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Wednesday,21-May-2025
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अफगानिस्तान मामले में भारत के सामने कई बड़ी चुनौतियां और अवसर

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JAWZJAN

पूरी दुनिया में चीन की आक्रामकता की गूंज बनी हुई है और इसके बीच दक्षिण एशिया एक और बड़े झटके की तैयारी कर रहा है। इसका केंद्र भारत का पड़ोसी अफगानिस्तान है। काबुल से आने वाले झटके इस्लामाबाद से होकर गुजरेंगे और दिल्ली से टकराएंगे। लेकिन इनकी तीव्रता कितनी होगी, यह अभी ज्ञात नहीं है। यह भी एक सवाल है कि भारत किस हद तक इसके लिए तैयार है।

इसकी शुरुआत 29 फरवरी को हुई जब अमेरिका ने लगभग 19 साल बाद युद्धग्रस्त अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी के लिए कतर के दोहा में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। अजीब बात यह है कि अफगानिस्तान के भविष्य को प्रभावित करने वाले इस करार में अफगान सरकार को ही शामिल नहीं किया गया।

अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता एक मिथ्या नाम बना हुआ है। इस समझौते की भावना के विपरीत, तालिबान ने हमले बढ़ा दिए हैं और हिंसा ने देश को और तीव्रता से अपनी गिरफ्त में ले लिया है। काबुल में एक अस्पताल के प्रसूति वार्ड से गुरुद्वारे तक, नंगरहार में एक जनाजे से लेकर पक्तिया की एक अदालत तक, हर कहीं हिंसा हुई है। और, दर्जनों अफगान सुरक्षा जांच चौकियां भी जहां हमलों में सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई है।

अफगान सरकार अपनी ओर से सौदे के विभिन्न प्रावधानों को लागू कर रही है। इसमें तालिबान कैदियों की रिहाई शामिल है। साथ ही, राष्ट्रपति अशरफ गनी ने दोहा में अंतर-अफगान वार्ता में शामिल होने के लिए प्रतिबद्धता भी जताई है।

दोहा में तालिबान का राजनीतिक कार्यालय है, जहां अमेरिका-तालिबान के बीच इसी साल फरवरी में समझौते पर बातचीत हुई थी। अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जाल्मे खलीलजाद ने अफगानिस्तान में शांति के लिए अंतर-अफगान वार्ता, हिंसा को कम करने और कैदियों की रिहाई के लिए पाकिस्तान सहित विभिन्न पक्षों से लगातार संपर्क बनाए रखा है। अफगान नेताओं के साथ अपनी हालिया वार्ता में खलीलजाद ने जोर देकर कहा कि अफगानिस्तान में शांति का अर्थ क्षेत्र में शांति है और अमेरिका इसमें निवेश करने के लिए तैयार है।

लेकिन, तालिबान ने जिस व्यापक स्तर पर हिंसा फैलाई है, उसे देखते हुए राष्ट्र का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि तालिबान ने देश भर में अपने घातक हमलों को क्यों बढ़ाया है। वह अमेरिका की वापसी के बाद देश पर पूर्ण प्रभुत्व चाहता है। वल्र्ड ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में मानवाधिकारों के व्यापक हनन ने भविष्य के समझौतों का तालिबान द्वारा पालन करने की इच्छा पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

दो प्रमुख राष्ट्रों अमेरिका और अफगानिस्तान के अलावा, क्षेत्र में एक ऊंची दांव लगाने वाला खिलाड़ी पाकिस्तान भी है जो आतंकी संगठनों को पर्दे के पीछे से आश्रय और समर्थन देता रहा है। उसने आतंकी समूहों के माध्यम से संसाधन-संपन्न लेकिन अस्थिर पड़ोसी अफगानिस्तान पर हमलों को अंजाम दिलाकर इसे नियंत्रित करने और लगातार संकटों में बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पाकिस्तान ने साथ ही भारत को क्षेत्र से अलग रखने के लिए काफी प्रयास किए हैं।

