राजनीति
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और 6 मंत्रियों ने विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ ली
नई दिल्ली, 24 फरवरी। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सोमवार को अपने मंत्रिमंडल के साथ विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ ली। विधानसभा का पहला सत्र सोमवार सुबह शुरू हुआ और सभी नवनिर्वाचित विधायकों ने शपथ लेंगे।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ मंत्री प्रवेश वर्मा, आशीष सूद, कपिल मिश्रा, रविंदर सिंह इंद्राज, पंकज कुमार सिंह और मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी शपथ ली। विधानसभा में विपक्ष की नेता आतिशी सहित आम आदमी पार्टी (आप) के 22 विधायकों ने भी पहले सत्र के दौरान शपथ ली।
इससे पहले भाजपा के विधायक अरविंदर सिंह लवली ने दिल्ली विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर के रूप में शपथ ली थी।
दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने गांधी नगर के विधायक को राज निवास में शपथ दिलाई। अरविंदर सिंह चार बार विधायक रह चुके हैं। वह नए अध्यक्ष के चुने जाने तक अध्यक्ष का कार्यभार संभालेंगे।
दिल्ली विधानसभा का पहला सत्र तीन दिनों तक चलेगा। सत्र की शुरुआत भाजपा विधायक अरविंदर सिंह लवली ने प्रोटेम स्पीकर के रूप में शपथ लेकर की। उपराज्यपाल (एल-जी) विनय कुमार सक्सेना ने राज निवास पर लवली को शपथ दिलाई।
विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव दोपहर 2 बजे होगा। विधानसभा बुलेटिन के अनुसार, उपराज्यपाल सक्सेना 25 फरवरी को सदन को संबोधित करेंगे। इसके बाद नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पेश की जाएगी।
बता दें कि रेखा गुप्ता ने गुरुवार को रामलीला मैदान में एक बड़े समारोह में दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। इस शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा शासित राज्यों के कई मुख्यमंत्री भी शामिल हुए थे। रेखा गुप्ता, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज और आतिशी के बाद दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री बन गई हैं। वह मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज के बाद दिल्ली में मुख्यमंत्री बनने वाली चौथी भाजपा नेता हैं।
राजनीति
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के खिलाफ अनुपातहीन संपत्ति के मामले में जांच की मांग वाली याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

मुंबई, 22 दिसंबर: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ उनकी ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक संपत्ति रखने के आरोप में जांच की मांग करने वाली याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
यह याचिका अभय भिडे और उनकी बेटी गौरी भिडे ने दायर की थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि 2021-22 में दर्ज कराई गई उनकी शिकायतों पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई थी।
न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति आर.आर. भोंसले की पीठ ने गौर किया कि भीडे परिवार द्वारा दायर इसी तरह की एक जनहित याचिका (PIL) को उच्च न्यायालय ने मार्च 2023 में पहले ही खारिज कर दिया था, इसलिए वर्तमान याचिका को उसके मौजूदा स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई जनवरी में करेगा।
भीडे परिवार ने फिर से उच्च न्यायालय का रुख करते हुए दावा किया कि पहले दिए गए आश्वासनों के बावजूद, मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने उनकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि ठाकरे परिवार के पास आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति है।
याचिका के अनुसार, गौरी भिडे ने सर्वप्रथम 11 जुलाई, 2022 को मुंबई पुलिस आयुक्त को शिकायत सौंपी थी, जिसे उसी दिन ईओडब्ल्यू को भेज दिया गया था। 26 जुलाई, 2022 को एक अनुस्मारक भेजा गया था।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि दिसंबर 2022 में राज्य सरकार ने जांच शुरू करने का फैसला किया था, लेकिन न तो कोई बयान दर्ज किया गया और न ही शिकायतकर्ता को किसी भी प्रगति के बारे में सूचित किया गया।
याचिका में मांग की गई थी कि जांच को ईओडब्ल्यू से केंद्रीय एजेंसियों, जिनमें सीबीआई और ईडी शामिल हैं, को स्थानांतरित किया जाए ताकि नई जांच और फोरेंसिक ऑडिट की जा सके। इसमें अदालत की निगरानी में स्थिति रिपोर्ट जारी करने और अधिवक्ताओं के कल्याण कोष में 25,000 रुपये के भुगतान के पूर्व निर्देश को वापस लेने की भी मांग की गई थी।
