राजनीति
बिहार : नए मंत्रिमंडल में दिखेंगे कई युवा और नए चेहरे

बिहार में नई सरकार के गठन को लेकर कवायद तेज हो गई है। इस बीच, नए मंत्रिमंडल को लेकर भी अब चर्चा प्रारंभ हो गई है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के फिर से सत्ता में वापसी के बाद इतना तो तय है कि बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक बार फिर से नीतीश कुमार काबिज होंगे, लेकिन इस बार उनके मंत्रिमंडल में कई नए चेहरे शामिल होंगे।
पिछली बार की तुलना में इस चुनाव में भाजपा जहां अधिक सीटें जीती हैं, वहीं जदयू की सीटों में गिरावट आई है। इस कारण यह तय माना जा रह है कि मंत्रिमंडल में इस बार भाजपा का दबदबा रहेगा।
इस बार भाजपा ने 74 सीटें जीती हैं। पिछली बार की तुलना में इस बार भाजपा के 21 अधिक विधायक जीतकर आए हैं। वहीं, जदयू के विजयी उम्मीदवारों की संख्या पिछली बार की 71 से घटकर 43 रह गई है। वहीं, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के चार-चार विधायक जीतकर आए हैं।
वैसे सूत्रों के मुताबिक, सरकार में शामिल होने के लिए राजग में फिलहाल कोई फार्मूला तय नहीं हुआ है, लेकिन कहा जा रहा है कि युवा चेहरे इस मंत्रिमंडल में देखने को मिलेंगे। यह भी अब तक तय नहीं है कि जदयू और भाजपा कोटे से कितने मंत्री बनेंगे। वैसे वीआईपी और हम के खाते में एक-एक मंत्री पद जाना तय माना जा रहा है।
इस बीच, हालांकि हम के प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पहले ही कह चुके हैं वे मंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। नियम के मुताबिक बिहार के विधानसभा में सीटों की संख्या के मुताबिक अधिकतम 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं। वैसे सूत्र यह भी बताते हैं कि मुख्यमंत्री के साथ सभी कोटे के मंत्रियों की संख्या नहीं भरी जाएगी। मंत्रिमकंडल में युवा चेहरों को प्रथमिकता दी जाएगी तथा सामाजिक समीकरणों का भी ध्यान रखा जाएगा।
नई सरकार और नए मंत्रिमंडल गठन को लेकर बिहार भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी को दिल्ली तलब किया गया है। कहा जा रहा है कि मोदी को नई जिम्मेदारी देते हुए उपमुख्यमंत्री पद पर किसी दूसरे नेता को बैठाया जा सकता है।
इधर, जदयू की बात करें तो आठ मंत्री चुनाव हार गए हैं, जिनके कारण जदयू कोटे को नए नामों पर विचार करना होगा। कहा जा रहा है कि जदयू कोटे से 12 मंत्री बनाए जा सकते हैं जबकि भाजपा कोटे 18 से 20 मंत्री बन सकते हैं।
इस बीच, भाजपा में नवनिर्वाचित विधायकों ने मंत्रीपद को लेकर लॉबिंग भी शुरू कर दी है। कई नेता पटना से दिल्ली तक ऐसे नेता अपनी-अपनी गोटी सेट करने में लग गए हैं।
बहरहाल, मंत्रिमंडल को लेकर अभी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है, लेकिन इतना मामना जा रहा है कि इस मंत्रिमंडल में कई नए और युवा चेहरे होंगे वहीं चंपारण और मिथिलांचल के चेहरे मंत्रिमंडल में ज्यादा दिखेंगे।
महाराष्ट्र
हजरत सैयद बाले शाह पीर दरगाह ध्वस्तीकरण आदेश, चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश, दरगाह प्रबंधन को राहत

मुंबई: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मुंबई के मीरा भयंदर स्थित हजरत सैयद बाले शाह पीर दरगाह को संरक्षण प्रदान किया है तथा चार सप्ताह के लिए ध्वस्तीकरण प्रक्रिया पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। महाराष्ट्र सरकार चार सप्ताह के भीतर अदालत में जवाब दाखिल करेगी, जिसके बाद ही दरगाह को गिराने की प्रक्रिया पर निर्णय लिया जाएगा।
राज्य के राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बांकोले ने सदन में 20 मई तक धर्मस्थल को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था और सार्वजनिक बयान भी जारी किया था, लेकिन किसी तरह का कोई नोटिस जारी नहीं किया गया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने ध्वस्तीकरण प्रक्रिया पर प्रभावी रोक लगाने का आदेश दिया और दरगाह प्रशासन द्वारा दायर याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब भी मांगा।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि किसी सरकारी नोटिस के अभाव के बावजूद, राज्य विधानसभा में मंत्री के सार्वजनिक बयानों और हाल की पुलिस रिपोर्ट के आधार पर ध्वस्तीकरण का आदेश दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि दरगाह 350 साल पुरानी है और फिर भी राज्य सरकार ने इसे अवैध संरचना के रूप में वर्गीकृत किया है। ट्रस्ट ने दावा किया है कि संपत्ति का औपचारिक पंजीकरण भी 2022 में कराने की मांग की गई है और यह मंदिर दशकों से उसी स्थान पर स्थित है। याचिकाकर्ता के अनुसार, बॉम्बे हाईकोर्ट की अवकाश पीठ ने 15 और 16 मई को तत्काल सुनवाई की याचिकाओं को गलती से खारिज कर दिया था। दरगाह प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पुलिस ने 15 मई को एक नोटिस भी जारी किया था। नोटिस में ट्रस्ट के सदस्यों को चेतावनी दी गई थी कि वे विध्वंस प्रक्रिया में बाधा या व्यवधान न डालें। ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया 20 मई के लिए निर्धारित की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई बिना किसी कानूनी आदेश या उचित प्रक्रिया, जैसे नोटिस या सुनवाई का अवसर दिए बिना की गई, जो उनके अधिकारों का उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दी और महाराष्ट्र सरकार को उस समयावधि के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया।
अपराध
झारखंड के शराब घोटाले में आईएएस विनय चौबे से एंटी करप्शन ब्यूरो ने शुरू की पूछताछ

