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Wednesday,22-October-2025
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मिस्र के राष्ट्रपति और इजरायली प्रधानमंत्री ने फिलीस्तीन के द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की

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मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल-फतह अल-सीसी और इजरायल के दौरे पर आए प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों के विकास के साथ-साथ फिलिस्तीनी मुद्दे पर काहिरा में अधिकारियों के साथ चर्चा की। इस यात्रा को एक दशक में किसी इजरायली प्रधानमंत्री द्वारा मिस्र की पहली यात्रा के रूप में चिह्न्ति किया गया।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने मिस्र के राष्ट्रपति पद के प्रवक्ता बासम रेडी के हवाले से कहा कि शर्म अल-शेख के लाल सागर रिसॉर्ट शहर में सोमवार को अपनी बैठक के दौरान, सिसी और बेनेट ने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में हाल के घटनाक्रमों पर भी चर्चा की।

इस बीच, सिसी ने दो-राज्य समाधान और अंतर्राष्ट्रीय वैधता प्रस्तावों के आधार पर, मध्य पूर्व में व्यापक शांति प्राप्त करने के सभी प्रयासों के लिए मिस्र के समर्थन की पुष्टि की।

उन्होंने वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में तनाव को कम करने के लिए काहिरा के निरंतर कदमों के बीच फिलिस्तीनी और इजरायली पक्षों के बीच शांति बनाए रखने की आवश्यकता के अलावा, फिलिस्तीनी क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए मिस्र के प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समर्थन के महत्व पर भी जोर दिया।

वार्ता के बाद बेनेट के कार्यालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने और सीसी ने ‘भविष्य में गहरे संबंधों की नींव रखी।’

बयान में उनके हवाले से कहा गया, “हमने राजनयिक, सुरक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में कई मुद्दों पर चर्चा की, साथ ही संबंधों को गहरा करने और अपने देशों के हितों को मजबूत करने के तरीकों पर भी चर्चा की।”

बेनेट को 21 अगस्त को मिस्र के जनरल इंटेलिजेंस सर्विस के प्रमुख अब्बास कामेल की फिलिस्तीन और इजरायल की यात्रा के दौरान यहूदी राज्य और हमास के बीच युद्धविराम समझौते पर चर्चा करने के लिए सीसी द्वारा आमंत्रित किया गया था।

आखिरी बार एक इजरायली प्रधानमंत्री ने 2011 में काहिरा का दौरा किया था, जब देश के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक से मुलाकात की थी, जो बाद में एक लोकप्रिय विद्रोह से बाहर होने से ठीक एक महीने पहले हुआ था।

मिस्र 1979 में इजरायल के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करने वाला पहला अरब देश बन गया।

अंतरराष्ट्रीय समाचार

अमेरिका ने 1 लाख डॉलर की एच-1बी वीजा फीस पर दी सफाई, मौजूदा वीजा धारक रहेंगे मुक्त

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वॉशिंगटन, 21 अक्टूबर: विदेशी पेशेवरों को बड़ी राहत देते हुए अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने एच-1बी वीजा की 1 लाख डॉलर आवेदन फीस पर नया दिशा-निर्देश जारी किया है। इसमें कई छूटें और अपवाद शामिल किए गए हैं।

नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, जो लोग एफ-1 (छात्र) वीजा से एच-1बी वीजा श्रेणी में स्विच कर रहे हैं, उन्हें यह भारी शुल्क नहीं देना होगा। इसी तरह, अमेरिका के भीतर रहकर वीजा में संशोधन, स्थिति परिवर्तन या अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन करने वाले एच-1बी वीजा धारकों पर भी यह शुल्क लागू नहीं होगा।

इसके अलावा, मौजूदा एच-1बी वीजा धारकों को देश में आने-जाने पर किसी तरह की रोक नहीं होगी। यह शुल्क केवल उन नए आवेदकों पर लागू होगा जो अमेरिका के बाहर हैं और जिनके पास मान्य एच-1बी वीजा नहीं है। नई आवेदन प्रक्रिया के लिए ऑनलाइन भुगतान लिंक भी जारी किया गया है।

