राष्ट्रीय समाचार
महाराष्ट्र सरकार ने बांग्लादेशी घुसपैठियों पर कसा शिकंजा, जारी किया नया परिपत्र
मुंबई, 25 अक्टूबर : महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में बढ़ते अवैध बांग्लादेशी प्रवास को रोकने के लिए बड़ा कदम उठाया है। खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने इस मुद्दे पर एक नया सरकारी परिपत्र (जीआर) जारी किया है।
सरकार ने स्पष्ट कहा है कि बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति के चलते बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में अवैध रूप से भारत, विशेषकर महाराष्ट्र में प्रवेश कर रहे हैं। इनमें से कई प्रवासी राज्य की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए फर्जी दस्तावेजों का उपयोग कर रहे हैं, जिसकी वजह से सरकारी योजनाओं पर अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ रहा है और राज्य की सुरक्षा पर भी खतरा उत्पन्न हो रहा है।
परिपत्र में कहा गया है कि यह स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है। इसलिए ऐसे प्रवासियों को राज्य की किसी भी कल्याणकारी योजना का लाभ नहीं दिया जाएगा।
इस मुद्दे पर 9 जून 2025 को आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) की बैठक हुई थी, जिसके बाद यह निर्णय लिया गया। परिपत्र में 29 जून 2013 के पुराने सरकारी संकल्प और 2025 के अन्य संदर्भों को ध्यान में रखते हुए नई दिशानिर्देश तय किए गए हैं।
परिपत्र में जारी मुख्य निर्देश के अनुसार, सभी क्षेत्रीय कार्यालयों को अवैध बांग्लादेशी प्रवास पर नियमित विचार-विमर्श सत्र आयोजित करने और एटीएस को रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए गए हैं।
अवैध प्रवासियों की ब्लैकलिस्ट बनाई जाएगी ताकि वे किसी भी सरकारी योजना का लाभ न उठा सकें।
एटीएस द्वारा पहचाने गए 1,274 अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के नाम पर जारी किसी भी सरकारी दस्तावेज की जांच की जाएगी। यदि ऐसे दस्तावेज मिले तो उन्हें तुरंत रद्द, निलंबित या निष्क्रिय करने का आदेश दिया गया है।
नए अवैध प्रवासियों की सूची विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएगी, ताकि सभी क्षेत्रीय और मंडल कार्यालय सतर्क रह सकें। यदि किसी स्थानीय प्रतिनिधि की अनुशंसा पर कोई दस्तावेज जारी किया गया है, तो आवेदक के निवास स्थान का सख्त सत्यापन किया जाएगा।
सरकार ने सभी विभागों को यह प्रक्रिया कड़ाई से लागू करने के आदेश दिए हैं। साथ ही, इस परिपत्र की तिमाही प्रगति रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी।
यह परिपत्र महाराष्ट्र सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है, जिसे महाराष्ट्र के राज्यपाल के निर्देशानुसार जारी किया गया है।
राजनीति
संसद पर आतंकी हमले की 24वीं बरसी: राज्यसभा में शहीदों को नमन

LOCKSABHA
नई दिल्ली, 12 दिसंबर: भारतीय संसद भवन पर 13 दिसंबर को घातक आतंकी हमला हुआ था। हालांकि आतंकवादियों के इस हमले को नाकाम कर दिया गया था। इस हमले को विफल करने में सुरक्षाबलों व संसद के कई कर्मचारियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
शहीद हुए इन सभी लोगों की स्मृति में शुक्रवार को राज्यसभा ने गहरा सम्मान व्यक्त किया। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सभापति सी.पी. राधाकृष्णन ने इस दुखद दिवस का उल्लेख करते हुए पूरे सदन के साथ शहीदों को नमन किया। राज्यसभा में इन शहीदों के लिए मौन रखा गया।
राज्यसभा के सभापति ने कहा कि कल 13 दिसंबर वह काला दिन है जब लोकतंत्र के सर्वोच्च संस्थान यानी भारतीय संसद भवन पर आतंकियों ने हमला किया था। सभापति राधाकृष्णन ने कहा, “13 दिसंबर 2001 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का अत्यंत वेदनापूर्ण दिन है। उस संसद भवन में कई सांसद और कर्मचारी मौजूद थे, लेकिन हमारे वीर सुरक्षा कर्मियों ने अपने अद्वितीय साहस, तत्परता और बलिदान से आतंकियों की योजना को विफल कर लोकतंत्र की मर्यादा की रक्षा की।”