रांची, 20 मई। झारखंड में शराब घोटाले में पीई (प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी) दर्ज करने के बाद एंटी करप्शन ब्यूरो ने आईएएस और तत्कालीन एक्साइज सेक्रेटरी विनय कुमार चौबे से पूछताछ शुरू की है।
मंगलवार को एसीबी की टीम उनके आवास पर पहुंची और इसके बाद उन्हें अपने साथ कार्यालय लेकर पहुंची है।
सूत्रों के अनुसार, उनसे उनके कार्यकाल में झारखंड में छत्तीसगढ़ की तर्ज पर लागू हुई एक्साइज पॉलिसी की कथित गड़बड़ियों के बारे में पूछताछ की जा रही है।
दरअसल, इस मामले की जड़ें छत्तीसगढ़ से जुड़ी हैं, जहां शराब घोटाले में स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के अफसरों और कई बड़े कारोबारियों की भूमिका सामने आई है।
छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले की जांच वहां की आर्थिक अपराध शाखा ने शुरू की थी। इसके बाद ईडी ने भी इस मामले में जांच शुरू की।
ईडी को इस दौरान यह भी जानकारी मिली कि जिस सिंडिकेट ने छत्तीसगढ़ में शराब घोटाला किया, उसी ने झारखंड में भी नई उत्पाद नीति लागू करवाई और यहां भी उसी तर्ज पर घोटाला दोहराया गया।
इसी आधार पर ईडी की छत्तीसगढ़ इकाई ने झारखंड के तत्कालीन एक्साइज सेक्रेटरी विनय चौबे को समन जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया था।
पूछताछ के दौरान चौबे ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा था कि उत्पाद नीति सरकार की सहमति से लागू की गई थी। बाद में झारखंड के एक व्यक्ति ने छत्तीसगढ़ की आर्थिक अपराध शाखा में प्राथमिकी दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ के शराब सिंडिकेट ने ही झारखंड में सुनियोजित घोटाला किया।
इसके बाद ईडी ने इसमें ईसीआईआर दर्ज कर जांच शुरू की और अक्टूबर 2024 में आईएएस विनय चौबे सहित कई लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की थी।
जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ आर्थिक अपराध शाखा में एक प्राथमिकी दर्ज होने के बाद झारखंड एसीबी ने राज्य सरकार की अनुमति के बाद पीई दर्ज कर जांच शुरू की है।
राजनीति
नाना पटोले ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखा पत्र, प्रोटोकॉल न मानने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग

नई दिल्ली, 20 मई। महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नाना पटोले ने मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है। पत्र में मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई के दौरे को लेकर प्रोटोकॉल का पालन न करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने की मांग की है।
नाना पटोले ने लिखा, “आपको यह पत्र लिखते समय अत्यंत पीड़ा हो रही है। बहुजन समाज के गौरव, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई का महाराष्ट्र सरकार एवं राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अपमान किया गया है। एक महाराष्ट्र पुत्र के रूप में उनका मुंबई में सत्कार करने का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में प्रोटोकॉल के अनुसार राज्य महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और मुंबई पुलिस आयुक्त की उपस्थिति अपेक्षित थी, परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ। अंततः मुख्य न्यायाधीश ने अपने भाषण में यह टिप्पणी की कि मेरे इस कार्यक्रम में इन अधिकारियों को आने की योग्यता नहीं लगती, तो यह विचार उन्हें स्वयं करना चाहिए। यह वक्तव्य अत्यंत दुखदायक है और यह स्पष्ट संकेत देता है कि महाराष्ट्र सरकार अपने ही सुपुत्र का सम्मान करने में विफल रही है।”
उन्होंने आगे लिखा, “न्यायमूर्ति भूषण गवई डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों के अनुयायी हैं, इस कारण उनके साथ यह व्यवहार जानबूझकर किया गया ऐसा संदेह संपूर्ण महाराष्ट्र में व्यक्त किया जा रहा है। संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के सम्मान के लिए एक निर्धारित प्रोटोकॉल होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस प्रोटोकॉल की अवहेलना की है।”
पटोले ने अंत में विनम्र अपील की। कहा- यह अपमान केवल भूषण गवई का नहीं, बल्कि महात्मा ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहू महाराज और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का भी है। इस अपमान के लिए राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाए, ऐसी आपसे विनम्र प्रार्थना करता हूं। आपकी कार्रवाई से भविष्य में कोई भी सरकार और अधिकारी किसी संवैधानिक पद पर बैठे शख्स का अपमान करने का साहस नहीं करेंगे, ऐसी अपेक्षा करता हूं।
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