अफगानिस्तान में भारतीय हस्तक्षेप पाकिस्तान के बिलकुल उलट है। भारत ने युद्धग्रस्त देश के पुनर्निर्माण और यहां लोकतंत्र को बढ़ावा देने में अफगान लोगों की मदद के लिए दो अरब डालर की सहायता दी है। भारत ने बांधों, बिजली स्टेशनों, सड़कों, अस्पतालों का निर्माण किया है। साथ ही अफगान लोगों को प्रशासन और सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं में प्रशिक्षित किया है।

अफगानिस्तान में इस अभूतपूर्व घटनाक्रम के बीच खलीलजाद सहित कई लोग भारत से तालिबान से बात करने का आग्रह कर रहे हैं। यही विचार अफगानिस्तान के लिए रूस के राष्ट्रपति के विशेष दूत जमीर काबुलोव का भी है। अब बड़ा सवाल यह है कि भारत उस तालिबान को कैसे देखता है, जिसे उसने दो दशक तक दूर बनाए रखा है।

भारत, अफगानिस्तान को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में देखता है जहां लोग सरकार का चुनाव करते हैं, जबकि तालिबान को अभी भी एक आतंकवादी समूह, सत्ता का भूखा और एक पाकिस्तानी कठपुतली के रूप में देखता है। भारतीय सोच अभी भी अच्छे पुराने जमाने के सिद्धांत से संचालित होती है जिसमें एक आदर्श अफगानिस्तान में सभी जनजातियां मिलकर चुनाव कराती हैं, जहां आतंकवादी समूह अपने हथियार छोड़ देते हैं और अफगानिस्तान के लोग भारतीय समर्थन से सड़कों, बांधों, स्कूलों और अस्पतालों के साथ विकास मार्ग पर बढ़ते हैं।

लेकिन, अफगानिस्तान में अविश्वसनीय हिंसा के कारण भारत के इस सपने का पूरा होना अभी असंभव की तरह दिख रहा है। यह जरूर है कि इन असंभावनाओं के बीच अभी भी यह संभव है कि भारत तालिबान के साथ बात करने के लिए कोई रास्ता अपनाए।

तालिबान ने भारत के प्रति सामंजस्यपूर्ण संकेत दिए हैं जो आश्चर्यजनक है। उसने पहले ही कहा है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 का रद्द होना भारत का आंतरिक मामला है। साथ ही, एक से अधिक बार कहा है कि वह भारत के साथ बातचीत के लिए तैयार है। यहां तक कि अफगानिस्तान सरकार ने संकेत दिया है कि भारत को अंतर-अफगान वार्ता में शामिल होना चाहिए क्योंकि वह हमेशा से अफगानिस्तान में शांति का समर्थन करता रहा है। वह चाहती है कि भारत तालिबान के विरोध को छोड़ दे और शांति प्रक्रिया को ताकत दे।

जबकि चारों ओर से शांति प्रक्रिया में भारत की भूमिका का आह्वान किया जा रहा है, इसका विरोध भारत के कट्टर दुश्मन पाकिस्तान की तरफ से आया है, जो अभी भी अपनी चालों को चलने में व्यस्त है। वह खुद को अफगान शांति प्रक्रिया में अमेरिका का एक सहयोगी बता रहा है, लेकिन अफगानिस्तान और भारत के हितों पर हमला करने के लिए विभिन्न आतंकवादी समूहों को आश्रय और प्रशिक्षण देना जारी रखे हुए है।

हालांकि, भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि अफगान युद्ध के मैदान में सक्रिय आतंकी समूह अब बदल रहे हैं। तालिबान भारत को सकारात्मक संकेत दे रहा है जबकि आतंकवादी समूह हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान की सोच को अपनाए हुए है।

अफगानिस्तान में तेजी से बदलते घटनाक्रम ने भारत के लिए ऐसे व्यापक अवसर उपलब्ध करा दिए हैं जिसमें वह क्षेत्र से अपनी गैर-मौजूदगी को छोड़ दे और वार्ता में शामिल हो। यह अवसर बता रहे हैं कि अमेरिका के जाने के बाद अफगानिस्तान में एक बड़ी भारतीय भूमिका का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। अफगानिस्तान थिएटर के विभिन्न खिलाड़ियों को पता है कि वार्ता में भारत का रुख केवल शांति और अफगानिस्तान के लोगों के दृष्टिकोण के हिसाब से होगा।

