अंतरराष्ट्रीय
जिंदल पावर के लिए जिंदल स्टील पावर लिमिटेड शुरू करने जा रही विनिवेश के लिए बोली

जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) ने अपनी सहायक कंपनी जिंदल पावर लिमिटेड (जेपीएल) की प्रस्तावित हिस्सेदारी बिक्री के लिए एक अतिरिक्त पारदर्शी प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया है। विभिन्न दौर की चचार्ओं और वातार्ओं के बाद, जेएसपीएल और उसके लेनदेन सलाहकारों ने कंपनी द्वारा प्राप्त सभी निवेशकों की प्रतिक्रिया को समायोजित करते हुए वल्र्डवन से एक संशोधित और आवश्यक प्रस्ताव पर सफलतापूर्वक बातचीत की है।
संशोधित प्रस्ताव की मुख्य विशेषताएं यह हैं कि वल्र्डऑन जेएसपीएल द्वारा रखे गए जेपीएल के सभी इक्विटी शेयरों और रिडीमेबल वरीयता शेयरों को लगभग 7,401 करोड़ रुपये में खरीदेगा, जिसमें से (आई) 3,015 करोड़ रुपये नकद द्वारा देय होंगे, और (आईआई) शेष 4,386 करोड़ रुपये (लगभग) अंतर-कॉपोर्रेट जमा और जेपीएल द्वारा जेएसपीएल को दिए गए पूंजीगत अग्रिमों के संबंध में जेएसपीएल की देनदारियों और दायित्वों की धारणा और अधिग्रहण के माध्यम से होंगे।
वास्तव में, संशोधित प्रस्ताव अब सरल और सीधा है जहां विनिवेश के बाद जेएसपीएल और जेपीएल के बीच कोई निरंतर वित्तीय संबंध नहीं रहेगा।
यह जेएसपीएल निवेशकों द्वारा पहले आयोजित फीडबैक सत्र के दौरान प्रमुख प्रश्नों में से एक था और इसे व्यापक रूप से संबोधित किया गया है।
अपने निवेशकों, विशेष रूप से अपने अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हितों की रक्षा के लिए, जेएसपीएल ने 7,401 करोड़ रुपये के संशोधित प्रस्ताव का उपयोग करते हुए, जेपीएल हिस्सेदारी बिक्री से उच्चतम संभव मूल्य प्राप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ने के लिए एक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया है।
पारदर्शी बोली प्रक्रिया को सार्वजनिक डोमेन में विज्ञापित किया जाएगा और दुनिया भर के इच्छुक बोलीदाताओं के लिए 7,401 करोड़ रुपये के वर्तमान संशोधित प्रस्ताव को आगे आने और बेहतर बनाने के लिए समान अवसर प्रदान करेगा।
जेएसपीएल प्रबंधन ने कहा,जेएसपीएल जेपीएल के विनिवेश से मूल्य को अधिकतम करने के अपने प्राथमिक लक्ष्य और अपने अल्पसंख्यक शेयरधारकों सहित अपने सभी हितधारकों के हितों की रक्षा करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
अंतरराष्ट्रीय
डोनाल्ड ट्रंप का 50 प्रतिशत वाला टैरिफ बम, भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’

PM MODI
नई दिल्ली, 8 अगस्त। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रह-रहकर भारत को टैरिफ का दिखाया जा रहा डर अब उनके लिए ही परेशानी का कारण बनता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से अमेरिका भारत के खिलाफ टैरिफ बम फोड़ने की धमकी दे रहा है, उसका माकूल जवाब भारत सरकार की तरफ से दिया जा रहा है।
दरअसल, भारत एक ऐसा वैश्विक बाजार बन चुका है, जिसकी जरूरत दुनिया के देशों को अपना व्यापार चलाने के लिए है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। भारत इस मामले में अमेरिका से आगे है और यही वजह है कि भारत के बाजार पर पूरी दुनिया की नजर है।
पिछले कुछ दिनों में भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा दी जा रही टैरिफ धमकी का जवाब जिस तरह से दिया जा रहा है, वह भारत की वैश्विक ताकत को दिखाता है। एक तरफ जहां भारत के खिलाफ टैरिफ की धमकी अमेरिका के राष्ट्रपति दे रहे हैं तो उनका जवाब भारत की तरफ से देने के लिए विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता सामने आ रहे हैं। मतलब दुनिया के सबसे ताकतवर देश होने का दंभ भरने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति की धमकी का जवाब भी भारत के प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री स्तर के नेता के द्वारा नहीं दिया जा रहा है।
