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Monday,13-October-2025
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जीएसटी कटौती से महंगाई में बड़ी गिरावट, खुदरा मुद्रास्फीति दर 8 वर्षों के निचले स्तर पर पहुंची

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नई दिल्ली, 13 अक्टूबर : खुदरा मुद्रास्फीति दर सितंबर में कम होकर 1.54 प्रतिशत हो गई है। यह महंगाई का जून 2017 के बाद सबसे निचला स्तर है। यह जानकारी सरकार की ओर से जारी किए गए डेटा में दी गई।

सितंबर में खुदरा महंगाई दर में अगस्त के मुकाबले 0.53 प्रतिशत की कमी आई है।

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से बताया गया कि खाद्य महंगाई दर सितंबर में -2.28 प्रतिशत रही है। ग्रामीण इलाकों में खाद्य महंगाई दर -2.17 प्रतिशत और शहरी इलाकों में खाद्य महंगाई दर -2.47 प्रतिशत रही है।

खाद्य महंगाई दर अगस्त में 0.64 प्रतिशत थी।

महंगाई दर में कमी की वजह जीएसटी सुधार को माना जा रहा है, जिससे देश में दैनिक उपभोग से लेकर गाड़ियों तक की कीमतों में कमी देखी गई है।

सरकार की ओर से बताया गया कि सितंबर में आवासीय मुद्रास्फीति 3.98 प्रतिशत रही है, जो कि अगस्त में 3.09 प्रतिशत थी। शिक्षा मुद्रास्फीति की दर सितंबर में 3.44 प्रतिशत रही है, जो कि अगस्त 2025 में 3.60 प्रतिशत थी।

परिवहन और संचार में मुद्रास्फीति दर सितंबर 2025 में कम होकर 1.82 प्रतिशत हो गई है, जो कि अगस्त 2025 में 1.94 प्रतिशत थी। ईंधन और ऊर्जा में खुदरा मुद्रास्फीति दर सितंबर में 1.98 प्रतिशत रही है, जो कि अगस्त में 2.32 प्रतिशत थी।

इस महीने की शुरुआत में आरबीआई एमपीसी के फैसलों का ऐलान करते हुए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने वित्त वर्ष 26 के लिए महंगाई दर अनुमान को घटा दिया है।

केंद्रीय गवर्नर ने वित्त वर्ष 26 (चालू वित्त वर्ष) के लिए रिटेल महंगाई दर के अनुमान को घटाकर 2.6 प्रतिशत कर दिया, जो कि अगस्त एमपीसी में 3.1 प्रतिशत पर था।

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के लिए महंगाई दर के अनुमान को 2.1 प्रतिशत से घटाकर 1.8 प्रतिशत, तीसरी तिमाही के अनुमान को 3.1 प्रतिशत से घटाकर 1.8 प्रतिशत और चौथी तिमाही के लिए 4 प्रतिशत कर दिया है।

आरबीआई ने अनुमान में आगे बताया कि वित्त वर्ष 27 की पहली तिमाही में महंगाई 4.5 प्रतिशत रह सकती है।

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जीएसटी 2.0 का असर! कम एमआरपी और ज्यादा वजन वाले नए पैकेट दिसंबर तक बाजार में आएंगे : पारले

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नई दिल्ली, 13 अक्टूबर : जीएसटी सुधार लागू होने के बाद देश की दिग्गज फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनी पारले के उत्पादों के कम एमआरपी और ज्यादा वजन वाले नए पैकेट दिसंबर तक बाजार में आ जाएंगे। यह जानकारी कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट मयंक शाह ने दी।

एनडीटीवी प्रॉफिट के इग्नाइट कॉन्क्लेव में बोलते हुए शाह ने कहा कि जीएसटी सुधार के बाद एफएमसीजी कंपनियों के लिए कीमतों में बदलाव करना आसान नहीं रहा है। टैक्स कम होने के बाद पैकेट साइज और वजन एवं कीमत को लेकर थोड़ी कन्फ्यूजन की स्थिति है। इस पर विस्तार से चर्चा की गई है और आमतौर पर एफएमसीजी कंपनियों को अपने उत्पादों के पैकेजों में बदलाव करने में लगभग डेढ़ से दो महीने का समय लगता है।