उन्होंने आगे कहा कि कई बहादुर जवान ऐसे थे जिन्होंने आतंकियों और इस ‘लोकतंत्र के मंदिर’ के बीच अपनी जान की परवाह किए बिना अडिग खड़े होकर गोलियां झेलीं। उनकी निस्वार्थ कर्तव्यनिष्ठा आज भी हम सभी को प्रेरित करती है। सभापति ने उन सभी सुरक्षा कर्मियों के बलिदान को याद किया जिन्होंने हमले को रोकते हुए प्राण न्योछावर किए।
सभापति ने कहा कि इन सभी वीरों ने भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। सभापति के अनुरोध पर राज्यसभा के सभी सदस्य अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए। सदन में दो मिनट का मौन रखा गया, जिससे सदन गंभीर माहौल में शहीदों की स्मृति को नमन कर सके।
गौरतलब है कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह लगभग 11 बजकर 30 मिनट पर पांच आतंकियों ने एक नकली स्टिकर लगी कार से संसद परिसर में प्रवेश किया। हमलावरों ने यहां स्वचालित हथियारों से अंधाधुंध फायरिंग की। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभालकर संसद भवन के मुख्य द्वार की ओर बढ़ रहे आतंकियों को रोक दिया।
सुरक्षाबलों की कार्रवाई में सभी पांच आतंकवादी मारे गए। सुरक्षा कर्मियों की इस त्वरित कार्रवाई के कारण उस समय संसद भवन में मौजूद सैकड़ों सांसदों, कर्मचारियों और मीडिया प्रतिनिधियों की जान बच सकी। राज्यसभा सांसदों का कहना है कि उन शहीदों के प्रति हमारी कृतज्ञता शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनके बलिदान की भावना को जीवित रखते हुए अपने लोकतांत्रिक आदर्शों की रक्षा करें और उन्हें और मजबूत बनाएं। सदन के विभिन्न सदस्यों ने इस घटना की गंभीरता को याद करते हुए कहा कि संसद पर हमला केवल एक इमारत पर हमला नहीं था, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर हमला था।
उन्होंने शहीदों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की और कहा कि देश उनकी बहादुरी को कभी नहीं भूल सकता।
राजनीति
इंडिगो पर डीजीसीए का बड़ा एक्शन, निरीक्षकों को निकाला और सीईओ को दोबारा समन किया

नई दिल्ली, 12 दिसंबर: देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो पर नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने बड़ा एक्शन लिया है और उन चार फ्लाइट निरीक्षकों को निकाल दिया है, जो कि इंडिगो की सुरक्षा और ऑपरेशनल मानकों के लिए जिम्मेदार थे।
डीजीसीए ने यह कदम एयरलाइन की ओर से इस महीने की शुरुआत में हजारों फ्लाइट्स रद्द करने के कारण उठाया है।
इसके अलावा विमानन नियामक ने इंडिगो के सीईओ पीटर एल्बर्स को दोबारा समन भेजा है और उन्हें शुक्रवार को अधिकारियों के समक्ष फिर से पेश होने के लिए कहा गया है।
सूत्रों के अनुसार, निरीक्षण और निगरानी ड्यूटी में लापरवाही पाए जाने के बाद डीजीसीए ने निरीक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की है।
नियामक ने अब इंडिगो के गुरुग्राम कार्यालय में दो विशेष निगरानी दल तैनात किए हैं ताकि एयरलाइन के संचालन पर कड़ी नजर रखी जा सके।
यह दल प्रतिदिन शाम 6 बजे तक डीजीसीए को रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। एक दल इंडिगो के बेड़े की क्षमता, पायलटों की उपलब्धता, चालक दल के उपयोग के घंटे, प्रशिक्षण कार्यक्रम, ड्यूटी विभाजन पैटर्न, अनियोजित अवकाश, स्टैंडबाय क्रू और चालक दल की कमी के कारण प्रभावित उड़ानों की संख्या की निगरानी कर रहा है।
यह एयरलाइन की औसत उड़ान अवधि और नेटवर्क की भी समीक्षा कर रहा है ताकि परिचालन में होने वाली बाधा के पूरे पैमाने को समझा जा सके।
दूसरी टीम यात्रियों पर संकट के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसमें एयरलाइन और ट्रैवल एजेंट दोनों से रिफंड की स्थिति, नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं (सीएआर) के तहत दी जाने वाली क्षतिपूर्ति, समय पर उड़ान भरना, सामान की वापसी और समग्र रद्दीकरण की स्थिति की जांच करना शामिल है।
इंडिगो को अपने परिचालन में 10 प्रतिशत की कटौती करने का आदेश दिया गया है ताकि उड़ानों का शेड्यूल स्थिर हो सके और आगे की व्यवधानों को नियंत्रित किया जा सके।
एयरलाइन आमतौर पर प्रतिदिन लगभग 2,200 उड़ानें संचालित करती है, जिसका अर्थ है कि अब एयरलाइन प्रतिदिन 200 से अधिक उड़ानें कम भरेगी।