अब एक बार भारत की तरफ से किए गए निश्चय पर ध्यान दें तो आपको पता चल जाएगा कि आखिर भारत अमेरिका की टैरिफ वाली धमकी को इतनी गंभीरता से क्यों नहीं ले रहा है। भारत ने ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी पर जो जवाब दिया है, उसका संदेश साफ है। भारत की तरफ से दिए गए जवाब को देखेंगे तो इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका के टैरिफ की भारत को कोई चिंता नहीं है और इसकी सबसे बड़ी वजह भारत का खुद आत्मनिर्भर बनना है। चाहे वह रक्षा का मामला हो या सुरक्षा का। दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि अमेरिका से डील की किसी डेडलाइन की चिंता भारत में दिख नहीं रही है और सरकार की तरफ से साफ संदेश जा रहा है कि भारत प्रेशर में आने वाला नहीं है, ना ही प्रेशर में आकर कोई डील करेगा। इसके साथ ही भारत ट्रंप की मंशा भी अच्छी तरह से समझ रहा है कि अमेरिका भारत के पूरे बाजार में बेरोकटोक एक्सेस चाहता है जो किसी हाल में भारत देने को तैयार नहीं है।
इसके साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार देश के किसानों और छोटे व्यवसायियों को किसी भी हाल में नुकसान होने देने के मूड में नहीं दिख रही है। वहीं, अमेरिका की तरफ से इस टैरिफ धमकी के जरिए इस पर भी दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है कि भारत अपने सबसे पुराने मित्र रूस से अपनी दोस्ती समाप्त कर ले तो भारत का यह संदेश भी स्पष्ट है कि ऐसा कभी होने वाला नहीं है।
भारत की अर्थव्यवस्था को ‘डेड’ बताने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी पता है कि भारत का बाजार जिस दिन अमेरिका के लिए बंद हुआ, उस दिन उनकी कई कंपनियों पर ताले लग जाएंगे। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। अब एक बार जानिए कि परचेजिंग पावर पैरिटी है क्या?
दरअसल, क्रय-शक्ति समता (परचेजिंग पावर पैरिटी- पीपीपी) अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है। जिसको आसान भाषा में समझिए कि यह एक-दूसरे देश में जीवन शैली पर किए गए व्यय के अनुपात को दर्शाता है। इसके अनुसार विभिन्न देशों में एकसमान वस्तुओं की कीमत समान रहती है। मतलब परचेजिंग पावर पैरिटी विभिन्न देशों में कीमतों का माप है, जो देशों की मुद्राओं की पूर्ण क्रय शक्ति की तुलना करने के लिए विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों का उपयोग करती है।
यानी प्रत्येक देश में सामान और सेवाएं खरीदने के लिए एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित करना होता है। अब इसे ऐसे समझें कि भारत के मध्यम वर्ग के लिए एक साल का बजट अगर 25 लाख का होता है, तो अमेरिका के मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यही बजट यहां की मुद्रा के अनुसार 80 लाख से ज्यादा होता है।
अब भारत ने अमेरिका के उस दोहरे रवैये को भी उजागर कर दिया है, जिसमें अमेरिका भारत को रूस से दोस्ती और व्यापार खत्म करने के लिए धमकी दे रहा है। वहीं, वह खुद रूस से भारी मात्रा में तेल, गैस और फर्टिलाइजर खरीदता है।
हालांकि, भारत का विपक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत के ‘डेड’ इकोनॉमी वाले दावे पर सरकार को घेरने की कोशिश तो कर रहा है। लेकिन, विपक्ष के शशि थरूर, मनीष तिवारी और राजीव शुक्ला के साथ कई अन्य नेता भी हैं, जो ट्रंप के इस दावे को भद्दा मजाक तक बता दे रहे हैं। मतलब भारत में तो ट्रंप के दावे को भी मजाक में ही लिया जा रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता में वापसी के बाद दुनिया के 70 से ज्यादा देशों पर टैरिफ बम फोड़ रखा है और उसे भी यह पता है कि इससे अमेरिका को भी बड़ा नुकसान होने वाला है। इसको सबसे पहले टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने समझा और उन्होंने सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति का विरोध करते हुए उनका साथ छोड़ दिया। ट्रंप के टैरिफ बम वाले दिखावे की वजह से अमेरिका के उद्योगपति भी घबराए हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप के साथ जिन देशों ने ट्रेड डील करने का दावा किया, उन्हें भी इस टैरिफ के मामले में नहीं बख्शा गया है। अब पाकिस्तान को हीं देख लें, जिस देश का सेना प्रमुख डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग कर रहा है, उस पर भी ट्रंप ने 19 प्रतिशत टैरिफ ठोंक रखा है।