उन्होंने नए पैकेट की टाइमलाइन के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि पहले चरण में बड़े और ज्यादा एमआरपी वाले पैकेट्स की एमआरपी को कम किया जाएगा। उसके बाद कम एमआरपी वाले छोटे पैकेट, जिनकी बाजार में हिस्सेदारी करीब 60-70 प्रतिशत है, में बदलाव किया जाएगा। यह ग्राहकों को नवंबर के अंत या दिसंबर की शुरुआत में धीरे-धीरे दिखने लगेंगे।

कम एमआरपी वाले प्रोडक्ट्स पर चर्चा करते हुए शाह ने कहा कि 5 रुपए वाला पैकेट 4.5 रुपए और 10 रुपए वाला पैकेट 9 रुपए का हो सकता है।

नए जीएसटी सुधार 22 सितंबर को लागू हुए थे। इसके तहत, सरकार ने दैनिक उपभोग से लेकर गाड़ियों पर टैक्स में भारी कटौती की थी।

इस महीने की शुरुआत में 15वीं फाइनेंस कमीशन के चेयरमैन और अर्थशास्त्री एनके सिंह ने कहा था कि जीएसटी सुधार से देश के आम नागरिकों को बढ़ी राहत मिली है। इससे परचेसिंग पावर बढ़ी और साथ ही व्यापार में आसानी को बढ़ावा मिला है।

सिंह ने कहा, “जीएसटी सुधार का असर दिखने लगा है। इससे परचेसिंग पावर बढ़ी है और आम आदमी को राहत मिली है। इससे बिजनेस और निवेश के माहौल में भी जरूरी सुधार हुआ है और व्यापार में आसानी को बढ़ावा मिला है।”

उन्होंने आगे कहा, “देश पास एक ऐसा बड़ा बाजार है, जो अभी भी अनछुआ है और यह निजी निवेश और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के लिए बड़ा अवसर पेश करता है।”

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आरबीआई की नई गाइडलाइंस कल से लागू, बैंकों को एक दिन में ही क्लियर करना होगा चेक

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नई दिल्ली, 3 अक्टूबर: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नई गाइडलाइंस के मुताबिक, 4 अक्टूबर से सभी बैंकों को एक दिन की अवधि में ही चेक क्लियर करना होगा। इससे चेक के जरिए भुगतान करना तीव्र और आसान हो जाएगा। मौजूदा समय में चेक को क्लियर होने में एक से दो दिन का समय लगता है।

एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक समेत कई बैंकों ने 4 अक्टूबर से एक ही दिन में चेक क्लियर होने की जानकारी अपने ग्राहकों को दी है।

नई व्यवस्था के तहत 4 अक्टूबर से जमा किए गए चेक उसी दिन कुछ ही घंटों में क्लियर हो जाएंगे। दोनों बैंकों ने ग्राहकों से चेक बाउंस होने से बचने के लिए पर्याप्त बैलेंस रखने और देरी या अस्वीकृति से बचने के लिए सभी चेक विवरण सही-सही भरने का आग्रह किया है।

आरबीआई की ओर से दी गई जानकारी में बताया गया कि नए सिस्टम को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहला फेस 4 अक्टूबर, 2025 से 3 जनवरी, 2026 तक के लिए लागू होगा, जबकि दूसरा फेस 3 जनवरी के बाद से लागू होगा।

आरबीआई ने नए सिस्टम के काम करने के बारे में विस्तार के जानकारी देते हुए कहा कि इसमें एक सिंगल प्रेजेंटेशन सेशन होगा, जिसमें चेक को सुबह 10 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक पेश करना होगा।

इसके तहत चेक प्राप्त करने वाली बैंक को चेक को स्कैन करके क्लिरिंग हाउस को भेजना होगा। इसके बाद क्लिरिंग हाउस की उस चेक की इमेज को राशि अदा करने वाले बैंक के पास भेजेगा।