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कोई स्थायी दोस्त और कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता है। लोग विकसित होते हैं, संस्थाएं बदलती हैं लेकिन शांति फिर भी वह लक्ष्य बनी रहती है जिसे हासिल किया जाना चाहिए। भारत ने लाखों अफगान लोगों के लिए इस लक्ष्य का पीछा किया है। इसे अब नहीं छोड़ना चाहिए।

(यह सामग्री इंडिया नैरेटिव डॉट काम के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत की जा रही है)

महाराष्ट्र

यातायात पुलिस ने 10 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना वसूला। 556 करोड़

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मुंबई: ‘मुंबई वन स्टेट वन चालान’ डिजिटल पोर्टल के जरिए मुंबई ट्रैफिक पुलिस विभाग ने 1 जनवरी 2024 से 28 फरवरी 2025 के बीच 556 करोड़ 64 लाख 21 हजार 950 रुपये (₹5,564,219,050) के चालान वसूले हैं। यह खुलासा एक आरटीआई आवेदन के जरिए हुआ है। उक्त अवधि के दौरान पोर्टल पर कुल 1,81,613 ऑनलाइन शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से 1,07,850 शिकायतें खारिज कर दी गईं। यानि लगभग 59% शिकायतें खारिज कर दी गईं।
सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता अनिल गलगली ने ई-चालान शिकायतों के बारे में मुंबई यातायात पुलिस से जानकारी मांगी थी। मुंबई यातायात पुलिस के अनुसार, वाहन के प्रकार (जैसे दोपहिया, चार पहिया, माल वाहन, यात्री वाहन, आदि) के आधार पर प्राप्त शिकायतों का वर्गीकरण ‘एक राज्य एक चालान’ पोर्टल पर उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण वर्तमान में विशिष्ट वाहन श्रेणियों पर की गई कार्रवाई का विश्लेषण करना असंभव है।
शिकायत जांच प्रक्रिया:

सभी शिकायतों की जांच मल्टीमीडिया सेल, यातायात मुख्यालय, वर्ली, मुंबई में की जाती है। इसमें वाहन की तस्वीरों और आसपास के दृश्य साक्ष्यों की समीक्षा शामिल है। यदि चित्र या साक्ष्य स्पष्ट नहीं हैं, तो उसे जांच के लिए संबंधित यातायात विभाग या पुलिस स्टेशन को भेजा जाता है। चालान को बरकरार रखने या रद्द करने का अंतिम निर्णय स्थानीय जांच रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ही किया जाएगा।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने कहा कि ई-चालान प्रणाली को पारदर्शी बनाना समय की मांग है। नागरिकों को अपने विचार प्रस्तुत करने का पूर्ण एवं निष्पक्ष अवसर दिया जाना चाहिए तथा प्रत्येक शिकायत की निष्पक्ष एवं गहन जांच की जानी चाहिए।

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राष्ट्रीय समाचार

छत्तीसगढ़ : सुरक्षाबलों ने 26 नक्सलियों को किया ढेर, एक जवान शहीद

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नारायणपुर, 21 मई। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली है। यहां कोंडागांव के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों ने बुधवार को मुठभेड़ में 26 नक्सलियों को मार गिराया है। इस मुठभेड़ में एक जवान शहीद भी हुआ है।

नक्सलियों के पास से सुरक्षाबलों ने बड़ी मात्रा में गोला बारूद और हथियार बरामद किए है। इसकी जानकारी खुद राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा ने दी।

उन्होंने मीडिया से बात करते हुए बताया कि सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता मिली है, 26 से अधिक नक्सलियों को मार गिराया गया है। इस मुठभेड़ में कई बड़े नक्सली भी मारे गए हैं। विजय शर्मा ने बताया कि इस मुठभेड़ में एक जवान भी शहीद हुआ है, जबकि एक जवान घायल हुआ है। सर्च ऑपरेशन इलाके में जारी है।

इस मुठभेड़ में एक करोड़ के इनामी नक्सली नम्बाला केशवराव उर्फ वसवा राजू को भी ढेर कर दिया गया है। वह छत्तीसगढ़ के नारायणपुर और बीजापुर इलाके का कुख्यात नक्सली रहा है। उसके ऊपर 1 करोड़ का इनाम है। हालांकि अभी उसकी मौत की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की संख्या और बढ़ सकती है।