वैसे भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की व्यापक सफलता के बाद से भारत में निर्मित हथियारों की दुनिया में तेजी से मांग बढ़ी है। ऐसे में अमेरिका, जो अपने आप को आधुनिक हथियारों का सबसे बड़ा डीलर मानता है, उसकी चिंता ज्यादा बढ़ गई है।
दूसरा, भारत तेल की खरीदारी भी भारी मात्रा में रूस से करता है, जबकि अमेरिका इस पर भी नजरें गड़ाए बैठा है कि भारत रूस को छोड़कर उससे तेल का सौदा करे। लेकिन, इस सब के बीच जैसे ही ट्रंप ने भारत के खिलाफ 50 प्रतिशत टैरिफ की बात कही, उससे पहले पीएम मोदी के चीन दौरे और फिर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे की खबर ने उसकी बेचैनी बढ़ा दी है। अमेरिका जानता है कि रूस, चीन और भारत अगर एक बेस पर आ गए तो अमेरिका के लिए यह बड़ा महंगा पड़ सकता है। डोनाल्ड ट्रंप भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत के खिलाफ जो उनका टैरिफ बम है, वह उनके देश की सेहत को भी नुकसान पहुंचाएगा। अमेरिका में दवाएं, ज्वेलरी, गोल्ड प्लेटेड गहने, स्मार्टफोन, तौलिये, बेडशीट, बच्चों के कपड़े तक महंगे हो जाएंगे।
अभी ये तो भारत की बात थी, लेकिन देखिए कैसे अमेरिका के खिलाफ दुनिया के और देश आगे आए हैं। भारत की वैश्विक ताकत का अंदाजा इससे लगाइए कि अभी कुछ दिन पहले विदेशी मीडिया की खबरों के अनुसार ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने अमेरिकी टैरिफ के मुद्दे को सुलझाने के लिए ट्रंप से बात करने के सवाल पर साफ कह दिया कि उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। इसके बजाय वे भारत के पीएम नरेंद्र मोदी को कॉल कर लेंगे, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कॉल कर लेंगे, लेकिन वे ट्रंप को कॉल नहीं करेंगे।
लूला ने जो कहा उसके अनुसार, ”मैं ट्रंप को कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे बात ही नहीं करना चाहते हैं, मैं शी जिनपिंग को कॉल करूंगा, मैं पीएम मोदी को कॉल करूंगा, मैं पुतिन को इस समय कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे अभी यात्रा करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन मैं कई और राष्ट्रपतियों को कॉल करूंगा।”
लूला के इस बयान से ट्रंप को कैसी मिर्ची लगी होगी, यह तो सभी जानते हैं। उधर, पीएम मोदी का जिस अंदाज में लूला ने नाम लिया, वह भी ट्रंप के लिए चुभने वाला है। लूला ने तो ट्रंप की नीतियों को “ब्लैकमेल” बताते हुए साफ कर दिया कि अमेरिका ब्राजील पर टैरिफ लगाकर देखे, ब्राजील भी इसका जवाब शुल्क लगाकर देगा।
इसके साथ ही भारत और रूस की दोस्ती ही केवल अमेरिकी राष्ट्रपति की घबराहट की वजह नहीं है। दरअसल, भारत-पाकिस्तान और कंबोडिया और थाइलैंड के बीच सीजफायर को लेकर ट्रंप ने जैसे अपनी पीठ बिना किसी बात के थपथपाई वही कोशिश वह रूस-यूक्रेन के बीच भी सीजफायर होने के बाद करना चाह रहे थे। लेकिन, यूक्रेन-रूस की जंग रोकने के लिए ट्रंप ने जितने हथकंडे अपनाए सब फेल हो गए। पुतिन को ट्रंप ने हाई टैरिफ की धमकी भी दी, लेकिन रूस पर फिर भी कोई असर नहीं पड़ा तो ट्रंप बैखला गए। इसके बाद ट्रंप ने रूस के मित्र देशों और उनके साथ व्यापार करने वालों को निशाना बनाना शुरू किया। इसमें सबसे पहले ट्रंप के निशाने पर भारत, चीन और ब्राजील आए, लेकिन तीनों ही देशों पर ट्रंप की धमकी का वैसा ही असर पड़ा, जैसा रूस पर पड़ा था। अब ट्रंप गुस्से से आग बबूला होकर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं।