इसके बाद कॉन्फॉर्मेशन सेशन सुबह 10 बजे से लेक शाम के 7 बज तक होगा। इसमें राशि अदा करने वाले बैंक को उस चेक पर सकारात्मक या नकारात्मक कॉन्फॉर्मेशन देनी होगी।

यहां बड़ी बात यह है कि हर चेक का एक ‘आइटम एक्सपायरी टाइम’ होगा, जिस समय तक कॉन्फॉर्मेशन देनी आवश्यक है।

साथ ही, बैंकों ने ग्राहकों से सुरक्षा बढ़ाने के लिए पॉजिटिव पे सिस्टम का उपयोग करने का भी आग्रह किया गया है, जिसके तहत सत्यापन के लिए चेक का मुख्य विवरण पहले से जमा करना अनिवार्य है। खाताधारकों को 50,000 रुपए से अधिक के चेक जमा करने से कम से कम 24 कार्य घंटे पहले बैंक को खाता संख्या, चेक संख्या, तिथि, राशि और लाभार्थी का नाम बताना होगा।

चेक प्रस्तुत करते समय बैंक इन विवरणों की पुष्टि करेंगे। यदि जानकारी मेल खाती है, तो चेक क्लियर कर दिया जाएगा, अन्यथा, अनुरोध अस्वीकार कर दिया जाएगा और चेक जारीकर्ता को विवरण दोबारा जमा करना होगा।

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आरबीआई ने आईपीओ लोन की लिमिट को दोगुना कर 25 लाख रुपए प्रति निवेशक किया

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मुंबई, 1 अक्टूबर : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को कई फैसलों का ऐलान किया, जिसने क्रेडिट को कंपनियों और आम निवेशकों के लिए आसान बना दिया है।

केंद्रीय बैंक ने बैंकों को भारतीय कंपनियों द्वारा अधिग्रहण के लिए फंडिंग की अनुमति देने का निर्णय लिया है, साथ ही शेयरों और ऋण प्रतिभूतियों के बदले ऋण देने पर प्रतिबंधों में भी ढील दी है।

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के बाद, गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​ने कहा कि आरबीआई एक फ्रेमवर्क तैयार करेगा, जिसकी मदद से बैंक अधिग्रहणों के लिए कंपनियों को ऋण उपलब्ध करा पाएंगे।

यह कदम भारतीय स्टेट बैंक द्वारा नियामक से इस तरह की फंडिंग की अनुमति देने का अनुरोध करने के बाद उठाया गया है।

मल्होत्रा ​​ने आगे कहा कि केंद्रीय बैंक ने सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों पर ऋण देने की नियामक सीमा हटा दी है।

साथ ही, शेयरों पर ऋण देने की सीमा प्रति व्यक्ति 20 लाख रुपए से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दी गई है।

आईपीओ फंडिंग के लिए, सीमा 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 25 लाख रुपए प्रति व्यक्ति कर दी गई है।

यह बदलाव विशेष रूप से उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्तियों (एचएनआई) को सार्वजनिक निर्गमों में बड़ी राशि के लिए आवेदन करने में मदद करेगा।

आरबीआई ने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए ऋण देना सस्ता करने का भी फैसला किया है। इससे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा उच्च-गुणवत्ता वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को दिए गए ऋणों पर जोखिम भार कम हो जाएगा।

इसके साथ ही, नियामक ने 2016 के उस नियम को वापस ले लिया है जो 10,000 करोड़ रुपए से अधिक बैंक ऋण वाले बड़े उधारकर्ताओं को ऋण देने से हतोत्साहित करता था। इससे प्रणाली में समग्र ऋण उपलब्धता में वृद्धि होने की उम्मीद है।

विशेषज्ञों ने बताया कि आरबीआई के निर्णयों का उद्देश्य बैंकों द्वारा अधिक ऋण देने को प्रोत्साहित करना, कॉर्पोरेट अधिग्रहणों को समर्थन देना, आईपीओ भागीदारी को बढ़ावा देना और इन्फ्रास्ट्रक्चर और व्यावसायिक विकास के लिए धन की उपलब्धता को और अधिक सुगम बनाना है।

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