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Saturday,05-July-2025
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सरकार की नीति, नीयत, नेता सही, असली किसान नेता निकालेंगे रास्ता : तोमर

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Narendra-Singh-Tomar

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विपक्ष पर किसानों की समस्या के समाधान के रास्ते में रोड़े अटकाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टियां किसानों को निर्णय तक नहीं पहुंचने देना चाहती हैं, लेकिन असली किसान नेता जरूर समाधान का रास्ता निकालेंगे। हालांकि नये कृषि काूननों के मसले पर तोमर सरकार और किसानों के बीच सहमति बनने और किसान आंदोलन जल्द समाप्त होने के प्रति आश्वस्त हैं। उनका कहना है कि असली किसान नेता ही आगे आकर समाधान का रास्ता निकालेंगे।

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आईएएनएस को दिए विशेष साक्षात्कार में कहा, कुछ लोगों के दिमाग में है यह बात है कि तीनों कानून वापस होना चाहिए, इसलिए वे निर्णय तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं।

कृषि मंत्रालय के अलावा, ग्रामीण विकास, पंचायती राज और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय को संभाल रहे केंद्रीय मंत्री तोमर किसान प्रतिनिधियों के साथ हुई पांच दौर की वार्ताओं में से चार की अगुवाई कर चुके हैं। इसके अलावा, गृहमंत्री अमित शाह से आठ दिसंबर को हुई किसान नेताओं की मुलाकात के दौरान भी वो मौजूद थे। इन वार्ताओं के संबंध में तोमर ने आईएएनएस के सवालों को जवाब देते हुए कहा, सही मायने में किसान प्रतिनिधियों में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो यह कह सके कि किसानों की बात करने के लिए हमलोग आए हैं और किसानों को नये कानून में जहां-जहां आपत्ति है उन मुद्दों पर सरकार से बातचीत होनी चाहिए।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि सरकार की नीति सही है, नीयत सही है और नेता भी सही है, इसलिए किसानों के मन में कोई संदेह नहीं होना चाहिए।

नये कृषि कानून के विरोध में किसानों के खड़े होने से मोदी सरकार द्वारा कृषि के क्षेत्र में शुरू किए गए सुधार के मार्ग में उत्पन्न बाधाओं को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, इस तरह के नये रिफॉर्म जब किए जाते हैं तो कुछ लोगों के मन में संदेह उत्पन्न जरूर होता है, लेकिन मेरा मानना है कि संदेह दूर करने का प्रयास सरकार ने किया है और आगे भी किया जाएगा। मुझे आशा है कि समाधान होगा।

किसानों की समस्याओं का समाधान तलाशने और आंदोलन जल्द समाप्त होने को लेकर आश्वस्त तोमर ने कहा कि सरकार किसान नेताओं के साथ फिर से बातचीत करने को तैयार है और असली किसान नेता जब वार्ता में आगे आएंगे तो वे समाधान के रास्ते निकालेंगे।

केंद्र सरकार द्वारा लागू नये कृषि कानूनों से किसानों को होने वाले फायदे गिनाते हुए उन्होंने कहा, नया कानून किसानों को उनकी फसल देश में कहीं भी मनचाहे दाम पर बेचने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। तीन दिवस के भीतर दाम के भुगतान की गारंटी देता है। यह कानून इस बात का प्रावधान करता है कि घर बैठे किसानों को देशभर का भाव मिल जाए।

केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि किसानों की फसलों की खरीद पर अगर किसी प्रकार को टैक्स नहीं लगेगा तो उसका फायदा भी उनको मिलेगा क्योंकि टैक्स नहीं लगने से उनको ज्यादा दाम मिलेगा।

कांट्रैक्ट फामिर्ंग से जुड़े कानून की खासियत बताते हुए उन्होंने कहा कि यह कानून सिर्फ फसल के कांट्रेक्ट की इजाजत देता है और कानून में फसल की बुवाई से पहले मूल्य तय करने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि इस कानून से किसान महंगी फसलों की खेती के प्रति आकर्षित होगा और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करेगा, साथ ही वैश्विक मानकों के अनुसार खेती करेगा, उनके उत्पाद का इस्तेमाल फूड प्रोसेसिंग में होगा, तो निश्चित रूप से इसका किसानों को फायदा होगा और उत्पादों का उचित व लाभकारी दाम मिल पाएगा।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने स्पष्ट किया कि नये कानून से किसानों की जमीन जाने की आशंका निराधार है क्योंकि कानून के प्रावधानों के तहत जमीन को लेकर कोई लिखा-पढ़ी नहीं की जा सकती है, इस पर प्रतिबंध है।