वहीं छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम अरुण साव ने मिडिया से बात करते हुए कहा कि राज्य में हमारी डबल इंजन की सरकार बनने के बाद नक्सलियों के उन्मूलन पर लगातार काम कर रही है। सुरक्षाबल के जवान दुर्गम इलाके में जाकर नक्सलियों का सफाया कर रहे हैं और नारायणपुर में 24 से ज्यादा नक्सली मारे गए हैं। निश्चित तौर बस्तर मार्च 2026 तक पूरी तरह से नक्सल मुक्त हो जाएगा।

इससे पहले सुरक्षा बलों ने कर्रेगुट्टा पहाड़ी क्षेत्र में चलाए गए संयुक्त अभियान में 31 नक्सलियों को मार गिराया था। इसके साथ ही भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किए गए थे।

सीआरपीएफ के डीजी ने जानकारी दी थी कि नक्सल विरोधी अभियान की शुरुआत 2014 में हुई थी, लेकिन 2019 के बाद से इस अभियान ने अधिक गति पकड़ी है। जवानों के लिए देश भर में संयुक्त प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है, जिससे उनकी रणनीतिक और सामरिक क्षमताओं में वृद्धि हुई है।

उन्होंने बताया था कि जहां 2014 में 35 जिले नक्सली गतिविधियों के केंद्र हुआ करते थे, वहीं 2025 तक यह संख्या घटकर मात्र 6 जिलों तक सीमित रह गई है। सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के समन्वित प्रयासों के चलते नक्सली हिंसा में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है की गई है।

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राजनीति

मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए सरकार ने किया सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भेजने का प्रयोग : संजय राउत

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मुंबई, 21 मई। शिवसेना (यूबीटी) नेता और राज्यसभा सांसद संजय राऊत ने विदेशों में भारतीय सांसदों के प्रतिनिधिमंडल को भेजने पर बड़ा बयान दिया है। उन्‍होंने कहा कि सरकार इस तरह का प्रयोग मुख्य मुद्दों से ध्‍यान हटाने के लिए करती रहती है। सबसे पहले हमें पड़ोसी देश में जाना चाहिए।

सांसद संजय राउत ने मिडिया से बातचीत के दौरान कहा कि चीन ने खुलकर पाकिस्‍तान का साथ दिया है। ऐसे में चीन जाकर पाकिस्‍तान को बेनकाब करना चाहिए। पड़ोसी देश आपको पूछता नहीं है। आप यूरोप, यूएस और अफ्रीकी देशों में जा रहे हैं, जिनका भारत और पाकिस्‍तान युद्ध से कोई लेना-देना नहीं है।

उन्‍होंने कहा कि यह डेलिगेशन छोटे छोटे देशों में भेजे जा रहे हैं। इससे हमारी विदेश नीति से क्‍या संबंध है, खासकर भारत और पाकिस्‍तान के संदर्भ में। पड़ोसी देश के साथ आपके रिश्‍ते अच्‍छे नहीं हैं, इसलिए आप वहां नहीं जाना चाहते हैं।

संजय राउत ने कहा कि केंद्र सरकार यह कैसे तय कर सकती है कि किस पार्टी से कौन सा सांसद प्रतिनिधिमंडल में जाएगा। आपने आनन-फानन में नाम तय कर लिया है। ममता बनर्जी की टीएमसी से आपने यूसुफ पठान का नाम तय कर दिया, ममता ने साफ मना कर दिया कि यह नहीं चलेगा। उन्‍होंने अभिषेक बनर्जी का नाम दिया। अभिषेक इन मामलों में अधिक अनुभवी हैं।

पार्टी के फैसले से खुश रहने के सवाल पर संजय राउत ने कहा कि मैं पार्टी का फैसला हमेशा से मानता रहा हूं, लेकिन इस डेलिगेशन वाले मसले से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्‍तान को बेनकाब करने के लिए भारत सरकार ने दुनिया के प्रमुख देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया है। इसको लेकर हालांकि राजनीति शुरू हो चुकी है। खासकर विभिन्न पार्टियों के सांसदों के नाम को लेकर विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई है।

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