मार्च 2023 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने भीडे द्वारा दायर इसी तरह की एक जनहित याचिका को “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” करार देते हुए खारिज कर दिया था। उस समय, ठाकरे परिवार के वकील ने इस याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि यह अनुमानों पर आधारित है और इसमें ठोस सबूतों का अभाव है।
चिनॉय ने बताया था कि याचिकाकर्ता के पास मजिस्ट्रेट के समक्ष निजी शिकायत दर्ज करने का वैकल्पिक उपाय भी मौजूद है। उच्च न्यायालय ने यह भी ध्यान दिया था कि ईओडब्ल्यू ने प्रारंभिक जांच शुरू कर दी थी और याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
अपराध
दिल्ली साइबर पुलिस ने क्यूआर कोड फ्रॉड के मास्टरमाइंड को राजस्थान से गिरफ्तार किया

CRIME
नई दिल्ली, 23 दिसंबर: दिल्ली पुलिस की साइबर सेल, नॉर्थ डिस्ट्रिक्ट ने एक सनसनीखेज क्यूआर कोड फ्रॉड केस को सुलझाया है। आरोपी ने दुकानों के मूल क्यूआर कोड में छेड़छाड़ कर ग्राहकों के पेमेंट को अपने अकाउंट में डायवर्ट कर दिया था। पुलिस ने इंटर-स्टेट ऑपरेशन कर राजस्थान के जयपुर से 19 साल के आरोपी मनीष वर्मा को गिरफ्तार किया।
केस की शुरुआत 13 दिसंबर 2025 को हुई, जब एक शख्स चांदनी चौक की मशहूर कपड़े की दुकान पर 2.50 लाख रुपए का लहंगा खरीदने गया। उसने दुकान पर दिखाए QR कोड को स्कैन कर 90,000 और 50,000 रुपए के दो पेमेंट किए। लेकिन दुकान वाले ने कहा कि पैसे उनके ऑफिशियल अकाउंट में नहीं आए। स्क्रीनशॉट दिखाने के बावजूद दावा किया गया कि कोई पेमेंट नहीं हुआ। पीड़ित ने ऑनलाइन शिकायत की, जिस पर साइबर नॉर्थ पुलिस स्टेशन में बीएनएस की संबंधित धाराओं के तहत ई-एफआईआर दर्ज हुई।
जांच डीसीपी नॉर्थ के निर्देशन, एसीपी ऑपरेशंस विदुषी कौशिक की लीडरशिप और एसएचओ साइबर नॉर्थ रोहित गहलोत के सुपरविजन में हुई। टीम ने दुकान का स्पॉट इंस्पेक्शन किया, बिलिंग प्रोसेस वेरिफाई की और स्टाफ के बयान लिए। यूपीआई ट्रांजेक्शन ट्रेल से पता चला कि पैसे एक अलग अकाउंट में गए, जो राजस्थान से ऑपरेट हो रहा था।
टेक्निकल एनालिसिस, बैंक रिकॉर्ड और डिजिटल फुटप्रिंट्स के आधार पर आरोपी की लोकेशन ट्रेस की गई। जयपुर के चाकसू इलाके में छापेमारी कर मनीष वर्मा को पकड़ा गया। पूछताछ में उसने कबूल किया कि उसने एआई-बेस्ड इमेज एडिटिंग ऐप से मूल क्यूआर कोड में बदलाव कर मर्चेंट की डिटेल्स अपनी बदल दीं। फ्रॉड का आइडिया उसे साउथ इंडियन फिल्म ‘वेट्टैयान’ के एक सीन से मिला।
पुलिस ने उसके मोबाइल फोन जब्त किए, जिनमें 100 से ज्यादा एडिटेड क्यूआर कोड, चैट और फाइनेंशियल रिकॉर्ड मिले। ठगी की रकम उसके अकाउंट में ट्रेस हो गई। जांच से खुलासा हुआ कि आरोपी ने सिस्टमैटिक तरीके से कई दुकानों को टारगेट किया था। इससे अन्य पीड़ितों और ट्रांजेक्शनों की पहचान के लिए नई लाइन्स खुली हैं।
पर्यावरण
अरावली को बचाने के लिए सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है : भूपेंद्र यादव

नई दिल्ली, 23 दिसंबर: अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर उठ रहे सवालों और देशभर में चल रही चर्चाओं के बीच सरकार का पक्ष जानना अहम हो गया है। इसी संदर्भ में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने न्यूज एजेंसी मीडिया से विशेष बातचीत की और अरावली से जुड़े मुद्दों पर अपनी बात स्पष्ट रूप से रखी। इस बातचीत में उन्होंने सरकार की मंशा, नीतिगत सोच और पर्यावरण संरक्षण को लेकर उठाए जा रहे कदमों पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं इस खास बातचीत के प्रमुख अंश।
सवाल: अरावली को बचाने की बात अब पूरे देश में हो रही है। क्या यह सिर्फ अरावली तक सीमित मुद्दा है?
जवाब: अरावली को बचाना केवल एक पहाड़ी श्रृंखला को बचाने का सवाल नहीं है। यह देश के पर्यावरण, जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी संतुलन से जुड़ा विषय है। सरकार अरावली के संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट फैसला भी आ चुका है। खनन के उद्देश्य से अरावली और अरावली पहाड़ियों की परिभाषा तय की गई है। सबसे अहम बात यह है कि अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगे। जब तक एक वैज्ञानिक और ठोस मैनेजमेंट प्लान नहीं बन जाता, तब तक किसी भी तरह के नए खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस योजना को तैयार करने की जिम्मेदारी आईसीएफआरई को सौंपी गई है।
सवाल: क्या सुप्रीम कोर्ट ने अरावली में किसी तरह की छूट दी है?