यह स्पष्टीकरण ऐसे समय आया है जब अमेरिकी वाणिज्य मंडल ने इस फैसले के खिलाफ ट्रंप प्रशासन पर मुकदमा दायर किया है। संगठन ने इस फीस को “गैरकानूनी” बताते हुए कहा कि इससे अमेरिकी व्यवसायों पर “गंभीर आर्थिक असर” पड़ेगा और कंपनियों को या तो अपने श्रम खर्च में भारी बढ़ोतरी करनी पड़ेगी या फिर कुशल विदेशी कर्मचारियों की भर्ती कम करनी होगी।

ट्रंप प्रशासन के खिलाफ यह दूसरी बड़ी कानूनी चुनौती है। इससे पहले, श्रमिक संघों, शिक्षा विशेषज्ञों और धार्मिक संस्थाओं के समूह ने भी 3 अक्टूबर को मुकदमा दायर किया था।

ट्रंप ने 19 सितंबर को हस्ताक्षरित इस घोषणा पर कहा था कि इसका उद्देश्य “अमेरिकी नागरिकों को रोजगार का प्रोत्साहन देना” है। हालांकि, इस फैसले से मौजूदा वीजा धारकों में भ्रम की स्थिति बन गई थी कि क्या वे अमेरिका लौट पाएंगे या नहीं।

व्हाइट हाउस ने 20 सितंबर को आईएएनएस से कहा था कि यह “एक बार लिया जाने वाला शुल्क” है, जो केवल नए वीजा आवेदनों पर लागू होगा, न कि नवीनीकरण या मौजूदा वीजा धारकों पर।

बता दें कि 2024 में भारतीय मूल के पेशेवरों को कुल स्वीकृत एच-1बी वीजाओं में 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी मिली थी। इसका कारण था वीजा स्वीकृति में लंबित मामलों का भारी बैकलॉग और भारत से आने वाले उच्च कौशल वाले आवेदकों की बड़ी संख्या।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

श्रीलंका की पीएम हरिनी अमरसूर्या पीएम मोदी से करेंगी मुलाकात

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PM MODI

नई दिल्ली, 17 अक्टूबर: श्रीलंका की प्रधानमंत्री हरिनी अमरसूर्या दो दिवसीय यात्रा पर भारत में मौजूद हैं। अपनी यात्रा के दूसरे दिन आज वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगी।

इससे पहले श्रीलंकाई पीएम ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की थी। वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज भी पहुंची। वह हिंदू कॉलेज में कार्यक्रम में शामिल हुईं।

विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “यह यात्रा भारत और श्रीलंका के बीच नियमित उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान की परंपरा को आगे बढ़ाती है और गहरी एवं बहुआयामी द्विपक्षीय साझेदारी को आगे बढ़ाती है। यह भारत के ‘महासागर विजन’ और उसकी ‘पड़ोसी पहले’ नीति से प्रेरित होकर मित्रता के बंधन को और मजबूत करेगी।”

दूसरी ओर मिस्र के विदेश मंत्री बद्र अब्देलती दो दिवसीय दौरे पर भारत में मौजूद हैं। आज उनके दौरे का दूसरा दिन है। आज वह भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे।

इससे पहले मिस्र के विदेश मंत्री ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी। विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत-मिस्र रणनीतिक वार्ता में अपने उद्घाटन भाषण में कहा, “भारत और मिस्र ग्लोबल साउथ की प्रगति और विश्व मामलों में राष्ट्रों की स्वतंत्रता एवं चयन की स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह एकजुटता निश्चित रूप से आज हमारी चर्चाओं का मार्गदर्शन करेगी।”

उन्होंने मिस्र के विदेश मंत्री बद्र अब्देलती का दो दिवसीय भारत दौरे पर स्वागत भी किया। बता दें, विदेश मंत्री के रूप में अब्देलती की यह पहली भारत यात्रा है। ईएमए जयशंकर ने बताया कि पहली भारत-मिस्र रणनीतिक वार्ता द्विपक्षीय संबंधों में एक मील का पत्थर है, जिसमें 2023 में रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक संबंधों के बेहतर होने के बाद से विभिन्न क्षेत्रों में गहन सहयोग देखा गया है।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