वहीं, ट्रंप ब्रिक्स देशों के फाउंडर रहे भारत के खिलाफ तो टैरिफ की धमकी दे ही रहे हैं। वह ब्रिक्स में शामिल अन्य देशों के खिलाफ भी 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दे चुके हैं। ब्रिक्स दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें, ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साउथ अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात शामिल है। इन ब्रिक्स देशों की तरफ से एक-दूसरे से अपनी करेंसी में ट्रेड किया जाता है, वहीं इस समूह ने एक प्रपोजल भी दिया था कि इन देशों के बीच ट्रेड के लिए एक इंटरनेशनल करेंसी तैयार की जाए, ऐसे में डॉलर पर बड़े देशों या कहें कि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों की निर्भरता कम हो जाने से अमेरिका का विश्व में प्रभुत्व बरकरार रखने पर भी खतरा मंडराएगा। ट्रंप को यह चिंता भी सता रही है।
जिस तरह से भारत डोनाल्ड ट्रंप की तमाम धमकियों के बाद भी अपने रुख पर अड़ा हुआ है और भारतीय बाजार को अमेरिका के लिए उसकी शर्तों पर खोलने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। इससे भी ट्रंप के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ उभर आई हैं। ऐसे में अब ट्रंप को भारत से जिस भाषा में जवाब मिल रहा है, वह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि अमेरिका की टैरिफ धमकी भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’ जैसी है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
व्यापार
आरबीआई गवर्नर ने एमपीसी के फैसलों का किया ऐलान, रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं

मुंबई, 6 अगस्त। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को अगस्त की मौद्रिक नीति कमेटी (एमपीसी) के फैसलों का ऐलान किया। एमपीसी की ओर से रेपो रेट को 5.50 प्रतिशत पर स्थिर गया है।
इसके अतिरिक्त, केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति का रुख “न्यूट्रल” बरकरार रखा है।
केंद्रीय गवर्नर मल्होत्रा ने कहा, “आरबीआई ने विकास को बढ़ावा देने के लिए निर्णायक और दूरदर्शी कदम उठाए हैं। एमपीसी ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को अपरिवर्तित रखने के लिए मतदान किया। रेपो दर 5.5 प्रतिशत पर बरकरार रखी गई। एमपीसी ने “न्यूट्रल” रुख बनाए रखने का फैसला किया है।”
इससे पहले आरबीआई गवर्नर की ओर से जून की मौद्रिक पॉलिसी में रेपो रेट को 0.50 प्रतिशत घटाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया था।
आरबीआई गवर्नर ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी वृद्धि अनुमान को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। वहीं, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि अनुमान 6.5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही के लिए 6.7 प्रतिशत, तीसरी तिमाही के लिए 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही के लिए 6.3 प्रतिशत निर्धारित किया है।
वहीं, अगले वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2026-27) की पहली तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत रह सकती है।
केंद्रीय बैंक के गवर्नर के मुताबिक, वित्त वर्ष 2025-26 में महंगाई 3.1 प्रतिशत रह सकती है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में महंगाई 2.1 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 3.1 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.4 प्रतिशत सकती है। वहीं, वित्त वर्ष 2026-27 की पहली तिमाही के लिए महंगाई दर अनुमान 4.9 प्रतिशत है।
मल्होत्रा के मुताबिक, एक अगस्त तक देश का विदेशी मुद्रा भंडार 688.19 अरब डॉलर है, जो कि देश के 11 महीने के व्यापारिक आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है।
आरबीआई फरवरी शुरुआत से अब तक रेपो रेट में एक प्रतिशत की कटौती कर चुका है। केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में फरवरी में 0.25 प्रतिशत, अप्रैल में 0.25 प्रतिशत और जून में 0.50 प्रतिशत की कटौती की थी।
राष्ट्रीय समाचार
केंद्र ने पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण के नकारात्मक प्रभाव की खबरों का किया खंडन