जवाब: नहीं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कोई छूट नहीं मिली है। कोर्ट ने दो अहम बातें कही हैं। पहली, पर्यावरण मंत्रालय के ‘ग्रीन अरावली प्रोजेक्ट’ को मान्यता दी गई है। दूसरी, आईसीएफआरआई को यह जिम्मेदारी दी गई है कि जब तक पूरी वैज्ञानिक योजना नहीं बन जाती, तब तक कोई नया खनन नहीं होगा। इस योजना में अरावली पहाड़ियों और पूरे अरावली क्षेत्र की पहचान की जाएगी, उनकी इको-सेंसिटिविटी तय की जाएगी और उसके बाद ही आगे कोई निर्णय लिया जाएगा। यह फैसला अवैध खनन को रोकने और भविष्य में केवल सस्टेनेबल तरीके से खनन की अनुमति देने के लिए है।
सवाल: कहा जा रहा है कि पहली बार अरावली में 100 मीटर ऊंची पहाड़ियों तक खनन की अनुमति दी जाएगी। क्या यह सच है?
जवाब: यह बात पूरी तरह गलत तरीके से फैलाई जा रही है। 100 मीटर ऊंचाई की कोई अलग से अनुमति नहीं दी गई है। दरअसल, अरावली पहाड़ी की पहचान की जा रही है। यह ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर का सवाल नहीं है, बल्कि धरातल से जुड़े वैज्ञानिक मानकों का मामला है। अगर कोई पहाड़ी 200 मीटर ऊंची है, तो उसके आसपास का 500 मीटर का इलाका भी अरावली रेंज का हिस्सा माना जाएगा। जहां तक संरक्षित क्षेत्रों की बात है, वे पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। खेती योग्य भूमि का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा खनन क्षेत्र से बाहर रहेगा।
सवाल: इसे 100 मीटर के रूप में कैसे परिभाषित किया जाएगा, ऊपर से या नीचे से?
जवाब: इसे ऊपर या नीचे से नहीं, बल्कि उस जिले की भौगोलिक संरचना के आधार पर तय किया जाएगा। यानी सबसे निचले जमीनी स्तर से ऊपर तक की पूरी संरचना को ध्यान में रखकर परिभाषा तय होगी।
सवाल: सुप्रीम कोर्ट में पर्यावरण मंत्रालय का रुख क्या नया है या यह पहले से चला आ रहा है?
जवाब: अवैध खनन को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एफएसआई, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सीईसी के साथ मिलकर एक संयुक्त समिति बनाई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी, जिसके आधार पर यह फैसला आया। यह कोई नया रुख नहीं है, बल्कि लंबे समय से चल रही प्रक्रिया का नतीजा है।
सवाल: कांग्रेस सरकार के समय अरावली में खनन की स्थिति क्या थी?
जवाब: उस समय बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा था। इसी वजह से लोग अदालत गए थे और यह याचिका भी उसी दौर की है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खनन को सतत, वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और सीमित तरीके से लागू किया जाएगा ताकि अरावली को बचाया जा सके।
सवाल: आपने 2018 में कहा था कि खनन की वजह से 31 पहाड़ पूरी तरह खत्म हो गए। अगर खनन से पहाड़ खत्म होंगे तो क्या होगा?
जवाब: इसी कारण हर जिले के लिए अलग-अलग मैनेजमेंट प्लान बनाया जाएगा। बिना वैज्ञानिक योजना के किसी भी तरह की गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी। उद्देश्य पहाड़ों और पर्यावरण को बचाना है।
सवाल: कहा जा रहा है कि चित्तौड़गढ़ और माधोपुर को नए मैनेजमेंट प्लान से बाहर रखा गया है। इसमें कितनी सच्चाई है?
जवाब: यह पूरी तरह गलत है। अरावली के सभी हिस्सों को इस योजना में शामिल किया जाएगा। किसी भी जिले या क्षेत्र को बाहर नहीं रखा जा रहा है।
सवाल: आप कह रहे हैं कि अरावली को लेकर एक तरह का भ्रम फैलाया जा रहा है। क्या इसके पीछे विदेशी फंडिंग का हाथ है?
जवाब: जो लोग झूठ फैला रहे हैं, वे अपनी मर्जी से ऐसा कर रहे हैं। लेकिन वे सफल नहीं हो रहे हैं। अब जनता को सच्चाई समझ में आ गई है।
सवाल: क्या यह वही स्थिति है जैसी कभी नर्मदा परियोजना को लेकर गुजरात में बनाई गई थी?
जवाब: यह कांग्रेस के राजनीतिक माहौल में फैलाया गया एक और झूठ है। लेकिन अब लोग सच्चाई पहचान चुके हैं।
सवाल: एक समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कुडनकुलम प्लांट के विरोध में एनजीओ सिस्टम की बात की थी और विदेशी एजेंसियों का जिक्र किया था। क्या अरावली के मामले में भी ऐसा कुछ है?
जवाब: अरावली को लेकर राजनीतिक विरोधी भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनका यह भ्रम पूरी तरह नाकाम हो गया है। सरकार पूरी पारदर्शिता और वैज्ञानिक सोच के साथ अरावली के संरक्षण के लिए काम कर रही है।
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