव शुक्ला के साथ कई अन्य नेता भी हैं, जो ट्रंप के इस दावे को भद्दा मजाक तक बता दे रहे हैं। मतलब भारत में तो ट्रंप के दावे को भी मजाक में ही लिया जा रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता में वापसी के बाद दुनिया के 70 से ज्यादा देशों पर टैरिफ बम फोड़ रखा है और उसे भी यह पता है कि इससे अमेरिका को भी बड़ा नुकसान होने वाला है। इसको सबसे पहले टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने समझा और उन्होंने सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति का विरोध करते हुए उनका साथ छोड़ दिया। ट्रंप के टैरिफ बम वाले दिखावे की वजह से अमेरिका के उद्योगपति भी घबराए हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप के साथ जिन देशों ने ट्रेड डील करने का दावा किया, उन्हें भी इस टैरिफ के मामले में नहीं बख्शा गया है। अब पाकिस्तान को हीं देख लें, जिस देश का सेना प्रमुख डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग कर रहा है, उस पर भी ट्रंप ने 19 प्रतिशत टैरिफ ठोंक रखा है।
वैसे भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की व्यापक सफलता के बाद से भारत में निर्मित हथियारों की दुनिया में तेजी से मांग बढ़ी है। ऐसे में अमेरिका, जो अपने आप को आधुनिक हथियारों का सबसे बड़ा डीलर मानता है, उसकी चिंता ज्यादा बढ़ गई है।
दूसरा, भारत तेल की खरीदारी भी भारी मात्रा में रूस से करता है, जबकि अमेरिका इस पर भी नजरें गड़ाए बैठा है कि भारत रूस को छोड़कर उससे तेल का सौदा करे। लेकिन, इस सब के बीच जैसे ही ट्रंप ने भारत के खिलाफ 50 प्रतिशत टैरिफ की बात कही, उससे पहले पीएम मोदी के चीन दौरे और फिर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे की खबर ने उसकी बेचैनी बढ़ा दी है। अमेरिका जानता है कि रूस, चीन और भारत अगर एक बेस पर आ गए तो अमेरिका के लिए यह बड़ा महंगा पड़ सकता है। डोनाल्ड ट्रंप भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत के खिलाफ जो उनका टैरिफ बम है, वह उनके देश की सेहत को भी नुकसान पहुंचाएगा। अमेरिका में दवाएं, ज्वेलरी, गोल्ड प्लेटेड गहने, स्मार्टफोन, तौलिये, बेडशीट, बच्चों के कपड़े तक महंगे हो जाएंगे।
अभी ये तो भारत की बात थी, लेकिन देखिए कैसे अमेरिका के खिलाफ दुनिया के और देश आगे आए हैं। भारत की वैश्विक ताकत का अंदाजा इससे लगाइए कि अभी कुछ दिन पहले विदेशी मीडिया की खबरों के अनुसार ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने अमेरिकी टैरिफ के मुद्दे को सुलझाने के लिए ट्रंप से बात करने के सवाल पर साफ कह दिया कि उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। इसके बजाय वे भारत के पीएम नरेंद्र मोदी को कॉल कर लेंगे, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कॉल कर लेंगे, लेकिन वे ट्रंप को कॉल नहीं करेंगे।
लूला ने जो कहा उसके अनुसार, ”मैं ट्रंप को कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे बात ही नहीं करना चाहते हैं, मैं शी जिनपिंग को कॉल करूंगा, मैं पीएम मोदी को कॉल करूंगा, मैं पुतिन को इस समय कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे अभी यात्रा करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन मैं कई और राष्ट्रपतियों को कॉल करूंगा।”
लूला के इस बयान से ट्रंप को कैसी मिर्ची लगी होगी, यह तो सभी जानते हैं। उधर, पीएम मोदी का जिस अंदाज में लूला ने नाम लिया, वह भी ट्रंप के लिए चुभने वाला है। लूला ने तो ट्रंप की नीतियों को “ब्लैकमेल” बताते हुए साफ कर दिया कि अमेरिका ब्राजील पर टैरिफ लगाकर देखे, ब्राजील भी इसका जवाब शुल्क लगाकर देगा।
इसके साथ ही भारत और रूस की दोस्ती ही केवल अमेरिकी राष्ट्रपति की घबराहट की वजह नहीं है। दरअसल, भारत-पाकिस्तान और कंबोडिया और थाइलैंड के बीच सीजफायर को लेकर ट्रंप ने जैसे अपनी पीठ बिना किसी बात के थपथपाई वही कोशिश वह रूस-यूक्रेन के बीच भी सीजफायर होने के बाद करना चाह रहे थे। लेकिन, यूक्रेन-रूस की जंग रोकने के लिए ट्रंप ने जितने हथकंडे अपनाए सब फेल हो गए। पुतिन को ट्रंप ने हाई टैरिफ की धमकी भी दी, लेकिन रूस पर फिर भी कोई असर नहीं पड़ा तो ट्रंप बैखला गए। इसके बाद ट्रंप ने रूस के मित्र देशों और उनके साथ व्यापार करने वालों को निशाना बनाना शुरू किया। इसमें सबसे पहले ट्रंप के निशाने पर भारत, चीन और ब्राजील आए, लेकिन तीनों ही देशों पर ट्रंप की धमकी का वैसा ही असर पड़ा, जैसा रूस पर पड़ा था। अब ट्रंप गुस्से से आग बबूला होकर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं।