विवादों के निपटारे के प्रावधान को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि किसी प्रकार के विवाद की स्थिति में एसडीएम के स्तर पर 30 दिन के भीतर उसका निपटारा होगा और उसकी अपील कलक्टर तक हो सकती है।

देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर से किसान डेरा डाले हुए हैं। आंदोलनकारी किसान संगठनों के नेता केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन नये कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को निरस्त करवाने की मांग पर अड़े हैं। जबकि सरकार इन कानूनों में संशोधन की पेशकश कर चुकी है और इसके लिए किसानों को मनाने की कोशिश में जुटे हैं। इस बीच पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड के किसानों के कुछ अन्य संगठनों के नेताओं ने केंद्रीय कृषि मंत्री से मिलकर तीनों कानूनों पर अपना समर्थन दिया है।

राजनीति

शिवसेना यूबीटी-एमएनएस प्रमुख, ठाकरे के अलग हुए चचेरे भाई, 2 दशक बाद वर्ली में ‘विजय’ रैली में फिर मिले

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मुंबई: शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के मुख्य नेता उद्धव और राज ठाकरे करीब 20 साल के मनमुटाव के बाद फिर से एक साथ आए हैं। महाराष्ट्र में हिंदी लागू करने के राज्य सरकार के फैसले को पलटने के लिए वर्ली के एनएससीआई डोम में यह सभा हुई।

दोनों भाई एक साथ मंच पर मौजूद हैं और कई मुख्य अतिथियों के साथ बड़ी संख्या में मौजूद दर्शकों का अभिवादन कर रहे हैं। इस पहल को ‘आवाज़ मराठीचा’ (मराठी की आवाज़) नाम दिया गया, जहाँ राज्य में मराठी भाषा को संरक्षित करने की स्मृति को दोनों नेताओं और उनके अनुयायियों द्वारा सम्मानित किया गया।

कई मशहूर हस्तियों और राजनेताओं ने भाग लिया, जैसे भरत जाधव, सिद्धार्थ जाधव, तेजस्विनी पंडित, जितेंद्र अवहाद, प्रियंका चतुर्वेदी, सुप्रिया सुले और कई अन्य नेता।

ठाकरे बंधुओं के आगमन से पहले, प्रशंसक मराठी लोक संगीत और नृत्यों का आनंद ले रहे थे, कार्यक्रम की शुरुआत ‘जय जय महाराष्ट्र माझा’ गीत के वाद्य यंत्रों के साथ हुई। ठाकरे भाई वर्ली में एनएससीआई डोम के मुख्य मंच पर एक साथ आए और एक-दूसरे के बगल में खड़े होकर दर्शकों की ओर हाथ हिलाया।

उन्होंने डॉ. बीआर अंबेडकर, सावित्रीबाई फुले और केशव सीताराम ठाकरे, जो कि जोड़े के दादा और बालासाहेब ठाकरे के पिता थे, से आशीर्वाद लेने से पहले छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा को माला पहनाई। ठाकरे भाइयों ने दर्शकों को संबोधित किया।

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महाराष्ट्र

मराठी-हिंदी विवाद पर तनाव के बाद शशिल कोडियेरी की माफी

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महाराष्ट्र: मुंबई मराठी-हिंदी विवाद के संदर्भ में, शिशिल कोडिया ने अपने विवादास्पद बयान के लिए माफी मांगी है। उन्होंने कहा कि उनके ट्वीट को गलत तरीके से पेश किया गया। मैं मराठी के खिलाफ नहीं हूं। मैं पिछले 30 वर्षों से मुंबई और महाराष्ट्र में रह रहा हूं। मैं राज ठाकरे का प्रशंसक हूं। मैं राज ठाकरे के ट्वीट पर लगातार सकारात्मक टिप्पणी करता हूं। मैंने अपनी भावनाओं में ट्वीट किया और मुझसे गलती हो गई। यह तनावपूर्ण और तनावपूर्ण माहौल समाप्त होना चाहिए। हमें मराठी को स्वीकार करने के लिए अनुकूल वातावरण की आवश्यकता है। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि मराठी के लिए इस गलती के लिए मुझे माफ करें। इससे पहले शिशिल कोडिया ने मराठी को लेकर एक विवादित बयान दिया था और मराठी बोलने से इनकार कर दिया था, जिससे नाराज होकर मनसे कार्यकर्ताओं ने शिशिल की कंपनी वीवर्क पर हमला और पथराव किया था। जिसके बाद अब शिशिल ने एक्स से माफी मांगी है