नई दिल्ली, 5 अगस्त। केंद्र सरकार ने उन मीडिया रिपोर्टों का खंडन किया है, जिनमें पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण (ई20) के संभावित नकारात्मक प्रभाव, खासकर पुराने वाहनों और ग्राहक अनुभव के बारे में चिंता जताई गई थी।
पेट्रोलियम मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “हालांकि, ये चिंताएं काफी हद तक निराधार हैं और इसे लेकर वैज्ञानिक प्रमाण या विशेषज्ञ विश्लेषण का भी अभाव है।”
उन्होंने आगे कहा कि पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण से वाहनों को नुकसान पहुंचने या उपभोक्ताओं को अनावश्यक परेशानी होने की बात ‘वास्तविक तथ्यों’ पर आधारित नहीं है और इसमें तकनीकी आधार का भी अभाव है।
कार्ब्युरेटेड और फ्यूल-इंजेक्टेड व्हीकल के पहले 1,00,000 किलोमीटर के दौरान हर 10,000 किलोमीटर पर टेस्टिंग के माध्यम से वाहनों के मैकेनिकल, एनर्जी और पर्यावरणीय प्रदर्शन पर इथेनॉल-पेट्रोल मिश्रण के उपयोग के प्रभाव पर इंटरनेशनल स्टडी से सांख्यिकीय रूप से पावर और टॉर्क जनरेटर तथा ईंधन की खपत में कोई अंतर नहीं दिखा।
मंत्रालय ने एक एक्स पोस्ट में कहा, “ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (आईआईपी) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आरएंडडी) द्वारा सामग्री अनुकूलता और चलाने योग्यता परीक्षणों ने पुष्टि की है कि पुराने वाहनों में भी ई20 से चलने पर कोई महत्वपूर्ण बदलाव, प्रदर्शन संबंधी परेशानी या असामान्य टूट-फूट नहीं देखी गई। इसके अलावा, ई20 ईंधन ने इंजन को बिना किसी नुकसान के गर्म और ठंडे स्टार्टेबिलिटी टेस्ट को पास कर लिया।”
ईंधन दक्षता को लेकर मंत्रालय ने कहा कि इथेनॉल, पेट्रोल की तुलना में ऊर्जा घनत्व में कम होने के कारण, माइलेज में मामूली कमी लाता है।
मंत्रालय ने इस बात पर जोर देते हुए कहा, “बेहतर इंजन ट्यूनिंग और ई20-संगत सामग्रियों के इस्तेमाल से दक्षता में इस मामूली गिरावट को और कम किया जा सकता है, जिन्हें प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माता पहले ही अपना चुके हैं। दरअसल, सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) ने पुष्टि की है कि अपग्रेडेड कंपोनेंट्स वाले ई20-संगत वाहन अप्रैल 2023 से बाजार में आने शुरू हो गए हैं। इस प्रकार, यह आरोप कि ई20 ईंधन दक्षता में भारी गिरावट लाता है, जो तथ्यात्मक रूप से गलत है।”
ई20 के लिए सुरक्षा मानक (संक्षारण अवरोधक और संगत ईंधन प्रणाली सामग्री) बीआईएस विनिर्देशों और ऑटोमोटिव उद्योग मानकों के माध्यम से अच्छी तरह से स्थापित हैं।
कुछ पुराने वाहनों में 20,000 से 30,000 किलोमीटर के लंबे इस्तेमाल के बाद कुछ रबर के पुर्जों/गैस्केट को बदलने की सलाह दी जा सकती है।
मंत्रालय ने कहा कि यह बदलाव सस्ता है और वाहन की नियमित सर्विसिंग के दौरान आसानी से किया जा सकता है।
इथेनॉल की ऑक्टेन संख्या 108.5 होती है, जो कि पेट्रोल की ऑक्टेन संख्या 84.4 से ज्यादा है, जिसका अर्थ है कि इथेनॉल-पेट्रोल मिश्रण की ऑक्टेन संख्या पारंपरिक पेट्रोल से ज्यादा होती है।
इसलिए, मंत्रालय ने आगे कहा कि आधुनिक हाई-कंप्रेशन रेश्यो इंजन के लिए आवश्यक हाई-ऑक्टेन फ्यूल (95) प्रदान करने के लिए इथेनॉल का उपयोग एक आंशिक विकल्प बन गया है, जो बेहतर राइड क्वालिटी प्रदान करते हैं।
मंत्रालय ने आगे कहा, “ई20 मिश्रण कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करके भारत की ऊर्जा सुरक्षा को महत्वपूर्ण रूप से मजबूत करता है। वास्तव में, 2014-15 से पेट्रोल के विकल्प के माध्यम से भारत 1.40 लाख करोड़ रुपए से अधिक की विदेशी मुद्रा बचा चुका है। इथेनॉल मिश्रण ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है, जिससे किसानों को 1.20 लाख करोड़ रुपए से अधिक का त्वरित भुगतान होता है, जिससे कृषि और जैव ईंधन क्षेत्रों में आय और रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।”
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