वहीं, ट्रंप ब्रिक्स देशों के फाउंडर रहे भारत के खिलाफ तो टैरिफ की धमकी दे ही रहे हैं। वह ब्रिक्स में शामिल अन्य देशों के खिलाफ भी 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दे चुके हैं। ब्रिक्स दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें, ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साउथ अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात शामिल है। इन ब्रिक्स देशों की तरफ से एक-दूसरे से अपनी करेंसी में ट्रेड किया जाता है, वहीं इस समूह ने एक प्रपोजल भी दिया था कि इन देशों के बीच ट्रेड के लिए एक इंटरनेशनल करेंसी तैयार की जाए, ऐसे में डॉलर पर बड़े देशों या कहें कि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों की निर्भरता कम हो जाने से अमेरिका का विश्व में प्रभुत्व बरकरार रखने पर भी खतरा मंडराएगा। ट्रंप को यह चिंता भी सता रही है।
जिस तरह से भारत डोनाल्ड ट्रंप की तमाम धमकियों के बाद भी अपने रुख पर अड़ा हुआ है और भारतीय बाजार को अमेरिका के लिए उसकी शर्तों पर खोलने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। इससे भी ट्रंप के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ उभर आई हैं। ऐसे में अब ट्रंप को भारत से जिस भाषा में जवाब मिल रहा है, वह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि अमेरिका की टैरिफ धमकी भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’ जैसी है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ को बढ़ावा देने के लिए नौ देशों में चार प्रोजेक्ट्स शुरू

नई दिल्ली, 2 अगस्त। ‘साउथ-साउथ कोऑपरेशन’ यानी दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए भारत और संयुक्त राष्ट्र ने नौ साझेदार देशों में चार कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स के पहले चरण की शुरुआत की है। यह पहल ‘इंडिया-यूएन ग्लोबल कैपेसिटी बिल्डिंग इनिशिएटिव’ के तहत शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजीएस) को हासिल करने में देशों की मदद करना है।
इस पहल का शुभारंभ शुक्रवार को विदेश मंत्रालय (एमईए) के सचिव (पश्चिम) तन्मय लाल ने किया।
इन नौ सहयोगी देशों में जाम्बिया, लाओस, नेपाल, बारबाडोस, बेलीज, सेंट किट्स एंड नेविस, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो और दक्षिण सूडान शामिल हैं।
इस कार्यक्रम में विभिन्न देशों के मिशनों के प्रमुख, संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प, राजनयिक, भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (आईटीईसी) की कार्यान्वयन संस्थाओं के अधिकारी, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां और अन्य साझेदार संगठनों ने भी हिस्सा लिया।
विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने ‘एक्स’ पर लिखा, “एसडीजी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ को बढ़ावा! ‘इंडिया-यूएन ग्लोबल कैपेसिटी बिल्डिंग इनिशिएटिव’ के तहत नौ साझेदार देशों में चार परियोजनाओं के पहले चरण की सचिव (पश्चिम) तन्मय लाल ने शुरुआत की। मिशनों के प्रमुख, यूएन रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प, राजनयिक, आईटीईसी संस्थाओं के अधिकारी, यूएन एजेंसियां और अन्य साझेदार संगठन कार्यक्रम में शामिल हुए। ये परियोजनाएं खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, व्यावसायिक प्रशिक्षण और जनगणना की तैयारियों पर केंद्रित हैं।”
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए तन्मय लाल ने कहा कि “एसडीजी-17 और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना में, वैश्विक क्षमता निर्माण के लिए यह नई भारत-संयुक्त राष्ट्र पहल और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। इसका उद्देश्य एसडीजी से संबंधित प्रमुख क्षेत्रों में अनुभव साझा करना और वैश्विक दक्षिण साझेदारों को सशक्त बनाना है।”
‘इंडिया-यूएन ग्लोबल कैपेसिटी बिल्डिंग इनिशिएटिव’ के तहत, संयुक्त राष्ट्र अपनी वैश्विक पहुंच का उपयोग करते हुए भारत की श्रेष्ठ कार्यप्रणालियों और संस्थानों को अन्य देशों से जोड़ने में मदद करेगा, ताकि सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजीएस) को हासिल करने की गति तेज की जा सके। इस पहल में स्किल्स ट्रेनिंग, नॉलेज एक्सचेंज, और साझेदार देशों में पायलट प्रोजेक्ट्स जैसी कई गतिविधियां शामिल हैं, जिन्हें नए ‘यूएन इंडिया एसडीजी कंट्री फंड’ और आईटीईसी कार्यक्रम के जरिए लागू किया जाएगा।
यूएन रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प ने कहा, “वसुधैव कुटुम्बकम (दुनिया एक परिवार है) की भावना के तहत, भारत एसडीजी को गति देने के लिए ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ में अपनी लंबे समय से चली आ रही नेतृत्वकारी भूमिका को विस्तार दे रहा है, जिसमें भारतीय संस्थानों और यूएन प्रणाली की नवाचार और साझेदारी क्षमता का भरपूर उपयोग किया जा रहा है।”
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