नागर विमानन मंत्री राम मोहन नायडू ने कहा कि इंडिगो द्वारा क्रू रोस्टर, उड़ान समय और संचार के कुप्रबंधन के कारण यात्रियों को “गंभीर असुविधा” का सामना करना पड़ा है।
इंडिगो के सीईओ एल्बर्स के साथ बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एयरलाइन को किराए की सीमा और प्रभावित यात्रियों की सहायता के उपायों सहित मंत्रालय के सभी निर्देशों का पालन करना होगा।
डीजीसी की जांच जारी है और इंडिगो के सीईओ को आगे स्पष्टीकरण के लिए तलब किया गया है। एयरलाइन ने 3 से 5 दिसंबर के बीच अत्यधिक देरी का सामना करने वाले यात्रियों के लिए मुआवजे की घोषणा की है।
राजनीति
न्यायपालिका को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है भाजपा: शिवसेना (यूबीटी)

मुंबई, 12 दिसंबर: शिवसेना (यूबीटी) ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से भाजपा पर एक बार फिर तीखा हमला बोला है। संपादकीय में शिवसेना (यूबीटी) ने आरोप लगाया गया है कि भाजपा न्यायपालिका को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है और संवैधानिक मुद्दों पर अदालतों का रुख बदलने में लगी है।
संपादकीय के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट दलबदल, भ्रष्टाचार और विधायकों की खरीद-फरोख्त जैसे गंभीर संवैधानिक मामलों पर फैसले देने में पीछे हटता दिखता है, जबकि धार्मिक तनाव बढ़ाने वाली याचिकाओं पर अदालतें असामान्य रूप से सक्रिय दिखती हैं। शिवसेना (यूबीटी) का आरोप है कि भाजपा अदालतों और चुनाव आयोग पर दबाव बनाकर हिंदुत्व के मुद्दों को अपनी सुविधा अनुसार मोड़ रही है।
संपादकीय के मुताबिक जस्टिस स्वामीनाथन मामले ने हिंदुत्व की राजनीति को नए तरीके से भड़काया है। संपादकीय में जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन पर सीधा आरोप लगाया गया है कि वे भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हैं और उनकी अदालत में उपस्थिति लोकतंत्र तथा संविधान के लिए खतरा बनती जा रही है। सर्वोच्च, उच्च और जिला अदालतों में ऐसे कई न्यायाधीश नियुक्त किए जा रहे हैं जो एक विशेष राजनीतिक विचारधारा के करीब माने जाते हैं।
संपादकीय में तो यहां तक लिखा गया है कि विपक्ष पहले ही मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला चुका है, जिस पर सौ से अधिक सांसद हस्ताक्षर कर चुके हैं। वहीं भाजपा नेताओं (अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस) ने इस कदम को गलत बताते हुए शिवसेना सांसदों की आलोचना की है।
सामना संपादकीय में सवाल उठाया गया है कि अगर कोई न्यायाधीश हिंदुत्ववादी विचारधारा से जुड़ा है तो क्या यह उसे महाभियोग से बचा लेने का आधार बन सकता है? अदालत में जाति, धर्म और संप्रदाय को तूल देना न्यायिक परंपराओं के विरुद्ध है और मौजूदा सरकार में न्यायपालिका के कई परंपरागत प्रतीक कमजोर हुए हैं।
शिवसेना (यूबीटी) ने यह भी दावा किया है कि संघ परिवार भारत में धार्मिक तनाव बढ़ाकर राजनीतिक लाभ उठाने की रणनीति पर काम कर रहा है। संपादकीय में कहा गया है कि चुनावों से पहले योजनाबद्ध तरीके से विवाद खड़े किए जाते हैं, फिर उन मामलों को अदालतों में ले जाकर मनचाहे फैसले प्राप्त किए जाते हैं। स्वामीनाथन का हालिया फैसला भी इसी रणनीति का हिस्सा बताया गया है, जिससे ‘मंदिर बनाम दरगाह’ जैसा नया विवाद खड़ा हुआ है।
सामना संपादकीय के मुताबिक, किसी भी न्यायाधीश से अपेक्षा होती है कि वह संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप निर्णय दे, लेकिन स्वामीनाथन पर आरोप है कि वे संघ की विचारधारा से प्रभावित हैं और उसी आधार पर फैसला सुनाते हैं। कई पूर्व न्यायाधीश भी उनकी कार्यशैली पर आपत्ति जता चुके हैं।
संपादकीय में यह भी कहा गया कि हिंदुओं की पूजा-पद्धति पर किसी का कोई हस्तक्षेप नहीं है, इसलिए अन्य धर्मों की भावनाओं को चोट पहुंचाने की कोई आवश्यकता नहीं। मंदिर के पास दरगाह या मस्जिद होना कोई नई बात नहीं है और ऐसी स्थितियों में अदालत से संयमित निर्णय की अपेक्षा की जाती है। यदि अदालतें किसी धार्मिक संगठन की इच्छा के अनुरूप फैसले सुनाने लगेंगी, तो भविष्य में बड़े विवाद पैदा हो सकते हैं।
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