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महाराष्ट्र

‘अगर गुजरात में अनिवार्य नहीं है तो महाराष्ट्र में क्यों?’ सुप्रिया सुले ने हिंदी लागू करने के विवाद पर केंद्र से सवाल किया

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मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) की नेता सुप्रिया सुले ने महाराष्ट्र में अनिवार्य त्रिभाषा फार्मूले के बारे में अपनी निराशा व्यक्त की और सवाल किया कि जब गुजरात, केरल, तमिलनाडु और उड़ीसा जैसे राज्यों में ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है, तो यहां इसे क्यों लागू किया गया है, विशेष रूप से पहली कक्षा से हिंदी पढ़ाने के संबंध में।

मिडिया कार्यालय की अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें विदेश में भारत के लिए उनका हालिया प्रतिनिधित्व भी शामिल था। सुले ने वैश्विक संघर्षों के बीच विदेशी संबंधों में संलग्न होने पर राष्ट्र, राज्य, पार्टी और परिवार को प्राथमिकता देने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विदेश में भारतीय समुदाय ने अपनी चर्चाओं के दौरान महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी जैसी ऐतिहासिक हस्तियों के प्रति गहरी प्रशंसा दिखाई।

महाराष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था में चिंताओं को संबोधित करते हुए, सुले ने कक्षा 1 से हिंदी को अनिवार्य बनाने के फैसले की आलोचना की, और सुझाव दिया कि यह सरकार द्वारा रणनीतिक कदम के बजाय पीछे हटने का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने शिक्षकों की कमी और शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला, और तर्क दिया कि शिक्षा नीतियाँ राजनीतिक प्रेरणाओं के बजाय विशेषज्ञों की सिफारिशों पर आधारित होनी चाहिए।

सुले ने बच्चों पर तीन भाषाएँ थोपने के सरकार के औचित्य पर सवाल उठाया, जबकि साथ ही उनका काम का बोझ कम करने का दावा किया। उन्होंने परियोजनाओं में पर्याप्त धन निवेश करने की विडंबना की ओर भी इशारा किया, जबकि स्कूलों और अस्पतालों को बेहतर बनाने के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित करने में विफल रहे। उन्होंने हिंदी को लागू करने के केंद्र सरकार के आदेश की आलोचना की, और इसकी आवश्यकता पर सवाल उठाया, जबकि इसी तरह के क्षेत्र इसका पालन नहीं करते हैं।

इसके अलावा, सुले ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट पर भी बात की और इस बात पर चिंता जताई कि लोकतांत्रिक समाज में असहमति की आवाज़ों को दबाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि नक्सलवाद से निपटने के लिए एनआईए जैसी मौजूदा संस्थाएँ ही काफी हैं और सरकार को ऐसे कानूनों को लागू करने के बजाय कुपोषण की दर में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

अंत में, उन्होंने मराठी भाषा के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच एकता पर अपनी सहमति व्यक्त की, और कहा कि उनके बीच मेल-मिलाप मराठी समुदाय के लिए खुशी लेकर आया है और महाराष्ट्र की जड़ों से एक मजबूत जुड़ाव को दर्शाता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस की नेता सुप्रिया सुले एनएससीआई डोम वर्ली में आयोजित विजय रैली में मौजूद थीं, जिसमें राज्य सरकार के हिंदी लागू करने के फैसले को पलटने और ठाकरे बंधुओं, एमएनएस और शिवसेना यूबीटी प्रमुख राज और उद्धव ठाकरे के राजनीतिक संघर्ष के कारण 20 साल के अलगाव के बाद फिर से मिलने का जश्न मनाया गया।

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