क्या रूस से तेल नहीं खरीदेगा भारत? ट्रंप के दावे पर नई दिल्ली ने दिया ये जवाब

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TRUMP

वाशिंगटन, 16 अक्टूबर: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महान व्यक्ति और भारत को एक अविश्वसनीय देश बताया है। इस बीच उन्होंने यह दावा किया कि पीएम मोदी ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि भारत अब और रूसी तेल नहीं खरीदेगा। इस पर भारत की प्रतिक्रिया भी सामने आई है।

व्हाइट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मलेशिया में प्रधानमंत्री मोदी के साथ संभावित मुलाकात के बारे में पूछे जाने पर राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, “हां, जरूर, वह मेरे दोस्त हैं। हमारे बीच बहुत अच्छे संबंध हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “वह एक महान व्यक्ति हैं। वह ट्रंप से प्यार करते हैं। मैंने वर्षों से भारत को देखा है। यह एक अविश्वसनीय देश है, और हर साल एक नया नेता आता है। मेरा मतलब है, कुछ नेता कुछ महीनों के लिए ही वहां रहते हैं, और यह साल दर साल होता रहा है। और मेरे दोस्त लंबे समय से वहां हैं।”

इस बीच रूस से तेल खरीदने को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप का चौंकाने वाला बयान सामने आया। उन्होंने दावा किया कि उन्हें “आश्वासन” दिया गया है कि भारत, रूस से तेल नहीं खरीदेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह समझते हैं कि ऐसा “तुरंत” नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा, “उन्होंने आज मुझे आश्वासन दिया कि वे रूस से तेल नहीं खरीदेंगे। इसे तुरंत नहीं किया जा सकता है। यह एक छोटी सी प्रक्रिया है, लेकिन यह प्रक्रिया जल्द ही पूरी हो जाएगी, और हम राष्ट्रपति पुतिन से बस यही चाहते हैं कि वे युद्ध रोकें।”

उन्होंने कहा, “कुछ ही समय में, वे रूस से तेल नहीं खरीदेंगे, और युद्ध समाप्त होने के बाद वे फिर से रूस से तेल का व्यापार करेंगे।”

इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि वह चीन पर भी “ऐसा ही करने” का दबाव डालेंगे। हालांकि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में रूसी तेल खरीदना शुरू किया है, जबकि चीन मास्को का सबसे बड़ा ऊर्जा खरीदार है।

इस पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “भारत तेल और गैस का एक महत्वपूर्ण आयातक है। अस्थिर ऊर्जा परिदृश्य में भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना हमारी निरंतर प्राथमिकता रही है। हमारी आयात नीतियां पूरी तरह इसी उद्देश्य से निर्देशित होती हैं। स्थिर ऊर्जा मूल्य और सुरक्षित आपूर्ति सुनिश्चित करना हमारी ऊर्जा नीति के दोहरे लक्ष्य रहे हैं। इसमें हमारी ऊर्जा स्रोतों का व्यापक आधार बनाना और बाजार की स्थितियों के अनुरूप विविधीकरण करना शामिल है।”

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि जहां तक अमेरिका का संबंध है, हम कई वर्षों से अपनी ऊर्जा खरीद का विस्तार करने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले दशक में इसमें लगातार प्रगति हुई है। वर्तमान प्रशासन ने भारत के साथ ऊर्जा सहयोग को गहरा करने में रुचि दिखाई है। इस पर चर्चाएं जारी हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एक खासियत है कि वह जब बोलते हैं, तो अपनी धुन में रहते हैं। उन्हें इस बात की इल्म नहीं होती कि जो दावे वो कर रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई परोसना और कितना झूठ। आंकड़े बताते हैं भारत आज भी रूस का दूसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक देश है। इसके साथ ही भारत ने सितंबर 2025 में रूस से 25,597 करोड़ का कच्चा तेल खरीदा है। चीन रूस के कच्चे तेल का सबसे बड़े खरीदार देश है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने खुद ही 7 युद्धों को सुलझाने का दावा कर दिया और खुद के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग भी कर ली। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का भी दावा किया। ये और बात है कि भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दावे को सिरे से नकार दिया। हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वो जिस तरह के दावे करते हैं, उस पर किसी की सहमति की मुहर लगती है या नहीं। वह केवल कहते हैं क्योंकि उन्हें कहना है।

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